सेहत

शकरकंद का असली आनंद तो गर्म रेत या आग में भूनकर खाने में ही आता है!

अरूणिमा सिंह
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शकरकंदी खरीद लीजिए!
आज तो शकरकंद का ही दिन क्योंकि आज तिलवा गंजी है।

सर्वप्रथम मेरी सभी बहनो माताओं को संकठा चतुर्थी की ढेर सारी शुभकामनायें।

आज के दिन सभी माताएं अपनी संतान की सुख, समृद्धि, उत्तम स्वास्थ्य, लम्बी आयु के लिए ब्रत रखती हैं और शाम को पूजन करती हैं। इस पूजन में शकरकंद और काले तिल का होना आवश्यक होता है।

कल ही सबकी छत पर तिल धोकर सूखते नजर आ रहे थे। आज रात में उन तिलों को भूनकर लड्डू, चिक्की बनाया जाता है और शकरकंद उबाल कर रख ली जाती है चूंकि पूजन देर रात मे होता है इसलिए बच्चे लगभग सो जाते हैं और फिर अगले दिन की सुबह शकरकंद और हरी धनिया की चटनी और तिल के लड्डू प्रसाद के रूप में नाश्ते मे मिलते हैं।

ये प्रसाद गांव में भी एक दूसरे के घर वितरित किया जाता है।
वैसे पहले तो हमारे घर में पहले तिल के लड्डुओं की कोई व्यवस्था नहीं होती थी तिल भूनकर उनमे घर का गुड़ मसलकर मिला दिया जाता था और हम सब यू ही तिल का फांका मार लिया करते थे। लड्डू तो अब इधर बनने लगे हैं।

शकरकंद का असली आनंद तो गर्म रेत या आग में भूनकर खाने में ही आता है उबली और बासी यानी ठण्डी शकरकंद तो गले में अटकने लगती है।
शकरकंद का सीजन आते ही हम बच्चों के मजे हो जाते थे। सुबह शाम चूल्हे या कौड़ा में शकरकंद और आलू भूनकर खाते थे।

कभी कभी आजी या माँ जब धान का भुजिया करती थी तब भुजिया में दबा दिया करती थी और शकरकंद उनमें उबल जाती थी फिर हमे खाने को मिलता था।

जब घर पर शकरकंद की खेती होती थी तब उसकी बेल को इधर उधर हटाकर लकड़ी से मिट्टी खोदकर कच्ची शकरकंद निकाल लिया करते थे। कच्ची शकरकंद पर लगी मिट्टी खेतों में उगी घास या पत्तों से साफ करके खा लिया करते थे।

कच्ची शकरकंद भी खाने में मीठी और दुधार सी लगती है बहुत स्वादिष्ट लगती है और खेत से चोरी से खोदकर खाई जा रहीं हो तो यू भी स्वाद और आनंद दोनों बढ़ जाता है।

पोस्ट पढ़कर आप सबको भी कोई बात कोई अनुभव याद आये हो तो कमेंट में अवश्य बतायें।

अरूणिमा सिंह