Shailesh Verma
@shaileshvermasp
जानिए मरे हुए इंसान का कौन सा अंग खाना पसंद करते हैं नागा साधु
यह मरे इंसान के मानव खोपड़ी का इस्तेमाल भोजन के पात्र के रूप में करते हैं
इन्हें मरे हुए इंसान का बोन मैरो सबसे ज्यादा पसंद होता है
यह मरे हुए इंसान के मांस को खाते हैं
मांस खाने के पीछे तर्क दिया जाता है व्यक्ति के मन से घृणा निकालने के लिए ऐसा करते है
जो समाज को पसंद नहीं है जैसे मुर्दा कफन समसान घाट ये सब देखना अघोरी बाबा पसंद करते हैं
सत्य_अन्वेषी🇮🇳
@iAK1707
नागा साधु :
🚩8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने अखाड़ा प्रणाली की स्थापना की. इस प्रणाली के तहत सनातन धर्म की रक्षा के उद्देश्य से शस्त्र और शास्त्र दोनों में निपुण साधुओं का एक संगठन बनाया गया. इन साधुओं को “धर्म रक्षक” या “नागा साधु” कहा जाता था. ‘नागा साधु भगवान शिव के अनुयायी होते हैं जिनके पास तलवार, त्रिशूल, गदा, तीर धनुष जैसे हथियार होते थे. इन्हीं योद्धा साधुओं को उन्होंने ‘नागा’ नाम दिया.
🚩 संतों के 13 अखाड़ों (निरंजनी अखाड़ा, जूना, महानिर्वाणी, अटल, आह्वान, आनंद, अग्नि, नागपंथी गोरखनाथ, वैष्णव, उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा, उदासीन नया अखाड़ा, निर्मल पंचायती अखाड़ा और निर्मोही अखाड़ा) में से सात अखाड़े ही नागा साधु बनाते हैं. ये हैं- जूना, महानिर्वाणी, निरंजनी, अटल, अग्नि, आनंद और आवाहन अखाड़ा. नागा साधु बनने की प्रक्रिया कठिन और 12 साल लंबी होती है. कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद वे लंगोट भी त्याग देते हैं और जीवन भर यूं ही नग्न यानी दिगंबर रहते हैं.
AbhiRaj
@AbhilekhRai
नागा साधुओं का जीवन और विशेषताएं 👇 🕉️
त्याग और तपस्या
नागा साधु सभी भौतिक वस्तुओं का त्याग कर देते हैं और प्रायः गुफाओं, जंगलों या आश्रमों में एकांत में रहते हैं।
वे ब्रह्मचर्य, ध्यान, योग और अन्य आध्यात्मिक साधनाओं का पालन करते हैं।
अधिकतर नागा साधु नग्न रहते हैं, जो सांसारिक इच्छाओं से उनकी मुक्ति का प्रतीक है।
यह प्रकृति और आध्यात्मिक स्वतंत्रता के साथ उनके एकत्व को भी दर्शाता है।
भस्म से शरीर का लेप
वे अपने शरीर पर भस्म (राख) का लेप करते हैं, जो नश्वरता और शारीरिक सौंदर्य या गर्व से उनकी दूरी का प्रतीक है।
जटाएं (लंबे बाल)
वे लंबे, जटाओं वाले बाल रखते हैं, जो भगवान शिव के प्रति उनके गहरे संबंध को दर्शाते हैं।
अस्त्र-शस्त्र
नागा साधु त्रिशूल, तलवार और भाले जैसे हथियार रखते हैं, जो धर्म की रक्षा में उनकी भूमिका को दर्शाते हैं।
आध्यात्मिक साधनाएं
वे गहन ध्यान, योग और तंत्र साधनाओं का अभ्यास करते हैं।
वे हवन जैसे अग्नि अनुष्ठानों में भाग लेते हैं और कभी-कभी धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान ध्यान बढ़ाने के लिए भांग का उपयोग करते हैं।
कुंभ मेले में भूमिका
नागा साधु कुंभ मेले में प्रमुख भूमिका निभाते हैं और पवित्र नदी में शाही स्नान का नेतृत्व करते हैं |
यह स्नान शुद्धिकरण और मोक्ष (मुक्ति) प्राप्ति का प्रतीक है।
नागा साधु बनने की प्रक्रिया
दीक्षा प्रक्रिया
नागा साधु बनने के लिए कठिन दीक्षा प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, जिसमें शामिल हैं:
सभी सांसारिक संबंधों का त्याग।
गुरु (मार्गदर्शक) के तहत एक प्रशिक्षण अवधि।
ब्रह्मचर्य और वैराग्य का संकल्प।
एक विशेष अनुष्ठान में अपने प्रतीकात्मक “शरीर” का दाह संस्कार, जो उनके सांसारिक पहचान के अंत को दर्शाता है।
अखाड़े का हिस्सा बनना
नागा साधु विशेष अखाड़ों (सन्यासी संगठनों) का हिस्सा होते हैं, जैसे कि जूना अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा और महानिर्वाणी अखाड़ा।
आस्थाएं और दर्शन
भगवान शिव की भक्ति
नागा साधु भगवान शिव के प्रति गहरी भक्ति रखते हैं और उनके त्याग, ध्यान और शक्ति के मार्ग का अनुसरण करते हैं।
सनातन धर्म की रक्षा
ऐतिहासिक रूप से, नागा साधु योद्धा भी थे जिन्होंने आक्रमणों के दौरान हिंदू मंदिरों और परंपराओं की रक्षा की।
आध्यात्मिक मुक्ति (मोक्ष)
उनका अंतिम उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना है, जिसमें वे सभी सांसारिक बंधनों को छोड़कर केवल आध्यात्मिक विकास पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
आधुनिक समय के नागा साधु
आज के समय में अधिकांश नागा साधु एकांत में जीवन जीते हैं, लेकिन कुछ धार्मिक उत्सवों और आयोजनों में भाग लेकर अपने विचारों और शिक्षाओं का प्रचार करते हैं। तप और त्याग से भरे अपने जीवन के बावजूद, वे हिंदू परंपराओं और आध्यात्मिक ज्ञान के संरक्षक के रूप में पूजनीय है | 🕉️👏
Shubhangi Pandit
@Babymishra_
आखिर कौन होते हैं नागा साधू? पोस्ट आसान कर दी है
जाने उनका रहस्य:
खुद को मूलनिवासी कहने वाले ये नकली बौद्ध अगर अपनी माँ को भी बच्चे को स्तन से दूध पिलाते हुए देखेंगे तो उसमें भी उन्हें अश्लीलता ही नजर आऐगी क्योंकि इन्होंने सनातन धर्म के संस्कार तो पढे नहीं हैं जो नागा साधुओं ने तन के कपडे भी त्याग दिऐ उनका त्याग इन्हें समझ नहीं आ सकता….
अक्सर मुस्लिम और अंबेडकर वादी नागा साधूओं की तस्वीर दिखा कर हिन्दु धर्म के साधूओं का अपमान करने की और हिन्दुओं को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं उन लोगों को नागा साधूओं का गौरवशाली इतिहास पता नहीं होता जानें नागा साधूओं का गौरवशाली इतिहास और उसकी महानता।
नागा साधूओं का इतिहास
नागा साधु हिन्दू धर्मावलम्बी साधु हैं जो कि नग्न रहने तथा युद्ध कला में माहिर होने के लिये प्रसिद्ध हैं। ये विभिन्न अखाड़ों में रहते हैं जिनकी परम्परा आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा की गयी थी।
नागा साधूओं का इतिहास
भारतीय सनातन धर्म के वर्तमान स्वरूप की नींव आदिगुरू शंकराचार्य ने रखी थी। शंकर का जन्म ८वीं शताब्दी के मध्य में हुआ था जब भारतीय जनमानस की दशा और दिशा बहुत बेहतर नहीं थी। भारत की धन संपदा से खिंचे तमाम आक्रमणकारी यहाँ आ रहे थे। कुछ उस खजाने को अपने साथ वापस ले गए तो कुछ भारत की दिव्य आभा से ऐसे मोहित हुए कि यहीं बस गए, लेकिन कुल मिलाकर सामान्य शांति-व्यवस्था बाधित थी। ईश्वर, धर्म, धर्मशास्त्रों को तर्क, शस्त्र और शास्त्र सभी तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था। ऐसे में शंकराचार्य ने सनातन धर्म की स्थापना के लिए कई कदम उठाए जिनमें से एक था देश के चार कोनों पर चार पीठों का निर्माण करना। यह थीं गोवर्धन पीठ, शारदा पीठ, द्वारिका पीठ और ज्योतिर्मठ पीठ। इसके अलावा आदिगुरू ने मठों-मन्दिरों की सम्पत्ति को लूटने वालों और श्रद्धालुओं को सताने वालों का मुकाबला करने के लिए सनातन धर्म के विभिन्न संप्रदायों की सशस्त्र शाखाओं के रूप में अखाड़ों की स्थापना की शुरूआत की।
नागा साधूओं का इतिहास
आदिगुरू शंकराचार्य को लगने लगा था सामाजिक उथल-पुथल के उस युग में केवल आध्यात्मिक शक्ति से ही इन चुनौतियों का मुकाबला करना काफी नहीं है। उन्होंने जोर दिया कि युवा साधु व्यायाम करके अपने शरीर को सुदृढ़ बनायें और हथियार चलाने में भी कुशलता हासिल करें। इसलिए ऐसे मठ बने जहाँ इस तरह के व्यायाम या शस्त्र संचालन का अभ्यास कराया जाता था, ऐसे मठों को अखाड़ा कहा जाने लगा। आम बोलचाल की भाषा में भी अखाड़े उन जगहों को कहा जाता है जहां पहलवान कसरत के दांवपेंच सीखते हैं। कालांतर में कई और अखाड़े अस्तित्व में आए। शंकराचार्य ने अखाड़ों को सुझाव दिया कि मठ, मंदिरों और श्रद्धालुओं की रक्षा के लिए जरूरत पडऩे पर शक्ति का प्रयोग करें। इस तरह बाह्य आक्रमणों के उस दौर में इन अखाड़ों ने एक सुरक्षा कवच का काम किया। कई बार स्थानीय राजा-महाराज विदेशी आक्रमण की स्थिति में नागा योद्धा साधुओं का सहयोग लिया करते थे। इतिहास में ऐसे कई गौरवपूर्ण युद्धों का वर्णन मिलता है जिनमें ४० हजार से ज्यादा नागा योद्धाओं ने हिस्सा लिया। अहमद शाह अब्दाली द्वारा मथुरा-वृन्दावन के बाद गोकुल पर आक्रमण के समय नागा साधुओं ने उसकी सेना का मुकाबला करके गोकुल की रक्षा की।
नागा साधू
नागा साधुओं की लोकप्रियता है। संन्यासी संप्रदाय से जुड़े साधुओं का संसार और गृहस्थ जीवन से कोई लेना-देना नहीं होता। गृहस्थ जीवन जितना कठिन होता है उससे सौ गुना ज्यादा कठिन नागाओं का जीवन है। यहां प्रस्तुत है नागा से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी।
1.
नागा अभिवादन मंत्र : ॐ नमो नारायण
2.
नागा का ईश्वर : शिव के भक्त नागा साधु शिव के अलावा किसी को भी नहीं मानते।
*नागा वस्तुएं : त्रिशूल, डमरू, रुद्राक्ष, तलवार, शंख, कुंडल, कमंडल, कड़ा, चिमटा, कमरबंध या कोपीन, चिलम, धुनी के अलावा भभूत आदि।
3.
नागा का कार्य : गुरु की सेवा, आश्रम का कार्य, प्रार्थना, तपस्या और योग क्रियाएं करना।
4.
नागा दिनचर्या : नागा साधु सुबह चार बजे बिस्तर छोडऩे के बाद नित्य क्रिया व स्नान के बाद श्रृंगार पहला काम करते हैं। इसके बाद हवन, ध्यान, बज्रोली, प्राणायाम, कपाल क्रिया व नौली क्रिया करते हैं। पूरे दिन में एक बार शाम को भोजन करने के बाद ये फिर से बिस्तर पर चले जाते हैं।
5.
सात अखाड़े ही बनाते हैं नागा : संतों के तेरह अखाड़ों में सात संन्यासी अखाड़े ही नागा साधु बनाते हैं:- ये हैं जूना, महानिर्वणी, निरंजनी, अटल, अग्नि, आनंद और आवाहन अखाड़ा।