साहित्य

शबरी झूठन खाय के, राघव हुए निहाल…By-संजय नायक ‘शिल्प’

संजय नायक ‘शिल्प’
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शबरी झूठन खाय के, राघव हुए निहाल।
राम लुटाए कुछ नही , शबरी मालामाल।।

दुपहरी की नींद में सोई बूढ़ी शबरी अचानक कोलाहल से जाग उठती है। वो देखती है कि सारी चिड़ियाँ जोर जोर से चिर्र् पिरर्र कर रहीं है । इधर जोर जोर से गाय रंभा रही है और पास में खड़ी हिरनी कुलांचे भरते हुए दूर तक दौड़ जाती और वापस आकर अपने नन्हे से बच्चे को चाटने लगती है। ऐसा लग रहा था सारे पंछी सारे पक्षी कोई जश्न मना रहे हैं।

क्या हुआ इनको…? दो घडी चैन से सोने भी नहीं देते मुए! कितना डाँट कर भगा देती हूँ पर मेरी जान खाये रहते हैं पूरे दिन ।अब क्या हुआ तुम सब को? क्या हुआ है? कुछ तो बोलो … ए मैना इतना क्यों खुश हो रही है तू? और तू रे कौवेराज ! आज ये तेरी काँव काँव सुरीली कैसे हो गई? क्या आज वो बरगद वाला अजगर मारा गया जो सब इतने खुश हो रहे हो?

ए भूरि गाय ! क्या वो नदी वाला मगर किसी का शिकार हो गया कि जोर से रंभा रही है । कोई कुछ तो बोलो! सब अपनी ही धुन में गाये जा रहे हैं।

चलो छोडो सब , तुम बोलो मिट्ठू राजा तुम ही हो जो बोल कर बता सकते हो क्या हुआ ? मिट्ठू बोला…जय श्री राम जय श्री राम।

ओह ! मैं भी कितनी मूर्ख हूँ …इस से पूछ रही हूँ। ये पागल तो जय श्री राम के सिवा कुछ जानता ही नहीं बोलना।

अचानक से हवाएँ जोर से चलने लगीं और सारे जानवर खुश हो एकमेव स्वर में चिल्लाने लगे और बूढी शबरी लकड़ी लिए उनके पीछे दौड़ी अचानक उसकी नजर कुटिया की मेढ़ के पार खड़े दो वनवासियों की ओर पड़ी।

उसके हाथ से लकड़ी गिर पड़ी और आँखे विस्तृत हो गयी।अरे! ये क्या देख रही हूँ ? इन बूढी आँखों को हर जगह श्री राम ही श्री राम दिखाई देते हैं।

क्या वही दोनों खड़े हैं द्वार पर ? जा कर देखती हूँ ।जैसे ही वो द्वार पर पहुँची श्री राम को देखते ही मुँह से श्री राम निकला और वो मूर्छित हो गिर पड़ी।

दोनों भाइयों ने उसे उठाकर उसके दूर्वा के बिस्तर पर लिटाया और लक्षमण ने मिट्टी के मटके से पानी लेकर श्रीराम को थमाया।
श्रीराम ने अपने हाथ में थोडा सा जल लेकर शबरी पर छिड़का और वो चौंक कर उठ बैठी। उसकी आँखों से अश्रुधार बह निकली और उसने रो रोकर राम के चरण भिगो दिये। राम लगातार शबरी के माथे पर हाथ फिरा रहे थे। अचानक जैसे वो नींद से जागी और उसने दौड़भाग कर दोनों भाइयों के लिए दूर्वा का आसन लगाया और उन्हें बिठाया व सभी जानवरों को, जो वहां पर इकट्ठे होकर एकमेव आवाज में ख़ुशी प्रकट कर रहे थे , डाँटकर भगाया। मत परेशान करो इन्हें…थके होंगे ,कुछ खाने को तो दे दूँ पहले ।

….और जैसे ही उसने खाने का नाम लिया , उसे याद आया कि वो तो पिछले तीन दिन से ज्वर में तप रही है । खाने को जंगल से न तो कन्द मूल लाई है और न ही कोई फल… और ये भूरि गाय तो दो महीने से दूध ही नहीं दे रही । फिर भी वो कुटिया में इस आस से चली गई कि जाने कुछ मिल जाए । उसने देखा कि एक डलिया में कुछ कच्चे कुछ पके से बेर रखे हैं।

वो झट से डलिया उठा लाई और बहुत से बेर श्रीराम की ओर बढ़ाये फिर झट से हाथ खींच लिया । मन ही मन सोचा ओह!! मैं भी कितनी मूर्ख हूँ! अगर बेर खट्टे हुए तो ? और खारे हुए तो…?? श्रीराम के गले में खराश आ जायेगी और फिर उन्हें किसी भी वस्तु के खाने पीने में बड़ी पीड़ा होगी। नहीं ऐसे तो श्रीराम को बेर न खिलाये जायेंगे ।चलो , इन्हें चखती हूँ पहले… फिर उन्हें खाने को दूंगी।

… और इधर राम लालायित हैं कि कब शबरी उन्हें बेर खिलाये और कब वो भक्त का झूठा खाकर तृप्त हो जाएँ । शबरी ने एक एक बेर को चख कर श्रीराम को और लक्षमण को देना शुरू कर दिया । इधर राम बड़े चाव से बेर खा रहे थे और उधर लक्षमण बड़ी दुविधा में थे कि क्या करूँ ? ये बुढ़िया आज झूठन खिला कर ही मानेगी।

….और भ्राता श्रीराम को देखो , कितने चाव से विभोर होकर बेर खा रहे हैं ।लक्षमण ने कुछ बेर धीरे से पीठ पीछे फेंक दिए कुछ दूर्वा के आसन के निचे छिपा दिए। ये सब देखने के लिए शबरी के पास समय नही था।

वो तो बस प्रेम से अपने श्रीराम को बेर खिलाये जा रही थी और श्रीराम खाये जा रहे थे। एक तरफ जहाँ शबरी को तो जैसे दुनिया की सारी खुशियां ही मिल गई थी और राम केवल मंद मंद मुस्कुरा रहे थे । शबरी श्रीराम को बेर खिलाये जा रही है और उसकी आँखों से आंसू झर्र झर्र बह रहे हैं। श्रीराम बार बार अपने हाथों से उसके आंसू पोंछ रहे हैं। बहुत ही मनोहारी बहुत ही भावुक वातावरण हो चला था। भक्त और भगवान् का अद्भुत प्रेम व् आनंदित वातावरण देख “शिल्प” बस यही कह पाये….

शबरी झूठन खाय के, राघव हुए निहाल।
राम लुटाए कुछ नहीं , शबरी मालामाल।।

संजय नायक ‘शिल्प’