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आख़िरकार लड़ते-लड़ते लहूलुहान होकर कुँवर भीमसिंह अब्दुल्ला खां की ड्योढ़ी तक पहुंच गए

1611 ई. में मुगल सेनापति अब्दुल्ला खां ने मेवाड़ की राजधानी चावंड को जीत लिया, जिससे महाराणा अमरसिंह बड़े दुःखी हुए। महाराणा अमरसिंह ने दरबार में कहा कि “अगर उदयपुर के भव्य महल हमारे हाथ से निकल जावे, तब भी हमें इतना दुःख नहीं होता, जितना चावण्ड के जाने से है। यदि अब भी अब्दुल्ला खां को जवाब ना दिया, तो बड़ी अपकीर्ति होगी।”

तभी दरबार में बैठे महाराणा अमरसिंह के वीर पुत्र कुँवर भीमसिंह खड़े हुए और बोले कि “हुज़ूर, अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं अब्दुल्ला खां से लड़ने जाऊं। आपको मेरा वचन है कि लड़ते-लड़ते अब्दुल्ला खां की ड्योढ़ी तक न चला जाऊँ, तो जीवनभर आपको अपना मुंह नहीं दिखलाऊंगा।”

कुँवर भीमसिंह 2 हज़ार घुड़सवारों सहित रवाना हुए। अब्दुल्ला खां को कुँवर भीमसिंह की इस प्रतिज्ञा के बारे में पता चला, तो उसने बहुत सी फौज ड्योढ़ी पर तैनात कर दी। जगह-जगह शाही सिपहसालारों और सैनिकों को तैनात कर दिया और सभी को सतर्क रहने का हुक्म दिया। वह खुद भी हर तरफ निगरानी रखे हुए था।

कुँवर भीमसिंह अब्दुल्ला खां के डेरों के सामने पहुंच गए और लड़ाई शुरू होने में पल भर का वक्त भी नहीं लगा। मेवाड़ी राजपूत मुगलों पर टूट पड़े। अब्दुल्ला खां की फ़ौज मेवाड़ी फ़ौज की तुलना में 5 गुना अधिक थी, फिर भी मुगल सेना के पांव उखड़ते जा रहे थे।

कुँवर भीमसिंह घोड़े पर सवार थे। जो उनके सामने आता वह उनकी तलवार के वेग के सामने नहीं टिक पाता और यमलोक की तरफ प्रस्थान करता। ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो आज कुँवर भीमसिंह किसी के रोके नहीं रुकने वाले थे।

आख़िरकार लड़ते-लड़ते लहूलुहान होकर कुँवर भीमसिंह अब्दुल्ला खां की ड्योढ़ी तक पहुंच गए, लेकिन इससे आगे ना बढ़ सके। कुँवर भीम के 2 गहरे घाव लगे और उनके घोड़े का एक पैर कट गया, जिसके बाद कुँवर दूसरे घोड़े पर चढ़ गए।

ये भीषण लड़ाई बराबरी पर जाकर ख़त्म हुई, पर अब्दुल्ला खां को काफ़ी फ़ौजी नुकसान उठाना पड़ा। मेवाड़ के राजपूतों ने इस लड़ाई में जो शौर्य दिखाया, वो अतुलनीय था। इस लड़ाई में अब्दुल्ला खां के बहुत से सैनिकों समेत 60 नामी सर्दार मारे गए। मेवाड़ की तरफ से भी सैंकड़ों वीरों समेत 25 खास योद्धा काम आए।

कुँवर भीमसिंह नाहरमगरे में महाराणा अमरसिंह के सामने हाजिर हुए, जहां महाराणा अपने बेटे की इस वीरता से बड़े खुश हुए। इस लड़ाई के 4 महीने बाद तक अब्दुल्ला खां ने मेवाड़ पर कोई हमला नहीं किया।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत

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आज आपको बताते है #राजपुताने की एक रोचक बात जो शायद ही किसी को पता हो हमारे पूरे भारत वर्ष में #राजपूताना को छोड़ कर ऐसा कोई राज्य नहीं है जहां मुगलों के नाम से जगह ना हो केवल राजपूताना (राजस्थान) ही ऐसी जगह है जहां कोई भी जिला मुगलों के नाम से नहीं है यही बात #राजपूतों का बलिदान और उनकी वीरता दर्शाने के लिए काफी है।
!! अब एक एक जिलों का परिचय करवाती हु!!
#अजमेर:- अजमेर 27 मार्च1112 में चौहान राजपूत वंश के तेइसवें शासक अजयराज चौहान ने बसाया!!
#बीकानेर:- बीकानेर का पुराना नाम जांगल देश, राव बीका जी राठौड़ के नाम से बीकानेर पड़ा!
#गंगानगर:- महाराजा गंगा सिंह जी से गंगानगर पड़ा!
#जैसलमेर:- जैसलमेर ,महारावल जैसलजी भाटी ने बसाया
#उदयपुर: – महाराणा उदय सिंह सिसोदिया जी ने बसाया उनके नाम से उदयपुर पड़ा!!
#बाड़मेर:- बाड़मेर को राव बहाड़ जी ने बसाया!!
#जालौर:- जालौर की नींव 10वी शताब्दी में परमार राजपूतों के द्वारा रखी गई! बाद में चौहान, राठौड़, सोलंकी आदि राजवंशो ने शासन किया!!
#सिरोही:-राव सोभा जी के पुत्र, शेशथमल ने सिरानवा हिल्स की पश्चिमी ढलान पर वर्तमान शहर सिरोही की स्थापना की थी। उन्होंने वर्ष 1425 ईसवी में वैशाख के दूसरे दिन (द्वितिया) पर सिरोही किले की नींव रखी।
#डूंगरपुर:- वागड़ के राजा डूंगरसिंह ने ई. 1358 में डूंगरपुर नगर की स्थापना की। बाबर के समय में उदयसिंह वागड़ का राजा था जिसने मेवाड़ के महाराणा के संग्रामसिंह के साथ मिलकर खानुआ के मैदान में बाबर का मार्ग रोका था।
#प्रतापगढ़:- प्रताप सिंह महारावत ने बसाया!
#चित्तौड़:- स्वाभिमान, शौर्य ,त्याग, वीरता ,राजपुताना की शान चित्तौड़, सिसोदिया (गहलोत)वंश ने बहुत शासन किया बप्पा रावल, महाराणा प्रताप सिंह जी यहाँ षासन किया!!
#हनुमानगढ़ :-भटनेर दुर्ग 285 ईसा में भाटी वंश के राजा भूपत सिंह भाटी ने बनवाया इस लिए इसे भटनेर कहाँ जाता है। मंगलवार को दुर्ग की स्थापना होने कारण हनुमान जी के नाम पर हनुमानगढ़ कहा जाता है।
#जोधपुर:-राव जोधा ने 12 मई, 1459 ई. में आधुनिक जोधपुर शहर की स्थापना की।
#राजसमंद:- शहर और जिले का नाम मेवाड़ के राणा राज सिंह द्वारा 17 वीं सदी में निर्मित एक कृत्रिम झील, राजसमन्द झील के नाम से लिया गया है।
#बूंदी:-इतिहास के जानकारों के अनुसार 24 जून 1242 में हाड़ा वंश के राव देवा ने इसे मीणा सरदारों से जीता और बूंदी राज्य की स्थापना की। कहा जाता है कि बून्दा मीणा ने बूंदी की स्थापना की थी, तभी से इसका नाम ‘बूंदी’ हो गया।
#सीकर:-सीकर जिले को “वीरभान” ने बसाया ओर “वीरभान का बास” सीकर का पुराना नाम दिया।
#पाली:- महाराणा प्रताप का ननिहाल एवं महाराणा उदयसिंह का ससुराल है। पाली मूलतया पालीवाल ब्राह्मणों द्वारा बसाया गया है।
#भीलवाड़ा:-किवदंती है कि इस शहर का नाम यहां की स्‍थानीय जनजाति भील के नाम पर पड़ता है जिन्‍होंने 16वीं शताब्‍दी में अकबर के खिलाफ मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप की मदद की थी। तभी से इस जगह का नाम भीलवाड़ा पड़ गया।
#करौली:-इसकी स्‍थापना 955 ई. के आसपास राजा विजय पाल ने की थी जो भगवान कृष्‍ण के वंशज है।
#सवाई_माधोपुर:-राजा माधोसिंह ने ही शहर बसाया और इसका नाम सवाई माधोपुर दिया।
#जयपुर:-जयपुर शहर की स्थापना सवाई जयसिंह ने 1727 में की। सवाई प्रताप सिंह से लेकर सवाई मान सिंह द्वितीय तक कई राजाओं ने शहर को बसाया।
#नागौर:-नागौर दुर्ग भारत के प्राचीन क्षत्रियों द्वारा बनाये गये दुर्गों में से एक है। माना जाता है कि इस दुर्ग के मूल निर्माता नाग क्षत्रिय थे। नाग जाति महाभारत काल से भी कई हजार साल पुरानी थी। यह आर्यों की ही एक शाखा थी तथा ईक्ष्वाकु वंश से किसी समय अलग हुई।
#अलवर:-कछवाहा राजपूत राजवंश द्वारा शासित एक रियासत थी, जिसकी राजधानी अलवर नगर में थी। रियासत की स्थापना 1770 में प्रभात सिंह प्रभाकर ने की थी।
#धौलपुर:- मूल रूप से यह नगर ग्याहरवीं शताब्दी में राजा धोलन देव ने बसाया था। पहले इसका नाम धवलपुर था, अपभ्रंश होकर इसका नाम धौलपुर में बदल गया।
#झालावाड़:-झालावाड़ गढ़ भवन का निर्माण राज्य के प्रथम नरेश महाराजराणा मदन सिंह झाला ने सन 1840 में करवाया था।
#दौसा:-बड़गूजरों द्वारा करवाया गया था। बाद में कछवाहा शासकों ने इसका निर्माण करवाया।
राजपूतों ने हमेशा शत्रुओं को पछाड़ा है, ना कभी किसी से हारे हमेशा विजय रहे, अपने क्षत्रिय धर्म पर अटल रहे.
कुछ युद्ध हारे है।
जो नगण्य है. ।
#_राजपूत__जिंदाबाद