नई दिल्ली: महाराष्ट्रा कैडर के 28 वर्षीय युवा आईपीएस ऑफिसर नुरुल हसन पूरे देश के युवाओं को प्रेरित कर रहे हैं,और उन्हें कुछ करने के लिये उभार रहे हैं,नांदेड के धर्माबाद में तैनात इस युवा आईपीएस ने अपने कामों से धूम मचा रखी है,पिछले दिनों खनन माफियाओं के खिलाफ कार्यवाही करके इसने उनकी सालों से चली आरही गुंडागर्दी को खत्म कर दिया है।
नुरुल हसन उत्तर प्रदेश के जनपद बरेली के निवासी हैं,उन्होंने इस मक़ाम को हासिल करने में बड़ी मेहनत और मशक़्क़त का सामना किया है,बचपन मे अखबार पढ़ने के लिए उन्हें ढाबे का चक्कर लगाना पड़ता था क्योंकि उनके घर अखबार नही आया करता था,लेकिन नुरुल हसन के जुनून में उन्हें कामयाब किया और 2015 की यूपीएससी रैंक में 625 वां स्थान प्राप्त किया।
गरीबी में बीता बचपन
नुरुल का बचपन बेहद ही गरीबी में बीता, लेकिन उनकी मेहनत कभी संसाधनों का मोहताज नहीं रही। मूलरूप से पीलीभीत के रहने वाले नुरुल के पिता शमशुल हसन पीलीभीत कचेहरी में चुतर्थ श्रेणी कर्मचारी थे। वे तीन भाई हैं। उनके पिता की इतनी आमदनी भी नहीं थी कि वे अपने तीनों बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में अच्छी शिक्षा दिला सकें। नुरुल ने अपनी 8वीं तक की पढ़ाई ब्लॉक अमरिया के गांव हररायपुर स्थित के परिषद विद्यालय से की। इसके बाद सरकारी स्कूल से हाईस्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे अपने परिवार के साथ बरेली आ गए। उनके पिता का ट्रांसफर बरेली की कचेहरी में हो गया। नुरुल ने इंटर एमबी इंटर कॉलेज से किया। संसाधनों की भारी कमी के बावजूद वे थ्रू आउट टॉपर रहे।
मेहनत में नहीं थी कमी
नुरुल ने जो मुकाम आज हसिल किया है, उस सफलता का एक ही मंत्र है कड़ी मेहनत। इंटर के बाद उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से बीटेक किया। उसके बाद एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करने के बाद भाभा अटॉमिक रिसर्च सेंटर के नरोरा स्थित डिपार्टमेंट ऑफ अटॉमिक इनर्जी में बतौर साइंटिस्ट नियुक्त हुए। उन्होंने बड़े ही संघर्षो के साथ यह मुकाम हासिल किया। नुरुल बताते हैं कि जब वे बरेली आए थे तो एजाज नगर गोटिया के मलिन बस्ती में एक छोटे से किराए के कमरे में परिवार के साथ रहते थे। उन्हें सिर्फ पढ़ाई का ही जुनून सवार था। दिन रात केवल पढ़ाई ही करते थे। यहां तक कि उनके मकान मालिक ने केवल इसलिए रात में पढ़ाई करने से टोकने लगे कि बिजली का बिल ज्यादा आएगा, लेकिन नुरुल के लक्ष्य के आगे कोई भी संसाधन आड़े नहीं आया। वे लैंप और मोमबत्ती की रोशनी में पढ़ाई करते नहीं थकते थे।
परिवार का सहारा बने
नुरुल न केवल अपना ही लक्ष्य साध रखा था बल्कि अपने परिवार का सहारा भी बनना चाहते थे। बीटेक करने के बाद उन्होंने अपने दोनों भाइयों की पढ़ाई का जिम्मा भी अपने हाथ ले लिया। उनके एक भाई जहीरुल हसन ने अभी एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की है। वहीं दूसरे भाई वसी हसन ने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब कर रहे हैं। आज नुरुल के इस कामयाबी पर न केवल पूरे परिवार में खुशी की लहर है बल्कि उनके माता- पिता का सीना भी फख्र से चौड़ा हो गया है.
नुरुल किसी भी ऐसे यूथ को इंस्पायर करते हैं जो संसाधनों की कमी के आगे घुटने टेक देते हैं। आई नेक्स्ट की विशेष बातचीत में नुरुल ने बताया कि यदि आप में कुछ कर गुजरने का जुनून है, कड़ी मेहनत करने का माद्दा रखते हैं तो सफलता आपके कदम चूमती है। चाहे वह किसी भी धर्म का भी क्यों न हो। मेहनत के आगे भेदभाव नहीं टिकता। नूरूल ने बताया कि उन्होंने सेकेंड अटेंप्ट में यह कामयाबी हासिल की है। इसके लिए उन्होंने कोई कोचिंग नहीं की। नरोरा स्थित साइंटिस्ट नियुक्त होने के बाद से ही उन्होंने सेल्फ स्टडी शुरू कर दी थी। अपनी रेगुलर पढ़ाई और सतत प्रयास की वजह से ही वे कामयाब हुए हैं।
नुरुल ने मीडिया से कहा था
नूरुल ने खुद बताया वो 28 साल के हैं. 2015 में उन्होंने यूपीएससी का एग्जाम क्लियर किया था. इससे पहले उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से बीटेक किया था. रहने वाले उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले के हैं. 12वीं क्लास तक वो सरकारी स्कूलों में पढ़े. वो एक साधारण परिवार से हैं. इतना पैसा नहीं था कि इंजीनियरिंग की कोचिंग कर सकें. सो उनके पिता ने जो उनके पास एक एकड़ जमीन थी, वो बेंच दी. इसके बाद नूरुल का सेलेक्शन एएमयू में हो गया. वहां उन्होंने बीटेक किया. इसके बाद उन्होंने तीन जगह नौकरी की. टीसीएस, सीमेंस और फिर डिपार्टमेंट ऑफ एटोमिक एनर्जी में. और यहीं साइंटिस्ट रहते हुए उन्होंने सिविल सर्विसेज की तैयारी की और आईपीएस बने.