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हिंदू जनजागृति समिति का सदस्य वीरेन्द्र सिंह तावड़े गिरफ़्तार

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मुंबई । केन्द्रीय जांच ब्योरो ने अंधविश्वास के विरुद्ध अभियान चलाने वाले तर्कवादी नरेंद्र दाभोलकर की 2013 में पुणे में हुई हत्या के संबंध में पहली गिरफ्तारी की है। गिरफ़्तार होने वाले व्यक्ति का नाम वीरेन्द्र सिंह तावड़े है। तावड़े का संबन्ध, हिंदू जनजागृति समिति से बताया जाता है।

तावड़े को पनवेल से कल देर रात गिरफ्तार किया गया था और उसे आज पुणे की एक विशेष अदालत में पेश किया गया। ज्ञात रहे कि इस समिति का संबंध गोवा के उस कट्टर समूह सनातन संस्था से है जो फरवरी 2015 में एक अन्य तर्कवादी गोविंद पंसारे की हत्या के कारण जांच के दायरे में आई थी।

सीबीआई के प्रवक्ता देव प्रीत सिंह ने वीरेंद्र सिंह तावड़े को गिरफ्तारी की सूचना दी। दाभोलकर की 20 अगस्त 2013 को गोली मारकर उस समय हत्या कर दी गई थी जब वे सवेरे चहलक़दमी कर रहे थे। महाराष्ट्र सरकार द्वारा अंधविश्वास विरोधी बिल लाने का आश्वासन देने के कुछ ही दिनों के बाद दाभोलकर की हत्या कर दी गई। कई अतिवादी हिंदु संगठनों ने इसे हिंदुविरोधी बताते हुए इसका विरोध किया था।

इस हत्या की जांच मुंबई उच्च न्यायालय ने मई 2014 में सीबीआई को सौंप दी थी। तब से यह मामले में पहली गिरफ्तारी है। इस हत्या पर लोगों ने रोष व्यक्त किया था और जाने-माने कई लेखकों, साहित्यकारों और अन्य हस्तियों ने कथित असहिष्णुता के विरोध में अपने पुरस्कार लौटा दिए थे।

सीबीआई सूत्रों ने बताया कि एजेंसी ने हत्या मामले के संबंध में पूर्व में की गई तलाशी के दौरान कुछ सामान बरामद किया था जिसने शक की सुई तावड़े की ओर मोड़ दी थी। समझा जाता है कि तावड़े ‘सनातन संस्था’ के कार्यकर्ता सारंग अकोलकर का कथित अनुयायी है जिसके खिलाफ एनआईए के अनुरोध पर 2009 के गोवा बम विस्फोट के मामले में जुलाई 2012 में इंटरपोल ने रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया था।

सूत्रों ने बताया कि दाभोलकर की हत्या एजेन्सी को उनकी कथित भूमिका के बारे में कुछ साइबर फारेंसिक साक्ष्य मिलने के बाद दोनों से पूछताछ की गई थी। गोवा विस्फोट मामले में एनआईए की जांच में 34 वर्षीय आकोलकर का नाम आने के बाद वह फरार है। दाभोलकर की हत्या के अहम साजिशकर्ताओं में भी उसके शामिल होने का संदेह है।

इस बीच, दाभोलकर के बेटे ने तावड़े की गिरफ्तारी को सही दिशा में सीबीआई का पहला बड़ा कदम बताया। उन्होंने कहा कि यदि दाभोलकर की हत्या के तत्काल बाद यह कदम उठा लिया जाता तो बाद में की गई पंसारे एवं कन्नड़ विद्वान एम एम कलबुर्गी की हत्याओं को रोका जा सकता था।