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‘मोदी का परिवार’ में कितने ”प्रज्ज्वल रेवन्ना’ : मेरे साथ एक लड़की थी ये उसको बुलाते थे…आप तो सब जानते हो…नहीं जानते हो तो जान लो…वीडियो

Rishi Kumar Pandey
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#सौदा
इस बड़े शहर में एक छोटा सा कॉस्मेटिक शॉप है मेरा। पति ने खोला था मेरे नाम पर। झुमकी श्रृंगार स्टोर। आज एक नया जोड़ा आया है मेरे दुकान पर।स्टाफ ने बताया कि सुबह से दूसरी बार आये हैं।एक कंगन इन्हें पसंद है पर इनके हिसाब से दाम ज्यादा है। इन्हें देख इस दुकान की नींव, मेरा वजूद, और अपनी कहानी याद आ गई। ऐसे ही शादी के बाद पहली बार हम एक मेले में साथ गए थे। मुझे काँच की चूड़ियों का एक सेट पसंद आया था। तब आठ रुपये की थी और हम ले ना पाए थे। ये बार बार पाँच रुपये की बात करते मगर उसने देने से मना कर दिया।उन्हें मुझे वो चूड़ी ना दिलाने का अफसोस ज़िंदगी भर रहा था। क्यूंकि उस दिन मैं पहली बार उनके साथ मेले में गई थी और कुछ पसंद किया था।उसदिन इनके जेहन में इस दुकान की नींव पड़ गई थी। इतना प्रेम करते थे मुझसे कि फिर कभी कुछ माँगना ही ना पड़ा। मेरी खुशियों के लिए रातदिन एक कर दिया। ये सब याद कर मेरी गीली आँखे इनके फूल चढ़े तसवीर की तरफ गई जिसके शीशे में ये जोड़ी नज़र आ रही थी
“सर! सुबह ही कहा था कि हजार से कम नहीं होगा”
“चलिये ना, कोई बात नहीं! फिर कभी ले लेंगे” दोनों सीधे साधे गाँव के लग रहे थे बिलकुल जैसे हम थे। लड़की मेरी ही तरह स्थिति समझ रही है और लड़के में इनके जैसा उसे दिला देने की ललक और ज़िद्द। इस प्यार को मैं महसूस कर रही थी
“एक बार और देख लीजिए ना अगर सात सौ तक भी..!”
“एक ही बात कितनी बार बोलूं सर, नहीं हो सकता” जैसे मैं इनका हाथ लिए मेले के उस दुकान से वापस जा रही थी और ये मायूस हो कदम वापस ले रहे थे..ये जोड़ा भी दुकान से बढ़ने ही वाले थे
“रुकिए आपलोग! कौन सा कंगन पसंद है”
“ये गोल्डेन और रेड वाला मैम” स्टाफ ने कहा
“इसपर तो कल ही फिफ्टी परसेंट डिस्काउंट लगाने बोला था तुमको।”
“कब बोला था मैम”?
“अच्छा!लगता है मैं भूल गई थी..जी ये अब पाँच सौ का ही है, आप ले जाइए” लड़के की खुशी देख मुझे महसूस हो रहा था कि उसदिन ये भी ऐसे ही खुश होते
स्टाफ मुझे ऐसे देख रहा था जैसे आज पहली बार मैंने घाटे का सौदा किया हो। पर उसे क्या पता
खुशियों का सौदा नहीं होता…..

Rahul Gandhi
@RahulGandhi
जम्मू कश्मीर के पुंछ में हमारी सेना के काफिले पर कायराना और दुस्साहसी आतंकी हमला बहुत ही शर्मनाक है, दुखद है।

शहीद जवान को मैं अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं और उनके शोकसंतप्त परिजनों को संवेदनाएं व्यक्त करता हूं। हमले में घायल जवानों के जल्द से जल्द स्वस्थ होने की आशा करता हूं।

बरेलीः संतोष गंगवार का टिकट कटा, बीएसपी का पर्चा ख़ारिज, क्या बच पाएगा बीजेपी का गढ़

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से क़रीब चार घंटे के सफ़र के बाद, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के आख़िरी छोर पर एक बड़ा झुमका नज़र आता है, ये निशानी है कि आप बरेली पहुंच गए हैं.

राष्ट्रीय राजमार्ग 530 शहर के बाहर से होते हुए लखनऊ की तरफ़ आगे बढ़ जाता है, इसी के नीचे से निकला बरेली-नैनीताल रोड किसी भी लिहाज से नेशनल हाइवे से कम नहीं है.

115 रुपये का इकतरफ़ा टोल चुकाने के बाद पीपलसाना चौधरी गांव से जैसे ही आप हाइवे से उतरते हैं, तेज़ी से आगे बढ़ते भारत और पीछे छूट रहे गांवों का फ़र्क़ साफ़ नज़र आने लगता है.

यहां से बुझिया गांव की तरफ जाने वाली सड़क बदहाल है. गड्ढों में हाल ही में डाली गई ईंट-रोढ़ी ने मुश्किल कुछ आसान तो की है लेकिन ख़त्म नहीं.

क़रीब 1500 लोगों की आबादी वाले इस गांव के लोगों ने टूटी सड़क को मुद्दा बनाकर चुनाव का बहिष्कार किया है.

सोशल मीडिया से होते हुए बात जब मीडिया और फिर प्रशासन तक पहुंची तो आनन-फानन में गड्ढे भरने का काम किया गया. लेकिन गांव के लोग इससे संतुष्ट नहीं हैं.

‘रोड नहीं तो वोट नहीं’

गांव के आख़िरी छोर पर परचून की दुकान चलाने वाला एक युवक सहमा हुआ है. सड़क की मांग को लेकर बने व्हाट्सएप ग्रुप ‘रोड नहीं तो वोट नहीं’ में उसने एक मैसेज किया था. अगले दिन स्थानीय पुलिस उसे पकड़कर चौकी ले गई.

युवका का दावा है, “पुलिस ने कहा कि बहुत मैसेज डाल रहे हो ग्रुप में, ज़्यादा बोलेगे तो मुक़दमा दर्ज कर देंगे. शांत रहो.”

हालांकि इस युवक को शाम को छोड़ दिया गया. गांव के कुछ अन्य लोगों का दावा है कि उनके साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ, हालांकि पुलिस प्रशासन ऐसी किसी सख्ती से इनकार करता है. बहरहाल सच यह है कि अब सड़क के लिए खड़ा हुआ आंदोलन परवान चढ़ने से पहले ही ठंडा हो गया है.

यहीं के एक युवा, जो ग्रुप में काफ़ी सक्रिय रहे हैं, कहते हैं, “अभी तो सड़क की हालत कुछ ठीक है, बरसात में रोज़ाना यहां बाइकें गिर जाती, टुकटुक पलट जाती, कई लोगों को चोट लगी, हर स्तर पर मांग उठायी लेकिन कुछ नहीं.”

कई दशक से बीजेपी के समर्थक और मोदी के फैन दामोदर मौर्य कहते हैं, “हमारी एक सड़क की मांग थी, जिसे दस साल में पूरा नहीं किया गया, हम वोट किसलिए डालें?”

पर्चा लीक केस

हालांकि, गांव के प्रधान हृदेश कुमार मौर्य दावा करते हैं कि प्रशासन के चुनाव के बाद सड़क डालने के वादे ने अब विरोध को शांत कर दिया है और मतदान होगा.

हृदेश मौर्य कहते हैं, “ये सड़क आगे 15 गांव को जोड़ती है, कितने लोगों के यहां गड्ढों में गिरकर हाथ-पैर टूटे, किसी ने सुध नहीं ली. सांसद जी (संतोष गंगवार) के पास मांग लेकर गए तो उन्होंने टाल दिया. अब गांव के युवाओं ने चुनाव से पहले विरोध किया तो सुध ली है, हम उम्मीद कर रहे हैं कि चुनाव के बाद शायद सड़क पड़ जाए.”

सड़क यहां एकमात्र मुद्दा नहीं है. गांव के कई युवक-युवतियों ने यूपी पुलिस भर्ती के लिए जी-तोड़ मेहनत की थी, लेकिन पर्चा लीक ने उनके सपने तोड़ दिए.

बीए का पेपर देने जाने के लिए टुकटुक का इंतज़ार कर रही हेमा मौर्य कहती हैं कि उन्होंने साल भर कोचिंग लेकर यूपी पुलिस भर्ती की तैयारी की. पेपर भी अच्छा हुआ लेकिन पर्चा लीक ने उनका भी सपना तोड़ दिया.

पर्चा लीक के सवाल पर एक लंबी ख़ामोशी के बाद वो जब नपे तुले शब्द बोलती हैं तो उनका ग़ुस्सा और निराशा स्पष्ट नज़र आती है.

वो कहती हैं, “पेपर कैंसल हुआ, सब बर्बाद हो गया. सरकार ज़िम्मेदार है लेकिन हम कर भी क्या सकते हैं?”

शिक्षा और बेरोज़गारी का मुद्दा

हेमा और उन जैसे कई युवा परिवार के राजनीतिक और जातिगत झुकाव और अपनी स्थिति के बीच फंसे नजर आते हैं. हालांकि वो ये भी कहते हैं, “इस बार वोट सोच समझकर डालेंगे.”

महादेव का पोस्टर लगी एक बाइक पर बैठा 19 साल का युवा बेबाकी से कहता है, “शिक्षा का गिरता स्तर और बेरोज़गारी बड़ा मुद्दा है, मुझे लगता है कि मतदान इन मुद्दों पर होना चाहिए, लेकन आख़िर में शायद मैं भी धर्म को देखकर ही मतदान करूं.”

गांव के छोर पर भिंडी के खेत में पति के साथ मिलकर सिंचाई कर रहीं माया मौर्य सरकार के काम से ख़ुश हैं. वो सरकार से मिले सिलेंडर और हर महीने मिलने वाले राशन को बड़ी राहत बताते हुए कहती हैं कि छोटी बिटिया भर्ती की तैयारी कर रही है, अगर उसका भी कहीं हो जाए तो सब ठीक हो जाए.

सड़क के गड्ढों से बचते हुए एक महिला अपनी सास के साथ दो छोटे बच्चों को स्कूल से लेकर आ रही है. वो बहुत ख़ुश है. चहकते हुए कहती है, “ऑनलाइन फ़ॉर्म भरा था, बच्चों का नंबर आ गया, अब फ़्री में इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ रहे हैं. ये सरकार की बदौलत है कि मेरे बच्चे फ़्री में इतने अच्छे स्कूल में पढ़ पा रहे हैं. राशन भी मिल जाता है.”

भाषण में पाकिस्तान, मुसलमान और जय श्री राम के नारे

टूटी हुई सड़के, बेरोज़गारी, बढ़ती महंगाई ये सब मुद्दे ज़मीनी स्तर पर भले दिखाईं दे लेकिन राजनीतिक रैली में पहुंचते ही ये हवा हो जाते हैं.

गुरुवार को केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने बरेली शहर में रैली की. यहां ज़िले भर से लोगों को बसों में भरकर लाया गया था. बुझिया गांव से भी बस चली थी, हालांकि ये पूरी तरह भर नहीं पाई थी.

यहां नेताओं के भाषण में पाकिस्तान है, मुसलमान हैं और जय श्री राम के नारे की बार-बार गूंज है. जनता उत्साहित है और गौर से भाषण सुन रही है.

कॉमर्शियल पायलट बनने की तैयारी कर रहा एक 19 साल का युवा कहता है, “मैं लोन लेकर पायलट बनूंगा लेकिन मैं लोन लेकर इंजीनियरिंग या कुछ और करने का नहीं सोच सकता क्योंकि मुझे पता है कि आगे नौकरियां ही नहीं है. सरकार ने राष्ट्रवाद के स्तर पर बहुत कुछ किया है. लेकिन हमारे जैसे युवाओं के लिए कुछ भी ठोस नज़र नहीं आता. मैं सिर्फ़ राष्ट्रवादी विचारधारा की वजह से बीजेपी का समर्थक हूं.”

संतोष गंगवार की ख़ामोशी

बरेली राजनीतिक रूप से बीजेपी का गढ़ रहा है, अगर 2009 के अपवाद को छोड़ दें तो यहां साल 1989 के बाद से भाजपा जीतती रही है. संतोष गंगवार यहां से आठ बार सांसद रहे हैं. 2009 में छात्र जीवन से राजनीति शुरू करने वाले प्रवीण सिंह एरोन ने कांग्रेस के टिकट पर उन्हें हरा दिया था.

इस बार संतोष गंगवार मैदान में नहीं है. बीजेपी ने यूपी में जिन दिग्गजों का टिकट काटा है उनमें गंगवार भी शामिल हैं. बरेली से बीजेपी ने इस बार छत्रपाल गंगवार को टिकट दिया है.

मंच से बोलते हुए अमित शाह कहते हैं, “बरेली वालों मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि संतोष गंगवार ने यो सेवा का यज्ञ जलाया है, छत्रपाल गंगवार उसमें और बढ़ोतरी करके देंगे. संतोष गंगवार के लिए पार्टी ने कोई और भूमिका सोच रखी है.”

संतोष गंगवार नाराज़ तो हैं लेकिन शांत हैं. अपने कार्यालय में चुनिंदा कार्यकर्ताओं के साथ बैठे संतोष गंगवार अपना टिकट काटे जाने के सवाल पर कोई जवाब नहीं देते. बस इतना ही कहते हैं, “मैंने इस विषय पर कुछ नहीं बोला है, आगे भी नहीं बोलूंगा.”

हालांकि विश्लेषक ये भी मानते हैं कि संतोष गंगवार की ख़ामोशी भी बहुत कुछ कहती है.

एक वरिष्ठ पत्रकार अपना नाम न ज़ाहिर करते हुए कहते हैं, “संतोष गंगवार का बरेली की राजनीति पर चार दशक तक असर रहा है. अब वो 75 साल के हो गए हैं इसलिए पार्टी ने मार्गदर्शक मंडल में डाल दिया है, गंगवार को भरोसा मिला होगा कि उन्हें कुछ दिया जाएगा. लेकिन उनकी नाराज़गी भी नज़र आ रही है.”

छत्रपाल गंगवार की उम्मीदवारी

बहेड़ी विधानसभा सीट से दो बार विधायक और पेशे से शिक्षक रहे छत्रपाल गंगवार बीजेपी के टिकट पर मैदान में हैं और अपनी जीत के लिए मोदी की गारंटी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की छवि पर निर्भर हैं.

बीबीसी से बातचीत में छत्रपाल गंगवार कहते हैं, “मैं इंटर कॉलेज में शिक्षक रहा हूं. मैं पार्टी का प्रतिनिधि बनकर संसद पहुंच रहा हूं, ये बात सत्य हो चुकी है, ये अहंकार नहीं है.”

छत्रपाल गंगवार बेबाकी से कहते हैं कि दिल्ली से प्रधानमंत्री मोदी का जो सुदर्शन चक्र चला है वो सभी उम्मीदवारों को जिताकर ही लौटेगा.

बरेली सीट से बीएसपी उम्मीदवार का पर्चा तकनीकी कारणों से ख़ारिज हो गया है. बीएसपी ने यहां छोटेलाल गंगवार को मैदान में उतारा था लेकिन फ़ॉर्म में कमी बताकर उनका पर्चा ख़ारिज कर दिया गया.

यहां अब चुनावी मुक़ाबला सीधे-सीधे गठबंधन से समाजवादी पार्टी के टिकट पर प्रत्याशी प्रवीण सिंह एरोन और बीजेपी के छत्रपाल गंगवार के बीच है.

इस सीट पर गंगवार यानी कुर्मी जाति के मतदाताओं की बड़ी तादाद है. बीएसपी ने भी यहां से गंगवार प्रत्याशी मैदान में उतारा था जिससे यहां चुनावी मुक़ाबला दिलचस्प हो गया था, लेकिन पर्चा ख़ारिज होने के बाद अब परिस्थितियां बदल गई हैं.

मुसलमान वोटरों की बड़ी तादाद

विश्लेषक मानते हैं कि संतोष गंगवार का टिकट कटने से गंगवार मतदाताओं में जो नाराज़गी थी वो बीजेपी ने गंगवार उम्मीदवार मैदान में उतार कर ख़त्म कर दी है, वहीं बीएसपी के गंगवार उम्मीदवार का पर्चा ख़ारिज होने से यहां गंगवार मतों के बंटवारों की आशंका भी ख़त्म हो गई है.

अमित शाह की रैली से लौट रहे एक गंगवार युवक कहता है, “शुरू में संतोष गंगवार का पर्चा कटने को लेकर बहुत नाराज़गी थी, लेकिन अब लगता कोई नाराज़गी नहीं है.”

हालांकि विश्लेषक ये भी मानते हैं कि प्रवीण एरोन के जुझारूपन ने इस सीट पर मुक़ाबला दिलचस्प कर दिया है. प्रवीण एरोन यहां 2009 में संतोष गंगवार को हरा चुके हैं और उनकी पत्नी भी बरेली शहर की मेयर रही हैं.

स्थानीय पत्रकार पवन कश्यप कहते हैं, “प्रवीण एरोन को यहां सब जानते हैं, वो अपने दम पर चुनाव लड़ रहे हैं जबकि बीजेपी उम्मीदवार मोदी और योगी के डबल इंजन के सहारे है.”

दो दशक से पत्रकारिता कर रहे अजय सिंह कहते हैं, “यदि बीएसपी उम्मीदवार छोटेलाल गंगवार मैदान में रहते तो परिस्थितयां अलग होतीं लेकिन अब भी यहां मुक़ाबला बेहद टक्कर का है. यूं तो बरेली बीजेपी की सीट रही है लेकिन प्रवीण एरोन यहां एक बार संतोष गंगवार को हरा चुके हैं और इस बार भी वह पूरे दमखम से मैदान में हैं. इस सीट पर मुसलमान वोटरों की भी बड़ी तादाद है, ऐसे में यहां मुक़ाबला बेहद दिलचस्प हो गया है.”

मोदी सरकार के दस साल

चुनावी अभियान में लगे प्रवीण एरोन कोशिश कर रहे हैं कि वो अधिक से अधिक गांवों में पहुंचकर लोगों से मिल लें. गाड़ी में कुछ मिनट का समय मिलता है तो वो नींद निकाल लेते हैं.

प्रवीण एरोन भी मानते हैं कि उनका मुक़ाबला छत्रपाल गंगवार नहीं बल्कि बीजेपी से है. प्रवीण एरोन कहते हैं, “मोदी सरकार के दस साल के कार्यकाल में देश तानाशाही की तरफ बढ़ा है. तानाशाही और पूंजीवाद को बढ़ावा मिला है और लोकतंत्र को बंधक बनाया जा रहा है.”

बीएसपी उम्मीदवार का पर्चा ख़ारिज होने पर एरोन कहते हैं, “चुनाव लड़ना लोकतांत्रिक अधिकार है लेकिन यहां डरी हुई भाजपा ने बसपा उम्मीदवार का पर्चा ही ख़ारिज करवा दिया है. ये अन्याय जांच का विषय है. दलित समाज में आक्रोश है और ये भाजपा के ताबूत में कील साबित होगा.”

एरोन ये मानते हैं कि बीएसपी का वोटर वर्ग बड़ी तादाद में गठबंधन की तरफ झुकेगा.

एरोन कहते हैं, “कुछ पूर्वाग्रहों से ग्रसित वोटर वर्ग को छोड़ दिया जाए तो बीएसपी के बाक़ी सब वोटर बीजेपी के ख़िलाफ ही वोट देंगे.”

बहुजन समाज पार्टी के कार्यकर्ताओं में भी पर्चा ख़ारिज होने को लेकर गुस्सा नज़र आता है.

बुझिया गांव के रहने वाले बसपा कार्यकर्ता राम अवतार जाटव अपने उम्मीदवार का नामांकन ख़ारिज होने पर कहते हैं, “इतने चुनाव हुए अभी तक हमारे उम्मीदवार का पर्चा रद्द नहीं हुआ लेकिन इस बार रद्द करवा दिया. हमारे वोट के अधिकार पर चोट हुई है. इसका जवाब हम देंगे.”

बरेली में अगर राजनीतिक सभाओं को छोड़ दिया जाए तो वैसी ही चुनावी ख़ामोशी है जैसी हर जगह नज़र आ रही है.

आला हज़रत दरगाह के पास एक मुसलमान दुकानदार कहता है, “इस बार चुनाव में कोई शोर नहीं है, महंगाई बेरोज़गारी है लेकिन ये भी मुद्दे नहीं हैं.”

हालांकि, बीजेपी इस सीट पर पहले से अधिक ज़ोर लगा रही है. यहां प्रधानमंत्री की रैली हुई है, गृह मंत्री अमित शाह भी यहां पहुंचकर ज़ोर लगा चुके हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पड़ोस की आंवला सीट पर तीन रैलियां कर चुके हैं.

वरिष्ठ पत्रकार अजय सिंह कहते हैं, “बीजेपी इस सीट पर जितना ज़ोर इस बार लगा रही है, कभी नहीं लगाया है, इससे ही साफ़ है कि यहां मुकाबला दिलचस्प है और कांटे का है.”

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दिलनवाज़ पाशा
पदनाम,बीबीसी संवाददाता, बरेली से