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फ़रगाना घाटी का ख़ानाबदोश सरदार, पानीपत की पहली जंग कैसे जीत गया ?

Kranti Kumar
@KraantiKumar
1526 में सेंट्रल एशिया के फरगाना घाटी से एक खानाबदोश सरदार मात्रा 12,000 से कुछ अधिक की कबीलाई फौज लेकर हिंदुकुश की खतरनाक ठंडी पथरीली पहाड़ियों को पार कर भारत में दिल्ली के तख्त को जीतने के इरादे से दाखिल होता है.

तब न परमाणु हथियार थे. ना ही दूर तक मार करने वाले मिसाइल थे. ना आसमान में उड़ने वाले लड़ाकू विमान थे. ना ही ज़मीन को खरोंच कर चलने वाले टैंक थे.

उस खानाबदोश सरदार के पास केवल तलवार, तोप और घोड़े थे.

यहां के शासकों के पास भी तलवार, तोप और घोड़े थे. और फरगाना घाटी के सरदार के बदबूदार सैनिकों से लड़ने के लिए लाखों की तादाद में सैनिक थे.

इसके बावजूद वो फरगाना घाटी का खानाबदोश सरदार पानीपत की पहली जंग कैसे जीत गया ?

फरगाना घाटी वाले पास संगठित सेना थी जो एक ही थाली में खाते थे. 12000 की सेना में बेहतर ढंग से आपसी सहयोग करने की क्षमता थी. उनके बीच गज़ब का आपसी तालमेल भाईचारा, आपसी विश्वास, आपसी प्रेम और समझ थी. वे सामाजिक रूप से संगठित भी थे.

भारत के शासकों में आपसी सहयोग, तालमेल, समझ और भाईचारा नही था. भारत में वर्ण अव्यवस्था थी, समाज जाति के आधार पर विभाजित था. इतना विशाल देश, इतनी बड़ी आबादी, इतने अधिक राज्य और शासक थे कि चुटकी बजाते ही इन खानाबदोश कबीलाई सेनाओं को खदेड़ देते.

लेकिन ऐसा नही हुआ. बाबर और उसके 12,000 सैनिक जो कई महीनों से नहाए नही थे आपसी सहयोग और तालमेल के दम पर दिल्ली का तख्त जीत गए और मुग़लिया सल्तनत की नींव रखी.

फ़ोटो : महिला सब्ज़ी विक्रेता. फरगाना वैली, उज़्बेकिस्तान.