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नाइजर के सैन्य शासकों का आदेश, फ्रांस 3 सितंबर तक अपने सैनिकों को देश से निकाल ले : रिपोर्ट

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नाइजर होमलैंड सुरक्षा राष्ट्रीय परिषद ने कि जिसका गठन, देश में हालिया तख्तापलट करने वाले नेताओं द्वारा किया गया था, फ्रांस से 3 सितंबर तक देश से अपने सैनिकों को वापस निकालने के लिए कहा है।

इस परिषद के प्रतिनिधि ने दोहराया है कि फ्रांस को 30 दिन तक का समय दिया गया था, ताकि वह अपने सैनिकों को इस देश से बाहर निकाल ले। यह समय सीमा 3 सितंबर को समाप्त हो रही है और उसके बाद इसे आगे नहीं बढ़ाया जाएगा और इसके बाद किसी भी घटना की ज़िम्मेदारी फ्रांसीसी सैन्य कमांडरों की होगी।

ग़ौरतलब है कि माली और बुर्किना फ़ासो से अपने सेना को निकालने पर मजबूर होने के बाद, फ्रांस ने पश्चिम अफ्रीक़ी में अपने भू-राजनीतिक लक्ष्यों को साधने के उद्देश्य से, अपनी नई विदेश रणनीति के तहत नाइजर पर अपना ध्यान केंद्रित कर दिया था, लेकिन हालिया तख्तापलट ने इस देश में पेरिस की योजनाओं पर पानी फेर दिया है।

नाइजर फ्रांसीसी परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के लिए यूरेनियम के मुख्य आपूर्तिकर्ताओं में से एक है, हालांकि हालिया तख्तापलट के बाद फ्रांस को इसका निर्यात रोक दिया गया है।

नीइजर, अफ़्रीक़ा के गिने-चुने लोकतांत्रिक देशों में से एक था, अब अपने पड़ोसी देशों की तरह वहां भी सत्ता पर सेना ने क़ब्ज़ा कर लिया है। पश्चिम में माली से लेकर पूरब में सूडान तक, अफ्रीक़ा के एक बड़े इलाक़े में अब जनरलों के हाथों में सत्ता है।

नाइजर के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद बज़ूम पर आरोप था कि वह फ़्रांस की कठपुतली के रूप में काम करते हैं और पश्चिमी देशों के प्रमुख सहयोगियों में से एक हैं।

तख़्तापलट के बाद माली और बुर्किना फ़ासो ने रूस के समर्थन और उसके साथ सहयोग का रास्ता अपनाया, वहीं नाइजर में भी जनता की यही मांग है कि पश्चिमी देशों के बजाए, विकास के लिए पूर्वी देशों के साथ सहयोग का रास्ता अपनाना चाहिए, क्योंकि पश्चिमी देशों ने सिर्फ़ वहां के आर्थिक स्रोतों को लूटा है और बदले में जनता को भुखमरी और हिंसा दी है।

यही वजह है कि सेना ने पश्चिम के ख़िलाफ़ अपनी बयानबाज़ी तेज़ कर दी है और सेना के समर्थकों ने तख़्तापलट का समर्थन करने के लिए राजधानी नियामी की सड़कों पर विशाल प्रदर्शन किया। उनमें से कुछ ने फ्रांसीसी दूतावास पर हमला तक कर दिया और रूस के समर्थन में झंडे लहराए।

देश में तख़्तपलट के बाद, हुए सर्वेक्षण में शामिल दो-तिहाई लोगों ने कहा है कि जब निर्वाचित नेता सत्ता का दुरुपयोग करते हैं, तो सैन्य अधिकारी हस्तक्षेप कर सकते हैं। हालांकि इस तर्क का इस्तेमाल तख़्तापलट करने वाले लोग और उनके समर्थक अक्सर अपने कार्य को उचित ठहराने के लिए करते हैं।

फ़्रांसीसी राजदूत को निकाल बाहर किया जाए, नाइजर के सैन्य शासकों का आदेश

नाइजर के सैन्य शासकों ने फ़्रांस के राजदूत को हासिल राजनयिक छूट रद्द कर दी है और पुलिस को आदेश दिया है कि वह उन्हें देश से निकाल बाहर करे।

नाइजर के विदेश मंत्रालय द्वारा जारी किए गए बयान में कहा गया हैः फ्रांसीसी राजदूत सिल्वेन इत्ते को दूतावास के राजनयिक कर्मचारियों के सदस्य के रूप में हासिल विशेषाधिकार और छूट को रद्द कर दिया गया है।

बयान में यह भी कहा गया है कि राजदूत को और उनके परिवार के राजनयिक कार्ड और वीज़ा रद्द कर दिए गए हैं।

सेना ने भी एक बयान में कहा कि फ़्रांसीसी राजदूत और उनके परिवार का वीज़ा रद्द कर दिया गया है।

नाइजर में फ़्रांसीसी राजदूत के विशेषाधिकारों को सेना ने वापस ले लिया है, जिसने पिछले सप्ताह इत्ते को देश छोड़ने के लिए 48 घंटे का समय दिया था। यह समय सीमा 28 अगस्त को समाप्त हो गई।

नए सैन्य शासकों का कहना है कि राजदूत ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया। उनका कहना है कि फ्रांसीसी सरकार का व्यवहार नाइजर के हितों के विपरीत है।

फ़्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने कहा है कि नाइजर में फ्रांस के राजदूत नए सैन्य नेताओं द्वारा देश छोड़ने के अल्टीमेटम के बावजूद, इस अफ्रीक़ी देश में बने रहेंगे।

मैक्रॉन ने सैन्य तख़्तापलट द्वारा अपदस्थ किए गए नाइजर के राष्ट्रपति मोहम्मद बज़ौम के लिए फ्रांस के समर्थन को दोहराया है।