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#ज़िंदग़ी_रोज़_नए_रंग_बदलती_क्यूॅं_है….

मनस्वी अपर्णा
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कपिल शर्मा शो में रेखा वाले एपिसोड के कुछ हिस्से देखे….70 साल की उम्र में भी रेखा यक़ीनन बेहद ख़ूबसूरत, निहायत ज़हीन और खुश रंग हैं। फिर भी मुझे पता नहीं क्यूॅं रेखा को देखकर एक टीस सी महसूस होती है। ऐसे लगता है जैसे उनके भीतर दुःख का कोई समंदर भरा हो, जो रोज़ किनारों पर सर पटकता है, बिफरता रहता है। ये बहुत मुमकिन है कि उनकी ज़िंदग़ी के बारे में सुने-सुनाए क़िस्सों की वजह से मेरा ऐसा ख़याल बन गया हो।
बहरहाल ज़िंदग़ी ने अगर किसी के लिए कोई ख़ास मंसूबा तय कर रखा हो तो, वो उसको छोटे मोटे हालात में राज़ी ही नहीं होने देती। बंदा मामूली से सुख को तरस जाता है। बेहद मामूली खुशियों से महरूम रह जाता है। और कतई क़ाबिल होने के बाबजूद बेहद गिरे हुए दर्ज़े के समझौतों पर राज़ी होता जाता है। रोज़ ख़ुद को खोने की इवज में वो ऐसी चीज़ें को तरसाया जाता है जो यूॅं ही बड़े आराम से किसी और को मुहैय्या होती रही है।
इसी सूरत ए हाल के दूसरी ओर ज़िंदग़ी हर पल उस शख़्स को निखार भी रही होती है। उसको कई दूसरी नेमतों से नवाज़ रही होती हैं। रेखा हमेशा कुछ इन्हीं तरह के हालात में नज़र आई।
उनकी ज़िंदग़ी बहुत मामूली चीज़ों के लिए बहुत तरसी हैं, वहीं दूसरी ओर इन्हीं हालात ने उनकी शख्स़ियत को निखारा भी है। उनकी सलाहिय्यत को ख़ूब उभारा है। अभी रेखा जिस्मानी और ज़हनी ख़ूबसूरती की उम्दा मिसाल की तरह देखी जाती हैं।
लेकिन फिर भी ये मेरा निजी ख़याल है कि दुनिया भर की तारीफ़ों और ख़ूबियों के मेल से बना एक बड़ा समंदर किसी औरत की सादा गृहस्थी की प्यास को नहीं बुझा सकता। इस समंदर में न नापे जा सकने लायक पानी हर दम मौजूद होने के बावजूद इस पानी से कभी सूखे हलक तर नहीं होते। न ही ऑंखों में वो सकून आता है जो अपने घर को देखकर किसी औरत की ऑंखों में आता है।
इन ज़रा-ज़रा सी खुशियों को तरसी औरतों के दिल, इतने ज़ख़्मों से भरे होते हैं कि कोई मरहम के लिए भी छुए तो, नई खरोंच लग जाती है। पता नहीं क्यूॅं पर मुझे ये लगता है कि, पुराने ज़ख़्मों को ठीक करने की रेखा की चाह हर बार उन्हें एक नया और ज़ियादा गहरा ज़ख़्म दे गई। किसी ने जानकर दिया और किसी ने अंजाने में लेकिन उनका सीना कई ज़ख़्मों से लबरेज़ है। और उससे रिसता लहू मुस्कुराहट के तालों में हमेशा के लिए क़ैद।

इस मौक़े पर शैलेंद्र याद आते हैं जो कहते हैं..
ज़ख़्मों से भरा सीना है मेरा
हॅंसती है मगर ये मस्त नज़र।
दुनिया मैं तेरे तीर का
या तक़दीर का मारा हूॅं
आवारा हूॅं ….
मैं चाहती हूॅं कभी इस नज़रिए से भी रेखा की जिंदग़ी को देखा जाए। उम्र भर उन्होंने कई इल्ज़ाम सर ढोए हैं। एक बार ज़रा नर्मी और इंसानियत से सोच लेने में क्या हर्जा है।
मनस्वी अपर्णा