साहित्य

ख़ौफ़ के साये में….*लघु कहानी*….. लेखिका-साधना कृष्ण

साधना कृष्ण

Lives in Lalganj, Bihār, India

From Muzaffarpur

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खौफ के साये में (लघु कहानी )
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आजतक तुमने किया क्या है?
बस खाना बनाकर खिला देते हो और किताब लेकर बैठ जाते हो ।
बड़ा आये हो पढ़ने वाले।
अरे सब पता है ।तुम हमारी आँखों में धूल झोंकते हो।
सही ढंग से पढ़ते तो आज तक निठल्ला घर में बैठे नहीं रहते।
फलाने के बेटा को देखो …….
घर में नौकर -चाकर सब लगा रखा है,ऊपर से गाड़ी- ड्राइवर सब दिया है माँ -बाप को ।ताकि जब घुमना- फिरना हो आराम से जायें और एक तुम हो जो चार साल से माँ बाप-के होटल में मौज उड़ा रहे हो। कौई काम कहो तो पढ़ाई का बहाना।
अपनी माँ के मुँह से यह सब सुनकर सौरभ का दिल छलनी हो जाता।
वह चीख -चीख कर कहना चाहता था कि माँ फलाने ने तो सिर्फ़ पैसा खर्च किया अपने माँ -बाप पर, लेकिन मैंने तो आपके लिए नौकरी को लात मार दी।आपकी बीमारी की खबर सुनते ही मैं नौकरी छोड़ने का निर्णय ले लिया और हाजिर हो गया तेरी सेवा को ।लेकिन वह कह नहीं पाता, हर बार मन मसोस कर रह जाता।
बस यादों के गलियारों का चक्कर लगाने लगता…
दोस्तों के मना करने के बावजूद मैं यह सोचकर घर आ गया कि मेरे आने से माँ- पिता को हिम्मत और खुशी मिलेगी और मैं जिस आत्मीयता और समझदारी से अपनी बीमार माँ की सेवा सुश्रुषा करुँगा, उस तरह कोई अन्य नहीं करेगा।क्या पता था कि पालनहार ही एक दिन शब्द वाण से मेरा हृदय छलनी करने लगेंगे।
आये दिन माँ के ताने और उनके पीछे पिता की हामी भरती प्रतिक्रिया से सौरभ की हिम्मत टूट जाती।वह तनाव के घुप्प अंधेरे में खो जाता ।जहाँ उसे अपने माँ -बाप ही दुश्मन नजर आते थे।वह अपने मन की इस पीड़ा को किसी से बाँट भी नहीं सकता था क्योंकि माँ शब्द के बदनाम होने का भय था। वह सबकुछ चुपचाप झेलता रहा। उसकी हालत घर में एक नौकर जैसी हो गयी थी।
माँ ज्यों ज्यों स्वस्थ होती जा रही थी उनका आतंक बढ़ता जा रहा था। सुबह माँ को ब्रश लाकर देने के साथ सौरभ की चाकरी शुरू होती ।माँ के कपड़े धोना यहाँ तक कि उनके अंतः वस्त्र धोना , खाना खिलाकर बरतन धोकर रखना, अतिथियों के स्वागत से लेकर रात को जब तक माँ का पैर मालिश न करता तबतक माँ भनभनाती और कुहरती रहतीं। ऊपर से आये दिन आने वाले त्योहार और उसकी विशेष तैयारी भी सौरभ को ही करनी पड़ती।इस दिनचर्या से उसे बड़ी थकान और कोफ्त होती थी।
एक दिन अचानक उसकी पुरानी मित्र अनुष्का उसे सोशल मीडिया पर मिल गयी।दोनों खूब खुश हुए बचपन की धींगा मस्ती, खेल-कुद तो वापस नहीं लौटा लेकिन दोनों अपनी -अपनी रामकहानी एक दूसरे को सुनाने लगे। इस तरह अब उदासियों की नगरी में मद्धिम- मद्धिम ही सही खुशी के चिराग झिलमिला उठे। जब भी अनुष्का- सौरभ को कोई सलाह लेनी होती, वे एक दूसरे से लेते।
अब सौरभ खुश रहने लगा और जोर- शोर से अपनी पढ़ाई में लग गया। एक दिन जब उसका रिजल्ट निकला उसका सेलेक्शन डी. एस. पी. के लिए हो गया था तो वह खुशी से झूम उठा।उसने भगवान को प्रणाम करने के बाद सर्वप्रथम अपनी प्रिय मित्र अनुष्का को फोन लगाया।
हेलो की आवाज होते वह बोला…
अन्नू !
बहुत बहुत आभार अन्नू।
आज मेरा चयन होने के पीछे तुम्हारा मार्गदर्शन और प्रेरणा है। तुम्हारे दिए सांत्वना और हिम्मत के लिए मैं आजीवन आभारी रहूँगा।
अनुष्का भी हर्षित हो बोली …
बधाई हो बधाई !!
चलो वेतन मिलने पर तुमसे पार्टी लूँगी।
सपरिवार आऊँगी तुम्हारे घर।
साधना कृष्ण