साहित्य

केवल एक दिन यह मान लेने से क्या नारी को सम्मान मिल जाता है? लक्ष्मी सिन्हा का लेख पढ़िये!

Laxmi Sinha
===================
केवल एक दिन यह मान लेने से क्या नारी को सम्मान
मिल जाती है?औरत त्याग की एक ऐसी मूरत है जिसे
देवी का स्थान मिला है.किसी पुरुष में सहस्त्र हाथियों
का बल होगा, पर एक औरत की ताकत और उसके
त्याग के आगे तो शून्य ही है.भले ही समाज में इसे
दु:ख मिला हो, पर उस समाज की खुशहाली की
इकलौती नीव एक नारी ही है।
मैं भारत की वो नारी हूं
कोई साधारण स्त्री न समझ, दहकती हुई चिंगारी हूं
जो मान पे अपने मर मिटती,मैं भारत की वो नारी हूं
जिस देश की धरा पर जन्म दियां, मै ऋण उसकी
चुकाऊंगी वह प्रश्न देश की स्मिता का, मैं सिंहनी भी
बन जाऊंगी सादर शांति की है अभिलाषा, पर मत
समझो मैं नारी हूं
जो मान पे अपने मर मिटती,मैं भारत की वो नारी हूं
शौर्य लहू में बह रहा, वीरांगनाओं की संतति हूं मैं
लक्ष्मीबाई, मैं दुर्गावती, और मैं ही रानी अवंति हूं
महाप्रलय आ जाता जब-जब रण में चरण उतारी हूं
जो मान पे अपने मर मिटती,मैं भारत की वो नारी हूं
जब हम साहस से बढ़ते,हिमगिरि भी शीश झुकाती है
मेरी भारत मां के जयघोष को,अंबर भी दोहराता है
माथे पे क्रांति का तिलक लगा,मातृभूमि पर बलिहारी हूं
जो मान पे अपने मर मिटती, मैं भारत की वो नारी हूं
#Laxmi_sinha
प्रदेश संगठन सचिव सह प्रदेश मीडिया प्रभारी
महिला प्रकोष्ठ राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी बिहार