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क़ानून का मज़ाक़ : पीएसी के हाथों 72 मुसलमानों के नरसंहार के मामलों में कोई दोषी नहीं : रिपोर्ट

 

सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्रीय जांच एजेन्सियों के दुरुपयोग की विपक्ष की याचिका ख़ारिज कर दी

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने 14 राजनीतिक दलों द्वारा दायर एक याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया जिसमें आरोप लगाया गया था कि विपक्षी दल के नेताओं पर नकेल कसने के लिए केंद्र सरकार द्वारा सीबीआई और ईडी जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पर्दीवाला की खंडपीठ ने कहा कि वह तथ्यात्मक संदर्भ के बिना सामान्य निर्देश जारी नहीं कर सकती है। पीठ ने कहा कि विशिष्ट तथ्यों के अभाव में अदालत के लिए क़ानून के सामान्य सिद्धांत निर्धारित करना एक खतरनाक प्रस्ताव है।

कांग्रेस के नेतृत्व वाले राजनीतिक दलों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने याचिका पर विचार करने में शीर्ष अदालत की अनिच्छा का संज्ञान लिया और इसे वापस लेने की अनुमति मांगी।

पीठ ने आदेश में कहा कि विद्वान वकील इस स्तर पर याचिका वापस लेने की अनुमति चाहते हैं, इसे वापस लिए जाने के कारण याचिका को खारिज किया जाता है।

विपक्षी दलों द्वारा दायर याचिका में विपक्ष के नेताओं के साथ-साथ असहमति के अपने मौलिक अधिकार का प्रयोग करने वाले नागरिकों के खिलाफ जबरदस्त आपराधिक प्रक्रियाओं के उपयोग में खतरनाक वृद्धि का आरोप लगाया गया था।

विपक्ष की याचिका में दावा किया गया था कि सीबीआई और ईडी जैसी केंद्रीय एजेंसियों द्वारा अलग-अलग मामलों में विपक्षी नेताओं निशाना बनाया जा रहा है, वहीं भाजपा के दाग़ी नेताओं के ख़िलाफ़ किसी तरह की जांच नहीं हो रही है।

याचिका में यह भी कहा गया था कि जांच के दायरे में आए कुछ नेता एक बार भाजपा में शामिल हो गए तो उनके खिलाफ मामलों को केंद्रीय एजेंसियों द्वारा हटा दिया गया या दबा दिया गया।

कांग्रेस के साथ अन्य याचिकाकर्ताओं में डीएमके, राजद, भारत राष्ट्र समिति, तृणमूल कांग्रेस, आप, एनसीपी, शिवसेना (यूबीटी), झामुमो, जदयू, माकपा, भाकपा, समाजवादी पार्टी और जम्मू कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस आदि शामिल थे।

36 साल बाद मेरठ के मलियाना में मुसलमानों के नरसंहार पर अदालत का फ़ैसला, कोई दोषी नहीं

1987 में मेरठ में पीएसी के हाथों मुसलमानों के नरसंहार के कई मामलों में से एक मलियाना नरसंहार मामले में एक निचली अदालत ने 36 साल बाद 41 आरोपियों को आरोपों से बरी कर दिया है।

यूपी के मेरठ शहर के बाहरी इलाक़े में स्थित मलियाना गांव में 23 मई 1987 को कम से कम 72 मुसलमानों का नरसंहार कर दिया गया था।

मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा के इतने गंभीर मामले में अदालती फ़ैसले ने पीड़ितों और उनके परिवारों को गहरी चोट पहुंचाई है।

शुक्रवार को निचली अदालत की ओर से आरोपियों को बरी करने के मामले को आलोचकों ने इंसाफ़ का मज़ाक़ बताया है।

एमनेस्टी इंटरनेशनल समेत कई मानवाधिकार संगठनों ने मलियाना दंगों में पुलिस के शामिल होने के सुबूतों का दस्तावेज़ीकरण किया था।

दंगों को विस्तार से कवर कर चुके वरिष्ठ पत्रकार कु़र्बान अली का कहना है कि कोर्ट में जो पोस्टमार्टम रिपोर्ट जमा की गई थी, उसके मुताबिक़ कम से कम 36 लोगों के शरीर में गोलियों के निशान थे।

मलियाना हिंसा मामले में अदालत के 26 पेज के फ़ैसले में हिंसा के दिल दहलाने वाले ब्योरे दर्ज हैः एक युवक की मौत गले में गोली लगने से हुई, एक पिता को तलवार से टुकड़े-टुकड़े कर दिया गया और पांच साल के एक बच्चे को आग में झोंक दिया गया था।

मलियाना नरसंहार से एक दिन पहले 22 मई को पीएसी के जवानों ने मुस्लिम बहुल हाशिमपुरा में घुसकर मुसलमानों का नरसंहार किया था।

पीएसी के जवानों ने यहां से 48 पुरुषों को बाहर निकाला और इनमें से 42 को गोलियों से भून डाला था। इसके बाद उनकी लाशें नदी और नहर में फेंक दी गई थीं। 6 लोग बच गए थे जिन्होंने बताया कि उस दिन क्या हुआ था।

हालांकि 2018 में दिल्ली हाई कोर्ट ने हाशिमपुरा में मुसलमानों के नरसंहार के आरोप में पीएसी के 26 पूर्व जवानों को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई थी।