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कजरौटा….भ्रूण परीक्षण की निंजा टेक्निक है!

अरूणिमा सिंह
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कजरौटा!
छोटे बच्चों के श्रृंगार की पिटारी संग उनका सुरक्षा कवच भी होता था।

हमारी तरफ दीपावली के दिन काजल अवश्य पारा (बनाया) जाता है। जब काजल बनने के लिए रखते हैं तब यदि घर में कोई महिला या गाय, भैंस गर्भवती हो तो उसके नाम से रखते हैं और ये अनुमान लगाया जाता है कि होने वाली संतान पुत्र है या पुत्री है!

यानी ये भ्रूण परीक्षण की निंजा टेक्निक है। कमाल की बात ये है कि अक्सर ये सटीक भी निकलती है।

दीपावली के दिन बनाया गया काजल सहेज कर रख लिया जाता है और वर्ष भर इसे ही प्रयोग करते हैं।

इस काजल को बनाने के लिए गाय का घी सर्वोत्तम होता है।

हमारे अवध क्षेत्र में बच्चेके जन्म के छठे दिन छट्ठी मनाई जाती है और पहली बार बच्चे को उनकी बुआ काजल लगाती है। काजल लगाने के लिए तगड़ा नेग वसूल करती हैं वर्ना कहती हैं कि _____

सोने की सलाई कजरा पारेव,
अहोल कजरा पारेव,
भौजी नथुनी बिन मुंह सून
अंगुरिया नाही डोलैय।

(सोने की सलाई से काजल बनाया है बहुत सुंदर काजल बनाया है लेकिन भाभी मेरा नथ के बिना मुंह सूना लग रहा है इसलिए काजल लगाने के लिए मेरी उंगलियां नही चल रही है)

छठ के दिन काजल लगने के बाद से बच्चे को काजल लगना शुरू हो जाता है और इस कजरौटा में पर्याप्त काजल बनाकर रख दिया जाता है। इस कजरौटा को कभी बच्चे से अलग नही करते हैं बच्चे के सोते समय उसके सिरहाने रखा रहता है या उसके बिस्तर के नीचे लटका रहता है।

कही बच्चे को लेकर जाना रहता है तो भी ये साथ ही जाता है क्योंकि मान्यता है कि इससे बच्चे को बुरी नजर नही लगती है। कजरौटा हमेशा लोहे का बना ही सबसे अच्छा माना जाता है।

अरूणिमा सिंह