डॉ. सुशोवन बनर्जी का जन्म 30 सितंबर 1939 को हुआ था। खुद डॉक्टर बनने के बाद 57 साल तक बोलपुर के हरगौरीतला में सिर्फ एक रुपये में मरीजों को देखा करते थे। वे हर दिन औसतन 150 मरीजों को देखा करते थे।
पंश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के एक रुपए लेकर चिकित्सा करने वाले पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित डॉ. सुशोवन बनर्जी नहीं रहे। उनका कोलकाता के एक निजी अस्पताल में मंगल को निधन हो गया, वे 83 वर्ष के थे। गरीबों के मसीहा के नाम से पहचाने जाने वाले डॉक्टर की निधन की खबर सुनते ही जिले भर में मातम छा गया।
मकसद ही था बस गरीबों की सेवा
कोरोना काल में भी वे गरीबों और असहाय लोगों की लगातार सेवा करते रहे। वे कभी थके नहीं। कभी हारे नहीं। लेकिन आज वे भगवान के सामने हार गए और चिरनिद्रा में सो गए।
डॉ. सुशोवन बनर्जी का जन्म 30 सितंबर 1939 को हुआ था। खुद डॉक्टर बनने के बाद 57 साल तक बोलपुर के हरगौरीतला में सिर्फ एक रुपये में मरीजों को देखा करते थे। वे हर दिन औसतन 150 मरीजों को देखा करते थे। सिर्फ एक रुपये फीस के नाम पर लेते थे वह भी नहीं रहने पर वह निशुल्क ही मरीज को देखते और उनका इलाज करते थे।
2020में मिला था पद्मश्री
उनकी अनवरत सेवा भाव को देखते हुए सरकार ने 2020 में उन्हें पद्मश्री सम्मान से विभूषित किया था। उन्होंने कभी नहीं देखा कि समय क्या है और कितना बज रहा है। कोराना काल हो या सामान्य काल, सदा लोगों की सेवा करते रहे।
किडनी की समस्या से जूझ रहे थे सुशोवन बनर्जी
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक पद्मश्री से सम्मानित सुशोवन बनर्जी पिछले कुछ महीनों से किडनी की समस्या से जूझ रहे थे। कुछ दिन पहले उन्हें कोलकाता में एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वहां मंगलवार सुबह करीब 11:30 बजे उनका निधन हो गया। वे 83 वर्ष के थे। सुशोवन बनर्जी के करीबी सूत्र के मुताबिक, उन्हें मंगलवार दोपहर बोलपुर लाया जाएगा।