मार्शल आर्ट के विश्व चैंपियन को हराकर दुनिया के पहले मुस्लिम चैंपियन का खिताब जीतने वाले रूस के मुस्लिम फाईटर खबीब का जन्म 20 सितम्बर 1988 में देगिस्तान के रशियन फेडरेशन में हुआ,खबीब का पूरा नाम खबीब अबुल्लाहमेनापोविच नूरमागोमेडोव है,देगिस्तान पहाड़ों में बसा हुआ एक इलाका है जो वहां के लड़ाकू लोगों के लिये मशहूर है,खबीब के पिता अब्दुल मेनान रशियन आर्मी में थे,आर्मी का डिस्प्लेन तो उनमें था ही साथ ही वो जुडो कराटे रेसलिंग में चैंपियन थे।
खबीब जिस जगह का रहने वाला उसे रूस की सबसे ख़तरनाक जगह कहा जाता है,दुनियाभर में इस क्षेत्र की बहादुरी और लड़कपन के किस्से मशहूर हैं और आज तक कोई भी एक दशक से ज़्यादा समय में मिक्स्ड मार्शल आर्ट के करियर में आज तक किसी खिलाड़ी ने ख़बीब नूर को पछाड़ने की हिम्मत नहीं दिखाई है।
अमरीका के लॉस एंजेलिस में ख़बीब नूर ने कॉनर को मैच के चौथे राउंड में हरा दिया था…ये मिक्स्ड मार्शल आर्ट का एक बेहतरीन नमूना था,नीचे की कहानी ख़बीब नूर के साथ-साथ, हाल ही में ख़बीब और कॉनर के बीच हुए चर्चित मैच की भी है।
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क्योंकि वो मैच तो आसानी से जीत गए लेकिन उसके बाद जो हुआ वो ख़बीब नूर के भविष्य पर सवालिया निशान लगा सकता है,आइए ये समझते हैं कि आख़िर ख़बीब मिक्सड मार्शल आर्ट की दुनिया का सबसे बड़ा नाम बनकर कैसे उभरे।
इस ख़िताब पर कब्जा करने के साथ ही वह यूएफ़सी टाइटल जीतने वाले पहले मुसलमान खिलाड़ी बन गए हैं,मिक्स्ड मार्शल आर्ट के इतिहास में ये एक नया अध्याय जोड़ने जैसा था,देखने के लिए तो ख़बीब नूर और मेकग्रेगर एक खिलाड़ी की तरह रिंग में उतरे थे. लेकिन ख़बीब के लिए ये सिर्फ एक खेल नहीं था।
ख़बीब और मेकग्रेगर के बीच लात-घूंसों से पहले ज़ुबानी जंग भी चलती रही है,मेकग्रेगर दावा करते हैं कि उनका ख़ानदान, उनका खून और उनका वंश अंग्रेजों से संघर्ष करता रहा और यहां तक कि किंग जेम्स ने उनके परिवार के नाम को 100 साल तक के लिए प्रतिबंधित भी कर दिया था।
वो ये भी कहते हैं कि मुझे पता है कि वह दागेस्तान से आता है, जहां पर लोग बचपन से पहलवानी सीखते हैं. लेकिन मैं ख़बीब के खेल की कमियां जानता हूं,प्रेस कॉन्फ्रेंस में मेकग्रेगर को बात करते देखें तो वह मेज पर पैर रखकर आक्रोशित मुद्रा में हाथ हिलाकर ख़बीब को नीचा दिखाने की कोशिश करते हुए दिखते हैं।
वहीं, ख़बीब के जवाब शांति के साथ और काफ़ी सधी जवान में आते हैं. वो अपने पिता की बात करते हैं, अपने देश की बात करते हैं और मेकग्रेगर की तारीफ़ भी करते हैं,मैच जीतने के मुद्दे पर ख़बीब कहते हैं कि आप पैसे के लिए खेलने आते हैं लेकिन मैं आपकी तरह पैसे के लिए नहीं बल्कि अपनी विरासत के लिए खेलने आता हूं।ख़बीब कहते हैं कि मेकग्रेगर अंग्रेजों के ख़िलाफ़ संघर्ष करने की बात करते हैं लेकिन अपनी भाषा भी नहीं बोलते हैं।
ख़बीब में है कुछ ख़ास?
रूस के दागेस्तान इलाके से आने वाले ख़बीब अवार जाति से ताल्लुक रखते हैं,एक सम्मान प्राप्त सैन्य अधिकारी के बेटे ख़बीब ने आठ साल की उम्र से ही अपने पिता से पहलवानी की ट्रेनिंग लेना शुरू की थी।
ख़बीब ने अपने पिता अब्दुलमनाप से सिर्फ पहलवानी की ही ट्रेनिंग नहीं ली बल्कि उन्होंने जूडो और सैम्बो (1920 के दशक में सोवियत रेड आर्मी ने मिक्स्ड मार्शल आर्ट की एक ख़ास विधा को विकसित किया था) की ट्रेनिंग भी ली।
सैम्बो की ख़ास बात ये है कि इसमें दूसरी तमाम मार्शल आर्ट के सभी ऐसे हथकंडे शामिल होते हैं जो विरोधी उम्मीदवार को सोचने का मौका भी नहीं देते,कहा तो ये भी जाता है कि ख़बीब नूर अपने बचपन में एक असली भालू से कुश्ती किया करते थे।
हालांकि, जूडो और सैम्बो सीखते समय उन्होंने मार्शल आर्ट्स में अपना करियर बनाने का फ़ैसला नहीं किया था,लेकिन जब उनके पिता ने अपने घर के ग्राउंड फ़्लोर पर जिम की शुरुआत की तब उन्होंने गंभीरता से मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग लेना शुरू की।