नई दिल्ली: जकार्ता में होने वाले 18 वें एशियाई खेलों में भारत को घुड़सवारी में सिल्वर मेडल दिलाकर फवाद मिर्ज़ा ने भारत का नाम रोशन किया है और 36 साल से चला आरहा सूखा खत्म किया है ,घुड़सवार फवाद मिर्जा अपनी ऐतिहासिक सफलता से बेहद खुश हैं, लेकिन उन्हें साथ ही अफसोस है कि वह गोल्ड से चूक गए।
फवाद ने मीडिया से कहा कि उन्हें गोल्ड ना मिलने का इतना मलाल रहा कि कुछ दिन वह ठीक से सो नहीं पाए लेकिन फिर उन्होंने अपने मन को समझाया और अब उनका ध्यान और ज्यादा मेहनत कर मेडल का रंग बदलने और ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व करने और मेडल जीतने पर है. फवाद ने फाइनल में 26.40 का स्कोर कर सिंगल इवेंट का सिल्वर मेडल हासिल किया।
Congratulations Fouaad Mirza and the Indian Equestrian team of Rakesh, Ashish, Jitender and Fouaad for winning the Silver Medal in separate Equestrian events at the @asiangames2018. India is very proud of your exemplary accomplishments. Keep it up! #PresidentKovind
— President of India (@rashtrapatibhvn) August 26, 2018
फवाद का कहना है कि”हां, मुझे इस बात का अफसोस है. यह ऐसी बात थी जिसने मुझे सोने नहीं दिया. बेशक मुझे सिल्वर मेडल से संतोष करना पड़ा हो, लेकिन इसने मुझे सफलता के लिए और भूखा बना दिया है. मैं अपनी मेहनत जारी रखूंगा और आने वाले दिनों में भारत के लिए और बेहतर प्रदर्शन करूंगा.”
फवाद ने अपनी इस सफलता के लिए बेंगलुरु स्थित एम्बेसी इंटरनेशनल राइडिंग स्कूल (ईआईआरएस) और इसके चेयरमैन और प्रबंध निदेशक जीतू विरवानी का शुक्रिया अदा किया है. वीरवानी बड़े उद्योगपति हैं और उनके द्वारा तैयार ईआईआरएस भारत में वैश्विक स्तर का एकमात्र राइडिंग स्कूल है।
मिर्जा कहा, “मैं जीतू विरवानी और एम्बेसी राइडिंग स्कूल का शुक्रगुजार हूं, जिन्होंने मुझे यह मौका दिया कि मैं एशियाई खेलों में देश का प्रतिनिधित्व कर सकूं. साथ ही मैं काफी खुश हूं और मुझे अपनी इस सफलता पर गर्व है. मुझे उम्मीद है कि हम भविष्य में और आगे जाएंगे.” उन्होंने कहा, “मुझे पूरा भरोसा है कि हमारी यह सफलता इस खेल की लोकप्रियता को बढ़ावा देगी और कई लोग इस खेल को अपनाएंगे. हमारे पास खेल से संबंधी स्तरीय सुविधाएं है बस हमें कुछ ऐसा करने की जरूरत थी, जिससे इस खेल में जान फूंकी जा सके और मुझे लगता है कि एशियाई खेलों में मिले मेडल यही काम करेंगे.”
फवाद जानते थे कि वह अगर यहां मेडल जीतते हैं तो इतिहास रचेंगे बावजूद इसके उनका ध्यान सिर्फ ज्यादा कुछ न सोच उस पल का पूरा लुत्फ उठाने पर था. फवाद ने कहा, “मैं जानता था कि मेरे मेडल जीतने के क्या मायने हैं, लेकिन उस समय मेरी कोशिश मेरे सामने जो काम था उस पर ध्यान लगाने की थी. मैं उसी पल में रहना चाहता था, बिना किसी दवाब के आराम से और पल का लुत्फ उठाना चाहता था.”
घुड़सवारी फवाद के खून में है. उनका परिवार कई पीढ़ियों से इस खेल में है. फवाद अपने परिवार की सातवीं पीढ़ी हैं जो इस खेल को खेलने की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. पेशे से जानवरों के डॉक्टर फवाद के पिता हसनेन मिर्जा ने उनको इस खेल से परिचित कराया. फवाद पांच साल की उम्र से ही इस खेल से जुड़ गए थे।
फवाद ने कहा, “मेरे पिता ने मुझे इस खेल के लिए प्रेरित किया. वह घोड़ों के बारे में ज्यादा जानते हैं. मेरे पिता ने मुझे काफी छोटी उम्र में ही घुड़सवारी सिखाई. उन्होंने मुझसे काफी जानकारी साझा की. वह हमेशा मेरे साथ ही रहते थे. उनसे मिली जानकारी ने मेरी काफी मदद की.”
ताश में सही पत्ते चुनने जैसा है घोड़ा सिलेक्ट करना
फवाद के पास एम्बेसी ग्रुप के सात घोड़े हैं, जिनमें से उनका पसंदीदा घोड़ा सेनोर मेडिकोट है. इसी घोड़े के साथ फवाद ने सिल्वर मेडल जीते हैं. फवाद ने कहा कि इस खेल में घोड़ा काफी अहम रोल निभाता है और उसका सही चुनाव तथा उसकी सही देखभाल उतनी ही जरूरी है जितनी खिलाड़ी की।
उन्होंने कहा, “मेरे पास एम्बेसी ग्रुप के सात घोड़े हैं. घोड़े का चुनना ताश के खेल में सही पत्ते को चुनने के समान है. इसमें काफी चीजें मायने रखती हैं जैसे की अगर आपकी लंबाई छोटी है तो आपको छोटा घोड़ा चाहिए होगा, लंबे हैं तो बड़ा घोड़ा चाहिए होगा. एक सबसे प्रमुख बात यह है कि यह जानवर हैं, आपको इनसे घुलना मिलना पड़ता है. उन्हें समझना होता है. अगर आपकी लंबाई के हिसाब से सही घोड़ा है, वो तंदरुस्त हो लेकिन अगर आप उसे समझते नहीं हैं तो या वह आपको जानता नहीं है और आप एक-दूसरे के लिए नए हैं तो दिक्कत आएगी।