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Panneerselvam VS Palaniswami : अब तमिलनाडु में राजनीतिक घमासान, जानें क्या है पूरा विवाद?

महाराष्ट्र के बाद अब तमिलनाडु में सियासी घमासान मचा हुआ है। विवाद ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कझगम (AIADMK) पर आधिकारिक कब्जे को लेकर हो रहा है। सोमवार को पार्टी की जनरल काउंसिल की बैठक हुई। इसमें ई पलानीस्वामी को पार्टी का अंतरिम महासचिव चुन लिया गया। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री ओ. पनीरसेल्वम और उनके समर्थकों को पार्टी से बाहर करने का भी एलान हो गया।

ये तो आज हुई बैठक का सार था। अब आपको इस विवाद की जड़ तक ले चलते हैं। ये भी बताते हैं कि अब तक AIADMK में क्या-क्या हुआ? आज हुई बैठक में लिए गए फैसलों को भी विस्तार से बताएंगे। पढ़िए पूरी खबर…


एमजीआर और करुणानिधि – फोटो : तीसरी जंग

पहले पार्टी का इतिहास जान लीजिए
तमिलनाडु में एक फिल्म स्टार हुआ करते थे। नाम था एमजी रामचंद्रन। बहुत मशहूर थे। इतना कि उनकी एक झलक पाने के लिए लोग जान तक देने के लिए तैयार थे। तमिल फिल्म इंडस्ट्री में उनके आगे सब फीके थे। फिल्मों के साथ-साथ वह राजनीति में भी दखल रखते थै। 1953 तक वह कांग्रेस के सदस्य रहे। इसके बाद तमिलनाडु के नेता सीएन अन्नादुरई ने एक नई पार्टी बनाई। इसका नाम रखा द्रविड़ मुन्नेत्र कझगम यानी DMK रखा। इस वक्त तमिलनाडु में डीएमके की सरकार है।

एमजीआर भी 1953 में डीएमके से जुड़ गए। एमजीआर के जुड़ने से पार्टी का दबदबा पूरे तमिलनाडु में हो गया। 1962 में एमजीआर विधान परिषद के पहली बार सदस्य बने। 1967 में वह विधायक चुने गए। 1967 में एमजीआर पर जानलेवा हमला भी हुआ।

एमजीआर के चित्र पर पुष्प भेंट करतीं जयललिता (फाइल फोटो) – फोटो : तीसरी जंग

जब एमजीआर ने नई पार्टी बनाई
1972 की बात है। तब करुणानिधि अपने बेटे एमके मुथु को फिल्म और राजनीति में बड़े पैमाने पर प्रोजेक्ट करने लगे। उधर, एमजीआर पार्टी में भ्रष्टाचार और गड़बड़ी के आरोप लगाने लगे। खुले मंच से वह करुणानिधि से सवाल पूछने लगे। तब उन्हें पार्टी से बाहर निकाल दिया गया। एमजीआर ने नई पार्टी बनाई और अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कझगम (ADMK) नाम दिया। जिसे बाद में बदलकर अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कझगम यानी AIADMK कर दिया गया। इसके बाद AIADMK ने तमिलनाडु में कई चुनाव जीते।

1987 में एमजीआर के निधन के बाद पार्टी दो धड़ों में बंट गई। एक धड़े को एमजीआर की पत्नी जानकी रामचंद्रन और दूसरे को जयललिता ने संभाला। हालांकि, बाद में जयललिता ने खुद को एमजीआर का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। इसके बाद जयललिता लंबे समय तक तमिलनाडु की मुख्यमंत्री भी रहीं। 2014 में जयललिता को आय से अधिक संपत्ति के मामले में दोषी ठहराया गया और चार साल की सजा सुनाई गई। 2015 में उन्हें कोर्ट ने बरी कर दिया और फिर से उन्होंने मुख्यमंत्री का पद संभाल लिया। 2016 में हार्ट अटैक आने से उनकी मौत हो गई।

पनीरसेल्वम और पलानीस्वामी – फोटो : तीसरी जंग

और फिर शुरू हुआ पार्टी पर कब्जे को लेकर विवाद
जे जयललिता के अचानक निधन के बाद पार्टी पर कब्जे को लेकर फिर विवाद शुरू हो गया। तब पनीरसेल्वम और पलानीस्वामी के साथ-साथ जे जयललिता की सहयोगी रहीं शशिकला भी इस विवाद का हिस्सा रहीं। हालांकि, बाद में वह अलग हो गईं। पार्टी दो धड़ों में बंट गई।

एक धड़ा पार्टी के दिग्गज नेता ई पलानीस्वामी यानी ईपीएस के साथ आ गया और दूसरा ओ पन्नीरसेल्वम यानी ओपीएस के साथ। तब एक फार्मूला बना। इसके तहत पलानीस्वामी को जॉइंट को-ऑर्डिनेटर और पन्नीरसेल्वम (ओपीएस) को-ऑर्डिनेटर की जिम्मेदारी दी गई। ईपीएस का गुट पार्टी पर पूर्ण अधिकार चाहता था।


पलानीस्वामी – फोटो : तीसरी जंग

ईपीएस हो गए मजबूत
14 जून को जिला सचिव की मीटिंग के बाद से पार्टी में सिंगल लीडरशिप की मांग तेज हो गई। दोनों गुटों ने इसे सुलझाने के लिए कई बार बातचीत की लेकिन असफल रहे। ओपीएस ने ईपीएस को एक लेटर भी लिखा था जिसमें पार्टी की भ्रमित करने वाली हालत का हवाला देते हुए जनरल कमेटी की बैठक रद्द करने कहा था। हालांकि ईपीएस ने इसे नहीं माना।

ओपीएस गुट ने जनरल कमेटी के सदस्यों के 23 प्रस्ताव पिछले महीने खारिज कर दिए थे। पलानीस्वामी का खेमा सिंगल लीडरशिप पर 23 जून की बैठक में एक प्रस्ताव पारित करने वाला था, इसके विरोध में पन्नीरसेल्वम ने कहा कि पार्टी नियम के अनुसार यह काम उनके हस्ताक्षर के बिना नहीं हो सकता।

ओपीएस की तुलना में ईपीएस को बड़ी संख्या में पार्टी विधायकों और जिला सचिवों का समर्थन प्राप्त है। ईपीएस खेमे में करीब 75 जिला सचिव, 63 विधायक और 2190 जनरल काउंसिल मेम्बर्स शामिल हैं। वहीं लम्बे समय से चल रहे ड्रामे के बीच ओपीएस के कुछ वफादार भी ईपीएस से मिल गए। बीते मंगलवार को ही तिरुवल्लूर के जिला सचिव अलेक्जेंडर और पुडुचेरी के राज्य सचिव अंबालागन ने भी ईपीएस को अपना समर्थन दिया।


पन्नीरसेल्वम – फोटो : तीसरी जंग

कोर्ट से नहीं मिली राहत
आज हुई आम सभा की बैठक रुकवाने के लिए पन्नीरसेल्वम ने मद्रास हाईकोर्ट का रुख किया। लेकिन जस्टिस कृष्णन रामास्वामी ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि अदालत एक राजनीतिक दल के झगड़ों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है। सामान्य परिषद की बैठक कानून के अनुसार आयोजित की जा सकती है।


पनीरसेल्वम और पलानीस्वामी – फोटो : तीसरी जंग

अब आगे क्या?
अब AIADMK पर पूरी तरह से पलानीस्वामी का वर्चस्व हो चुका है। बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री ओ. पनीरसेल्वम और उनके समर्थकों को भी पार्टी से निकालने का फैसला लिया गया है। ऐसे में संभव है कि पार्टी से पनीरसेल्वम और उनके साथ रहने वाले नेताओं को निकाल दिया जाए। वहीं, पनीरसेल्वम इस मामले में सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में जुट गए हैं।

राजनीतिक विश्लेषक प्रो. अजय सिंह कहते हैं, ‘अगर सुप्रीम कोर्ट से भी पनीरसेल्वम को राहत नहीं मिलती है तो वह AIADMK में फूट डालकर नई पार्टी का गठन कर सकते हैं। जैसा 1972 में एमजीआर ने डीएमके छोड़ने के बाद किया था।’