दुनिया

one year of #GAZA ₹GENOCIDE : इज़राइल और अमेरिका का आतंकवाद : तीसरी जंग की ख़ास रिपोर्ट देखें

बीते साल 7 अक्टूबर को फ़लस्तीन के ग्रुप्स ने इसराईल पर हमला किया था, फलस्तीन के ग्रुप्स ने इसराईल पर हमला क्यों किया था, इसकी जानकारी तीसरी जंग हिंदी ने अपनी अनेक ख़बरों व् V-ब्लोग्स में बताने की कोशिश की है, आज इस्राईल के आतंकवाद का एक साल पूरा हो गया है, इस मोके पर तीसरी जंग की ख़ास रिपोर्ट देखें

नेतन्याहू ने फ़्रांस के राष्ट्रपति और पश्चिमी देशों के लिए क्यों कहा- ‘शर्म आनी चाहिए’

फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने इसराइल को हथियार देने पर रोक लगाने की मांग की है. उनकी इस मांग की इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने निंदा की है.

इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने मैक्रों के बयान को ‘पाखंड’ क़रार देते हुए कहा है कि उन्हें शर्म आनी चाहिए.

फ़्रांस के राष्ट्रपति ने कहा था कि इसराइल के ख़िलाफ़ हथियार सप्लाई की रोक होनी चाहिए और लेबनान में सीज़फ़ायर होना चाहिए.

इसके बाद नेतन्याहू ने उनकी कड़े शब्दों में निंदा की है. उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा है, ”आज इसराइल सभ्यता के दुश्मनों से सात मोर्चों पर ख़ुद की रक्षा कर रहा है. हम ग़ज़ा में हमास के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं जिन्होंने 7 अक्तूबर को हत्या, बलात्कार किए और लोगों को ज़िंदा जलाया.”

”हम लेबनान में हिज़्बुल्लाह के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं जो दुनिया का सबसे अधिक हथियारों से भरा आतंकी संगठन है, जो कि उत्तरी सीमा पर 7 अक्तूबर से भी बड़े नरसंहार की योजना बना रहा था.”

“हम यमन में हूतियों, सीरिया और इराक़ में शिया लड़ाकों के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं. हम ईरान के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं जिसने इसराइल पर सीधे 200 से ज़्यादा बैलिस्टिक मिसाइलें दागी थीं.”

”जब इसराइल ईरान के नेतृत्व वाली बर्बर ताक़तों से लड़ रहा है, तब सभी सभ्य देशों को इसराइल के साथ मज़बूती से खड़ा होना चाहिए.”

“फिर भी राष्ट्रपति मैक्रों और दूसरे पश्चिमी नेता अब इसराइल के ख़िलाफ़ हथियार प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं. उन पर शर्म आनी चाहिए.”

लेबनान पर इसराइल की बमबारी, रात भर कैसे रहे हालात

लेबनान पर इसराइल की बमबारी लगातार जारी है. शनिवार की देर रात तक भी इसराइली सेना ने लेबनान पर बमबारी जारी रखी.

शनिवार की देर रात को इसराइल ने लेबनान की राजधानी बेरूत के दक्षिणी इलाक़ों में तीस से भी ज़्यादा हवाई हमले किए.

बेरूत के दक्षिणी इलाक़ों में हिज़्बुल्लाह की मज़बूत उपस्थिति मानी जाती है. इन हवाई हमलों के दौरान बेरूत के कई इलाक़ों में आग की लपटें और धुएं के विशाल गुबारों को उठते हुए देखा गया.

वहीं कई सारे वीडियो में लगातार हो रहे धमाकों की वजह से बेरूत में लोग इधर से उधर भागते हुए भी देखे जा सकते थे.

बीबीसी के संवाददाता के मुताबिक़, इसराइल ने पेट्रोल स्टेशनों या लेबनान के हथियारों के ठिकानों पर हमला किया है.

वहीं इसराइल डिफ़ेंस फ़ोर्स (आईडीएफ़) का कहना है, हिज़्बुल्लाह ने इसराइली शहर किर्यात शमोना को निशाना बनाते हुए 30 रॉकेट दागे हैं. हालांकि ज़्यादातर इलाक़े को खाली करा दिया गया है.

जबकि हिज़्बुल्लाह का कहना है कि इसराइली सेना लेबनान के एक गांव में घुसपैठ करने की कोशिश कर रही थी, जिसे बाद में उन्होंने खदेड़ दिया.

हाल ही में हिज़्बुल्लाह के नेता हसन नसरल्लाह की एक हमले में मौत के बाद ईरान ने भी इसराइल पर कई सारे रॉकेट दागे थे.

वहीं यमन में इसराइल ने हूती विद्रोहियों पर भी बमबारी की है.

ग़ज़ा की मस्जिद पर इसराइली हवाई हमले में 26 लोगों की मौत

ग़ज़ा में हमास के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि एक मस्जिद और स्कूल पर किए गए ताज़ा इसराइली हमले में 26 लोगों की मौत हुई है.

इस मस्जिद और स्कूल में युद्ध के कारण बेघर हुए लोग रह रहे थे.

इस हमले में कई लोग घायल भी हुए हैं.

स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक़, इसराइल ने यह हवाई हमला रविवार को अल-बलाह स्थित इब्न रुश्द स्कूल और अल-अक्सा शहीद मस्जिद पर किया था.

इसराइली सेना ने कहा है कि उसने अपने हमले में कमांड और कंट्रोल के इलाक़ों में सक्रिय हमास लड़ाकों को निशाना बनाया.

बीबीसी के वेरिफाई किए गए वीडियो में भी मस्जिद के अंदर लाशों और बिखरे हुए खून को साफ तौर पर देखा जा सकता है. वहीं स्कूल के वीडियो में इमारत में लगी हुई आग और स्ट्रेचर पर एक व्यक्ति को ले जाते हुए देखा जा सकता है.

इससे पहले समाचार एजेंसी एएफ़पी के मुताबिक़- हमास की सिविल डिफ़ेंस एजेंसी ने 21 लोगों के मारे जाने की जानकारी दी थी. लेकिन उन्होंने और भी मौतों की आशंका जताई थी.

सात अक्तूबर को इसराइल और हमास की लड़ाई के एक साल भी पूरा होने जा रहा है.

इसराइली सेना ने जारी किया दक्षिणी लेबनान के गांवों को खाली करने का अलर्ट

इसराइली सेना ने लेबनान के कुछ गांवों के लोगों के लिए एक नया अलर्ट और ऑर्डर जारी किया है.

इसराइली सेना लेबनान के दक्षिणी हिस्से में एक ऑपरेशन चलाने की तैयारी कर रही है. इसी के मद्देनज़र इसराइली सेना ने इस इलाक़े को खाली करने के लिए कहा है.

इसराइल डिफ़ेंस फ़ोर्स के प्रवक्ता अविचाई अद्राई ने लेबनान के दक्षिणी हिस्से में स्थित लगभग 25 गांवों को खाली करने का अलर्ट दिया है.

उन्होंने कहा, ”हिज़्बुल्लाह सदस्यों, हथियारों या उस संगठन से नज़दीकी रखने वाले अपनी जान को ख़तरे में डाल रहे हैं.”

अविचाई अद्राई ने इन गांवों के लोगों से कहा, ”अपने घरों को खाली कर दें और तुरंत ही अवेल नदी के उत्तरी इलाक़े की तरफ़ चले जाएं. हम आपको अपने घरों की ओर लौटने का उचित समय ज़रूर बताएंगे.”

इसराइल के बस स्टेशन पर हमला, गोलीबारी में एक महिला की मौत

इसराइल के एक बस स्टेशन पर हमला हुआ है. गोलीबारी में 25 साल की एक महिला की मौत हो गई जबकि कई लोग घायल हुए हैं.

पुलिस ने बताया कि दक्षिणी इसराइल के बीरशेबा में एक “संदिग्ध आतंकी हमला” हुआ है.

इसराइल की एंबुलेंस सेवा का कहना है कि डॉक्टर गोलीबारी में घायल हुए दस लोगों का इलाज कर रहे हैं.

पुलिस ने कहा कि हमलावर मारा गया है.

इसराइल में ये हमला ऐसे वक्त पर हुआ है, जब एक दिन बाद यानी 7 अक्तूबर को हमास के इस देश पर हुए हमले को एक साल पूरा हो जाएगा.

इस हमले के बाद ही इसराइल ने हमास के ख़िलाफ़ ग़ज़ा में हमले करना शुरू किया था. तभी से इसराइल और हमास के बीच जंग जारी है.

लेबनान को कौन चलाता है और देश में हिज़्बुल्लाह कितना ताक़तवर?

जेरेमी हॉवेल
पदनाम,बीबीसी वर्ल्ड सर्विस
============

लेबनान बीते क़रीब दो हफ्ते से इसराइल के निशाने पर है. लेबनान के अंदर इसराइल लगातार हमले कर रहा है. इन हमलों में एक हज़ार से ज़्यादा लोगों की जान जा चुकी है.

इसराइली सेना हवाई हमलों के साथ ही लेबनान पर ज़मीनी हमले भी कर रही है.

ताज़ा हालात के पीछे का कारण इसराइल और हिज़्बुल्लाह के बीच जारी संघर्ष है.

हिज़्बुल्लाह को ईरान का समर्थन हासिल है. ये लेबनान में शिया इस्लामी राजनीतिक और शक्तिशाली सैन्य संगठन है.

हिज़्बुल्लाह लेबनान की सेना से ज़्यादा ताकतवर है और उसे इसका समर्थन हासिल है. इसके साथ ही हिज़्बुल्लाह के पास शिया मुस्लिम देशों का भी समर्थन है.

लेबनान पर किसका शासन

लेबनान की सत्ता वहां के विभिन्न धार्मिक संप्रदायों के बीच बँटी हुई है.

साल 1943 में फ़्रांस से आज़ादी मिलने के बाद एक संधि को मंज़ूरी दी गई. इसके बाद लेबनान में सभी धर्मों की मिलीजुली सरकार बनी.

इसके मुताबिक एक ईसाई व्यक्ति ही देश का राष्ट्रपति बनेगा, प्रधानमंत्री का पद सुन्नी मुसलमान को दिया जाएगा और संसद का स्पीकर एक शिया मुसलमान ही बन सकता है.

उस वक़्त लेबनान की आधी से ज़्यादा आबादी ईसाइयों की थी, यानी सुन्नी और शिया मुस्लिमों से अधिक.

हालांकि, बहुत से लोग कहते हैं कि अब ये संधि पुरानी हो चुकी है. क्योंकि देश में ईसाई, सुन्नी मुसलमान और शिया मुसलमान सभी की संख्या कुल आबादी का करीब 30-30 फ़ीसदी है.

संधि के समय ईसाई और मुस्लिम आबादी को संसद में बराबर सीट मिली थीं. कुल आबादी में सबसे अधिक संख्या मुस्लिम समुदाय की है. यानी शिया और सुन्नी मुसलमानों की कुल आबादी ईसाई धर्म को मानने वालों से अधिक है.

लेबनान में किसी एक पार्टी या धर्म को मानने वालों की सरकार नहीं बन सकी है. यहां सरकारें गठबंधन से बनती हैं. सभी बड़े फैसले सर्वसम्मति से लिए जाते हैं.

यही कारण है कि सत्ता में उथल-पुथल भी देखने को मिलती है.

लेबनान में हिज़्बुल्लाह की स्थिति कैसी है?

हिज़्बुल्लाह की स्थापना इसराइल के ख़िलाफ 1982 में एक शिया मुस्लिम संगठन के तौर पर की गई थी. हिज़्बुल्लाह का अर्थ अरबी में “ख़ुदा की पार्टी” है.

उस वक़्त लेबनान में गृह युद्ध चल रहा था. तब इसराइली सेना ने दक्षिणी लेबनान पर क़ब्ज़ा किया हुआ था. हिज़्बुल्लाह को हथियार और पैसे से ईरान का साथ मिला हुआ है.

इस संगठन ने 1985 में अपनी स्थापना की आधिकारिक घोषणा की.

हिज़्बुल्लाह ने कहा कि वो ईरान की तरह ही लेबनान को भी एक इस्लामिक देश बनाना चाहता है. उसने दक्षिणी लेबनान और फलस्तीनी इलाकों से इसराइल के कब्ज़े को ख़त्म करने की कसम खाई.

2009 में हिज़्बुल्लाह ने एक घोषणापत्र जारी किया. इसमें लेबनान को मुस्लिम देश बनाने की बात नहीं कही गई.

हालांकि संगठन का इसराइल को लेकर रुख़ पहले की तरह ही था.

जब 1990 में लेबनान का गृह युद्ध समाप्त हुआ, तब युद्ध में शामिल विभिन्न गुटों ने अपनी सेनाओं को भंग कर दिया. लेकिन हिज़्बुल्लाह ऐसे ही बना रहा.

उसने कहा कि दक्षिणी लेबनान में इसराइल से लड़ने के लिए उसकी ज़रूरत है.

इसराइल ने साल 2000 में उस इलाके़ से अपनी सेनाओं को वापस बुला लिया और हिज़्बुल्लाह ने इसे अपनी जीत बताया.

हिज़्बुल्लाह ने 1992 से संसद में अपने उम्मीदवार भेजना शुरू कर दिया था. उसके कई सांसद लेबनान की संसद में हैं और सरकार में भी कई मंत्री हैं.

हिज़्बुल्लाह शिया आबादी वाले लेबनान के इलाकों में स्कूल, स्वास्थ्य समेत अन्य सामाजिक सेवाएं प्रदान करता है.

लेबनान की अन्य पार्टियां भी अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में ऐसी सेवाएं उपलब्ध कराती हैं. लेकिन हिज़्बुल्लाह का नेटवर्क इनके मुकाबले काफी बड़ा माना जाता है.

लेबनान में हिज़्बुल्लाह कैसे ताकतवर बना?

हिज़्बुल्लाह की सबसे बड़ी ताकत उसकी सेना है.

वो अपने लड़ाकों की संख्या एक लाख बताता है.

हालांकि स्वतंत्र तौर पर किए गए अनुमानों में इन लड़ाकों की संख्या 20 हज़ार से 50 हज़ार के बीच बताई जाती है.

अमेरिकी थिंक टैंक सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज के मुताबिक़, हिज़्बुल्लाह के पास मौजूद रॉकेट और मिसाइलों की संख्या 1 लाख 20 हज़ार से 2 लाख के बीच है.

इसे दुनिया की सबसे ताकतवर गैर-सरकारी सेनाओं में से एक माना जाता है. ऐसा भी कहा जाता है कि हिज़्बुल्लाह की सेना लेबनान की सेना से अधिक ताकतवर है.

लेबनान की सरकार की कमज़ोरी का फायदा भी हिज़्बुल्लाह को मिलता है.

उदाहरण के तौर पर इस देश के पास साल 2022 से कोई राष्ट्रपति नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि राजनीतिक दलों के बीच इस बात पर सहमति ही नहीं बन पाई है कि किसे राष्ट्रपति बनाया जाए.

केंद्र सरकार इतनी मज़बूत नहीं है कि हिज़्बुल्लाह को उसका एजेंडा आगे बढ़ाने से रोक सके.

लेबनान पर बढ़ते इसराइली हमलों के बीच छह अक्तूबर को पीएम नाजिब मिकाती ने सीज़फ़ायर को लेकर दूसरे देशों से समर्थन देने की बात कही है.

इसराइली हमलों के बीच मध्य पूर्व में युद्ध छिड़ने का ख़तरा कितना बड़ा है?

ग़ज़ा में युद्ध जारी है. इसराइल का लेबनान के दक्षिण में ज़मीनी आक्रमण भी चल रहा है और ईरान ने इसराइल पर करीब 200 मिसाइलें दागी हैं. वहीं दूसरी ओर इसराइल ने यमन में हूती विद्रोहियों पर बमबारी भी की.

मध्य पूर्व में लगातार बढ़ते तनाव की वजह से दुनिया भर के राजनेताओं और विश्लेषकों ने इस क्षेत्र में युद्ध छिड़ जाने की आशंका जताई है.

हमने मध्य पूर्व के अलग-अलग क्षेत्रों को कवर करने वाले बीबीसी संवाददाताओं से जानने की कोशिश की है कि इस माहौल में युद्ध होने का ख़तरा कितना बड़ा है और क्या यह युद्ध विश्वव्यापी संघर्ष का रूप ले सकता है.

नवल अल-मगफ़ी, वरिष्ठ अंतरराष्ट्रीय खोजी संवाददाता

हमास के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक़ इसराइल के हमले में अब तक 40,000 से अधिक लोगों की मौत हो गई है. केवल एक हफ्ते में लेबनान में 1,000 से अधिक लोग मारे गए. जान-माल का यह नुकसान दहला देने वाला है.

इन क्षेत्रों में लाखों लोग विस्थापित हो गए हैं और पूरा क्षेत्र खंडहर में तब्दील हो चुका है. हम इस क्षेत्र में दशकों का सबसे खतरनाक संकट देख रहे हैं.

पिछले हफ्ते हिज़्बुल्लाह नेता हसन नसरल्लाह की मौत के बाद इसराइल में जश्न मनाया गया. हालांकि हमास के नेता नसरल्लाह और इस्माइल हनिया दोनों की हत्‍या से ईरान की तथाकथित ऐक्सिस ऑफ़ रेसिस्टेंस को खत्म करने की हसरत रखने वाले लोगों को कुछ पल के लिए संतुष्टि ज़रूर मिली होगी, लेकिन ऐसा जश्न जल्दबाजी है.

ऐक्सिस ऑफ़ रेसिस्टेंस ईरान की मदद से खड़ा हुआ है और इसमें हमास, हिज़्बुल्लाह, हूती समेत इराक़ और सीरिया के विद्रोही गुट आते हैं.

बेशक इसराइल ने अपना लक्ष्य साधकर किए इन हमलों और हवाई हमलों से हिज़्बुल्लाह को जोरदार झटका दिया है. इन हमलों में उनके प्रमुख नेताओं का सफाया हो गया है. हमास के खिलाफ साल भर चले इस अभियान का भयानक प्रभाव ग़ज़ा के लाखों लोगों की ज़िंदगी पर पड़ा है.

इससे हमास की क्षमताओं में काफी गिरावट आई है. बावजूद इसके एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और सैन्य शक्ति के रूप में हमास के अंत होने की संभावना फिलहाल नहीं दिखती.

जो अलग तरह से सोचते हैं, वे यह जानने समझने में नाकाम रहते हैं कि ऐसे समूह कैसे अपनी पहुंच और प्रभाव को बनाते हैं. साथ ही उसे कैसे उस प्रभाव बनाए रखने में कामयाब होते हैं.

ये गहरे संस्थागत आंदोलन हैं, जो उस सामाजिक और राजनीतिक ताने-बाने में अभिन्न रूप से अंतर्निहित होते हैं जिसके भीतर वे काम करते हैं. नसरल्लाह की हत्या और ईरान की प्रतिक्रिया ने इस क्षेत्र को ख़तरनाक ढंग से एक व्यापक युद्ध के करीब ला खड़ा किया है.

ईरान के मिसाइल हमले के मद्देनजर इसराइली नेताओं की ओर से जो बयानबाजी हो रही है उससे साफ पता चलता है कि संघर्ष अभी और तेज़ होगा और इसे रोका नहीं जा सकता है.

इसमें सीधे तौर पर दो दुश्मन शामिल हैं. एक ओर लेबनान, सीरिया, यमन और इराक में ईरान समर्थित ताकतें हैं और दूसरी तरफ पश्चिम में इसराइल के सहयोगी देश जैसे अमेरिका और ब्रिटेन शामिल होंगे.

अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि इसराइल कैसे जवाबी कार्रवाई करेगा.

इसराइल के पूर्व प्रधानमंत्री नेफ्ताली बेनेट ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट कर लिखा, “यह मध्य पूर्व की छवि बदलने का 50 वर्षों में सबसे बड़ा अवसर है.”

उन्होंने सुझाव दिया कि इसराइल को “इस आतंकवादी शासन को पूरी तरह से पंगु बनाने” के लिए ईरान के परमाणु ठिकानों को निशाना बनाना चाहिए.

यदि उनके शब्द इसराइल के आधिकारिक इरादों का कोई संकेत हैं तो इसमें कोई दोराय नहीं हैं कि मध्य पूर्व सच में अभूतपूर्व और विनाशकारी घटना के कगार पर है.”

ग़ज़ा में युद्ध शुरू होने के बाद से वहां तनाव कम करने के सभी कूटनीतिक प्रयास विफल रहे हैं और बड़ी शक्तियां लड़ाई को रोकने या अपनी ताकत के दम पर उसे प्रभावित करने में असमर्थ साबित हुई हैं. यह विफलता एक बिखरी वैश्विक व्यवस्था को उजागर करती है, जो अंतरराष्ट्रीय कानून और यहां तक कि दीर्घकालिक नियमों को लागू करने के लिए एक साथ आने में असमर्थ है.

यह एक ऐसी दरार है जो समय के साथ और अधिक गहरी होती जा रही है और जिसका भयावह प्रभाव क्षेत्र और इसके लोगों पर पड़ेगा.

निसरीन हातूम, बीबीसी अरबी सेवा की संवाददाता, बेरूत

व्यापक युद्ध कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसका सामना करने और सहने के लिए लेबनानी तैयार हैं. पड़ोसी मुल्कों में चौतरफा युद्ध की आशंकाएं पैदा हो रही हैं. इसमें सीरिया, ईरान, इराक, यमन और शायद जॉर्डन शामिल होंगे.

मंगलवार को इसराइल पर ईरानी मिसाइल हमलों के बाद ये आशंकाएं अब दोगुनी हो गई हैं.

अब यदि ईरान फिर से इसराइल पर हमला करता है तो अमेरिका और इसराइल का समर्थन करने वाले अन्य पश्चिमी देश हस्तक्षेप कर सकते हैं. इससे चौतरफा युद्ध होने के आसार और बढ़ जाएंगे.

इसराइल लेबनान में हिज़्बुल्लाह को निशाना बना रहा है ना कि लेबनानी सेना को. लेबनान की कोशिश युद्ध को रोकने की है.

फ्रांस के नेतृत्व में कई देशों के अधिकारी कूटनीतिक प्रयासों के माध्यम से युद्धविराम समझौते पर पहुंचने के लिए चौबीस घंटे काम कर रहे हैं. इन सभी प्रयासों का उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र के रिजॉल्यूशन 1701 को लागू करना, लेबनानी सेना को सशक्त बनाना, उसका साथ देना और उसे लेबनान के दक्षिण में तैनात करना है.

आंतरिक रूप से, राष्ट्रपति के चुनाव और संवैधानिक संस्थानों को सक्रिय बनाने की दिशा में लगातार कोशिश हो रही है.

लेबनान के लोग कभी भी युद्ध नहीं चाहते और वे संघर्ष से परेशान हो चुके हैं. खासकर अक्टूबर 2019 से चल आ रहे आर्थिक संकट से जूझने के बाद से.

अधिकतर लोग शांति से रहना चाहते हैं और युद्ध से बचना चाहते हैं. कुछ लेबनानी मानते हैं कि उन्हें इस युद्ध में जबरदस्ती घसीटा गया है और यह युद्ध उनका नहीं है. वहीं कई लोगों का मानना है कि अरब-इसराइल संघर्ष को रोकने का समय आ चुका है ताकि वे उन्हें स्थायी शांति नसीब हो.

लेबनान को टूटने से बचाने के लिए कूटनीतिक प्रयासों से ही इस व्यापक युद्ध को रोका जा सकता है. पिछले युद्धों में ये साबित हो चुका है कि सैन्य अभियानों से कोई स्थायी समाधान नहीं मिलता और संघर्ष को समाप्त करने के लिए बातचीत और कूटनीतिक साधनों का सहारा लेना ज़्यादा प्रभावी हो सकता है.

अगर हम पीछे मुड़कर देखें तो 2006 में इसराइल के साथ युद्ध केवल 34 दिनों तक चला था और उस वक्त की परिस्थितियां अलग थी. इतना ही नहीं उस युद्ध के दौरान ना तो ग़ज़ा में कोई युद्ध हुआ, ना ही सीरिया, इराक, ईरान और यमन में कोई भागीदारी थी.

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि 2006 के युद्ध के दौरान जो हुआ यह उसके ठीक विपरीत है. इसमें कई अलग-अलग क्षेत्रीय खिलाड़ी शामिल हैं. वहीं आधिकारिक स्तर पर लेबनान एक कमज़ोर राज्य है, जिसकी सेना नियंत्रण करने में असमर्थ है.

मुहन्नद टुटुनजी, बीबीसी न्यूज़ अरबी संवाददाता, यरूशलम

मध्य पूर्व कई अभूतपूर्व घटनाओं का गवाह रहा है जो संभावित रूप से एक चिंताजनक क्षेत्रीय या वैश्विक संघर्ष में बदल सकती हैं. इसराइल और हिज़्बुल्लाह या यहां तक कि ईरान के बीच चल रही तनातनी व्यापक युद्ध की आशंका की ओर इशारा करती है.

हाल की महत्वपूर्ण घटनाओं जैसे कि हमास के राजनीतिक नेता इस्माइल हनिया और हिज़्बुल्लाह के महासचिव हसन नसरल्लाह की हत्या, हमास और हिज्बुल्लाह के वरिष्ठ राजनीतिक और सैन्य नेताओं की हत्या के बावजूद क्षेत्रीय युद्ध नहीं हुआ है.

मध्य पूर्व में इसराइली मामलों और हिज़्बुल्लाह के साथ उसके पिछले युद्धों पर नज़र रखने वाले पत्रकार के रूप में हमें आशंका थी कि इसराइल द्वारा हसन नसरल्लाह की हत्या से तुरंत एक व्यापक युद्ध शुरू हो सकता है जिसमें आगे चल कर ईरान भी शामिल हो सकता है,लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

ऐसी घटनाएं होने पर हमेशा इलाके के रसूखदार क्षेत्रीय युद्ध छिड़ने से रोकने का प्रयास करते हैं, जिसमें अमेरिका की भूमिका महत्वपूर्ण होती है.

हालांकि ये प्रयास थोड़े वक्त के लिए सफल हो सकते हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या इसराइल और ईरान के बीच चल रहे हमले एक चौतरफा युद्ध का कारण बन सकते हैं जिसे रोकना नामुमकिन है?

इसराइल और ईरान के बीच एक क्षेत्रीय युद्ध की चिंगारी मौजूद है, जो कभी भी वैश्विक संघर्ष का रूप ले सकती है.

यह चिंगारी अप्रैल में उस वक्त भड़क गई थी जब इसराइल ने सीरिया में ईरानी वाणिज्य दूतावास को अपना निशाना बनाया था और जिसके बाद ईरान ने अपनी सीमा से इसराइल पर सैकड़ों हवाई हमले किए थे.

अमेरिका हालात को नियंत्रित करने में सफल रहा. उस समय, हमने रिपोर्ट किया था कि हमले के तुरंत बाद जो बाइडन और नेतन्याहू ने “भड़की भावनाओं” के बीच तनावपूर्ण माहौल में बातचीत की. उस दौरान लगभग 100 बैलिस्टिक मिसाइलें एक साथ इसराइल की ओर उड़ रही थीं.

बातचीत के दौरान दोनों नेताओं ने “चीज़ों को कैसे धीमा किया जाए और उनपर कैसे सोचा जाए” इस पर चर्चा की. अमेरिका ने यह भी साफ कहा कि वह किसी भी जवाबी हमले में इसराइल का साथ नहीं देगा.

हालांकि हनिया और नसरल्लाह की हत्याओं और हिज़्बुल्लाह पर इसराइल के किए गए हमलों सहित विभिन्न घटनाओं की श्रृंखला ने ईरान को पहले की तुलना में सीधे और ज्यादा ताकत के साथ जवाब देने की हालात में पहुंचा दिया है. हालांकि, इस टकराव के बढ़ने की आशंका कितनी सही साबित होगी, ये इसराइल के जवाब पर निर्भर करता है.

अहम सवाल यह है कि क्या इसराइल वाकई ईरान को निशाना बनाने और उसे व्यापक युद्ध में घसीटने का इरादा रखता है या शायद परिस्थिति का फायदा उठाकर ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला करना चाहता है. यह लंबे समय से इसराइल का मकसद रहा है.

कुछ लोगों को यह चिंता सता सकती है कि भले ही इसराइल पर ईरान के हमले को रोका जा सकता है, क्योंकि इससे मानवीय क्षति के बजाय भौतिक क्षति होगी, लेकिन इससे इसराइल के संभावित इरादे की गति बदल सकती है.

इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू मध्य पूर्व में महत्वपूर्ण बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं. उनका मानना है कि ईरान को निशाना बनाए बिना यह असंभव है, जिसे इसराइल “सांप का सिर” कहता है.

हिज़्बुल्लाह के खिलाफ़ अपनी उपलब्धियों के बाद इसराइल में उत्साह का माहौल है.

कुछ लोग इसे इस रूप में देख सकते हैं कि इसराइल ईरान के खिलाफ़ बड़े कदम उठा सकता है जिसे रोकना संभव नहीं होगा.

बेशक इससे एक क्षेत्रीय युद्ध भड़क सकता है और अगर ईरान को ख़ास तौर से निशाना बनाया जाता है तो इसमें अन्य पक्ष शामिल हो सकते हैं, जिससे संभावित रूप से वैश्विक संघर्ष का खतरा हो सकता है.

ईरान के परमाणु कार्यक्रम को ख़त्म करने का इसराइल का मंसूबा इस व्यापक युद्ध का कारण बन सकता है.

वहीं ईरान द्वारा इसराइल पर किये सीधे हमले एक बहाने के रूप में काम कर सकते हैं. बड़ा सवाल यह है कि क्या अमेरिका इसराइल को ऐसा करने की इज़ाजत देगा?

इमान एरिकात, बीबीसी अरबी सेवा की संवाददाता, फ़लस्तीनी क्षेत्रों से रिपोर्टिंग कर रही हैं

खुशी के साथ मिलाजुला डर: यह जुमला मंगलवार रात को फ़लस्तीनियों की सामान्य मनोदशा को बयां कर सकता है जब ईरान ने इसराइल की ओर लगभग 200 मिसाइलें दागीं.

ग़ज़ा में युद्ध छिड़ने के बाद से कई लोग इन लम्हों का इंतज़ार बेसब्री से कर रहे थे. उनका विश्वास ग़ज़ा और फ़लस्तीनी क्षेत्रों का समर्थन करने के लिए विदेशी हस्तक्षेप में था.

फ़लस्तीनी क्षेत्रों में जिन स्थानों पर ईरानी मिसाइलें गिरीं, वे स्थान फ़लस्तीनियों के लिए तस्वीरें लेने की जगह में बदल गए हैं. वे तस्वीरें जिसे वे भावी पीढ़ियों के लिए सहेजना चाहेंगे.

उनका मानना है कि ये पूरी तरह से युद्ध में तब्दील हो सकता है.

जुलाई में हमास नेता इस्माइल हनिया की हत्या के बाद हुई हिज़्बुल्लाह नेता हसन नसरल्लाह की हत्या ने एक व्यापक युद्ध के हालात पैदा कर दिए हैं.

यहां की ज़मीन पर बन रहे मूड ने कई फलस्तीनियों में पहले और दूसरे इंतेफ़ादा की यादें ताज़ा कर दी हैं. यहां तक कि जो लोग 1948 में “नकबा” से गुजरे थे वे भी कह रहे हैं कि इतिहास खुद को दोहरा रहा है.

नकबा 14 मई 1948 की तारीख थी जब इसराइल ने स्वतंत्रता की घोषणा की और अगले दिन शुरू हुए युद्ध में, वहां रहने वाले 7,50,000 फ़लस्तीनी भाग गए या उन्हें बेघर कर दिया गया.

फ़लस्तीनी क्षेत्रों में आज, कई फ़लस्तीनियों का मानना है कि वर्तमान परिस्थितियां इस ओर इशारा करती है कि इसराइल का आक्रमण एक नए स्तर पर पहुंच चुका है और ये अभी अधिक क्रूर हो सकता है.

कई वर्षों से फ़लस्तीनी प्राधिकरण निम्नलिखित बातों पर ज़ोर दे रहे हैं:

– सैन्य कार्रवाई को रोकने के लिए राजनीतिक समाधानों की दिशा में बढ़ने का महत्व.

– संघर्ष से हटकर राजनीतिक समाधानों की ओर जाना जो सुरक्षा प्रदान करें और दो-राष्ट्र समाधान के दृष्टिकोण को लागू करने की सुनिश्चितता दें. उनका मानना है कि इससे फ़लस्तीनियों को इसराइल के साथ 1967 की सीमा पर एक देश मिल जाएगा.

– 7 अक्टूबर 2023 से ग़ज़ा में युद्ध की शुरुआत के बाद से फ़लस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से हस्तक्षेप करने और तत्काल युद्ध विराम की घोषणा करने का आह्वान किया है. उनके आह्वान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थन भी मिला है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर सैन्य अभियान जारी है. इसने कई फ़लस्तीनियों को यह यकीन दिला दिया है कि क्षेत्र में व्यापक युद्ध की संभावना शांति प्रक्रिया को पुनर्जीवित करने की संभावना से कहीं अधिक प्रबल है.

कासरा नाजी, बीबीसी न्यूज़ फ़ारसी संवाददाता

लगभग 200 बैलिस्टिक मिसाइलों के साथ सीधे ईरान से इसराइल पर हमला करने का फैसला ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई के लिए आसान नहीं था.

वह आम तौर पर फौरी कार्रवाई के लिए बिना सोचे-समझे निर्णय लेने के लिए तैयार नहीं होते हैं. वह “रणनीतिक धैर्य” को प्राथमिकता देते हैं.

लेकिन उन पर और उनकी सरकार पर अपने ही कट्टरपंथियों और क्षेत्र में उनके प्रॉक्सी मिलिशिया के सदस्यों का इसराइल के हिज़्बुल्लाह नेतृत्व को खत्म करने के सैन्य अभियान का जवाब देने के लिए भारी दबाव था.

कट्टरपंथियों ने दक्षिणी बेरुत में उनके ठिकाने पर हुए एक बड़े हमले में मारे गये एक ईरानी सेना के एक शीर्ष जनरल की हत्या का जवाब देने के लिए भी दबाव बनाया है.

जुलाई में तेहरान में हमास के नेता इस्माइल हनिया की हत्या पर कोई प्रतिक्रिया न देने की वजह से ईरान को बड़ी क्षति उठानी पड़ी थी.

जिस विस्फोट में हनिया की मौत हुई उसके बारे में आम धारणा है कि यह ईरान में इसराइल के खुफ़िया एजेंटों का काम था.

लेकिन ईरान के शीर्ष नेता जानते हैं कि उनका देश हाल-फिलहाल कोई बड़ा युद्ध लड़ने के हालत में नहीं है.

सैन्य दृष्टि से ईरान इसराइल से कहीं आगे है. वहीं इसराइल हवाई शक्ति के मामले में ईरान पर लगभग पूरी तरह से हावी है. ईरान का हवाई क्षेत्र मोटे तौर पर इसराइली विमानों के लिए खुला है.

कई वर्षों के अमेरिकी और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों ने ईरान को आर्थिक रूप से घुटनों पर ला दिया है. राजनीतिक रूप से सरकार ईरान के लोगों के बीच बेहद अलोकप्रिय है.

बहुत कम ईरानी नागरिक ही इसराइल के साथ युद्ध का समर्थन करेंगे, जबकि उनके देश में कई अन्य गंभीर समस्याएं हैं.

वे मानते हैं कि इससे संभावित रूप से अधिक प्रतिबंध लगेंगे और आर्थिक मुश्किलें बढ़ेगी. वहीं बहुत से लोग इसराइल को अपना दुश्मन नहीं मानते.

लेकिन ईरान के सर्वोच्च नेता को जोखिम उठाना पड़ा. उन्हें उम्मीद थी कि सैन्य और खुफ़िया ठिकानों पर एक सुनियोजित हमले से ऐसी ही मिली जुली प्रतिक्रिया मिलेगी, जिसे उनके हिसाब से ईरान झेल सकता है.

World News 🌐⚡️
@ferozwala
Urgent | Leader of the “Ansar Allah” group, Abdul-Malik Al-Houthi: #Gaza withstood without supplies for a whole year, while major countries did not withstand the invasion for weeks in World War II.

Iran Spectator
@IranSpec
⚠️ 𝐁𝐫𝐞𝐚𝐤𝐢𝐧𝐠 𝐍𝐞𝐰𝐬 ⚠️

🇮🇷 | 𝟮𝟬𝟬𝟬 𝗜𝗿𝗮𝗻𝗶𝗮𝗻 𝗠𝗶𝘀𝘀𝗶𝗹𝗲𝘀 𝗵𝗮𝘃𝗲 𝗯𝗲𝗲𝗻 𝘀𝗲𝘁 𝗼𝗻 𝘀𝘁𝗮𝗻𝗱𝗯𝘆, 𝗿𝗲𝗮𝗱𝘆 𝘁𝗼 𝗧𝗮𝗿𝗴𝗲𝘁 𝗜𝘀𝗿𝗮𝗲𝗹…

Iran has “𝗽𝗿𝗲-𝘀𝗲𝘁” and 𝗰𝗮𝗹𝗶𝗯𝗿𝗮𝘁𝗲𝗱 ~𝟮𝟬𝟬𝟬 𝗺𝗶𝘀𝘀𝗶𝗹𝗲𝘀, ready to hit hundreds of targets in Israel.

𝐈𝐫𝐚𝐧’𝐬 𝐀𝐫𝐦𝐞𝐝 𝐅𝐨𝐫𝐜𝐞𝐬:

“The Enemy’s Specific Actions will determine our Response, which will be Extreme”

Iran Spectator
@IranSpec
⚠️ 𝐁𝐫𝐞𝐚𝐤𝐢𝐧𝐠 𝐍𝐞𝐰𝐬 ⚠️

🇮🇷 | 𝗜𝗿𝗮𝗻’𝘀 𝗔𝗶𝗿𝘀𝗽𝗮𝗰𝗲 𝗶𝘀 𝗰𝗹𝗼𝘀𝗲𝗱 𝗳𝗿𝗼𝗺 𝘁𝗼𝗱𝗮𝘆 𝘂𝗻𝘁𝗶𝗹 𝗢𝗰𝘁𝗼𝗯𝗲𝗿 𝟵𝘁𝗵…

It is “expected” that Israel will launch its retaliation sometime during the week.

Once this occurs Iran is expected to simultaneously launch 𝟭𝟱𝟬𝟬-𝟮𝟬𝟬𝟬 𝗺𝗶𝘀𝘀𝗶𝗹𝗲𝘀 from 𝗪𝗲𝘀𝘁𝗲𝗿𝗻-𝗜𝗿𝗮𝗻.

Iran Spectator
@IranSpec
⚠️ 𝐁𝐫𝐞𝐚𝐤𝐢𝐧𝐠 𝐍𝐞𝐰𝐬 ⚠️

𝗙𝗿𝗮𝗻𝗰𝗲 𝗵𝗮𝘀 𝗼𝗳𝗳𝗶𝗰𝗶𝗮𝗹𝗹𝘆 𝘀𝘁𝗼𝗽𝗽𝗲𝗱 𝘀𝘂𝗽𝗽𝗹𝘆𝗶𝗻𝗴 𝗜𝘀𝗿𝗮𝗲𝗹 𝘄𝗶𝘁𝗵 𝘄𝗲𝗮𝗽𝗼𝗻𝘀…

Macron: “It’s time to STOP sending arms to Israel”

Talk is cheap; actions matter. Today, Macron proved he has the most backbone in 𝗘𝘂𝗿𝗼𝗽𝗲.

इस्राएल: हिज्बुल्लाह से जमीनी मुठभेड़, बेरूत पर भारी बमबारी

लेबनान में इस्राएल हवा और जमीन, दोनों रास्तों से हमला कर रहा है. हिज्बुल्लाह के साथ जमीनी मुठभेड़ के अलावा इस्राएल हवाई बमबारी भी कर रहा है. इसे बीते दो दशकों में इस्राएल के सबसे सघन हवाई हमलों में से एक माना जा रहा है.

लेबनान और गाजा, दोनों ही मोर्चों पर इस्राएली ऑपरेशन बीते दिन भी जारी रहा. लेबनान की जमीन पर इस्राएली सैनिकों और हिज्बुल्लाह मिलिटेंट्स के बीच आमने-सामने की लड़ाई हुई. समाचार एजेंसियों ने मुताबिक, इस कार्रवाई में इस्राएल के आठ सैनिक मारे गए और कई घायल हुए.

लेबनानी राजधानी बेरूत में इस्राएल के एक हवाई हमले में नौ लोगों के मारे जाने की खबर है. यह हमला ‘इस्लामिक हेल्थ अथॉरिटी’ के दफ्तर पर हुआ. स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने वाले इस संस्थान को हिज्बुल्लाह चलाता है.

बेरूत में रातभर होते रहे धमाके
बीती रात बेरूत में बड़े स्तर पर धमाके हुए. समाचार एजेंसी एएफपी ने वहां से रिपोर्टिंग कर रहे अपने एक पत्रकार के हवाले से बताया कि रातभर कई धमाके सुनाई दिए और हमलों के कारण कुछ इमारतें हिलती-थर्राती सी दिखीं. बेरूत में हो रहे धमाकों की आवाज कई किलोमीटर तक सुनाई दे रही है.

इस्राएली सेना ने घनी आबादी वाले दक्षिणी बेरूत के कई इलाकों में रह रहे लोगों को बाहर निकल जाने को कहा है. लेबनान की सरकारी ‘नेशनल न्यूज एजेंसी’ ने रातभर में बेरूत पर हुए हवाई हमलों की संख्या 17 बताई है. समाचार एजेंसी एपी के अनुसार, बेरूत के निवासियों ने हवाई हमले के बाद सल्फर जैसी गंध महसूस होने की बात कही.

लेबनान की सरकारी न्यूज एजेंसी ने भी इस्राएल पर प्रतिबंधित फॉस्फोरस बम इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है. इस्राएली बमबारी के तेज होने की वजह से लेबनान में हजारों लोग विस्थापित हुए हैं. समाचार एजेंसी एपी ने अपनी प्रेस टीम के हवाले से बताया कि 2 अक्टूबर की सुबह से ही सैकड़ों लोग लेबनान में हो रही बमबारी से भागकर सीरिया की ओर जाते दिखे.

इस्राएल और ईरान की एक-दूसरे को चेतावनी
2 अक्टूबर की सुबह इस्राएली सेना ने गाजा के दक्षिणी हिस्से में बसे शहर खान यूनिस में भी एक ऑपरेशन किया. गाजा स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, इसमें 51 लोग मारे गए हैं और 82 लोग जख्मी हुए हैं. एपी के मुताबिक, यह हमला हवाई और जमीनी दोनों रूपों में हुआ.

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने दोहराया कि उनका देश पूरी तरह इस्राएल के साथ है, लेकिन ईरान के परमाणु ठिकानों पर संभावित हमलों में समर्थन देने से उन्होंने इनकार किया. बीते दिनों ईरान ने इस्राएल पर करीब 180 मिसाइल दागे थे. ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराकची ने इसे “आत्मरक्षा” बताया है.

इस्राएल के प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू ने ईरान पर जवाबी कार्रवाई की चेतावनी देते हुए कहा कि तेहरान ने “बड़ी गलती की है और वह इसकी कीमत चुकाएगा.” ईरान ने भी जवाबी चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर इस्राएल काउंटर अटैक करता है, तो वह अपनी प्रतिक्रिया और तेज करेगा.

कई देश अपने नागरिकों को लेबनान से निकाल रहे हैं
कई देश लेबनान से अपने नागरिकों को सुरक्षित बाहर निकालने में जुटे हैं. इसमें ताजा नाम जापान का है, जो अपने नागरिकों को एयरलिफ्ट करने के लिए दो विशेष विमान रवाना कर रहा है. जापान के एनएचके नेशनल टेलीविजन ने बताया कि दोनों विमान 4 अक्टूबर को जॉर्डन और ग्रीस पहुंट जाएंगे. लेबनान में जापान के करीब 50 नागरिक रहते हैं.

जर्मनी भी एक सैन्य विमान भेजकर लेबनान से अपने नागरिकों को बाहर निकाल रहा है. देश के रक्षा और विदेश मंत्रालय ने बताया कि जो लोग खासतौर पर खतरे में हैं, उन्हें बाहर निकाला जा रहा है. इससे पहले 30 सितंबर को भी जर्मनी का एक सैन्य विमान करीब 111 लोगों को बेरूत से बर्लिन लाया था. इनमें जर्मन राजनयिकों के परिवार और कई कर्मचारी शामिल थे.

ऑस्ट्रेलियाई विदेश विभाग ने भी बताया है कि उन्होंने अपने नागरिकों को सुरक्षित निकालने के लिए व्यावसायिक विमानों में 500 सीटें बुक कराई हैं. ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री पेनी वोंग ने अपील की, “जो ऑस्ट्रेलियाई बाहर निकलना चाहते हैं, उनसे मैं कहना चाहूंगी कि जो भी विकल्प उपलब्ध है, लीजिए. इंतजार मत कीजिए.” बीते दिन भारत ने भी अडवाइजरी जारी कर अपने नागरिकों को फिलहाल ईरान ना जाने की सलाह दी थी.

ईरान और इस्राएल में विस्तृत संघर्ष की आशंका
आशंका है कि इस्राएल, ईरान पर जवाबी हमले की रूपरेखा बना रहा है. कयास लगाए जा रहे हैं कि इस्राएल, ईरान के तेल और गैस संयंत्रों व ढांचों को निशाना बना सकता है. दोनों देश एक-दूसरे के सहयोगियों की आलोचना करते हुए चेतावनी भी दे रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र में ईरान के राजदूत अमीर सईद ईरावनी ने अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस पर आरोप लगाया कि वे “आत्मरक्षा की आड़ में इस्राएल के जघन्य अपराधों को सही ठहराने की कोशिश कर रहे हैं और सारा दोष ईरान पर डाल रहे हैं.”

संयुक्त राष्ट्र में इस्राएल के राजदूत डैनी डैनन ने सुरक्षा परिषद से कहा कि “संघर्ष की तीव्रता कम करने की खोखली अपीलों का समय खत्म हो चुका है.” उन्होंने कहा, “यह अब शब्दों का मामला नहीं रहा. ईरान दुनिया के लिए एक वास्तविक और मौजूदा खतरा है और अगर उन्हें रोका नहीं गया, तो मिसाइलों की अगली लहर केवल इस्राएल पर लक्षित नहीं रहेगी.”

यूएन में लेबनान के राजदूत हादी हाखेम ने सुरक्षा परिषद की एक आपातकालीन बैठक में बोलते हुए कहा कि लेबनानी सरकार इस्राएल और हिज्बुल्लाह के बीच युद्ध नहीं चाहती. उन्होंने जोर दिया कि जिस समझौते के तहत 2006 में इस्राएल और हिज्बुल्लाह के बीच युद्ध खत्म हुआ था, उसे लागू करना ही मौजूदा जंग में इकलौता समाधान है.

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) द्वारा अगस्त 2006 में मंजूर किए गए प्रस्ताव में ‘रेजॉल्यूशन 1701’ के तहत इस्राएल और लेबनान, दोनों के बीच युद्ध/आक्रामक बर्ताव को पूरी तरह खत्म करना, दोनों देशों के बीच तय हुई सीमा ‘ब्लू लाइन’ और लितानी नदी के बीच के हिस्से को डीमिलिटराइज्ड जोन बनाने जैसे लक्ष्य शामिल थे.

इसी का संदर्भ देते हुए लेबनान में यूएन पीसकीपिंग मिशन (यूएनआईएफआईएल) ने दक्षिणी लेबनान में इस्राएली सेना के दाखिल होने को रेजॉल्यूशन 1701 का उल्लंघन बताया है. 1 अक्टूबर को अपने बयान में यूएनआईएफआईएल ने कहा, “लेबनान में (सीमा पार कर) दाखिल होना लेबनानी संप्रभुता और भूभागीय अखंडता का उल्लंघन है. और, यह रेजॉल्यून 1701 का भी उल्लंघन है.” पीसकीपिंग मिशन ने सभी पक्षों से इसके पालन की अपील की है और इसे क्षेत्रीय स्थिरता कायम करने की दिशा में जरूरी बताया है.

यूएन महासचिव ने की तनाव घटाने की अपील
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने सुरक्षा परिषद की एक आपातकालीन बैठक में संघर्षविराम की अपील दोहराई. इस बैठक को इस्राएल और फ्रांस ने बुलाया था. गुटेरेश ने कहा कि एक ही हफ्ते में लेबनान की स्थितियां खराब से “काफी बदतर” हो गई हैं.

बीते दिन इस्राएली विदेश मंत्रा इस्राएल कात्स ने गुटेरेश को “अवांछित व्यक्ति” घोषित करते हुए उनके अपने यहां प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी. इस्राएल का आरोप है कि गुटेरेश ईरान के मिसाइल हमलों की स्पष्ट तौर पर निंदा करने में नाकाम रहे. जर्मनी ने इस्राएल के इस कदम की आलोचना की है. जर्मन विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सेबास्टियन फिशर ने कहा कि इस्राएल का यह कदम बहुत मददगार नहीं है क्योंकि “आखिरकार ज्यादा बातचीत की जरूरत है, ना कि बातचीत कम करने की.”

इस बीच मध्यपूर्व में बढ़ते तनाव पर जी-7 देशों के नेताओं ने टेलिफोन पर एक आपातकालीन बातचीत की. इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी के दफ्तर द्वारा जारी बयान के मुताबिक, संगठन ने इस्राएल पर ईरान के मिसाइल हमलों की “सख्त निंदा” की. साथ ही, यह भी कहा कि विवाद का कूटनीतिक समाधान अब भी मुमकिन है.

एसएम/आरपी (एपी, एएफपी, रॉयटर्स)