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INDIA को हराने के लिए दंगे कराने ज़रूरी : क्या इस सोच के साथ आगे बढ़ रहे हैं भगवा आतंकी?

भारत एक महादेश है। यह अपने अंदर पूर्वोत्तर से लेकर सुदूर दक्षिण तक भौगोलिक, भाषाई, सांस्कृतिक और राजनीतिक स्तर पर स्थानीय अस्मिता की भावनाएं समेटे है। पिछले कुछ वर्षों से भारत के संघीय ढांचे पर लगातार हमला हो रहा है। धर्म, भाषा और संस्कृति के आधार पर राज्य प्रायोजित विभाजन और हमले किए जा रहे हैं। मणिपुर, भारत के संघीय ढांचे पर हो रहे हमले का पहला पीड़ित है। वहीं यह आग अब हरियाणा तक पहुंच चुकी है और 2024 के चुनाव आते-आते पूरे देश को अपनी लपटों में समेट लेगी।

मणिपुर समेत देश के ज़्यादातर राज्यों के मौजूदा हाल बताते हैं कि चुनावी स्वार्थ वश किसी भी वर्ग, धर्म, और जात विशेष के ख़िलाफ़ चलाया गया कोई भी राजनीतिक अभियान अंत में भस्मासुर ही बनता है, क्योंकि धीरे-धीरे यह संकीर्ण नज़रिया ही आपकी सोच बन जाता है। वहीं चुनावी लाभ और सत्ता के लिए भारतीय जनता पार्टी और कट्टरपंथी हिन्दू संगठन आरएसएस ने हमेशा से भारतीय राष्ट्रवाद के महासागर को एक संकीर्ण रूप में दिखाने की कोशिश की है। सत्य यह है कि महान विविधताओं से भरा भारत देश, जहां संस्कृति, परंपरा और विभिन्न प्रजातीयां, समुदाय आपस में, एक दूसरे के साथ मिलझुल कर प्रेम से रहते हैं, उसको आरएसएस के ‘हिंदू-ग़ैर हिंदू’ नज़रिए ने पूरी तरह तबाह और बर्बाद कर दिया है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि भाजपा देश के अंदर मौजूद स्थानीय अस्मिताओं और उप राष्ट्रीयताओं को सुरक्षा और अपनेपन का भाव देने में असफल हो गई और इसका भारतीय समाज के हर एक समुदाय पर दूरगामी असर पड़ा है। आज भारतीय समाज बंटा-बंटा और डरा-डरा दिखाई दे रहा है। सबसे बड़ी बात भगवा रंग में रंगी भारतीय जनता पार्टी की नीतियों ने भारत सरकार की नीतियों पर काफ़ी प्रभाव डाला है। उसी का असर है कि आज बीजेपी के संकीर्ण और आक्रामक राष्ट्रवाद के चलते तमाम छोटी-छोटी प्रजातीय, सांस्कृतिक, धार्मिक अस्मिताएं मजबूर होकर अपनी-अपनी पहचानों को लेकर और कट्टर हो गईं हैं और किसी अनहोनी के लिए अपने को तैयार करने लगीं हैं।

इस नफ़रती राजनीति की आग में सुलग रहे मणिपुर पर अगर नज़र डाली जाए तो यह बात पूरी तरह साफ नज़र आती है कि यह तो केवल शुरुआत है आगे तो नए भारत को बहुत कुछ देखना बाक़ी है। मणिपुर में जारी हिंसा में लगभग 155 लोग मारे जा चुके हैं। क़रीब 60,000 लोग बेघर हो गए हैं। 5000 से ज़्यादा आगज़नी की घटनाएं हुई हैं। राज्य भर में थाने लूटे गए हैं। हज़ारों की संख्या में हथियार और लाखों कारतूस उपद्रवियों के हाथ लग चुके हैं। अब इस आग की लपटें मिज़ोरम तक पहुंचने लगी हैं। वहीं इतने संवेदनशील हालात के बाद भी केंद्र और राज्य सरकारों का रवैए पर कई लोग सवाल उठा रहे हैं। जब वह भयावह वीडियो वायरल हुआ तो प्रधानमंत्री मोदी ने चुप्पी तोड़ी, लेकिन इसके बाद मणिपुर के मुद्दे को सभी राज्यों में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध से ढंकने की कोशिशें शुरू हो गईं। इस कोशिश का नतीजा भी हरियाणा में संप्रदायिक दंगे और जयपुर-मुंबई एक्सप्रेस ट्रेन में में एक आतंकी पुलिस वाले द्वारा दी गई भयावय घटना के रूप में सामने आने लगा है।

यह सारी घटनाएं कोई समान्य घटना नहीं है बल्कि यह सब नस्लवादी और आतंकवादी घटनाएं हैं और इसके लिए आरएसएस-भाजपा का प्रचार तंत्र ज़िम्मेदार पूरी तरह है। इसके लिए भारत की ज़हरीला और बिकाऊ मीडिया ज़िम्मेदार है। यह सारी बातें इसलिए खुलकर कहना ज़रूरी हो गया है कि अब समय नहीं है कि हम अपनी बातों को इशारों-इशारों में कहें, किसी का नाम न लें, क्योंकि अब वह समय आ गया है कि समाज के हर न्याय प्रेमी और देश प्रेमी को खुलकर सामने आना पड़ेगा। भारत की महानता और एकजुटता लाकतांत्रिक व्यवस्था में है, जिस दिन इस देश का लोकतंत्र दम तोड़ देगा उस दिन यह देश कई हिस्सों में बंटकर बिखर जाएगा। (RZ)

लेखक- रविश ज़ैदी, वरिष्ठ पत्रकार। ऊपर के लेख में लिखे गए विचार लेखक के अपने हैं। तीसरी जंग हिन्दी का इससे समहत होना ज़रूरी नहीं है।

सोर्स : पारस टुडे हिंदी