विशेष

Hello….ये गिलास जो है विदेशी है. गिलास भारत का नही है,,,गिलास में पानी ना पियें….

यूपी वाला
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तुम्हारे लिए
प्राचीन समय भारत मे कभी छुआछुत रहा ही नहीं, और ना ही कभी जातियाँ भेदभाव का कारण होती थी।
चलिए हजारो साल पुराना इतिहास पढ़ते हैं।
सम्राट शांतनु ने विवाह किया एक मछवारे की पुत्री सत्यवती से।उनका बेटा ही राजा बने इसलिए भीष्म ने विवाह न करके, आजीवन संतानहीन रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की।
सत्यवती के बेटे बाद में क्षत्रिय बन गए, जिनके लिए भीष्म आजीवन अविवाहित रहे, क्या उनका शोषण होता होगा?
महाभारत लिखने वाले वेद व्यास भी मछवारे थे, पर महर्षि बन गए, गुरुकुल चलाते थे वो।
विदुर, जिन्हें महा पंडित कहा जाता है वो एक दासी के पुत्र थे, हस्तिनापुर के महामंत्री बने, उनकी लिखी हुई विदुर नीति, राजनीति का एक महाग्रन्थ है।
भीम ने वनवासी हिडिम्बा से विवाह किया।
श्री कृष्ण दूध का व्यवसाय करने वालों के परिवार से थे,
उनके भाई बलराम खेती करते थे, हमेशा हल साथ रखते थे।
यादव क्षत्रिय रहे हैं, कई प्रान्तों पर शासन किया और श्री कृष्ण सबके पूजनीय हैं, गीता जैसा ग्रन्थ विश्व को दिया।
राम के साथ वनवासी निषादराज गुरुकुल में पढ़ते थे।
उनके पुत्र लव कुश महर्षि वाल्मीकि के गुरुकुल में पढ़े जो वनवासी थे
तो ये हो गयी वैदिक काल की बात, स्पष्ट है कोई किसी का शोषण नहीं करता था,सबको शिक्षा का अधिकार था, कोई भी पद तक पहुंच सकता था अपनी योग्यता के अनुसार।
वर्ण सिर्फ काम के आधार पर थे वो बदले जा सकते थे, जिसको आज इकोनॉमिक्स में डिवीज़न ऑफ़ लेबर कहते हैं वो ही।
प्राचीन भारत की बात करें, तो भारत के सबसे बड़े जनपद मगध पर जिस नन्द वंश का राज रहा वो जाति से नाई थे ।
नन्द वंश की शुरुवात महापद्मनंद ने की थी जो की राजा नाई थे। बाद में वो राजा बन गए फिर उनके बेटे भी, बाद में सभी क्षत्रिय ही कहलाये।
उसके बाद मौर्य वंश का पूरे देश पर राज हुआ, जिसकी शुरुआत चन्द्रगुप्त से हुई,जो कि एक मोर पालने वाले परिवार से थे और एक ब्राह्मण चाणक्य ने उन्हें पूरे देश का सम्राट बनाया । 506 साल देश पर मौर्यों का राज रहा।
फिर गुप्त वंश का राज हुआ, जो कि घोड़े का अस्तबल चलाते थे और घोड़ों का व्यापार करते थे।140 साल देश पर गुप्ताओं का राज रहा।
केवल पुष्यमित्र शुंग के 36 साल के राज को छोड़ कर 92% समय प्राचीन काल में देश में शासन उन्ही का रहा, जिन्हें आज दलित पिछड़ा कहते हैं तो शोषण कहां से हो गया? यहां भी कोई शोषण वाली बात नहीं है।
फिर शुरू होता है मध्यकालीन भारत का समय जो सन 1100- 1750 तक है, इस दौरान अधिकतर समय, अधिकतर जगह मुस्लिम आक्रमणकारियो का समय रहा और कुछ स्थानों पर उनका शासन भी चला।
अंत में मराठों का उदय हुआ, बाजी राव पेशवा जो कि ब्राह्मण थे, ने गाय चराने वाले गायकवाड़ को गुजरात का राजा बनाया, चरवाहा जाति के होलकर को मालवा का राजा बनाया।
अहिल्या बाई होलकर खुद बहुत बड़ी शिवभक्त थी। ढेरों मंदिर गुरुकुल उन्होंने बनवाये।
मीरा बाई जो कि राजपूत थी, उनके गुरु एक चर्मकार रविदास थे और रविदास के गुरु ब्राह्मण रामानंद थे|।
यहां भी शोषण वाली बात कहीं नहीं है।
मुग़ल काल से देश में गंदगी शुरू हो गई और यहां से पर्दा प्रथा, गुलाम प्रथा, बाल विवाह जैसी चीजें शुरू होती हैं।
1800 -1947 तक अंग्रेजो के शासन रहा और यहीं से जातिवाद शुरू हुआ । जो उन्होंने फूट डालो और राज करो की नीति के तहत किया।
अंग्रेज अधिकारी निकोलस डार्क की किताब “कास्ट ऑफ़ माइंड” में मिल जाएगा कि कैसे अंग्रेजों ने जातिवाद, छुआछूत को बढ़ाया और कैसे स्वार्थी भारतीय नेताओं ने अपने स्वार्थ में इसका राजनीतिकरण किया।
इन हजारों सालों के इतिहास में देश में कई विदेशी आये जिन्होंने भारत की सामाजिक स्थिति पर किताबें लिखी हैं, जैसे कि मेगास्थनीज ने इंडिका लिखी, फाहियान, ह्यू सांग और अलबरूनी जैसे कई। किसी ने भी नहीं लिखा की यहां किसी का शोषण होता था।
योगी आदित्यनाथ जो ब्राह्मण नहीं हैं, गोरखपुर मंदिर के महंत हैं, पिछड़ी जाति की उमा भारती महा मंडलेश्वर रही हैं। जन्म आधारित जाति को छुआछुत व्यवस्था हिन्दुओ को कमजोर करने के लिए लाई गई थी।
इसलिए भारतीय होने पर गर्व करें और घृणा, द्वेष और भेदभाव के षड्यंत्रों से खुद भी बचें और औरों को भी बचाएं।

🏺कभी भी गिलास में पानी ना पियें

जानिए लोटे और गिलास के पानी में अंतर
⚱भारत में हजारों साल की पानी पीने की जो सभ्यता है वो गिलास नही है,
ये गिलास जो है विदेशी है. गिलास भारत का नही है.
गिलास यूरोप से आया. और यूरोप में पुर्तगाल से आया था.
ये पुर्तगाली जबसे भारत देश में घुसे थे तब से गिलास में हम फंस गये. गिलास अपना (भारत का) नहीं हैं।
अपना लोटा है. और लोटा कभी भी एकरेखीय नही होता.
वागभट्ट जी कहते हैं कि जो बर्तन एकरेखीय हैं उनका त्याग कीजिये. वो काम के नही हैं.
इसलिए गिलास का पानी पीना अच्छा नही माना जाता.
लोटे का पानी पीना अच्छा माना जाता है.
इस पोस्ट में हम गिलास और लोटे के पानी पर चर्चा करेंगे और दोनों में अंतर बताएँगे.

फर्क सीधा सा ये है कि आपको तो सबको पता ही है कि पानी को जहाँ धारण किया जाए, उसमे वैसे ही गुण उसमें आते है.
पानी के अपने कोई गुण नहीं हैं. जिसमें डाल दो उसी के गुण आ जाते हैं.
दही में मिला दो तो छाछ बन गया, तो वो दही के गुण ले लेगा. दूध में मिलाया तो दूध का गुण.

लोटे में पानी अगर रखा तो बर्तन का गुण आयेगा. अब लौटा गोल है तो वो उसी का गुण धारण कर लेगा.
और अगर थोडा भी गणित आप समझते हैं तो हर गोल चीज का सरफेस टेंशन कम रहता है.
क्योंकि सरफेस एरिया कम होता है तो सरफेस टेंशन कम होगा. तो सरफेस टेंशन कम हैं तो हर उस चीज का सरफेस टेंशन कम होगा.
और स्वास्थ्य की दष्टि से कम सरफेस टेंशन वाली चीज ही आपके लिए लाभदायक है.
अगर ज्यादा सरफेस टेंशन वाली चीज आप पियेंगे तो बहुत तकलीफ देने वाला है. क्योंकि उसमें शरीर को तकलीफ देने वाला एक्स्ट्रा प्रेशर आता है.
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गिलास और लोटे के पानी में अंतर
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गिलास के पानी और लोटे के पानी में जमीं आसमान का अंतर है. इसी तरह कुंए का पानी, कुंआ गोल है इसलिए सबसे अच्छा है.
आपने थोड़े समय पहले देखा होगा कि सभी साधू संत कुए का ही पानी पीते है. न मिले तो प्यास सहन कर जाते हैं,
जहाँ मिलेगा वहीं पीयेंगे. वो कुंए का पानी इसीलिए पीते है क्यूंकि कुआ गोल है, और उसका सरफेस एरिया कम है.
सरफेस टेंशन कम है. और साधू संत अपने साथ जो केतली की तरह पानी पीने के लिए रखते है वो भी लोटे की तरह ही आकार वाली होती है.
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सरफेस टेंशन कम होने से पानी का एक गुण लम्बे समय तक जीवित रहता है.
“पानी का सबसे बड़ा गुण है सफाई करना”.
अब वो गुण कैसे काम करता है वो आपको बताते है. आपकी बड़ी आंत है और छोटी आंत है,
आप जानते हैं कि उसमें मेम्ब्रेन है और कचरा उसी में जाके फंसता है. पेट की सफाई के लिए इसको बाहर लाना पड़ता है.
ये तभी संभव है जब कम सरफेस टेंशन वाला पानी आप पी रहे हो. अगर ज्यादा सरफेस टेंशन वाला पानी है तो ये कचरा बाहर नही आएगा, मेम्ब्रेन में ही फंसा रह जाता है.
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दुसरे तरीके से समझें, आप एक एक्सपेरिमेंट कीजिये. थोडा सा दूध ले और उसे चेहरे पे लगाइए, 5 मिनट बाद रुई से पोंछिये. तो वो रुई काली हो जाएगी.
स्किन के अन्दर का कचरा और गन्दगी बाहर आ जाएगी. इसे दूध बाहर लेकर आया.
अब आप पूछेंगे कि दूध कैसे बाहर लाया तो आप को बता दें कि दूध का सरफेस टेंशन सभी वस्तुओं से कम है.
तो जैसे ही दूध चेहरे पर लगाया,
दूध ने चेहरे के सरफेस टेंशन को कम कर दिया .
क्योंकि जब किसी वस्तु को दूसरी वस्तु के सम्पर्क में लाते है तो वो दूसरी वस्तु के गुण ले लेता है.
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इस एक्सपेरिमेंट में दूध ने स्किन का सरफेस टेंशन कम किया और त्वचा थोड़ी सी खुल गयी.
और त्वचा खुली तो अंदर का कचरा बाहर निकल गया. यही क्रिया लोटे का पानी पेट में करता है.
आपने पेट में पानी डाला तो बड़ी आंत और छोटी आंत का सरफेस टेंशन कम हुआ और वो खुल गयी और खुली तो सारा कचरा उसमें से बाहर आ गया.
जिससे आपकी आंत बिल्कुल साफ़ हो गई.
अब इसके विपरीत अगर आप गिलास का हाई सरफेस टेंशन का पानी पीयेंगे तो आंते सिकुडेंगी क्यूंकि तनाव बढेगा.
तनाव बढते समय चीज सिकुड़ती है और तनाव कम होते समय चीज खुलती है.
अब तनाव बढेगा तो सारा कचरा अंदर जमा हो जायेगा और वो ही कचरा , मुल्व्याद जैसी सेंकडो पेट की बीमारियाँ उत्पन्न करेगा.
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इसलिए कम सरफेस टेंशन वाला ही पानी पीना चाहिए.
इसलिए लोटे का पानी पीना सबसे अच्छा माना जाता है, गोल कुए का पानी है तो बहुत अच्छा है.
गोल तालाब का पानी, पोखर अगर खोल हो तो उसका पानी बहुत अच्छा. नदियों के पानी से कुंए का पानी अधिक अच्छा होता है.
क्योंकि नदी में गोल कुछ भी नही है वो सिर्फ लम्बी है, उसमे पानी का फ्लो होता रहता है.
नदी का पानी हाई सरफेस टेंशन वाला होता है और नदी से भी ज्यादा ख़राब पानी समुन्द्र का होता है उसका सरफेस टेंशन सबसे अधिक होता है.
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अगर प्रकृति में देखेंगे तो बारिश का पानी गोल होकर धरती पर आता है.
मतलब सभी बूंदे गोल होती है क्यूंकि उसका सरफेस टेंशन बहुत कम होता है.
तो गिलास की बजाय पानी लोटे में पीयें. लोटे ही घर में लायें. गिलास का प्रयोग बंद कर दें.
तो वागभट्ट जी की बात मानिये और लोटे वापिस लाइए.
*आपने पूरी पोस्ट पढ़ी , आपका बहुत बहुत धन्यवाद !!*