नई दिल्ली: इस्लाम दीन फितरत है जो इंसान को ज़िन्दगी गुज़ारने का हुनर सिखाता है और इंसान को सही गलत में फ़र्क़ बताता है ,रिश्तों का सम्मान और मानवता के जज्बात की कद्र करना सिखाता है और एक शुद्ध सरल संस्क्रति प्रदान करता है,इस्लाम के तेज़ी से फैलने के कारण यूरोप और अमेरिका ने झूठे प्रोपेगंडा बनाया नफरत और आतँकवाद जैसी बातों को जो इस्लाम के मौलिक सिद्धान्तों के विपरीत है को इस्लाम से जोड़कर दुनिया के सामने पेश करके बदनाम करना शुरू कर दिया।
इस समय इस्लाम की बदनामी ही इस्लाम के फैलने और बढ़ने का कारण बन रही है लोग इस्लाम में कमी तलाशने के लिये इस्लाम को पढ़ते हैं तो उन्हें इस्लाम की मानवतावादी नीति पसन्द आती है और वे इस्लाम कुबूल करते हैं,ऐसी ही एक कहानी आज हम आपको पढ़वाने जा रहे हैं।
ये कहानी है कोकोमो (इंडियाना) में जन्मी डोरेथा क्रिसेलियस की जिन्होंने ने ईसाई धर्म से इस्लाम में आने के सफर को साझा किया है। 58 वर्षीय मरियम तैयब्बा फिलहाल नई दिल्ली के जामिया नगर में शेफार्ड पाथ इंटरनेशनल स्कूल में अंग्रेजी की शिक्षक हैं। इस्लाम में आने के बाद उनको कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा लेकिन भारत में आकर रहने के अपने फैसले पर उन्होंने कभी पछतावा नहीं किया।
वह अपने बारे में बताते हुए कहती हैं कि मैं बहुत छोटी थी तब मेरे माता-पिता का तलाक हो गया था। मैं मां-बाप को अकेली संतान थी इसलिए मां के अलावा मेरे साथ कोई नहीं था। मेरे दो बच्चे हैं जिसमें एक बेटा और एक बेटी है और दोनों नौकरी कर रहे हैं। पति के साथ मेरा तलाक हो चुका है। वहां मैंने ट्रक चलाने का काम किया।
अकेलेपन को दूर करने के लिए मैंने इंटरनेट पर समय बिताना शुरू किया और एक दोस्त की मदद से फेसबुक अकाउंट बनाया। मेरे करीब 10 फेसबुक पर दोस्त हैं। इनमें एक मित्र भारत का था। मैंने उसके साथ दोस्ती का अनुरोध किया। उसने मेरा अनुरोध स्वीकार कर लिया। वह हिंदू था लेकिन मेरे लिए वाकई बहुत अच्छा था। हम अच्छे दोस्त बन गए और हर दिन फेसबुक पर बातचीत होने लगी। फिर भारत की संस्कृति आदि के बारे में जानकारी मिली।
फिर मैंने एक व्यक्ति से दोस्ती का अनुरोध किया और जब उसने मुझसे बातें कीं तो उसके बारे में मुझे कुछ अलग लगा। जिस तरह से उन्होंने मेरे साथ बात तो मुझे एकदम अलग लगा। वह बहुत विनम्र था और मैंने उसकी प्रोफ़ाइल को देखा तो वह मुस्लिम था। मैंने कभी इस्लाम के या मुसलमानों के बारे में नहीं सुना था। फिर भी भारत में कई मुस्लिम दोस्त बनाये और उसने मुझे बहुत कुछ सीखा। फिर मैंने इस्लाम और मुसलमानों के बारे में जानकारी हासिल करना शुरू की और फिर एक दिन मैंने इस्लाम को अपना लिया।
इस्लाम कुबूलने के दिन मुझसे पूछा गया था कि क्या कोई इस्लाम को स्वीकार करने के लिए उनको मजबूर कर रहा है जिसके जवाब में मैंने कहा था नहीं, मैं अपनी इच्छा से इस्लाम को स्वीकार करना चाहती हूं। फिर उनकी मदद से मैंने कलमा पढ़ लिया। उस समय मुझे ऐसा सुकून मिला जो पहले कभी महसूस नहीं किया था। मेरे दो दोस्तों की मदद से अगले दिन से मैंने कुरान पढ़ना शुरू किया और इसे समझने की कोशिश की।
फिर मेरी जिंदगी में बदलाव आता गया और मेरा ध्यान इस्लाम की ओर होने लगा। मैंने हिजाब पहनना शुरू कर दिया। पहली बार में अजीब सा महसूस हुआ लेकिन अल्लाह ने मुझे इसे पहनने का साहस दिया। मेरे बच्चों को यह भी पता चला कि मैंने इस्लाम को गले लगा लिया है तो वो परेशान हुए लेकिन मैंने उसे समझाया। बाद में उन्होंने भी इस्लाम स्वीकार कर लिया। फिर वह भारत आई।
मैं दिल्ली हवाई अड्डे पर आई तो एक भाई से मुलाकात हुई। मुझे वीजा समाप्त होने के कारण 2 महीने के लिए अमेरिका वापस जाना पड़ा। फिर वापस भारत लौट आई। मैंने अल्लाह से एक अच्छे पति के लिए दुआ की जो मुझे इस्लाम के बारे में सिखाए और मेरा मार्गदर्शन करे। अल्लाह ने मेरी दुआ सुन ली और मुझे बहुत अच्छा पति मिला। पिछले छह वर्षों में मैंने कई उतार-चढ़ाव, दुःख और दुःख देखे हैं। अब, मैं नई चीजें सीख रही हूं और अधिक दोस्त बना रही हूं।