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CRPF : यौन शोषण मामले में आरोपी ‘रिंग लीडर’ पर मेहरबानी क्यों?

CRPF: शपथ पत्र में लिखा है कि सीआरपीएफ में व्यापक स्तर पर यौन शोषण का माहौल है। बड़े अफसरों को खुश करने के लिए महिला जवानों को कथित तौर पर लुभाया जाता है। ये केवल यौनाचार का मामला नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ का केस भी है…

 

देश के सबसे बड़े केंद्रीय अर्धसैनिक बल में बड़े स्तर पर हुए यौन शोषण के मामले की निष्पक्ष जांच को प्रभावित करने का प्रयास हो रहा है। नॉर्दन सेक्टर लेवल इंटरनल कंप्लेंट कमेटी की चेयरपर्सन कमांडेंट नीरजबाला, जो बल की 19 महिला जवानों के यौन शोषण मामले की जांच कर रही हैं, उनका तबादला द्वारका स्थित 88 महिला बटालियन से कभी नोएडा तो कभी बेंगलुरु कर दिया जाता है। दिल्ली उच्च न्यायालय में लगी याचिका के मुताबिक, ट्रांसफर तो यौन शोषण केस की जांच को कमजोर करने का बहाना है। विभाग तो आरोपी डीआईजी खजान सिंह को आईजी बनाने के लिए बेताब है। ये केस नहीं होता तो मार्च में ही उन्हें आईजी बना दिया जाता। जांच अधिकारी का तबादला, बेंगलुरु में इसलिए किया गया है, ताकि पीड़ित लड़कियों पर दबाव बनाकर उन्हें केस वापस लेने के लिए राजी कर लिया जाए। याचिका में लिखा है कि बल में व्याप्त स्तर पर यौन शोषण का माहौल है। सूत्र बताते हैं कि इस मामले के तार ऊपर तक जुड़े हैं, इसीलिए जांच अधिकारी को परेशान किया जा रहा है। जनवरी 2022 में दिल्ली हाई कोर्ट में सील बंद लिफाफे में पेश किया गया अतिरिक्त शपथ पत्र, यौन शोषण के तरीके से लेकर आरोपियों की सारी कहानी बयां करता है।

कोर्ट में जांच अधिकारी का तबादला रद्द करने की बात कही

नीरजबाला की याचिका में ‘तत्काल सुनवाई’ की गुजारिश की गई है। साथ ही सीआरपीएफ द्वारा जारी 30 जून का वह ट्रांसफर ऑर्डर, जिसमें उसे द्वारका 88 बटालियन से बेंगलुरु जाने के लिए कहा गया, उसे चैलेंज किया गया है। इसी से जुड़ी याचिका संख्या 6712/2021 है, जो 14 जुलाई 2022 को सुनी गई। याचिका के मुताबिक, पहले का ट्रासंफर ऑर्डर 13 जुलाई 2021 का है। उसमें अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ‘एएसजी’ ने सरकार की ओर से वादा किया था कि वह ट्रांसफर ऑर्डर वापस ले लेंगे। हालांकि 19 जुलाई 2021 को हाईकोर्ट ने उस ऑर्डर पर स्टे लगा दिया। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि इस केस को अब निर्णय पर पहुंचाया जाए। इसके बाद भी यौन शोषण केस की जांच को प्रभावित या उसमें देरी करने का प्रयास हुआ। एएसजी के वादे के बाद भी 30 जून 2022 को नीरजबाला का तबादला बेंगलुरु कर दिया गया। केस की दो पार्टी, जिसमें गृह सचिव एवं सीआरपीएफ डीजी शामिल थे, इन्होंने भरोसा दिलाया कि नीरजबाला का दिल्ली-एनसीआर में प्राथमिकता के आधार नोएडा तबादला किया जाएगा। चूंकि वे नॉर्दन सेक्टर लेवल इंटरनल कंप्लेंट कमेटी की चेयरपर्सन हैं और एक अहम केस की जांच कर रही हैं, इसलिए नोएडा जाने के बाद भी वे अपना जांच कार्य बिना किसी बाधा के जारी रख सकती हैं।

CRPF: महिला कमांडो – फोटो : तीसरी जंग

जांच को प्रभावित करने का प्रयास हुआ

याचिका के पेज नंबर छह और पैरा नंबर सात में लिखा है, ट्रांसफर तो यौन शोषण मामले की जांच को कमजोर करने का एक बहाना है। इस बाबत सीआरपीएफ ने अपने काउंटर एफिडेवट में कहा, नोएडा में तबादले से इनकी मौजूदा सीट यानी नॉर्दन सेक्टर लेवल इंटरनल कंप्लेंट कमेटी की चेयरपर्सन का कार्य बाधित नहीं होगा। नीरजबाला की याचिका बताती है कि इस केस की जांच को रोकने या बिना किसी निष्कर्ष पर पहुंचे, उसे खत्म करने का भरसक प्रयास हुआ है। इसके बावजूद वे देश के सबसे बड़े यौन शोषण मामले की पीड़ित महिला जवानों को न्याय दिलाने के रास्ते पर बढ़ती रहीं।

स्टेंडिंग ऑर्डर के बाद भी 13 जुलाई 2021 को जांच अधिकारी का नोएडा तबादला कर दिया गया। एएसजी ने उसे वापस नहीं लिया। कोर्ट ने उस पर स्टे दे दिया। उसके बाद नीरज बाला को बेंगलुरु जाने का ट्रांसफर ऑर्डर थमा दिया गया। 7/2014 के स्टेंडिंग ऑर्डर में लिखा है, पति-पत्नी को एक जगह पर पोस्टिंग देने का प्रयास किया जाए। नीरज बाला के पति भी सरकारी जॉब में हैं। मौजूदा याचिका में पेज आठ और पैरा 12 के अनुसार, याचिकाकर्ता ने कहा है कि ये तबादला आदेश दुर्भावना से जारी किया गया है। इसमें तो सजा देने का मकसद नजर आता है। 19 महिला जवानों का यौन शोषण कैसे, कब और कहां हुआ, इसका विस्तृत विवरण 15 जनवरी 2022 को एक शपथ पत्र के माध्यम से कोर्ट को दिए गए सील बंद लिफाफे में अंकित है।

डीआईजी ताकतवर है तभी तो उसका तबादला नहीं हुआ

याचिका में लिखा है कि विभाग तो यौन शोषण के आरोपी खजान सिंह को आईजी बनाने के लिए बेताब था। ये केस नहीं होता है तो वे मार्च में ही आईजी बन जाते। हालांकि सील बंद कवर में उन्हें आईजी पदोन्नत करने के आदेश हुए थे। दूसरी तरफ नीरज बाला को इसलिए बेंगलुरु भेजा गया है कि ताकि पीड़ित लड़कियां अपना केस वापस ले लें। नीरजबाला, उनके लिए शक्ति स्तंभ बन नैतिक बल का काम कर रही थीं। आरोपी डीआईजी की ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनका कहीं तबादला तक नहीं किया गया। 15 जनवरी 2022 को जो अतिरिक्त शपथ पत्र दिया गया है, उसके पैरा बीस में पीड़ित महिला जवानों का ब्यौरा है। अतिरिक्त शपथ पत्र में लिखा है कि सीआरपीएफ में व्यापक स्तर पर यौन शोषण का माहौल है। बड़े अफसरों को खुश करने के लिए महिला जवानों को कथित तौर पर लुभाया जाता है। ये केवल यौनाचार का मामला नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ का केस भी है। खजान सिंह को कथित रिंग लीडर बताया गया है। पैरा 15 में 19 जुलाई के आदेश में हाईकोर्ट ने कहा, 13 जुलाई 2021 के तबादला आदेश का मतलब, इस केस की जांच को प्रभावित करना था। उसमें हस्तक्षेप का मकसद दिख रहा था, इसलिए उस पर स्टे दिया गया था।

बीस साल से ऐसे कई अफसर दिल्ली में बैठे हैं

पैरा 18 में सीआरपीएफ की महिला बटालियन 88 की कमांडेंट नीरज बाला की याचिका में कहा गया है कि उनसे पहले यहां मनोज कुमार सीओ थे, जो चार साल ‘2012 से 2016’ तक रहे। सीओ आर. अपराजिता भी साढ़े चार साल ‘2004 से 2008’ तक रहीं। कई दूसरे अधिकारी तो दिल्ली में 20 साल तक तैनात रहे हैं। याचिका में ऐसे कई अफसरों का नाम शामिल है। जैसे आईजी विवेक वैद्य विभिन्न रैंक एवं पदों पर कुल मिलाकर साढ़े 15 साल तक दिल्ली में रहे हैं। इसी तरह आईजी सुधाकर उपाध्याय भी 15.4 वर्षों तक दिल्ली में तैनात रहे। डीआईजी एनी अब्राहम 18.1 सालों तक दिल्ली में रही हैं, आज भी वे मुख्यालय में तैनात हैं। डीआईजी नीतू भट्टाचार्य भी 18 साल तक दिल्ली में रही हैं, आज भी हैं।

डीआईजी पीके सिंह साढ़े छह साल, कमांडेंट विजया ढूंडयाल 6.2 साल, कमांडेंट विष्णु द्विवेदी 14.1 साल, कमांडेंट हर्षवर्धन 12.6 साल, कमांडेंट भूपेश यादव 7.4 साल, कमांडेंट मनोज कुमार 16.2 साल, कमांडेंट पंकज सिंह 7.7 साल, कमांडेंट प्रकाश चंद्रा 18.7 साल, कमांडेंट नागरमल कौमावत 17.6 साल, कमांडेंट पाल सिंह 10.3 साल, कमांडेंट करुणा निधान 15.5 साल, कमांडेंट पूनम गुप्ता 12.11 साल और डिप्टी कमांडेंट सुनील पवार 20.5 साल तक दिल्ली में तैनात रहे हैं। नीरजबाला के पति मथुरा में कार्यरत हैं। इसके बावजूद उनका तबादला बेंगलुरु कर दिया गया। यह पॉलिसी के खिलाफ है।

सीआरपीएफ का विरोध डीआईजी का नाम क्यों लिखा

सीआरपीएफ की पैरवी कर रहे वकील ने अदालत में विरोध किया कि नीरज बाला ने अपनी रिपोर्ट में डीआईजी का नाम क्यों लिखा है। हाईकोर्ट ने कहा, इसका मतलब ये तो सही है कि तबादला आदेश दुर्भावना से भरा था। पैरा 16 में ए बी सी डी की तर्ज पर पीड़ितों का नाम लिखा है। इनमें से दो पीड़ित, बल की महिला खिलाड़ी भी हैं। केस की परिस्थिति बहुत खतरनाक है। निष्पक्ष जांच में कई खुलासे हो सकते हैं। ये तो सिस्टम रहा है कि कोई लालच देकर या डर दिखाकर महिला जवानों को यौन शोषण के लिए मजबूर किया गया। ऐसा माहौल बनाया गया है। दूसरी तरफ डीजी सीआरपीएफ याचिकाकर्ता को आगे बढ़ने से रोकने के लिए प्रतिबद्ध दिखते हैं। नीरज बाला ने 16 साल हार्ड पोस्टिंग यानी जम्मू-कश्मीर में काटी है। उसे ऑपरेशनल मकसद में बेहतरीन कार्य के पांच मेडल मिले हैं।

सीआरपीएफ ऐसे अफसरों को दिल्ली में नहीं रखना चाहती। दिल्ली में ऐसे अफसरों को रखना चाहते हैं, जो चहेते अफसर हैं। बड़े अफसरों की मदद करते हैं। जांच प्रभावित करने या दूसरे कार्यों में सहयोग देते हैं। पैरा बीस में जिक्र किया गया है कि आईजी सेंट्रल सेक्टर लखनऊ ने जून 2020 को सीक्रेट लैटर लिखा था। इंटेल की रिपोर्ट थी कि कुछ अफसर जो सीआरपीएफ महिलाओं के यौन शोषण में लिप्त हैं, उन्हें दिल्ली में तैनाती मिलती है। जिनके चरित्र पर सवाल लगे हैं, संदिग्ध हैं, वे दिल्ली में पोस्टिंग पा जाते हैं। जो लोग केस का खुलासा करना चाहते हैं, उन्हें दूर भेजा जाता है। मौजूदा केस की अगली सुनवाई 24 अगस्त को दिल्ली हाईकोर्ट में होगी। बल मुख्यालय के आईजी रैंक के अधिकारी ने केस की पुष्टि करते हुए कहा, इस मामले की जांच चल रही है।