डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त अरुण सरकार ने 1997 के एक ट्रेन हादसे में अपने दोनों हाथ गंवा दिए थे। अरुण सरकार ने आचार्य गिरीश चंद्र बोस कॉलेज के शासी निकाय के फैसले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया था
कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक अस्सी प्रतिशत विकलांग शिक्षक को स्थायी नियुक्ति से वंचित करने वाले कॉलेज के प्रस्ताव को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कॉलेज के शासी निकाय (गवर्निंग बॉडी) को आठ सप्ताह के भीतर नये फैसले के साथ आने को कहा है।
डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त अरुण सरकार ने 1997 के एक ट्रेन हादसे में अपने दोनों हाथ गंवा दिए थे। अरुण सरकार ने आचार्य गिरीश चंद्र बोस कॉलेज के शासी निकाय के फैसले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया था जिसमें उन्होंने अपनी अस्सी प्रतिशत विकलांगता का हवाला देते हुए बंगाल कॉलेज सेवा आयोग से पुनर्विचार करने को कहा था।
जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य ने कॉलेज के शासी निकाय के प्रस्तावन को रद्द करने का आदेश दिया और आदेश की तारीख से आठ सप्ताह के भीतर एक नए निर्णय के साथ आने का निर्देश दिया।
1997 में ट्रेन हादसे के बाद अरुण सरकार ने 1999 से गैरीफा हाई स्कूल में शारीरिक रूप से विकलांग श्रेणी के तहत एक सहायक शिक्षक के रूप में काम किया। इसके बाद अप्रैल 2010 में उसी श्रेणी में बंगाली के सहायक प्रोफेसर के रूप में मुर्शिदाबाद जिले के कंडी राज कॉलेज में काम किया।
कोर्ट ने कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि सरकार एक शिक्षक या सहायक प्रोफेसर के रूप में अपने कर्तव्यों को पूरा करने में असमर्थ हैं और उन्होंने कृत्रिम अंगों के उपयोग के साथ अपना काम किया है।
नॉर्थ 24 परगना जिले के नैहाटी के निवासी अरुण सरकार को कंडी राज कॉलेज में आने-जाने में कठिनाई होती थी, क्योंकि कॉलेज उनके घर 480 किलोमीटर की दूरी पर था।
उनके आवेदन पर कॉलेज सेवा आयोग ने उन्हें कोलकाता में आचार्य गिरीश चंद्र बोस कॉलेज के लिए पीएच श्रेणी में सहायक प्रोफेसर के रूप में शिफारिश की थी।
इसके बाद कॉलेज के शासी निकाय ने आयोग से अपनी शिफारिश पर पुनर्विचार करने का अनुरोध करने का फैसला किया था। शासी निकाय के मुताबिक अरुण सरकार अस्सी प्रतिशत विकलांग हैं और कॉलेज के शिक्षण, मूल्यांकन आदि के साथ विश्वविद्यालय के कार्यों के लिए अपने कर्तव्यों को पूरा नहीं कर सकते।
शासी निकाय ने 10 जून 29017 को एक बैठक में फैसला लेते हुए कहा था कि ऐसे उम्मीदवार की नियुक्ति विभाग के विकास और कॉलेज की प्रतिष्ठा के लिए गंभीर रूप से नुकसानदेह हो सकती हैं।
उनके वकील सुबीर सान्याल ने कहा कि इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी और कॉलेज ने अगस्त 2017 में अरुण सरकार को अस्थायी नियुक्ति दी थी।