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#Article370 पर भारत के SC का फ़ैसला-पाकिस्तान पर जंग छेड़ने के लिये है : इस्राईल को मिलेगी लाईफ़ लाइन : रिपोर्ट पाकिस्तान मीडिया से

 

जम्मू कश्मीर पर फ़ैसला, क्या बाबरी मस्जिद के बाद भारत का मुसलमान दूसरी बार ठगा गया?

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा अगस्त 2019 में जम्मू और कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और सूबे को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करने के निर्णय करने वाले संवैधानिक आदेश को बरक़रार रखा है।

इस फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 2 अगस्त, 2023 से शुरू हुई सुनवाई के बाद 5 सितम्बर को अदालत ने अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था।

सोमवार को निर्णय सुनते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था और इसे निरस्त करने वाला संवैधानिक आदेश पूरी तरह से वैध है।

इस सवाल पर कि क्या जम्मू-कश्मीर के भारत संघ में शामिल होने पर इसकी आंतरिक संप्रभुता बरकरार रही, पर अदालत ने कहा कि ऐसा नहीं है। अदालत ने लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश बनने को भी वैध माना है।

इसके साथ ही अदालत ने चुनाव आयोग को 30 सितम्बर, 2024 से पहले जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव कराने का निर्देश दिया है।

5 अगस्त 2019 को भारत की केंद्र सरकार ने संसद में एक प्रस्ताव लाकर अनुच्छेद 370 की अधिकतर धाराओं को खत्म कर दिया था और जम्मू कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था। सरकार के इस फ़ैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में कम से कम 23 याचिकाएं दाखिल की गई हैं।

केंद्र सरकार ने इस साल जुलाई में अनुच्छेद 370 को हटाने को चुनौती देने वाली 23 याचिकाओं की सुनवाई से पहले सुप्रीम कोर्ट में दायर एक नए हलफ़नामे में अगस्त 2019 के फैसले का बचाव करते हुए कहा था कि यह इस क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास, प्रगति, सुरक्षा और स्थिरता लाया है जो अनुच्छेद 370 लागू रहने के समय में अक्सर गायब र​हता था।

क्षेत्र के राजनीतिक दल और नागरिक समाज समूह अनुच्छेद 370 को हटाए जाने की तीखी आलोचना करते रहे हैं। रिपोर्ट्स में सामने आया था कि कश्मीर के लोग भी केंद्र सरकार से विपरीत राय रखते हैं। याचिकाकर्ताओं का भी मानना है कि भारत सरकार द्वारा अगस्त 2019 में किए गए बदलाव ‘एकतरफा’ थे और इसमें ‘जम्मू-कश्मीर के लोगों की सहमति’ नहीं थी।

राजनैतिक मामलों के विशेषज्ञ अहमद मंसूर ख़ान कहते हैं कि भारत के हिंदूकरण और अल्पसंख्यकों के अधिकारों विशेष रूप से कश्मीर के स्वामित्व के विवादास्पद मुद्दे की अनदेखी करने के हिंदु दलों के प्रयास, भारत के एकल ढांचे की संरचना के पक्ष में नहीं हैं क्योंकि ऐसा लगता है कि कुछ दल भारत में धर्म की राजनीति लागू करने की कोशिश कर रहे हैं और हिन्दुत्ववादी नीतियों को लागू करके दूसरों के अधिकारों को कुचल रहे हैं। यह नीति भारत की गंगा जमुनी तहज़ीब और सारे धर्मों को समान अधिकार दिए जाने का विरोध करती है। इस संबंध में भाजपा का लक्ष्य, चरमपंथी हिंदू समूहों और संगठनों तथा आरएसएस जैसे कट्टरपंथियों को ख़ुश करना है।