साहित्य

*ओशो ने बताया कुम्भ का महत्व*

Prem anand
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*ओशो ने बताया कुम्भ का महत्व*
इसमें कई बातें हैं। पहली बात जो समझ लेने की है वह यह कि ये जो करोड़ लोग इकट्ठे हो गए हैं एक अभीप्सा और एक आकांक्षा से, एक प्रार्थना से, एक ध्वनि, एक धुन करते हुए आ गए हैं, यह एक पूल बन गया चेतना का। यह एक करोड़ लोगों का पूल हो गया चेतना का। यहां अब व्यक्ति नहीं हैं।

अगर कुंभ में देखें तो व्यक्ति दिखाई नहीं पड़ता। भीड़, निपट भीड़, जहां कोई चेहरा नहीं है। चेहरा बचेगा कहां इतनी भीड़ में? निपट भीड़ रह गई, फेसलेस। एक करोड़ आदमी इकट्ठा हैं। कौन कौन है, अब कोई अर्थ नहीं रह गया। कौन राजा है, कौन रंक है, अब कोई मतलब नहीं रह गया। कौन गरीब है, कौन अमीर है, कोई मतलब नहीं रह गया, फेसलेस हो गया सब। और ये एक करोड़ आदमी एक ही अभीप्सा से एक विशेष घड़ी में इकट्ठे हुए हैं–एक ही प्रार्थना से, एक ही आकांक्षा से। इन सबकी चेतनाएं एक-दूसरे के भीतर प्रवाहित होनी शुरू होंगी। अगर एक करोड़ लोगों की चेतना का पूल बन सके, एक इकट्ठा रूप बन जाए, तो इस चेतना के भीतर परमात्मा का प्रवेश जितना आसान है उतना आसान एक-एक व्यक्ति के भीतर नहीं है। यह बड़ा कांटैक्ट फील्ड है।


आदमी की चेतना कितना बड़ा कांटैक्ट फील्ड निर्मित करती है, परमात्मा का अवतरण उतना आसान हो जाता है। क्योंकि वह इतनी बड़ी घटना है! उस बड़ी घटना के लिए, जितनी जगह हम बना सकें उतनी उपयोगी है। इंडिविजुअल प्रेयर तो बहुत बाद में पैदा हुई–व्यक्तिगत प्रार्थना। प्रार्थना का मूल रूप तो समूहगत है। वैयक्तिक प्रार्थना तो तब पैदा हुई जब एक-एक आदमी को भारी अहंकार पकड़ना शुरू हो गया। और किसी के साथ पूल-अप होना मुश्किल हो गया कि किसी के साथ हम एक हो जाएं। और इसलिए जब से इंडिविजुअल प्रेयर दुनिया में शुरू हुई तब से प्रेयर का फायदा खो गया। असल में प्रेयर इंडिविजुअल नहीं हो सकती। हम इतनी बड़ी शक्ति का आवाहन कर रहे हैं कि हम जितना बड़ा क्षेत्र दे सकें उसके अवतरण के लिए, उतना ही सुगम होगा।

तो तीर्थ उस बड़े क्षेत्र को निर्मित करते हैं। फिर खास घड़ी में करते हैं, खास नक्षत्र में करते हैं, खास दिन पर करते हैं, खास वर्ष में करते हैं। वे सब सुनिश्चित विधियां थीं। यानी उस घड़ी में, उस नक्षत्र में पहले भी कांटैक्ट हुआ है; और जीवन की सारी व्यवस्था पीरियाडिकल है।

इसे भी समझ लेना चाहिए। जीवन की सारी व्यवस्था पीरियाडिकल है। जैसे कि वर्षा आती है, एक खास दिन पर आ जाती है। और अगर आज नहीं आती खास दिन पर, तो उसका कारण यह है कि हमने छेड़छाड़ की है। अन्यथा दिन बिलकुल तय थे, घड़ी तय थी, सब तय था, वह उस वक्त आ जाती थी। गर्मी आती थी खास वक्त, सर्दी आती थी खास वक्त, वसंत आता था खास वक्त–सब बंधा था। शरीर भी बिलकुल वैसा ही काम करता है। स्त्रियों का मासिक धर्म है, वह ठीक चांद के साथ चलता रहता है। ठीक अट्ठाइस दिन में उसे लौट आना चाहिए। अगर बिलकुल ठीक है, शरीर स्वस्थ है, तो वह अट्ठाइस दिन में लौट आना चाहिए। वह चांद के साथ यात्रा कर रहा है। वह अट्ठाइस दिन में नहीं लौटता, तो क्रम टूट गया है व्यक्तित्व का, भीतर कहीं कोई गड़बड़ हो गई है। सारी घटनाएं एक क्रम में आवर्तित होती हैं।

तो अगर किसी एक घड़ी में परमात्मा का अवतरण हो गया, तो उस घड़ी को हम अगले वर्ष के लिए फिर नोट कर सकते हैं। और संभावना उस घड़ी की बढ़ गई, वह घड़ी जो है वह ज्यादा पोटेंशियल हो गई, उस घड़ी में परमात्मा की धारा पुनः प्रवाहित हो सकती है। इसलिए पुनः-पुनः उस घड़ी में तीर्थ पर लोग इकट्ठे होते रहेंगे सैकड़ों वर्षों तक।
*- ओशो* 🌹
_*गहरे पानी पैठ # 2*_