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आज आपको विस्तार से नागा साधुवो के बारे में बताएँगे : नागा साधु या सनातन सैन्य रेजिमेंट?

Shaurya Mishra
@shauryabjym
आज आपको विस्तार से नागा साधुवो के बारे में बताएँगे ।

हिमालय और गुफाओं में रहते है।
नागा साधु लोगो के बीच बहुत काम आते है। ये किसी अखाड़े, आश्रम या किसी मंदिर से भी जुड़े होते है,ये अक्सर समूह में रहते है। कुछ तप करने के लिए हिमालय और गुफाओं में चले जाते है।

वह अर्धकुंभ, महाकुंभ में निर्वस्त्र रहकर हुंकार भरते हैं, शरीर पर भभूत लपेटते हैं, नाचते गाते हैं, डमरू ढपली बजाते हैं लेकिन कुंभ खत्म होते ही गायब हो जाते हैं। आखिर क्या है नागाओं की रहस्यमयी दुनिया का सच? कहां से आते हैं और कहां गायब हो जाते हैं ये साधु, आइए जानते हैं.

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नागा संन्यासी किसी एक गुफा में कुछ साल रहते है और फिर किसी दूसरी गुफा में चले जाते हैं। इस कारण इनकी सटीक स्थिति का पता लगा पाना मुश्किल होता है। इन में से बहुत से संन्यासी वस्त्र धारण कर और कुछ निर्वस्त्र भी गुप्त स्थान पर रहकर तपस्या करते हैं।

एक से दूसरी और दूसरी से तीसरी इसी तरह गुफाओं को बदलते और भोले बाबा की भक्ति में डूबे ये नागा जड़ी-बूटी और कंदमूल के सहारे पूरा जीवन बिता देता हैं। कई नागा जंगलों में घूमते-घूमते सालों काट लेते हैं और अगले कुंभ या अर्ध कुंभ में नजर आते हैं।

नागा साधु जंगल के रास्तों से ही यात्रा करते हैं। आमतौर पर ये लोग देर रात में चलना शुरू करते हैं। यात्रा के दौरान ये लोग किसी गांव या शहर में नहीं जाते, बल्कि जंगल और वीरान रास्तों में डेरा डालते हैं। रात में यात्रा और दिन में जंगल में विश्राम करने के कारण सिंहस्थ में आते या जाते हुए ये किसी को नजर नहीं आते।

कुछ नागा साधु झुण्ड में निकलते है तो कुछ अकेले ही यात्रा करते हैं। नागा यात्रा में कंदमूल फल, फूल और पत्तियों का सेवन करते हैं।

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नागा साधु सोने के लिए पलंग, खाट या अन्य किसी साधन का उपयोग नहीं कर सकते। यहां तक कि नागा साधुओं को कृत्रिम पलंग या बिस्तर पर सोने की भी मनाही होती है। नागा साधु केवल जमीन पर ही सोते हैं। यह बहुत ही कठोर नियम है, जिसका पालन हर नागा साधु को करना पड़ता है। आमतौर पर यह नागा सन्यासी अपनी पहचान छुपा कर रखते हैं।

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नागा साधुओं को रात और दिन मिलाकर केवल एक ही समय भोजन करना होता है। वो भोजन भी भिक्षा मांग कर लिया गया होता है। एक नागा साधु को अधिक से अधिक सात घरों से भिक्षा लेने का अधिकार है। अगर सातों घरों से कोई भिक्षा ना मिले, तो उसे भूखा रहना पड़ता है। जो खाना मिले, उसमें पसंद-नापसंद को नजर अंदाज करके प्रेमपूर्वक ग्रहण करना होता है।

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हर अखाड़े में होता है एक कोतवालः साधुओं के अखाड़ों की परंपरा के अनुसार यह अखाड़े का एक कोतवाल होता है। जब दीक्षा पूरी होने के बाद नागा साधु अखाड़ा छोड़ साधना करने जंगल या पहाड़ों में चले जाते हैं, तो ये कोतवाल नागा साधुओं और अखाड़ों के बीच की कड़ी का काम करता है।

जब कभी कुंभ और अर्धकुंभ जैसे महापर्व होते हैं तो ये नागा साधु कोतवाल की सूचना पर वहां रहस्यमय तरीके से पहुंच जाते हैं।

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अखाड़ों के ज्यादातर नागा साधु हिमालय, काशी, गुजरात और उत्तराखंड में रहते हैं। अगर आप पहाड़ी राज्यों में भ्रमण पर जाएं तो आपको कई आश्रम या रास्ते भी दिखाई देंगे। मसलन ऋषिकेश से नीलकंठ जाने पर वहां आपने कई और भी मंदिर या मठ देखे होंगे… बस इन्हीं पहाड़ियों पर नागाओं का भी बसेरा होता है।

ये सभी गांव या शहर से दूर पहाड़ों, गुफाओं और कन्दराओं में साधना करते हैं। नागा संन्यासी एक गुफा में कुछ साल रहने के बाद अपनी जगह बदल देते हैं।

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Pankaj Maurya
@PankajExplore
नागा साधु या सनातन सैन्य रेजिमेंट

नागा साधु परम्परा का आरम्भ आदिगुरु शंकराचार्य ने की थी, नागा साधु युद्ध कला में निपुण होते हैं और सनातन धर्म की रक्षा के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं।

इनके आश्रम दूरदराज इलाकों में होते हैं, जहां ये कठोर अनुशासन में रहते हैं। इनके गुस्से के बारे में कई तरह का मिथक प्रचलित है, लेकिन वास्तविकता में शायद ही किसी सामान्य जनमानस को इनसे कोई हानि पहुँचती हो। कहा जाता है शिव और अग्नि के ये उपासक इसी स्वरूप में सदा दिखते रहेंगे।

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सनातन सैन्य रेजिमेंट

नागा साधुओं को सनातन का रक्षक भी कहा जाता है, इसका सटीक कारण यह कि विभिन्न नागा साधुओं को आप भिन्न-भिन्न शस्त्र के साथ देख सकते हैं, अधिकांश साधु त्रिशूल, तलवार, गदा, शंख और चिमटा आदि लिए होते हैं, जो इनके सैन्य पंथ के अलग-अलग रेजिमेंट का हिस्सा होता है। इस तरह हम देखें तो नागा पंथ एक सैन्य पंथ के रूप में प्रतिष्ठित होता है।

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नागा साधु और मुग़ल आक्रांता

जब भारतीय जनमानस की दशा और दिशा बहुत बेहतर नहीं थी। भारत की धन संपदा से खिंचे तमाम आक्रमणकारी यहाँ आ रहे थे। कुछ उस खजाने को अपने साथ वापस ले गए तो कुछ भारत में ही बस गए, जिसके कारण सामान्य शांति-व्यवस्था बाधित थी। ईश्वर, धर्म और शास्त्रों को तर्क, शस्त्र और शास्त्र सभी तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था।

ऐसे में आदिगुरू शंकराचार्य जी ने सनातन धर्म की रक्षा, मठों-मन्दिरों की सम्पत्ति को लूटने वालों और श्रद्धालुओं को सताने वालों का सामना करने के लिए सनातन धर्म के विभिन्न संप्रदायों की सशस्त्र शाखाओं के रूप में अखाड़ों की स्थापना की शुरूआत की। आदिगुरू शंकराचार्य जी यह भली-भांति जानते थे कि सामाजिक उथल-पुथल के इस युग में केवल आध्यात्मिक शक्ति से इन सभी चुनौतियों का मुकाबला करना काफी नहीं है।

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नागा योद्धा

युवा साधुओं को व्यायाम करके अपने शरीर को सुदृढ़ बनाने और हथियार चलाने में भी कुशलता हासिल करने के लिए कहा गया। इसलिए ऐसे मठ बने जहाँ इस तरह के व्यायाम या शस्त्र संचालन का अभ्यास कराया जाता था, ऐसे मठों को अखाड़ा कहा जाता है। आदिगुरु शंकराचार्य जी ने अखाड़ों को सुझाव दिया कि मठ, मंदिरों और श्रद्धालुओं की रक्षा के लिए जरूरत पडऩे पर शक्ति का भी प्रयोग करें।

इस तरह बाह्य आक्रमणों के उस दौर में इन अखाड़ों ने एक सुरक्षा कवच का काम किया। कई बार स्थानीय राजा-महाराज विदेशी आक्रमण की स्थिति में नागा योद्धा साधुओं का सहयोग लिया करते थे। इतिहास में ऐसे कई गौरवपूर्ण युद्धों का वर्णन मिलता है जिनमें ४० हजार से ज्यादा नागा योद्धाओं ने हिस्सा लिया।

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अहमद शाह अब्दाली द्वारा मथुरा-वृन्दावन के बाद गोकुल पर आक्रमण के समय नागा साधुओं ने उसकी सेना का मुकाबला करके गोकुल की रक्षा की।

भारत की स्वंतंत्रता के बाद इन अखाड़ों ने अपना सैन्य चरित्र त्याग दिया और इनके अनुयायी भारतीय संस्कृति और दर्शन के सनातनी मूल्यों का अध्ययन और अनुपालन करते हुए संयमित जीवन व्यतीत करने लगे।

डिस्क्लेमर : लेख X से प्राप्त है, लेखक के निजी विचार हैं, तीसरी जंग का कोई सरोकार नहीं है