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‘भूलन काँदा’ : अजब पेड़ों की ग़ज़ब कहानी!

मिट्टी की महक
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अज़ब पेड़ों की गज़ब कहानी
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कुछ दिनों पहले एक ख़बर पढ़ी कि छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘भूलन द मेज’ (Bhulan The Maze) ने राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 2021 के लिए सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार अपने नाम किया है और इस तरह पहली बार किसी छत्तीसगढ़ी फिल्म को क्षेत्रीय चलचित्र श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है। उसी लेख से यह भी जानकारी मिली कि यह फिल्म, लेखक संजीव बक्शी जी के उपन्यास ‘भूलन काँदा’ पर बनी है और उपन्यास आधारित है एक विशेष पौधे पर जिसका नाम ही ‘भूलन काँदा’ है। इस नाम का शाब्दिक अर्थ है, ऐसा कन्दमूल जो स्मृति भुला दे अर्थात याददाश्त गुम कर दे। अब यहाँ तो बहुत मज़ेदार बात हो गयी मेरे साथ।😍😍 समझिए आपके साथ भी।🤗🤗

भूलन कन्द जो लोगों की याददाश्त गुम कर देता है, उसके नाम ने मुझे बचपन याद दिला दिया जिसका कुछ भाग अमरकंटक पर्वत की तराई में, प्रकृति की गोद में और माँ नर्मदा के आँचल के नीचे बसे ग्राम में व्यतीत हुआ है।

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वहाँ निवासस्थान के चारों ओर सघन वन आच्छादित थे जहाँ विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियों, फूल, फल वाले पेड़ों, झाड़ियों और विशालकाय वृक्षों पर मधुमक्खियों के छत्तों की भरमार थी। वहाँ के सरल निवासियों के पास वनौषधियों के ज्ञान का पूरा पिटारा उपलब्ध था। अनेक पेड़-पौधे मैंने वहीं से पहचाने और उनकी विशेषताओं को भी जाना।

जहाँ तक मुझे याद आता है एक बार वहाँ फार्म के वृद्ध चौकीदार ने एक ऐसे बेल वाले पौधे के बारे में बताया था जो घने जंगलों में, कई बार रास्तों के किनारे भी, भूमि पर बिछा रहता है और भूल से किसी का पाँव उस पर पड़ जाये तो उसे मतिभ्रम हो जाता है। बुद्धि ऐसी भ्रमित हो जाती है कि जाना-पहचाना रास्ता भी कुछ घण्टों के लिए सुझाई देना बन्द हो जाता है और वह वहीं जंगल में रास्ते की खोज में चक्कर काटता भटकने लगता है। राह सामने हो तब भी उसे सही से सूझता नहीं है। इसी बीच कोई अन्य व्यक्ति आकर उसे स्पर्श करता है, झिंझोड़ता है, तब कहीं भ्रमजाल टूटता है और वह सचेतन होता है। उस समय उन्होंने उस पौधे का नाम भूलन बन/भूलन कन्द या भूलन बूटी बताया था। तब इस जानकारी को भाई, बहन व समवयस्क संगी-साथियों के साथ केवल सुना और घोर आश्चर्य व्यक्त किया था, प्रायोगिक परीक्षण करने का सुयोग कभी मिल नहीं पाया था। आप देखना चाहेंगे उस पौधे की तस्वीर? क्या पता, आपने कभी राह चलते देखा भी हो उसे, पर बिना उसके फेर में फँसे बगल से गुज़र गये हों और साफ़ बच गये हों!😍😁😁 आप अवश्य ही पहचानना चाहेंगे उसे, मुझे मालूम है!🤗🤗

तनिक धैर्य धारण कीजिए, मैं उस पौधे का वानस्पतिक नाम भी बताऊँगी और उसका चित्र भी दिखाऊँगी मगर उससे पहले आपको एक अन्य चित्र-विचित्र पौधे से भी परिचित करवाना चाहूँगी। मेरा दावा है कि उस पौधे की विशेषता या क्षेत्रविशेष में उसकी पहचान और प्रसिद्धि का कारण जान कर आप अचरज में पड़ जायेंगे। मगर हाँ, इस पौधे के विषय में भी मेरी जानकारी वहीं सभी लोगों में व्याप्त विश्वास और दावों पर आधारित है, स्व-अनुभूत या प्रायोगिक नहीं है।

तो उस दूसरे पौधे का नाम है ‘झगड़ाली’। कई स्थानों पर उसे ‘किचकिची’ नाम से भी पहचाना जाता है। इस सुन्दर फूलदार नाज़ुक पौधे पर आरोप है कि इसे जहाँ कहीं भी, किसी भी घर में लगाया जायेगा अथवा किसी घर की छप्पर या छत पर भूलवश या दुर्भावनावश फेंक/डाल दिया जायेगा, उस घर के सदस्य आपस में कलह करते रहेंगे, लड़ते-झगड़ते रहेंगे, किचकिच करते रहेंगे।😅😅इसीलिए इसका नाम ऐसा पड़ गया है।

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बचपन के उन घुमक्कड़ दिनों में जंगल भ्रमण के दौरान एक बार जब इस पौधे को सुन्दर फूलों से सुसज्जित देखा था, हम भाई-बहन इसे जड़ सहित उखाड़ कर घर ले आये थे और सामने आँगन के एक कोने में सफलतापूर्वक रोप भी दिया था। अब इससे पहले कि घर में लड़ाई-झगड़े हो पाते, घर के ठीक बगल वाले क्वार्टर में रहने वाली अनुभवी पड़ोसन अम्माँ ने इस पौधे की ख़ासियत माँ को बता दी थी और साफ़-साफ़ कह दिया था कि इसे कोई भी, कभी भी अपने घर में नहीं लगाता है, अच्छा नहीं माना जाता। भले ही यह औषधीय पौधों में गिना जाता है लेकिन इसे जंगल में ही रहने देना चाहिए। माँ ने तुरन्त उनसे उस पौधे को कहीं ठिकाने लगाने की विनती की और उन्होंने तत्काल ही उसे उखाड़ कर गायों के झुण्ड को चराने जंगल ले जा रहे चरवाहे लड़के को सौंप दिया कि इसे कहीं निर्जन स्थान पर लगा देना।

फिर कुछ वर्षों बाद हमारा स्थानान्तरण हो गया था और हम वहाँ से नयी जगह पर चले गये थे। समय के साथ मैं इन पौधों को भूल गयी थी किन्तु वनस्पति विज्ञान में स्नातकोत्तर करते समय जब विभिन्न पौधों को उनके वानस्पतिक नाम यानी Botanical name से पहचानने की क़वायद चल रही थी, ये दोनों पौधे फिर से सामने आये। तब गूगल बाबा हमारे जीवन में गुरु बनकर तो आये नहीं थे अतः अन्य भौतिक गुरुओं का ही सहारा था, कक्षा के सिलेबस से बाहर के ज्ञान के लिए। तब झगड़ाली का प्रसंग छिड़ने पर छत्तीसगढ़ के सुदूर वनांचल क्षेत्र बस्तर से आयीं एक सीनियर ने इस पौधे का उनकी तरफ पुकारा जाने वाला नाम बताया था, ‘कलिहारी’। फिर हमें पढ़ाने वाली एक प्रोफेसर मैडम ने उसका Botanical name बताया, Gloriosa superba साथ ही इसका अंग्रेजी नाम भी बताया था, Flame Lily

बहती गंगा में हाथ धोने के उद्देश्य से हम कई छात्र-छात्राएँ उनसे दूसरे भी कुछ परिचित पौधों का वैज्ञानिक नाम पूछ-पूछ कर नोट करते जा रहे थे कि एक सहपाठी ने भूलन कन्द का नाम ले लिया था और वानस्पतिक नाम जानने की इच्छा व्यक्त की थी। हममें से अधिकांश को यही लग रहा था कि मैडम कहाँ से इसका वैज्ञानिक नाम बता पाएंगी, जबकि यह एक काल्पनिक पौधा है। ऐसा भी कहीं हो सकता है क्या! लेकिन आश्चर्य, मैडम उस पौधे से भली-भाँति परिचित थीं। उनके गृह-स्थान का यह एक जाना-पहचाना पौधा था। हमारे चेहरे देख थोड़ी देर तो मुस्कुराती रही थीं, फिर बोली थीं, Tylophora rotundifolia
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नीलम सौरभ

Poets & Writers
रायपुर, छत्तीसगढ़