नेपाल के बारा जिले के बरियारपुर में एक ऐसा मंदिर है, जहां आज भी पूरे विश्व में सबसे अधिक पशु-पक्षियों की बलि दी जाती है. यह मंदिर ‘गढ़ी माई’ के नाम से जाना जाता है.
यह स्थान काठमांडू से 160 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है. नवंबर-दिसंबर में यहां हर पांच साल पर मेला लगता है, जो एक महीने तक चलता है. भारी संख्या में जानवरों को मारकर बलि के रूप चढ़ाए जाने के कारण इसे दुनिया का सबसे खूनी त्योहार (ब्लड फेस्टिवल) कहा गया है. सामूहिक बलि देने के मामले में इस मेले का नाम ‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में भी दर्ज है. यहां सबसे पहले वाराणसी के डोम राजा के यहां से आने वाले पशुओं की बलि दी जाती है.
दरअसल, बलि देने की प्रथा यहां सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है. इस मेले में पहुंचने वाले लोग अपनी मनोकामना पूरी होने पर यहां आकर पशु-पक्षियों की बलि देते हैं. लोगों का यह भी मानना है कि जानवरों की बलि देने से बुराई खत्म होगी और गढ़ी माई प्रसन्न होकर उन्हें समृद्धि देंगी. इस विश्वास के साथ यहां चूहों-कबूतरों से लेकर बकरी और भैंसों की बलि दी जाती है.
नेपाल ही नहीं, भूटान, बांग्लादेश तथा भारत के कई हिस्सों से लाखों लोग मेले में पहुंचते हैं. इनमें नेपाल के सीमावर्ती बिहार के लोगों की संख्या भी काफी होती है. इस बार मेले की शुरुआत सात दिसंबर को हुई. मेले का उद्घाटन नेपाल के उप राष्ट्रपति राम सहाय यादव ने किया.
आज से लगभग 265 साल पहले वर्ष 1759 में पहली बार यह त्योहार मनाया गया था. किंवदंती के अनुसार, गढ़ी माई मंदिर के संस्थापक भगवान चौधरी को एक रात सपना आया. उस समय वे काठमांडू की जेल में बंद थे. सपने में गढ़ी माई ने उन्हें जेल से छुड़ाने, सुख व समृद्धि तथा रोग से बचाने के लिए इंसान की बलि मांगी. सावधानी बरतते हुए भगवान चौधरी ने इंसान की बजाय जानवर की बलि दी. तभी से गढ़ीमाई मंदिर में हर पांच साल बाद लाखों जानवरों की बलि चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है.
बलि के लिए जानवरों का होता है रजिस्ट्रेशन
इस मंदिर को नेपाल के शक्तिपीठों में से एक माना गया है. बलि शुरू करने से पहले मंदिर के पुजारी अपने शरीर के पांच जगहों से खून निकालते हैं और फिर गढ़ी माई माता के आगमन का आह्वान करते हैं. इसके बाद ‘पंच बलि’ की प्रक्रिया पूरी की जाती है और तब श्रद्धालुओं के द्वारा लाए गए जानवरों की बलि दी जाती है. इसके लिए पशुओं तथा कसाइयों का रजिस्ट्रेशन किया जाता है.
महागढ़ी माई मेला नगरपालिका के मेयर सह मेला व्यवस्थापन समिति के अध्यक्ष उपेंद्र प्रसाद यादव कहते हैं, “बलि देने से पहले पशु-पक्षियों का रजिस्ट्रेशन किया जाता है. इस बार करीब 80 हजार पशु-पक्षियों की बलि दी जा चुकी है. भारतीय सीमा क्षेत्र में जागरूकता तथा सख्ती के कारण इसमें कमी आई है. बहुत से श्रद्धालुओं ने इस बार बलि की जगह पशुओं के कान काटकर छोड़ दिए और पक्षियों को उड़ा दिया. इस बार पहली बलि के लिए वाराणसी (काशी) के डोम राजा के यहां से पांच भैंसे आए थे.”
सूत्रों के अनुसार, इस बार भी 2.5 लाख से अधिक जानवरों की बलि दी गई. मेले से लौटकर आए बिहार के मधुबनी निवासी धीरेंद्र कुमार कहते हैं, “मैं करीब 25 साल से गढ़ी माई मंदिर जा रहा हूं. वहां लाखों की संख्या में बलि दी जाती है. सब जगह जानवरों का खून दिखाई देगा, लेकिन खून पर कहीं एक मक्खी दिखाई नहीं देगी. कोई वहां मन्नत मांगने जाता है तो कोई मन्नत पूरी होने पर जाता है.”
सामूहिक वध के खिलाफ उठ रही आवाज
दुनियाभर में बलि प्रथा के विरोध में आवाजें उठ रही हैं. भारत-नेपाल में भी इस सामूहिक बलि का विरोध किया जा रहा है. पशु हिंसा-विरोधी संगठनों तथा कार्यकर्ताओं ने नेपाल और भारत की अदालतों में याचिकाएं दायर की हैं. टाइम मैगजीन की रिपोर्ट के अनुसार, फ्रांसीसी अभिनेत्री ब्रिजिट बार्दो ने भी नेपाली सरकार को एक पत्र लिखकर पशु की सामूहिक बलि को हिंसक, क्रूर और अमानवीय बताते हुए इसे रोकने की अपील की थी. 2014 में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने नेपाल के पड़ोसी (भारतीय) राज्य सरकारों को गढ़ी माई मंदिर में बलि के लिए जानवरों को ले जाने को प्रतिबंधित करने का आदेश दिया था.
वहीं, 2019 में इस प्रथा पर रोक लगाने के मामले में नेपाल की कोर्ट ने कहा कि इस पर तुरंत रोक नहीं लगाया जा सकता है. इसे धीरे-धीरे कम किया जाए. साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि यह धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा है. इसलिए इससे जुड़े लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत नहीं किया जा सकता है. इससे पहले भी नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने जो आदेश जारी किया, उस पर अमल नहीं किया गया. पशु अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था पीएफए की ट्रस्टी गौरी मौलेखी कहती हैं, “हमें खुशी है कि गढ़ी माई में बलि की भयावहता से पशु-पक्षियों को बचाने में हम सफल रहे. यह जानवरों के लिए आशा का नया अध्याय है. वे अब एक सुरक्षित और प्यार भरे वातावरण में जी सकेंगे. यह मेला पशु क्रूरता और मानव शोषण के लिए कुख्यात है.”
पूरी दुनिया में जानवरों की सुरक्षा और सम्मान का संदेश देने वाली लेखी बलि के आंकड़ों के बारे में कहती हैं, “मंदिर समिति अपने लाभ के लिए गरीब लोगों का शोषण कर रही है. बलि एक तरह से मंदिर समिति की यूएसपी है. उन्हें लगता है कि अगर वहां बलि नहीं दी जाएगी तो लोग वहां आयेंगे नहीं और उनका बिजनेस बंद हो जाएगा. 2020 में समिति के लोगों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसे बंद करने की घोषणा कर दी थी, हमारे पास एफिडेविट है उनका. बाद में वे इससे मुकर गए. प्रॉपर अकाउंटिंग की कोई व्यवस्था तो है नहीं वहां, लोग जहां तहां बलि देते हैं. इसलिए अनुमान के आधार पर ही कुछ कहा जा सकता है.”