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सीरिया की स्थिति की समीक्षा और विश्लेषण : ईरान के विदेशमंत्री सैय्यद अब्बास इराक़ची का लेख!

पार्सटुडे- ईरान के विदेशमंत्री सैय्यद अब्बास इराक़ची ने एक लेख लिखा है जिसमें उन्होंने सीरिया की स्थिति की समीक्षा और विश्लेषण किया है और इस लेख को लेबनान के समाचार पत्र अलअख़बार ने प्रकाशित किया है।

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि सीरिया और फ़िलिस्तीन को जिस स्थिति का सामना है उसके दृष्टिगत इस्लामी जगत पश्चिम एशिया के भविष्य के बारे में गम्भीर चिंतत है। इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों ने सदियों से इस्लामी जगत के राजनीतिक भविष्य के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और निभा रहे हैं परंतु कुछ दशकों से उनकी भूमिका और अधिकारों की अनदेखी की जा रही है जिसकी वजह से उन्हें विभिन्न समस्याओं का सामना है।

एक कूटनयिक के रूप में मैंने अपनी ज़िम्मेदारी के समस्त वर्षों में हमेशा फ़िलिस्तीन संकट के बारे में वार्ता की है यानी मैं वार्ता के केन्द्र में रहा हूं। मुझे हमेशा अपने यूरोपीय सहयोगियों के इस तर्क का सामना रहा है कि नाज़ी सरकारों ने यहूदियों के ख़िलाफ़ जो कुछ किया है उसकी वजह से जर्मनी के लोग शर्मीन्दा हैं और वे स्वयं को ज़िम्मेदार समझते हैं। यह बात सही है। क्योंकि उस समय यूरोप में जो सरकारें थीं उन्होंने यूरोप और विश्व के दूसरे के लोगों को बहुत आघात लगाया और नुकसान पहुंचाया है, निष्पक्ष होने के बावजूद हमारे देश ईरान का अतिग्रहण कर लिया गया और उस समय के युद्ध के कारण हमारी सरज़मीन के लोगों को अपूर्णीय क्षति का सामना हुआ।

जब डिप्लोमैटिक बातचीत में सामने वाला पक्ष शर्मीन्दगी का इज़हार और अपनी ज़िम्मेदारी क़बूल करने की बात करता है तो मेरे लिए सवाल उठता है और उसका संबंध सीधा आज की स्थिति से है। एक सवाल यह है कि इस्राईल के जो अपराध हैं उसका ज़िम्मेदार कौन है और उसके लिए कौन शर्मसार है ? इस्राईल ने फ़िलिस्तीनियों की सरज़मीन पर क़ब्ज़ा कर रखा है और हमेशा वह राष्ट्रसंघ और अंतरराष्ट्रीय प्रस्तावों व क़ानूनों का उल्लंघन करता है। अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन के पड़ोसी देशों की राष्ट्रीय संप्रभुता का उल्लंघन करता है, मानवता प्रेमी सहायता पहुंचाने की दिशा में बाधायें व सीमायें उत्पन्न करता है और आम नागरिकों व लोगों पर हवाई हमले करता है। इस्राईल द्वारा किये जा रहे अपराधों को नमूने के तौर पर देखा जा सकता है और होलोकास्ट बन रहा है, 14 अक्तूबर 2024 को इस्राईल ने शोहदाये अलअक़्सा अस्पताल पर भीषण बमबारी की जो ग़ज़ा शरणार्थी शिविर में नस्ली सफ़ाये का आधुनिकतम रूप है। वहां पर जो कुछ हुआ वही शर्मीन्दा होने के लिए काफ़ी है।

आजकल की स्थिति, इस्राईल द्वारा किये जा रहे अपराधों के दायरे का विस्तृत हो जाना और अब उसके अपराधों के सीरिया तक पहुंच जाने की वजह से मेरा जो पहले सवाल था उसमें नये सवाल की वृद्धि हो गयी है। उस देश पर इस्राईल के अतिक्रमण का ज़िम्मेदार कौन है जहां एक सरकार गिर गयी और दूसरी सरकार बन रही है और वहां के लोगों को विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना है !? खेद और चिंता जताना सबसे आसान व सरल शब्द हैं और कभी सबसे अर्थहीन शब्द हैं जो कभी पश्चिम एशिया के लोगों के भविष्य को परिवर्तित करने के ज़िम्मेदार देशों के अधिकारी प्रयोग करते हैं।

इस्राईल द्वारा फ़िलिस्तीनियों की सरज़मीन पर अवैध ढंग से क़ब्ज़ा किये हुए 75 साल से अधिक का समय बीत रहा है। इस समय ज़ायोनी सरकार के अपराधों के मुक़ाबले में एक मात्र मार्ग प्रतिरोध है। प्रतिरोध वह चीज़ है जिसने पूर्वजों की सोचों में रूप धारण किया और आज वह प्रतिरोध के सपूतों की शक्तिशाली भुजा के रूप में काम कर रही है। इस समय जो प्रतिरोध अस्तित्व में आया है उसका आधार व ज़रूरत समय की मांग है और इसी प्रतिरोध ने इस्लामी जगत को दाइश के आतंक व तांडव से मुक्ति दिलाई है। इस प्रतिरोध में ईरान, इराक, लेबनान और सीरिया के शीया –सुन्नी सब शामिल हैं।

यह प्रतिरोध ज़ायोनी सरकार के मुक़ाबले में जमे व डटे रहने का सूचक है। इसी प्रकार प्रतिरोध उस आभास व एहसास का सूचक है जिसका बाहर से आयात नहीं किया गया है या वह ऐसा साधन व हथकंडा नहीं है जिसका प्रयोग इस्लामी गणतंत्र ईरान कर रहा है।

अगर हम यह सोचें कि किसी देश के झंडे का रंग बदल देने से वहां के लोगों की सामाजिक आकांक्षायें भी बदल जायेंगी तो यह सही नहीं है। सीरिया के लोग वे बहादुर लोग हैं जिन्होंने अक्तूबर वर्ष 1973 की जंग में अपनी शूरवीरता का परिचय दिया। यही सीरिया के लोग थे जिन्होंने फ़िलिस्तीनियों की आकांक्षाओं का समर्थन किया और इस समर्थन के कारण उन्होंने दुश्मनों की बहुत सी आशाओं को निराशा में बदल दिया।

ईरान के विदेशमंत्री अपने लेख में लिखते हैं कि मेरे विचार में सीरिया की हालिया घटनाओं को इस देश की संप्रभुता के उल्लंघन और सरकारी तंत्रों की विफ़लता कारण नहीं बनना चाहिये। सीरिया के लोग परिवर्तन के विरोधी नहीं हैं बल्कि वे उस चीज़ के विरोधी हैं जो उनकी आकांक्षाओं के विपरीत हो। इस आधार पर हालिया घटनायें इस बात का अच्छा अवसर हैं कि सीरिया की समस्त क़ौमों के विचारों व दृष्टिकोणों का सम्मान किया जाये। आज सीरिया परीक्षा की कठिन घड़ी से गुज़र रहा है। दाइश और अलक़ायदा जैसे आतंकवादी गुटों की गतिविधियों से क्षेत्र की चिंता में वृद्धि हो गयी है और चिंता यह जताई जा रही है कि आतंकवादी सीरिया को कहीं अपनी सुरक्षित शरणस्थली में परिवर्तित न कर दें।

उधर क्षेत्र में अमेरिका और उसके घटकों के बाद ज़ायोनी सरकार के सैनिक हस्तक्षेप से चुनौतियां व ख़तरे उत्पन्न हो गये हैं। उन सबने आंकलन में ग़लती की है जिसे छिपाया नहीं जा सकता। इन हमलों और हस्तक्षेप का लक्ष्य सीरिया की सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक और प्रतिरक्षा शक्ति को तबाह करना है। सीरिया पर विदेशियों के हमलों से उत्पन्न कठिनाइयों व समस्याओं के बावजूद स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि सीरिया के लोगों की भांति इस देश के पड़ोस में भी लोग हैं जो ख़ाली हाथों से मगर ऊंचे मनोबल और पूर्ण भावना व ईमान के साथ जबालिया के छोटे से शरणार्थी शिविर में ज़ायोनी सैनिकों के ज़मीनी और हवाई हमलों के मुक़ाबले में दो महीनों तक बहादुरी व साहस के साथ डटे रहे।

इस समय की सख़्ती से बाहर निकलने का रास्ता स्वतंत्रता व स्वाधीनता के झंडे को और सीरियाई राष्ट्र की प्रतिष्ठा को सुरक्षित रखना है और इसी प्रकार स्वतंत्र चुनाव के माध्यम से सीरिया का भविष्य निर्धारित करने हेतु समस्त लोगों के मतों का सम्मान है। लोगों के मतों का सम्मान, स्वतंत्र और सुरक्षित ढंग से होने वाले चुनाव से होगा और इस चुनाव को सीरियाई राष्ट्र की आकांक्षाओं को पूरा करने वाला और ऐसी राजनीतिक व्यवस्था बनना चाहिये जिसमें समाज के समस्त वर्गों के लोग शामिल हों और यह वह चीज़ है जिसका राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव नंबर 2254 के परिप्रेक्ष्य में इस्लामी गणतंत्र ईरान की विदेश नीति में महत्वपूर्ण स्थान है।