विशेष

वासना :: कुत्ता और हड्डी”

Prem anand
=======
मंजू ! आ जाए अंतर ध्यान, तो सब आ गया; तो सब पा लिया। और लगता है तेरी आंखों में देखकर कि सुबह ज्यादा दूर नहीं है, कि सुबह करीब है, कि प्राची लाली होने लगी, कि आकाश सूरज के निकलने की तैयारी करने लगा है, कि पक्षी अपने घोंसलों में पर फड़फड़ाने लगे हैं, कि वृक्ष प्रतीक्षा कर रहे हैं, कि कलियां खुलने को आतुर हैं, कि बस सुबह अब हुई, अब हुई!

आ रही है तुझे अंतर ध्यान की स्मृति, शुभ है, सौभाग्य है! इस जगत में वे ही धन्यभागी हैं जिन्हें अंतर ध्यान की याद आने लगे। जिन्हें एक बात बार-बार याद आने लगे, दिन के चौबीस घंटों में बार-बार याद आने लगे, भीतर जाना है, और जो जब मौका मिल जाए तब भीतर सरक जाएं।

एक झेन फकीर को निमंत्रित किया था कुछ मित्रों ने भोजन के लिए। सात मंजिल मकान। जापान की कहानी है। अचानक भूकंप आ गया। जापान में भूकंप बहुत आते भी हैं। भागे लोग, गृहपति भी भागा। सातवीं मंजिल पर कौन रुकेगा, जब भूकंप आया हो। सीढ़ियों पर भीड़ हो गई। बहुत मेहमान इकट्ठे थे, कोई पच्चीस मेहमान थे। गृहपति द्वार पर ही अटका है। तभी उसे खयाल आया कि प्रमुख मेहमान का क्या हुआ, उस झेन फकीर का क्या हुआ।


लौटकर देखा, वह फकीर तो अपनी कुर्सी पर पालथी मारकर बैठ गया है। आंखें बंद। जैसे बुद्ध की प्रतिभा हो, संगमरमर की प्रतिमा हो ऐसा शांत, ऐसा निश्चित! उसका रूप, उसकी शांति, उसका आनंद-सम्मोहित कर लिया गृहपति को! खिंचा चला आया जैसे कोई चुंबक से खिंचा चला जाता है। बैठे गया फकीर के पास।

भूकंप आया और गया। फकीर ने आंख खोली। जहां से बात टूट गई थी भूकंप के कारण, वही से उसने बात शुरू कर दी। गृहपति ने कहा: मुझे अब कुछ भी याद नहीं कि हम क्या बात कर रहे थे। यह बीच में इतना बड़ा भूकंप हो गया है। सारे नगर में हाहाकार है। इतना शोरगुल मचा है। इतना बड़ा धक्का लगा है। मुझे कुछ भी याद नहीं—हम कहां, क्या बात कर रहे थे। अब उस बात को आप शुरू न करें। अब तो मुझे कुछ और पूछना है। मुझे यह पूछना है कि हम सब भागे, आप क्यों नहीं भागे?

फकीर ने कहा: भागा तो मैं भी। मैं भीतर की तरफ भागा, तुम बाहर की तरफ भागे। जहां जिसकी मंजिल है, जहां जो सोचता है सुरक्षा है, उस तरफ भागा। और मैं तुमसे कहता हूं तुम्हारा भागना व्यर्थ, क्योंकि भूकंप यहां भी है, भूकंप छठवीं मंजिल पर भी है, भूकंप पांचवीं मंजिल पर भी है, भूकंप चौथी मंजिल पर भी है। भूकंप सब मंजिलों पर है, भाग कहां रहे हो? जो पांचवीं मंजिल पर हैं वे भी भाग रहे हैं। जो तीसरी मंजिल पर हैं वे भी भाग रहे हैं। भूकंप सड़कों पर भी है। जो सड़कों पर हैं, वे भी घरों की तरफ भाग रहे हैं। हरेक भाग रहा है। लेकिन तुम भूकंप से भूकंप में ही भाग रहे हो। मैं भी भागा; मैं भीतर की तरफ भागा।

और मैं एक ऐसी जगह जानता हूं अपने भीतर- एक ऐसा स्थान, जहां कोई भूकंप कभी नहीं पहुंच सकता! जहां कोई कंप ही नहीं पहुंचता भूकंप की बात छोड़ दो। जहां बाहर का कोई प्रभाव कभी नहीं पहुंचता, मैं उस अछूते, कुंवारे लोक की तरफ भागा। मैं भी भागा। यह न कहूंगा कि नहीं भागा। तुम्हारी समझ में न आया हो, क्योंकि तुम एक ही तरह के भागने को पहचानते हो। मैं हाथ- पैर से नहीं भागा, मैंने शरीर का उपयोग नहीं किया, क्योंकि इसका उपयोग तो बाहर की तरफ भागना हो तब करना होता है। शरीर तो मैंने शिथिल छोड़ दिया, विश्राम में छोड़ दिया और सरक गया अपने भीतर! वहां बड़ी सुरक्षा है क्योंकि वहां अमृत है! वहां कोई मृत्यु नहीं है। चिंता थी मुझे तो सिर्फ एक कि कहीं ऐसा न हो कि भीतर पहुंचने के पहले मर जाऊं! बस जब भीतर पहुंच गया, फिर निश्चिंत हो गया। अब कैसी मौत! अब किसकी मौत? बस चिंता थी तो एक कि ध्यान में मरूं। भूकंप आ गया। मौत तो कभी न कभी आनी ही है, आती ही है। एक ही खयाल था कि ध्यान में

मरूं~ओशो
पुस्तक
– अमी झरत बिगसत कंवल

Image

Prem anand
=========
वासना:: कुत्ता और हड्डी” – ओशो
तुम्हारी हालत कुत्ते जैसी हो गयी है। कुत्ते को देखा है? सूखी हड्डियां चूसता है, जिनमें कुछ रस नहीं है। कुत्ते सूखी हड्डियों के पीछे दीवाने होते हैं। एक कुत्ते को सूखी हड्डी मिल जाए तो सारे मुहल्ले के कुत्ते उससे लड़ने को तैयार हो जाते हैं। बड़ी राजनीति फैल जाती है। बड़ा विवाद मच जाता है। बड़ी पार्टियां खड़ी हो जाती हैं। कुत्तों को इतनी सूखी हड्डी में रस क्या है? रस तो उसमें है ही नहीं। फिर यह रस कैसा? हड्डी को तो निचोडो भी, मशीनों से, तो भी कुछ निकलने वाला नहीं है सूखी हड्डी है। फिर होता क्या है?

Image

एक बड़े मजे की घटना घटती है। कुत्ता जब सूखी हड्डी को चूसता है तो उसके मसूढे, उसकी जीभ, उसका तालू सूखी हड्डी की चोट से टूट जाता है जगह जगह, उससे खून बहने लगता है। वह उसी खून को चूसता है और सोचता है हड्डी से आ रहा है। और कुत्ते का तर्क भी ठीक है, क्योंकि कुत्ते को और इससे ज्यादा पता भी क्या चले! खून गले के भीतर जाता हुआ मालूम पड़ता है ,प्रमाण हो गया कि हड्डी से ही आता होगा।

Image

तुम जरा गौर करोगे तो तुमने जिंदगी में जिन बातों को सुख कहा है, वे सब ऐसी ही हैं। हड्डी से सिर्फ तुम्हारा ही खून तुम्हारे गले में उतर रहा है। हड्डी से कुछ नहीं आ रहा है, सिर्फ घाव बन रहे हैं। मगर तुम सोच रहे हो कि बड़ा रस आ रहा है। और जिस हड्डी से रस आ रहा है, उसको छोड़ोगे कैसे? अगर कोई छुड़ाना चाहे तो तुम मरने—मारने को तैयार हो जाओगे। कुत्ते जैसी दशा है आदमी की।

Image

तुम सोचते हो धन के मिलने से सुख आता है? तो तुम उसी गलती में हो, जिसमें कुत्ते हैं। धन से सुख नहीं आता, लेकिन आता तो लगता है। तो जरूर कहीं बात होगी। आता तो लगता है, गले से उतरता तो लगता है। क्योंकि धनी आदमी प्रसन्न दिखता है, प्रफुल्लित दिखता है; उसकी चाल में गति आ जाती है। देखा! पैसे पड़े हों खीसे में तो गर्मी रहती है। सर्दी में भी गरमी रहती है! स्त्री के पीछे हांथ धो कर पड़ा है ,वासना रोए रोए से फुट रही है ज़रा सा ठहर और गौर से देख इस हाद मास के शरीर में कौन सी सुंदरता है जो मरे जा रहे हो ?

“ओशो”