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सीरिया में बशर अल-असद के पतन में अर्दोआन सबसे बड़े विजेता के रूप में उभरे हैं : रिपोर्ट

तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने इसी साल सात जुलाई को कहा था कि वह सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद को बातचीत के लिए न्योता भेजेंगे.

अर्दोआन ने कहा था, वह चाहते हैं कि सीरिया के साथ तुर्की का अतीत में जैसा संबंध था, फिर से वैसा ही हो.

अर्दोआन के बयान के एक हफ़्ते बाद ही बशर अल-असद ने कहा था कि वह अर्दोआन से तभी मिलेंगे, जब अहम मुद्दों पर ठोस बातचीत होगी.

असद ने कहा था, ”मुद्दा मिलने का नहीं है. मुद्दा यह है कि क्या तुर्की आतंकवाद का समर्थन बंद करेगा? क्या तुर्की सीरिया की ज़मीन से अपने सैनिकों को वापस बुलाएगा?”

जो अर्दोआन बशर अल-असद को बातचीत के लिए तुर्की बुलाना चाहते थे, वही अर्दोआन क़रीब चार महीने बाद उस बैठक से उठकर चले गए, जिसे बशर अल-असद संबोधित करने वाले थे.

सऊदी अरब की राजधानी रियाद में पिछले महीने इस्लामी देशों का सम्मेलन था. इसमें शरीक होने सीरिया के तत्कालीन राष्ट्रपति बशर अल-असद और तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन भी गए थे.

इस सम्मेलन में जब अरब लीग और ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को-ऑपरेशन (ओआईसी) की संयुक्त बैठक में सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद बोलने के लिए उठे, तो तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन की कुर्सी पर उनकी जगह उनका प्रतिनिधि था.

अर्दोआन की जीत?

शायद अर्दोआन को पता था कि बशर अल-असद अब अतीत बनने वाले हैं.

जब बशर अल-असद सीरिया छोड़कर रूस चले गए, तो अर्दोआन ने कहा, ”दुनिया भर में केवल दो नेता बचे हैं. मैं और पुतिन. मैं पिछले 22 सालों से सत्ता में हूँ. पुतिन भी लगभग इतने ही साल से सत्ता में हैं. बाक़ी नेता या तो ख़त्म कर दिए गए या सत्ता से बाहर हो गए.”

अर्दोआन जब ऐसा कह रहे थे, तो उनके मन में ये बात ज़रूर रही होगी कि असद को पुतिन और ईरान का समर्थन था, तब भी तुर्की उन पर बीस साबित हुआ.

कुछ जानकार कह रहे हैं कि सीरिया में बशर अल-असद के पतन में अर्दोआन सबसे बड़े विजेता के रूप में उभरे हैं.

अर्दोआन पिछले एक दशक से ज़्यादा समय से सीरिया में हथियारबंद विपक्ष को समर्थन दे रहे थे.

लेकिन यह बात भी कही जा रही है कि जिस इस्लामी समूह ‘ हयात तहरीर अल-शम’ के नेतृत्व में बशर अल-असद को बेदख़ल किया गया, उसके साथ तुर्की के संबंध भी जटिलताओं से भरे हैं.

इसके बावजूद ज़्यादातर विश्लेषक बशर अल-असद की बेदख़ली को राजनीतिक और आर्थिक रूप से अर्दोआन के हक़ में मान रहे हैं.

ब्रिटिश अख़बार फ़ाइनैंशियल टाइम्स से थिंक टैंक अटलांटिक काउंसिल के सीनियर फेलो उमर ओज़किज़िल्कि ने कहा, ”सीरिया के लोगों के बाद तुर्की यहाँ सबसे बड़ा विजेता है. सीरिया के लोगों को जब सभी ने उनकी किस्मत पर छोड़ दिया था, तब तुर्की ने उनका समर्थन किया.”

तुर्की के लिए मौक़ा
2011 में जब ‘अरब स्प्रिंग’ शुरू हुआ, तो तुर्की के लिए यह एक मौक़ा था. अर्दोआन ने सीरिया के 30 लाख से ज़्यादा शरणार्थियों का स्वागत किया.

तुर्की ने असद के विरोधियों को सैन्य सामग्री और ट्रेनिंग दी. लेकिन असद के साथ ईरान और रूस खड़े थे.

जब अर्दोआन असद से बातचीत की पेशकश कर रहे थे, तब भी सीरियाई विद्रोहियों का समर्थन बंद नहीं किया था.

सीरिया से असद के जाने के बाद अर्दोआन की उम्मीद बढ़ी है कि तुर्की में रह रहे 30 लाख से ज़्यादा सीरियाई नागरिकों को वापस भेजा जाएगा.

तुर्की में सीरिया के लाखों लोगों की मौजूदगी से अर्दोआन के समर्थक भी ख़ुश नहीं रहते थे.

सीरिया में जब विद्रोहियों ने अलेप्पो पर क़ब्ज़ा किया तो तुर्की के गृह मंत्री अली यर्लिकाया ने कहा था कि तुर्की में रह रहे 13 लाख सीरियाई शरणार्थी अलेप्पो के हैं और इनमें से ज़्यादातर लोग वापस जाने की ख़ुशी छुपा नहीं पा रहे हैं.

तुर्की पहले से ही महंगाई और मंदी से जूझ रहा है. ऐसे में तुर्की बशर अल-असद के जाने से सीरिया से लगी 900 किलोमीटर सीमा पर कारोबार फिर से बहाल कर पाएगा.

असद के जाने से अर्दोआन के संबंध रूस और पुतिन के साथ भी बदलेंगे. पुतिन सीरिया में असद का समर्थन करते थे. लेकिन हयात तहरीर अल-शम पर तुर्की का कभी नियंत्रण नहीं रहा है.

जब इदलिब पर एचटीएस ने नियंत्रण किया, तो बाहर की दुनिया से संपर्क के लिए तुर्की मुख्य मार्ग था.

इसी का फ़ायदा तुर्की को भी मिला. अभी तक स्पष्ट नहीं है कि एचटीएस के नेता अबू मोहम्मद अल जुलानी पर तुर्की का कितना प्रभाव रहेगा. अब जुलानी और उनके सहयोगियों के नियंत्रण में ही पूरा सीरिया है.

सीरिया में शांति और स्थिरता की बहाली अभी दूर की कौड़ी लग रही है. इस बात की आशंका है कि कहीं फिर से संघर्ष ना शुरू हो जाए.

ऐसे में एक बार फिर से तुकी में सीरियाई शरणार्थियों की बाढ़ आ सकती है

तुर्की की जटिलताएं बढ़ेंगी?
इल्हान उज़ेल अंकारा यूनिवर्सिटी में राजनीतिक विज्ञान के प्रोफ़ेसर रहे हैं और तुर्की की विपक्षी पार्टी सीएचपी के नेता हैं. उनका डर है कि अर्दोआन ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि सरहद पर एक नए अफ़ग़ानिस्तान का उभार हो सकता है.

कई विश्लेषक यह भी मानते हैं कि तुर्की अब भी उस सोच से बाहर नहीं निकल पाया है कि सीरिया ऑटोमन साम्राज्य का हिस्सा था.

दूसरी तरफ़ एचटीएस के लीडर जुलानी ने कहा है कि सीरिया में अब कोई भी विदेशी हस्तक्षेप स्वीकार नहीं किया जाएगा. सबसे बड़ा सवाल है कि भविष्य की सरकार में सीरिया के कुर्दों की क्या भूमिका होगी?

अगर कुर्दो को नई सरकार में स्वायत्तता मिलती है तो उत्तर-पूर्वी सीरिया में इनका दबदबा बढ़ेगा.

सीरिया में नई सरकार से हथियारबंद कुर्द समूहों की बातचीत होती है तो तुर्की के लिए स्थिति और मुश्किल होगी. सीरिया के हथियारबंद कुर्द समूहों का संबंध कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी से रहा है और तुर्की ने इसे आतंकवादी संगठन घोषित कर रखा है.

तुर्की के विदेश मंत्री हकान फ़िदान ने रविवार को कहा कि जो भी समूह सीरिया में कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी से जुड़ा है, उसके साथ सीरिया की भावी सरकार की कोई बातचीत नहीं होनी चाहिए.

अमेरिका कुर्दों का समर्थन करता रहा है. कुर्दों को लेकर अमेरिका का क्या रुख़ होगा, ये भी स्पष्ट नहीं है. अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शनिवार को कहा था कि सीरिया में जारी जंग अमेरिका की जंग नहीं है.

ऐसे में यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि अर्दोआन विजेता बनकर उभरे हैं. सीरिया में बशर अल-असद के जाने के बाद भी वहाँ की स्थिति पर अभी किसी का भी नियंत्रण नहीं है.

अर्दोआन के लिए मुश्किलें तुर्की के भीतर भी हैं. अर्दोआन को तुर्की का संविधान 2028 में फिर से चुनाव लड़ने की इजाज़त नहीं देता है. संसद में प्रचंड बहुमत के दम पर ही अर्दोआन तुर्की के संविधान को बदल सकते हैं.

सत्ता में बने रहने के लिए उन्हें कुर्द समर्थित पार्टी के समर्थन की ज़रूरत होगी. अर्दोआन ने हाल ही में कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (पीकेके) के जेल में बंद नेता अब्दुल्लाह ओक्लान से बातचीत शुरू की थी.

सीरिया से असद की बेदख़ली को कई मामलों में तुर्की के पक्ष में देखा जा रहा है लेकिन कई चुनौतियां भी हैं.

अमेरिकी पत्रिका फॉरन पॉलिसी के स्तंभकार स्टीवन कुक ने लिखा है, ”तुर्की के लिए सीरिया में पहली समस्या तो उसके साझेदार ही हैं- एचटीएस और एसएनए (सीरिया नेशनल आर्मी). दोनों विद्रोही समूहों का अतीत परेशान करने वाला रहा है. एचटीएस की जड़ें अल-क़ायदा और इस्लामिक स्टेट से जुड़ी हैं. अल-क़ायदा और एचटीएस के संबंध तो सभी जानते हैं लेकिन इस्लामिक स्टेट से इसका जुड़ाव बहुत सार्वजनिक नहीं रहा है.”

स्टीवन कुक ने लिखा है, ”अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसियों के मुताबिक़ अल-नुसरा फ़्रंट को खड़ा करने में इस्लामिक स्टेट का बड़ा योगदान रहा है और एचटीएस नेता अबू मोहम्मद अल-जुलानी अल-नुसरा का नेतृत्व कर चुके हैं. अल-नुसरा फ्रंट और इस्लामिक स्टेट से जुलानी ने ख़ुद को अलग वैचारिक मतभेदों के कारण नहीं किया था बल्कि इस्लामिक स्टेट के अबू बक्र अल-बग़दादी चाहते थे कि अल-नुसरा का इस्लामिक स्टेट में विलय हो जाए. ऐसे में जुलानी की स्वयत्तता प्रभावित होती. जुलानी ने एचटीएस को इस्लामिक स्टेट से अलग दिखाने की कोशिश की इसके बावजूद अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र, ईयू और तुर्की ने एचटीएस को आतंकवादी संगठन घोषित करके रखा था.”

लेकिन पुतिन पर अर्दोआन के भारी पड़ने को उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है. कहा जा रहा है कि हाल के वर्षों में रूस और तुर्की अपने प्रॉक्सी के ज़रिए एक दूसरे के ख़िलाफ़ तीन युद्ध में शामिल हुए और तुर्की 3-0 से जीतने में कामयाब रहा है. ये तीन युद्ध हैं- लीबिया, कारबाख़ और सीरिया.

रूस मामलों के विश्वलेषक करीम हस ने अपने एक इंटरव्यू में कहा है कि तुर्की अब सीरिया के ज़्यादा से ज़्यादा इलाक़ों को कंट्रोल करना चाहेगा लेकिन सीरिया में कुर्दों की स्थिति भी मज़बूत होगी.

करीम हस कहते हैं, ”अर्दोआन की सबसे बड़ी चुनौती है कि 2028 के चुनाव में तुर्की का संविधान उन्हें चुनाव लड़ने की इजाज़त नहीं देता है. अर्दोआन संविधान बदलने के लिए अब्दुल्लाह ओक्लान को जेल से रिहा कर सकते हैं. अर्दोआन को कुर्दों के समर्थन की ज़रूरत पड़ेगी और इसका असर सीरिया में भी पड़ेगा. संभव है कि पीकेके हथियार डाल दे और कुर्द विद्रोहियों की साथ शांति प्रक्रिया किसी मुकाम तक पहुँचे.”