साहित्य

अपनी प्लेट में दो तरह की आइसक्रीम का मज़ा लेती सुनीता ने अपने देवर…

Madhu Singh
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अपनी प्लेट में दो तरह की आइसक्रीम का मज़ा लेती सुनीता ने अपने देवर विनोद को कहा, “क्या देवर जी तीसरी बेटी होने पे कौन पार्टी देता है? अब तो दहेज़ के पैसे जुटाना शुरू कर दो।”
अपनी भाभी के प्लेट को देख हँसते हुए विनोद ने कहा, अरे भाभी ! “आप क्यूँ चिंता करती है घर में ख़ुशी आयी थी तो सबके साथ बाँट लिया और फिर बेटियां तो अपना भाग्य ले कर आती है।”
अपने देवर की बात सुन सुनीता मुस्कुरा के रह गई…जबकि असल में दिल खुशी से झूम रहा था देवर के घर तीसरी बेटी का जन्म जो हुआ था। खुद सुनीता के दो बेटे थे और इस बात का खूब घमंड रखती।
दो तीन दिन में सारे मेहमान चले गए। अब घर पे थे तो विनोद रूचि और तीनों बेटियां मानवी, अंकिता और तीसरी बेटी जिसका नाम सबने प्रीति रखा।
समय अपनी रफ़्तार से चल रहा था बच्चियों एक से बढ़ कर एक थी चाहे पढ़ाई हो या घर में माँ की मदद करना। घर की दीवारें बेटियों की बनायीं खूबसूरत पेंटिंग से सजती और अलमारियां उनके जीते मैडल और ट्रॉफी से, तीनों बेटियों की किलकारी और हँसी से विनोद और रूचि का घर गुलजार रहता।
सुनीता कोई मौका नहीं छोड़ती रूचि को एहसास दिलाने का की वो बेटियों की माँ है।
“देख रूचि चाहे जितने इनाम जीत ले ये लड़कियाँ पर दहेज़ तो फिर भी लगेगा जोड़ना शुरू किया की नहीं।”
रूचि अपनी जेठानी के बातों से जब घबरा जाती तब विनोद समझाता…।
“बेटियां अपना भाग्य ले कर आयी है रूचि, हमें तो बस उन्हें सही राह दिखानी है फिर देखना किसी बेटे वालों से कम सुख हमें नहीं देंगी हमारी ये तीनों बेटियां।”
“जब कोई पूछता क्या विनोद जी कब तक किराये के मकान में रहेंगे अपना घर नहीं बनवाना क्या…..”?
“हॅंस कर विनोद कहता जब मेरी बच्चियाँ कुछ बन जायेंगी तो समझो मेरा मकान भी बन जायेगा फिलहाल तो मुझे मेरी बच्चियों का भविष्य बनाना है।”
समय अपनी गति से बढ़ता गया रूचि और विनोद की तपस्या रंग लाई.. मानवी की बैंक में नौकरी लग गई, अंकिता सीए कर जॉब में आ गई और प्रीति इंजीनियरिंग कर दिल्ली में जॉब करने लगी।
“बड़ी मम्मी, कल माँ पापा की एनिवर्सरी की एक छोटी सी पार्टी रखी है आप सब समय से आ जाना।” मानवी ने अपनी बड़ी मम्मी सुनीता को फ़ोन कर पार्टी का इनविटेशन दे दिया।
सारी तैयारियां तीनों बहनों ने बहुत मन से की थी शहर के सबसे अच्छे होटल में पार्टी हॉल बुक था। खाने की मेनू में सारी चीज़े चुन चुन कर तीनों ने रखा था और माँ पापा का गिफ्ट वो तो एक सरप्राइज था सबके लिये….”
पार्टी वाले दिन सुबह सुबह प्रीति भी दिल्ली से आ गई प्रीति के आते ही घर में एक रौनक सी आ गई।
“ये क्या माँ? बालों में कैसी सफेदी सी आ रही है ऐसे जाओगी क्या पार्टी में..।”
प्रीति ने कहा तो रूचि ने हँसते हुए कहा मुझे कौन देखने वाला वहाँ अब तो तुम बच्चों के दिन है। नहीं माँ, अभी चलो पार्लर और प्रीति अपनी माँ को ले पार्लर चली गई। हल्के मेकअप और सुन्दर सी साड़ी में अपनी माँ को सजा संवार दिया प्रीति ने। विनोद के लिये एक शानदार सूट तैयार था। सूट को देख आंखें झलक उठी विनोद की….। शाम होते है सब तैयार हो हॉल की ओर निकल पड़े।
मेहमानों से हॉल भर गया सबकी बधाइयाँ स्वीकार कर रूचि और विनोद ने एक दूसरे को माला पहनाया और केक काट एक दूसरे को खिलाया।
सब विनोद और रूचि के भाग्य को सराह रहे थे सुनीता भी आयी थी पार्टी में अपने पति और दोनों बेटों के साथ। पार्टी की भव्य तैयारी देख सुनीता जलन से भर उठी। आज अहसास हो रहा था की देवर की बेटियां हो कर भी जो सुख ये लड़कियाँ अपने माता पिता को दे रही थी वो उसके लाडलों ने ना कभी दी थी और ना ही कभी देते।
तभी प्रीति ने माइक ले अनाउंस किया.. “” नमस्कार सभी को आप सब हमारे बुलाने पे आये आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया। अब समय है मेरे पापा माँ के गिफ्ट का जो हम तीनों बहनो ने अपने माँ पापा को दिया है लेकिन इसके लिये बाहर लॉन में चले सब।
ये क्या है प्रीति? जब विनोद ने धीरे से प्रीति से पूछा तो हँसते हुए मानवी ने कहा आप बस चले पापा और खुद देख ले.. तीनों बहनें आँखों ही आँखों में इशारे कर हॅंस रही थी। सारे मेहमान कौतुहल से बाहर आये, लॉन में एक चमचमाती नई कार खड़ी थी सारे मेहमान तालियां बजाने लगे, वाह भाई वाह बेटियां हो तो ऐसी।
“पापा अब आपके स्कूटर का मज़ा तो ये नहीं दे सकती पर अब हम सब एक साथ स्कूटर पे बैठ भी तो नहीं सकते इसलिए आज से इसकी सवारी होगी।” सारे मेहमान अंकिता की बात सुन हॅंस पड़े।
रूचि और विनोद के आँखों में खुशी के आंसू थे और सिर गर्व से ऊंचा सब ने खूब बधाई दी और पार्टी का लुत्फ उठाया ।
सुनीता भी गई बधाई देने, ‘बधाई हो देवर जी बेटियों ने नई गाड़ी दी और क्या चाहिए।”
“सच कहा भाभी और क्या चाहिए मुझे जब ऐसे बच्चे हो तो। मैंने कहा था ना बेटियां खुद अपना भाग्य बनाती है यहाँ तो इन तीनों ने मेरा भाग्य भी बदल दिया, देखिये तो कैसे मुझे स्कूटर से उठा कार में बिठा दिया।”
अपने देवर की बात सुन सुनीता ने अपने नालायक जवान बेटों को देखा जो आइसक्रीम के मज़े लेने में व्यस्त थे … आज बेटों की माँ होने का दंभ टूट गया था सुनीता का।
* बेटियां किसी बेटे से कम नहीं होती बस थोड़ा प्यार ओर साथ हो तो बेटियां वो कर जाती है जो कई बेटे वालो के भाग्य में भी नहीं होता।