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बाबरी मस्जिद का इतिहास हिन्दू मुस्लिम भाईचारे का इतिहास था जिसे विध्वंस में जलाकर ख़ाक़ कर दिया गया!

Awesh Tiwari
@awesh29
क्या आप जानते हैं 1857 के विद्रोह से पूर्व मुसलमान और हिन्दू पूर्व बाबरी परिसर में एक साथ उपासना करते थे? बाबरी का इतिहास दरअसल हिन्दू मुस्लिम भाईचारे का इतिहास था जिसे विध्वंस में जलाकर खाक कर दिया गया था।

यह बात भक्तों को नही पता होगी और उन्हें बताई भी नही जाएगी कि अयोध्या के मौजूदा स्वरूप के विकास में अवध के नवाबों का बड़ा योगदान रहा है। 18 वीं शताब्दी में पहली बार अयोध्या एक महत्वपूर्ण तीर्थ के रूप में उभर कर सामने आया।भक्तों को यह जानकारी जरूर होनी चाहिए कि नवाब सफदरजंग के दीवान राजा नवल राय ने बहुत से मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया तथा नए मंदिर बनवाए।

जो हनुमानगढ़ी है दरअसल नबाब सफदरजंग द्वारा ही उसके लिए जमीन दी गई थी। जबकि हनुमानगढ़ी का निर्माण नवाब आसफुदौला के दीवान टिकैत राय ने कराया। किसी विहिप या भाजपा में नही।

पीटर वान डेर वियर नाम के इतिहासकार बताते हैं कि नवाब के दरबारी मुस्लिम अधिकारी हिंदू पुजारी भाइयों को धार्मिक अनुष्ठानों के लिए भेंट देते रहते थे, जिससे अयोध्या में पूजा पाठ सुचारू रूप से चले।

पीटर वान डेर बीयर माइकल फिशर और जेआर आई कॉल ने समकालीन साक्ष्यों का विवेचन करके यह सिद्ध कर दिया है कि किस तरह नवाब वाजिद अली शाह की ताकत में आई कमी और अंग्रेजों की बढ़ती ताकत ने अयोध्या के विवाद को जन्म दिया।अगर नवाब वाजिद अली शाह की ताकत कम ना हुई होती तो शायद अयोध्या का कोई विवाद नहीं होता।

Preeti Chobey
@preeti_chobey
सर कुछ अंधभक्त और ऊंच नीच पाति के लोगों मे यह समझ नहीं आएगा उनका काम सुबह से शाम तक आपस मे सिर्फ ज़हर घोलने के सिवा कुछ आता ही नहीं!देश किस दिशा मे जा रहा किसी को नहीं पड़ी इंसानियत मरती जा रही किसी को फर्क नहीं मंदिर मस्जिद ऊँची जाति हिन्दू ब्राह्मण बस इसी मे लगे रहो!नफ़रत नफरत

VOICE OF HUMANITY
@zai84na
प्रश्न ये नहीं आवेश जी की नवाब होते तो क्या होता सवाल ये है कि इतिहास ने उसको वहशी बनते देखता जो पड़ोसी थे जो इंसान के रूप में जाने जाते थे ,एक पूरे सिस्टम को इस बाबरी के बहाने से संघी बना दिया गया कट्टर कर दिया गया ,वह जॉम्बीज जिसका काम है हिन्दू मुस्लिम बाद को बढ़ावा देना ,इंसानियत के कत्ल पर अट्टहास करना!! मजे से नाचते नाचते किसी का धर किसी का सर हटा देना ,क्या लगता है?? क्या भारत अपना गौरव वापस ला पाएगा एक साथ पूजा और नमाज कर पाएगा!!
काश सरकारों ने सख्ती दिखाई होती केंद्र की तो आज यह नहीं होता भूल तो कांग्रेस ने बहुत की काश राहुल सुधारे यह आशा मात्र है विश्वास नहीं क्योंकि नेताओं का बदलना गिरगिट से ज्यादा है!!

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Kranti Kumar
@KraantiKumar
1991 में प्लेसेस ऑफ़ वर्शिप एक्ट में पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता.

इस एक्ट को 23 सालों तक किसी भी जज ने छेड़छाड़ नही की.

लेकिन डी.वाई चंद्रचूड़ ने की एक टिप्पणी ने धार्मिक स्थलों के जांच की मांग का रास्ता खोलकर वरशिप एक्ट 1991 कानून को कमजोर कर दिया.

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1990’s में डी.वाई चंद्रचूड़ अमेरिका में पढ़कर और नौकरी कर भारत आते हैं.

स्थापित वरिष्ठ वकीलों की मदद और सहायता से बॉम्बे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं.

1998 में अचानक उन्हें 38 साल की उम्र में सीनियर एडवोकेट बना दिया जाता. उसी साल उन्हें सॉलिसिटर जनरल भी बना दिया जाता है.

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2000 में बिना किसी परीक्षा और इंटरव्यू के उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट में जज बना दिया गया.

2013 में इलाहाबाद हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस बने.

2016 में कोलेजियम उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बनाती है.

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2022 में ये आदमी सुप्रीम कोर्ट का चीफ जस्टिस बनते हैं.

इस आदमी ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीतिक के लिए जरूर कानून, बंद पिटारे से खोल कर BJP को लाभ पहुंचाया.

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3 अगस्त 2023 को डी.वाई चंद्रचूड़ ने वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर में ASI द्वारा वैज्ञानिक सर्वेक्षण की इस तर्क पर अनुमति दी थी,

कि “1991” के अधिनियम की धारा 3 पूजा स्थल की धार्मिक प्रकृति का पता लगाने से मना नहीं करती.

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चंद्रचूड़ के इस टिप्पणी के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दिसंबर 2023 में मथुरा के शाही ईदगाह परिसर में सर्वेक्षण की अनुमति दी. इसी तरह मध्य प्रदेश के भोजशाला में भी सर्वे को लेकर विवाद बढ़ा.

अब संभाल की शाही मस्जिद और अजमेर शरीफ दरगाह की भी जांच की मांग की जा रही है.

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BJP और RSS खुद आगे नही आते. वे अपनी विचारधारा के वकील द्वारा निचली अदालतों में मस्जिदों को मध्यकालीन पूजा स्थल होने का दावा करने वाली याचिका दायर करते हैं.

मंदिर मस्जिद विवाद में आम इंसान मूर्ख बनता है. जज, वकील और नेताओं के बच्चे तो पढ़ लिख रहे हैं, व्यापार कर रहे हैं.