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समोसा कथा अनन्ता !

इश्क बनारस
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समोसे अनन्त
समोसा कथा अनन्ता !
समोसे किसे पसन्द नहीं हैं!

आजकल की जेनरेशन चाउमिन मोमोज के बीच समोसों का स्वाद भूलती जा रही है!

हमारे स्कूल में जब 5मिनट का ब्रेक मिलता था तो सबसे पहले हम “चाचा” के समोसे खाने भागते थे! एक टोकरी में अखबार से ढककर समोसे रखे होते थे! 50 पैसे का समोसा होता था और हमारे पास कभी एक तो कभी दो रुपए होते थे !और चार चार समोसे तक खा लिया करते थे!
उस समय चाउमिन मोमो का तो नामोनिशान तक नहीं था! फिर स्कूल से निकलकर कॉलेज पहुंचे तो समोसे के साथ ब्रेड पकौड़ा और भटूरे भी जुड़ गए!

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आलू की सब्जी के साथ कचौड़ी और रायता का स्वाद भी कॉलेज समय में काशी में मिलता था! शायद 5 रू की चार मिलती थी। शहर की लगभग हर दुकान में समोसे बिलकुल फोटो की तरह एक समान सिंके हुए और करारे होते थे! तब शायद 8 या 10 रू का होता था!
उसके बाद समोसे तो हर जगह हर शहर में खाए लेकिन वो स्वाद और करारापन गायब होता रहा! चटनी के अलावा अब समोसे छोले और दही के साथ भी मिलने लगे थे! लखनऊ में तो बूंदी के रायते के साथ समोसा परोसा जाता है!

बिहार और पूर्वांचल से शुरू हुआ छोटी-छोटी समोसियों का चलन अब पूरे भारत में आ चुका है!
अभी देहरादून में एक कार्यक्रम में गया था तो एक आउटलेट पर यह छोटी-छोटी समोसियां दिखाई दी!
₹5 की एक! मैंने तुरंत 35 समोसे ले लिए लेकिन जब कार्यक्रम में पहुंचा तो देखा कि वहां यह फोटो में दिखाए गए समोसे बन रहे थे !
समोसे गजब के थे ! अब तो मैं खाने से पहले देख कर ही बता सकता हूं कि समोसे कैसे होंगे!

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पता किया तो पता चला कि यह बिजनौर के कारीगरों द्वारा बनाए गए हैं! तो मैंने चुपचाप अपने समोसियाँ वापस गाड़ी में रखें और घर आकर सबको चार चार देकर निबटाए !

बहुत दिनों के बाद इतना बढ़िया समोसा खाने को मिला तो मैं एक साथ दो समोसे बहुत समय बाद खाए ,नहीं तो केवल आधा समोसा ही खाया जाता था!

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वैसे आजकल भी हर शहर में कोई न कोई समोसे वाला प्रसिद्ध होता ही है!

जब मैं उड़ीसा गया था तो वहां इसे सिंघाड़ा नाम से बुलाया जाता है बंगाल में भी इसे सिंघाड़ा ही कहा जाता है!

हमारे काशी, बनारस में रेलवे स्टेशन के बाहर सुबह 6:00 बजे से गरमा गरम समोसे बनने तैयार हो जाते हैं जाऊ या दव की दुकान पर समोसे के साथ जो चटनी खाई वह बेमिसाल थी!

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अयोध्या में सूरज मिश्रा भाई ने श्री राम के समोसे खिलाने के लिए बड़ी दूर से ट्रेन पर ही पहुंच गए थे और गरमा गरम समोसे स्वादिष्ट चटनी के साथ खिलाए थे!!

वैसे समोसे का इतिहास मुगलकालीन है मुगल खानसामे इसमें आलू की जगह कीमां भरकर बनाते थे!

अब तो नई पीढ़ी को आकर्षित करने के लिए समोसे के साथ भयंकर प्रयोग किया जा रहे हैं आलू की जगह कभी नूडल्स चॉकलेट चिली पनीर आदि भरकर बनाए जा रहे हैं!

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लेकिन जो स्वाद आलू मटर के समोसे में है वह किसी में नहीं है!

भारत में समोसा तलकर बनाया जाता है जबकि यूरोप में आलू भरकर इसको पेटीज या पफ के रूप में खाया जाता है!

एयरपोर्ट पर तो इस समोसे की कीमत डेढ़ सौ रुपए तक और पफ की कीमत ₹250 तक मिलेगी!

खैर, समोसे के बारे में जितना लिखो उतना ही कम है! हां मेहमानों की आव भगत भी समोसे के बिना पूरी नहीं मानी जाती!

अब कल ही नजदीकी दुकान से समोसा मंगाए और खाएं और खिलाएं!