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ज़िंदगी कभी बहार तो कभी ख़ार लगती है……परवेज़
ज़िंदगी कभी बहार तो कभी ख़ार लगती है कभी मेहबूब को तभी दग़ाबाज़ लगती है पल-पल बदलते रहते हैं रग-व-रूप कभी दिलकश तो कभी गमख्वार लगती है कभी गुल तो कभी गुज़जार लगती है कभी सहरा तो कभी पहाड़ लगती है कभी दिल तो कभी प्यार लगती है कभी उलफ़त तो कभी तक़रार लगती है […]
*ये शर्मिंदा होने का नया दौर है*….उन्होंने नग्नता को सदा बनाया अपना अचूक अस्त्र—डॉ. शैलजा दुबे
डॉ. शैलजा दुबे ============== * ये शर्मिंदा होने का नया दौर है * उन्होंने नग्नता को सदा बनाया अपना अचूक अस्त्र और वे हथेलियों को बनाती रहीं वस्त्र ढकती रहीं अपने वक्ष या जंघाओं का मध्यस्थल तमाशबीन लोग थोथा थू थू करते लेते रहे नयन सुख क्योंकि स्त्री की नग्नता है सबसे बड़ा सुख स्त्री […]
तीन क़िस्से भूतों के….खाना, कपड़ा, घर की भूतों को ज़रूरत होती नहीं थी, इसलिए उन्हें…!
Kavita Krishnapallavi ============== तीन किस्से भूतों के…. (किस्से तो मेरे पास भूतों के भी बहुत हैं ! अब इस भुतहे माहौल में भूतों से कोई क्या डरेगा भला ! बल्कि भूत आजकल ज्यादा डरे-डरे रहते हैं उनसे जिन्होंने देश को इस क़दर श्मशान बना डाला है कि श्मशान ज्यादा सुकूनतलब जगह लगने लगा है ! […]