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भारत दो हिन्दू देश बनाना चाहता है, ये चटगाँव पर क़ब्ज़ा करना चाहते हैं : भारत को याद रखना चाहिए कि बांग्लादेश के 20 करोड़ लोग सैनिक हैं : तारिक़ रहमान

बांग्लादेश के हाई कोर्ट ने साल 2004 में 21 अगस्त को ग्रेनेड हमले केस में पूर्व प्रधानमंत्री ख़ालिदा ज़िया के बेटे तारिक़ रहमान को बरी कर दिया है.

रविवार को हाई कोर्ट के फ़ैसले के बाद बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के कार्यकारी अध्यक्ष तारिक़ रहमान के लौटने का रास्ता साफ़ हो गया है. रहमान कई वर्षों से लंदन में रह रहे हैं.

तारिक़ रहमान के बरी होने के बाद बीएनपी के वरिष्ठ नेता और ढाका के मेयर रहे मिर्ज़ा अब्बास ने कहा कि तारिक़ रहमान जल्द ही बांग्लादेश लौटेंगे और वे देश की सेवा के लिए तैयार हैं.

बीएनपी के स्टैंडिंग कमिटी के सदस्य मिर्ज़ा अब्बास ने कहा, ”अवामी लीग सरकार में हमारे नेता को इंसाफ़ नहीं मिलता. एक विदेशी ताक़त हमारी नेता बेगम ख़ालिदा ज़िया और हमारी पार्टी के अध्यक्ष तारिक़ रहमान को फँसाकर रखना चाहती थी.”

रविवार को स्वाधीनता फोरम में बोलते हुए मिर्ज़ा अब्बास ने बांग्लादेश की आज़ादी पर भारत की भूमिका पर भी सवाल उठाए.

‘भारत ने बांग्लादेश नहीं बनाया’
मिर्ज़ा अब्बास ने कहा, ”भारत दो हिन्दू देश बनाना चाहता है. ये चटगाँव पर क़ब्ज़ा करना चाहते हैं. हर कोई कहता है कि बांग्लादेश एक छोटा और ग़रीब देश है. लेकिन मैं मानता हूँ कि बांग्लादेश एक उदार और मज़बूत देश है. भारत को याद रखना चाहिए कि हमारे पास छोटी सेना है लेकिन 1971 में हमने बिना ट्रेनिंग के लड़ाई लड़ी थी. बांग्लादेश के 20 करोड़ लोग सैनिक हैं.”

मिर्ज़ा अब्बास ने कहा, ”यहाँ तक कि इसी साल तानाशाह हसीना को हमारे बेटों और बेटियों ने बिना हथियार के सत्ता से हटाया. राहुल गांधी ने कहा था कि भारत ने बांग्लादेश को मुक्त कराया. लेकिन भारत ने बांग्लादेश नहीं बनाया. हमने बांग्लादेश मुक्त कराया. भारत ने तो पाकिस्तान को बाँटा और ये अपने स्वार्थ में किया न कि हमारे स्वार्थ के लिए.”

शेख़ हसीना के सत्ता से बेदख़ल होने के बाद से बीएनपी की ओर से भारत पर हमले बढ़ गए हैं.

बांग्लादेश में बीएनपी नेता ख़ालिदा ज़िया की जब सरकार थी, तब भारत से अच्छे संबंध नहीं थे.

रविवार को बीएनपी के संयुक्त महासचिव रुहुल कबीर रिज़वी ने भी भारत पर निशाना साधते हुए कहा, ”शेख़ हसीना के सत्ता से बाहर होने को भारत पचा नहीं पा रहा है. भारत की सत्ताधारी पार्टी और उसके सहयोगी प्रॉपेगैंडा फैला रहे हैं. भारत का व्यवहार बांग्लादेश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने जैसा है जो कि हमारी संप्रभुता और स्वतंत्रता के ख़िलाफ़ है.”

भारत पर निशाना
रुहुल कबीर ने ये बातें रविवार को ढाका में नयापलटन केंद्रीय कार्यालय में एक प्रेस वार्ता के दौरान कही.

उन्होंने कहा, ”शेख़ हसीना के जाने के बाद बांग्लादेश में हर नस्ल, धर्म और जाति के लोग चैन की सांस ले रहे हैं लेकिन भारत की सरकार का दर्द बढ़ गया है.”

”बांग्लादेश में शेख़ हसीना की तानाशाही से भारत ख़ुश था. अब बांग्लादेश यहां के लोगों के नियंत्रण में है. भारत की सरकार सोचती है कि अगर बांग्लादेश ‘एट्थ सिस्टर’ बन जाता तो उसके सात सिस्टर्स सुरक्षित रहते.”

दरअसल भारत के पूर्वोत्तर के सात राज्यों अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, नगालैंड, मेघालय, मिज़ोरम और त्रिपुरा को सेवन सिस्टर्स कहा जाता है.

भारत के पूर्वोत्तर में लंबे समय से हथियारबंद अतिवाद की समस्या रही है और बांग्लादेश से मदद मिलने के आरोप लगते रहे हैं. रुहुल कबीर इसी का हवाला देकर भारत पर निशाना साध रहे हैं कि बांग्लादेश को भारत ‘एट्थ सिस्टर’ बनाना चाहता है.

क्या था ग्रेनेड हमला?

21 अगस्त, 2004 को शेख़ हसीना की पार्टी अवामी लीग की ढाका के बंगबंधु एवेन्यु में रैली थी. इस रैली को शेख़ हसीना संबोधित कर रही थीं तभी ग्रेनेड से हमला हुआ था. तब शेख़ हसीना नेता प्रतिपक्ष थीं और ख़ालिदा ज़िया की सरकार थी.

कहा जाता है कि इस हमले की निशाना शेख़ हसीना थीं लेकिन उनकी जान किसी तरह बच गई थी. इसमें कम से कम 24 लोगों की जान गई थी, जिनमें अवामी लीग की महिला मामलों की सचिव इवी रहमान भी थीं. इस हमले में 300 लोग ज़ख़्मी हुए थे. घायलों में शेख़ हसीना भी शामिल थीं.

रविवार को हाई कोर्ट ने इस हमले के सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया. इसी साल पाँच अगस्त को शेख़ हसीना के सत्ता से बेदख़ल होने के बाद से बीएनपी के समर्थक और नेता, जो अलग-अलग मामलों में जेलों में बंद थे, वे एक-एक कर रिहा हो रहे हैं.

हाई कोर्ट से बरी होने के बाद तारिक़ रहमान ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर कहा, ”सच्चाई की ख़ूबसूरती यही है कि आख़िरकार प्रॉपेगैंडा और साज़िश पर भारी पड़ती है और अंततः उसी की जीत होती है.”

”अब हमें राजनीतिक प्रतिशोध को छोड़ एकजुट होने की ज़रूरत है और इतिहास के नए पन्ने को खोलने का समय आ गया है, जिसमें किसी की ज़िंदगी राजनीतिक मतभेद के कारण तबाह नहीं होगी. हमलोग संकल्प लें कि लोकतंत्र के साथ धार्मिक और वैचारिक विविधता को मज़बूत करें. बांग्लादेश के लोग चुनावी भागीदारी के ज़रिए अपनी नियति ख़ुद तय करेंगे.”

तारिक़ रहमान ने कहा, ”हम क़ानून के राज, मानवाधिकार, अभिव्यक्ति की आज़ादी के साथ सभी नागरिकों के लिए सहिष्णु और समावेशी व्यवस्था बनाना चाहते हैं.”

आने वाले समय में अगर बांग्लादेश में चुनाव हुए तो बीएनपी के जीतने की संभावना जताई जा रही है.

अवामी लीग को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने चुनावी रेस से बाहर कर दिया है क्योंकि शेख़ हसीना भारत में हैं और शीर्ष का पूरा नेतृत्व जेल में बंद है. ऐसे में बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी ही रेस में बचे बड़े खिलाड़ी होंगे.

अगस्त 2004 में हुए ग्रेनेड हमले के बाद कई विश्लेषकों ने कहा था कि बांग्लादेश की राजनीति हमेशा के लिए पूरी तरह से बदल गई है.

उस वक़्त बांग्लादेश के अंग्रेज़ी अख़बार द बिज़नेस स्टैंडर्ड ने लिखा था, ”यह पूर्वनियोजित बर्बर हमला था, जिसमें शेख़ हसीना समेत अवामी लीग के पूरे नेतृत्व को ख़त्म करने की योजना थी.”

1971 की जंग मुक्ति युद्ध या भारत पाकिस्तान जंग?
1971 की जंग को भारत और पाकिस्तान का युद्ध कहना चाहिए या बांग्लादेश का मुक्ति युद्ध?

पाकिस्तान इसे भारत के साथ जंग कहता है. वो इसे बांग्लादेश का मुक्ति संग्राम नहीं कहता है. भारत की किताबों में भी इसे भारत-पाकिस्तान जंग के रूप में ही देखा जाता है लेकिन भारत को बांग्लादेश का मुक्ति युद्ध कहने में भी कोई आपत्ति नहीं है.

लेकिन इसे लेकर विवाद होता रहा है.

2021 में छह दिसंबर को बांग्लादेश के तत्कालीन विदेश मंत्री डॉ अब्दुल एके मोमेन ने बांग्लादेश के राष्ट्रीय प्रेस क्लब में भारत के साथ राजनयिक रिश्ता कायम होने के 50 साल पूरे होने पर आयोजित एक कार्यक्रम अपनी पार्टी का रुख़ रखा था.

मोमेन ने कहा था, ”पाकिस्तान, बांग्लादेश मुक्ति युद्ध को भारत-पाकिस्तान के बीच का युद्ध दिखाने की कोशिश करता है. लेकिन यह बांग्लादेश का मुक्ति युद्ध था, जिसमें भारत ने केवल मदद की थी. छह दिसंबर को भारत ने बांग्लादेश को एक संप्रभु राष्ट्र के तौर पर मान्यता भी दे दी थी.”

1971 की जंग युद्ध की शुरुआत पाकिस्तान ने वेस्टर्न फ्रंट से की. बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने युद्ध में जाने का फ़ैसला किया था.