साहित्य

स्त्री कभी संतुष्ट नहीं होती …..”जीजा जी आप तैयार नहीं हुए”

स्त्री कभी संतुष्ट नहीं होती ….. स्त्री से प्रेम में अगर आप ये उम्मीद करते हैं कि वो आपसे पूरी तरह खुश है तो आप नादानी में हैं
ये स्त्री के मूल में ही नहीं है अगर आप बहुत ज्यादा केयर करते है तो उससे भी ऊब जाएगी
अगर आप बहुत उग्र हैं तो वो उससे भी बिदक जाएगी
अगर आप बहुत ज्यादा विनम्र हैं तो वो उससे भी चिढ जाएगी
अगर आप उससे बहुत ज्यादा बात करते हैं तो वो आपको टेक इट फौर ग्रांटड लेने लगेगी
अगर आप उससे बहुत कम बात करते हैं तो वो मान लेगी कि आपका चक्कर कहीं और चल रहा है
यानी आप कुछ भी कर लीजिए वो संतुष्ट नहीं हो सकती
ये उसका स्वभाव है वो एक ऐसा डेडली काॅम्बीनेशन खोजती है जो बना ही न हो बन ही न सकता हो
ठीक वैसे ही जैसे कपड़ा खरीदने जाती है तो कहती कि इसी कलर में कोई दूसरा डिजाइन दिखाओ,

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इसी डिजाइन में कोई दूसरा कलर दिखाओ
कपड़े का गट्ठर लगा देती है…
बहुत परिश्रम के बाद एक पसंद आ भी गया, तो भी संतुष्ट नहीं हो सकती…
आखिरी तक सोचती है कि इसमे ये डिजाइन ऐसे होता तो परफैक्ट होता…
इन सबके बावजूद एक बहुत बड़ी खूबी भी है स्त्री के अंदर …
एक बार उसे कुछ पसंद आ गया तो उसे आखिरी दम तक सजो के रखती है वो चाहे रिश्ते हो या चूड़ी
रंग उतर जाएगा चमक खत्म हो जाएगी पर खुद से जुदा नहीं करेगी
बस यही खूबी स्त्री को विशिष्ट बनाती है
स्त्री से प्रेम में अगर आप ये उम्मीद करते हैं कि वो आपसे पूरी तरह खुश है तो आप नादानी में हैं…
ये स्त्री के मूल में ही नहीं है…

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દોસ્તો ની દુનિયા મોજ મસ્તી
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एक जवान औरत का मुख्य काम अपने पति की सभी शारीरिक आवश्यकताओं को पूर्ण करना होता है।

जब मेरी शादी हुई , तो मैं घर की बड़ी बहू बनी। मेरे बाद मेरी दो देवरानियाँ आईं। मैं पढ़ाई में उनसे कम थी और नौकरी भी नहीं करती थी , लेकिन वे दोनों मुझसे अधिक शिक्षित और आधुनिक थीं। मुझे खुशी थी कि घर में दो मॉडर्न देवरानियाँ आने वाली थीं। मैं अपने देवरों से कहती , “आप लोगों के साथ नहीं , पर दोनों देवरानियों के साथ मैं अपने सारे शौक पूरे करूंगी।” यह सुनकर वे शरमा जाते थे।

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शादी के बाद , मैंने देखा कि मेरी देवरानियाँ पढ़ी-लिखी और नौकरीपेशा थीं , लेकिन घर के कामों में वे हाथ बँटाने में रुचि नहीं दिखाती थीं। मेरी सास और मैं उम्मीद करती थीं कि नई बहुएँ घर के काम में थोड़ा हाथ बँटा दें। मैंने कई बार अपनी देवरानी प्रिया से कहा , “प्रिया , मैं और माताजी दिन भर रसोई में रहते हैं। माताजी तुमसे उम्मीद कर रही हैं कि शाम को तुम घर का कुछ काम कर दो।” प्रिया ने उत्तर दिया , “भाभी , दिन भर ऑफिस में काम करने के बाद शरीर में इतनी ऊर्जा नहीं बचती कि घर का काम किया जा सके। और वैसे भी आप तो हैं ही घर में , तो क्या दिक्कत है।”

मैं समझ गई कि नौकरी और घर संभालने में बहुत अंतर होता है। मैं अपने काम में लग गई और हर दिन सुबह उठकर सबका नाश्ता , टिफिन पैक करने में व्यस्त रहती।

फिर 2021 में कोविड की लहर आई और मेरे पति और देवर दोनों इसकी चपेट में आ गए। उन्हें जिला अस्पताल में भर्ती किया गया। मेरी देवरानी अपने पति को अपने मायके ले गई और वहाँ प्राइवेट डॉक्टर से इलाज कराने लगी। मेरे पति की स्थिति बिगड़ने लगी , जबकि देवर की स्थिति सुधर रही थी। मैंने देवरानी से कहा , “भाभी , जीजाजी को भी इन्हीं डॉक्टर को दिखाते हैं , शायद वे ठीक हो जाएँ।” देवरानी ने उत्तर दिया , “दीदी, डॉक्टर एक दिन का 3000 लेता है , 2000 की दवाइयाँ हैं और 2000 का ऑक्सीजन सिलेंडर। क्या आप ये सब खर्चे देख लेंगी ?”

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यह सुनकर मुझे अहसास हुआ कि मैं ये खर्च कैसे उठाऊँगी। मेरे पास तो आय का कोई स्रोत ही नहीं था। भगवान की कृपा से मेरे पति और देवर दोनों ठीक हो गए और घर वापस आए। देवरानी का ऑफिस भी एक महीने बाद खुल गया। सुबह उठकर उन्होंने मुझसे कहा , “भाभी , आज लंच बना दीजिएगा , ऑफिस खुल गया है।” मैंने जल्दी-जल्दी सब बनाया। जब वे ऑफिस जाने लगीं , तो मुझसे टिफिन माँगा। मैं देने जा रही थी , तभी पिताजी की आवाज़ आई , “सुमन बेटी , रुको।” मैंने पूछा , “क्या हुआ पिताजी ?” उन्होंने कहा , “अगर इन्हें लंच ले जाना है तो ये खुद बनाएँ। कल से ये जल्दी उठें और अपना लंच बनाकर ले जाएँ।”

शाम को जब हम सब खाने पर बैठे , तो पिताजी ने फिर से अपना फैसला सुनाया। मेरे पति ने पूछा , “पिताजी , आप ऐसा क्यों कर रहे हैं ?” पिताजी ने जवाब दिया , “तुम्हारी पत्नी दिन भर काम करती है , सुबह 9 से रात 9 बजे तक। बदले में उसे क्या मिलता है ? कुछ नहीं। छोटी बहू भी काम करती है , 11 से 6 बजे तक , बदले में उसे पैसे मिलते हैं। लेकिन ये पैसे वह सिर्फ अपने और अपने पति पर खर्च करती है। बड़ी बहू को घर के काम के बदले कुछ नहीं मिलता , फिर भी वह निस्वार्थ भाव से सबके लिए खाना बनाती है , लंच पैक करती है। अगर यह सब काम न करे तो मुझे नहीं लगता कि छोटे बेटे और बहू ठीक से पैसे कमा पाएँगे।”

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पिताजी ने आगे कहा , “अगर तुम चाहती हो कि यह तुम्हें खाना दे , तुम्हारी हिस्से की गृहस्थी भी संभाले , तो अपने वेतन का आधा हिस्सा इसे भी दो ताकि कल को ज़रूरत पड़े तो यह किसी के सामने हाथ न फैलाए।”

इस दिन के बाद से देवरानी को बात समझ आई और मुझे आधी तनख्वाह देने लगीं। पिताजी के इस कदम से छोटी बहू संतुष्ट हो गई क्योंकि उसे पता था कि ऑफिस में कुछ भी हो जाए , घर देखने वाला कोई तो है। और मैं संतुष्ट हूँ क्योंकि अब किसी आर्थिक ज़रूरत के लिए मुझे किसी के सामने हाथ फैलाने की ज़रूरत नहीं है।

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Indra pratap
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शादी होती है तो संभोग होना लाज़मी है, एक लड़का शादी करता है तो उसके पीछे मुख्य कारण लड़की का शरीर है, लेकिन अगर गहराई से समझा जाए तो ऐसा नहीं है बात इससे कहीं ज्यादा बड़ी है

मेरी शादी को छह साल हो गए थे। मेरे पति, राकेश, एक साधारण आदमी थे। बैंक में नौकरी करते थे और बस, उनकी दुनिया मेरे और हमारे छोटे से घर तक ही सीमित थी।, न कोई बड़े-बड़े सपने दिखाते थे। उनकी बातें, उनकी आदतें, सब मुझे साधारण लगती थीं। मैं अक्सर सोचती, “काश मेरी शादी किसी और से हुई होती, जो ज्यादा रोमांचक होता, मेरे लिए कुछ अलग करता।”

मेरे करीब तभी आते थे जब उन्हें शारीरिक संतुष्टि चाहिए होती थी और यही से मेरे मन में ये बात घर कर गई कि लडको को सिर्फ इस ही चीज से मतलब है
मुझे कभी उनकी कद्र ही नहीं हुई। छोटी-छोटी बातों पर मैं उन्हें टोक देती। कभी कपड़े सही से नहीं पहने, कभी दाल में नमक ज्यादा डाल दिया, तो कभी बच्चों के होमवर्क में मदद करते-करते थक जाते। मुझे उनकी ये मुझे ये सब कभी अच्छी नहीं लगी।

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मुझे इस बात से नफरत होती थी जब मैं बाहर माडर्न कपड़े पहन कर जाती और वो बोलते बाहर निकलने से पहले ध्यान दिया करो क्या पहनना है क्या नहीं
पर मैं बेपरवाह उनकी बात ध्यान नहीं देती थी

एक दिन राकेश जल्दी उठकर काम के लिए तैयार हो रहे थे। मैंने बिना देखे ही कहा, “ऑफिस के बाद सब्जी ले आना। हर बार भूल जाते हो।” उन्होंने सिर हिलाया और मुस्कुराते हुए बोले, “ठीक है।” वो दरवाजे से बाहर निकले और फिर… वो कभी वापस नहीं आए।

राकेश का ऑफिस जाते वक्त एक सड़क दुर्घटना में निधन हो गया। जब पुलिस की गाड़ी मेरे घर के बाहर रुकी और उन्होंने खबर दी, तो जैसे मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई।

चंद दिनों बाद मुझे पता चला कि राकेश ने हमारे नाम पर बीमा लिया था। एक करोड़ की रकम मेरे खाते में आ गई। रिश्तेदारों ने कहा, “बहुत अच्छा किया राकेश ने। देखो, तुम्हारे और बच्चों का भविष्य सुरक्षित कर दिया।” मैं बस चुपचाप सुनती रही।

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वो एक करोड़ रुपये मेरे सामने थे, लेकिन मेरे पास राकेश नहीं था। मैंने सोचा, इस पैसे से मैं क्या खरीद सकती हूं? उनके चाय बनाने का तरीका? उनका बच्चों के साथ खेलना? वो हर शाम मुझे दफ्तर से फोन कर कहना, “कुछ चाहिए क्या?”

आज राकेश नहीं है, और मैं खुद माडर्न कपड़े नहीं पहनती क्यों की पहले मै बेपरवाह थी क्यों की लोग गंदी नजरों से नहीं देखते थे क्यों की राकेश साथ रहते थे
आज ऐसा करने से पहले 100 बार सोचना पड़ता है

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अब सब कुछ वही था, लेकिन उनके बिना सब अधूरा। जब मैं सुबह उठती, तो उनकी आदत थी चाय बनाकर मेरे पास लाने की। अब चाय का कप खाली था। जब मैं गुस्से में होती, तो वो मजाक करके मेरा मूड हल्का कर देते। अब वो खामोशी थी जो मेरे दिल को हर दिन तोड़ती थी।

मुझे याद आता है, कैसे वो हर महीने सैलरी मिलते ही मेरे लिए चुपचाप मेरी पसंद की साड़ी खरीद लाते थे। मैं शिकायत करती, “जरूरत नहीं थी, पैसे बचाया करो।” और वो कहते, “तुम्हारी मुस्कान के लिए इतना खर्च कर सकता हूं।”

अब मुझे एहसास हुआ कि वो छोटे-छोटे पल ही असली खुशियां थे। वो ‘साधारण’ पल ही मेरी जिंदगी का आधार थे। जिन बातों को मैं नज़रअंदाज़ करती थी, वो ही मेरे जीवन का हिस्सा थीं।

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जीवन का सबक
अब जब मैं अकेली हूं, तो हर पल राकेश को महसूस करती हूं। हर चीज, हर कोना उनकी याद दिलाता है। जो बातें पहले मुझे शिकायतें लगती थीं, आज वही मेरी सबसे कीमती यादें हैं।
पैसे से सब कुछ खरीदा जा सकता है, लेकिन वो जो रिश्ता, जो प्यार, जो अपनापन राकेश ने मुझे दिया, उसे कोई नहीं खरीद सकता। अब मैं समझती हूं कि प्यार दिखावा नहीं, बल्कि छोटी-छोटी चीजों में छुपा होता है।

काश, मैंने उनकी कदर पहले की होती। काश, मैंने उनकी हर छोटी बात को समझा होता। पर अब सिर्फ यही सोचती हूं—उनकी कमी हर पल महसूस होती है।
आज मैं नई लड़कियों की पोस्ट और वीडियो देखती हूं उसपे वो पति की बुराई करती हैं, और ज्यादातर महिलाएं आज अपने पति से संतुष्ट नहीं है और रोज घर में किसी ना किसी बात को लेके क्लेश करती है

बस एक बात बोलूंगी, एक बार आंख बंद कर के देखो और सोचो अगर तुम्हारा पति तुम्हारे साथ ना रहे तो तुम्हारी दुनिया कैसी रहेगी

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દોસ્તો ની દુનિયા મોજ મસ્તી
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“जीजा जी आप तैयार नहीं हुए!”
अपने तरीके से तो मैं तैयार हो ही चुका हूँ। अब इससे ज्यादा मैं कैसे तैयार हो पाऊं। गलती इसकी भी नहीं। ये मेरे ससुराल में मेरी शादी के बाद तीसरी शादी है। और ले देकर मैं यही पुराना कोट पैंट आज तीसरी दफा पहन रहा हूँ। साले साहब तो नए सूट बूट में ये कह कर चल दिये ।पर मैं थोड़ा सोच में पड़ गया। मुझसे छोटे वाले दामाद भी पैसे वाले हैं। उनके पहनावें की तो बात ही कुछ और है।एक झलक देखा उनको अभी। किसी राजकुमार की तरह लग रहे हैं। मैं आईने के पास खड़ा खुद को देख रहा हूँ। इससे अच्छा मुझे आना ही नहीं चाहिए था। रेणुका और बच्चों को ही भेज देता सिर्फ।आखिर मैंने तैयारी भी सिर्फ उन्हीं का किया था। बच्चों के कपड़े और रेणुका की साड़ियां ही इतनी महँगी हो गई कि खुद के लिए बजट ही नहीं जम पाया।तभी फिर से साले साहब आ गए
“जीजा जी! मैं बच्चों को लेकर निकलता हूँ, नए वाले जीजा जी अपनी गाड़ी से मम्मी पापा को लेकर निकल गए हैं, आप भी जल्दी कीजिये, बाकी लोग भी रेड्डी हैं,आप सबको लेकर मैरेज हॉल पहुंचिए। ये रेणुका दी नज़र नहीं आ रही?”

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“हाँ मैं देखता हूँ”
ये रेणुका भी ना! मायके आ जाने के बाद खुद में ही बिजी रहती है। खुद तो एक घंटे पहले ही तैयार हो गई थी। फिर से लगी होगी अपनी बहनों के साथ मेकअप में। झुंझलाहट में उसे ढूंढने नीचे उतर ही रहा था कि दरवाजे के किसी कोने से लग मेरे कोट का बाजू थोड़ा फट गया। अब क्या करूँ मैं?रही सही कसर भी..! मैं वहीं पड़े कुर्सी पर बैठ कुछ सोच ही रहा था कि तेज कदमों से मेरी तरफ ही रेणुका को आते देखा
“कहाँ चली गई थी तुम!कबसे ढूंढ रहा हूँ! यहाँ आते ही तुम्हारे तो तेवर ही बदल जाते हैं! सिर्फ अपना ध्यान है तुम्हें! सारी तैयारियां कर के दे दी तुम्हें फिर भी पता नहीं क्या..?”
मैंने अपनी पूरी झुंझलाहट निकाल दी। पर मन हल्का नहीं हुआ।रेणुका को देख दिल भर आया।उसकी आँखों में आँसू जो उतर आए थें।
“माफ कर दो रेणु! दरअसल ये पुराना कोट भी आज फट गया, झुंझलाहट में समझ नहीं आया..”
मैंने अपनी सफाई देनी चाही पर जुबान साथ नहीं दे रहे थे। मैं गर्दन झुकाए खड़ा था।
“ये पहन लो तुम! और जल्दी चलो सब इंतज़ार कर रहे होंगे” रेणुका के हाथों में मेरे लिए नया कोट पैंट था
“ये कहाँ से?”
“वो अपनी मैचिंग और शृंगार के लिए तुमसे मांगे थे ना वही”
“तो तुम्हारी मैचिंग, पॉर्लर और शृंगार ..?”
“तुम इसे पहन लो तो..मेरी मैचिंग! और थोड़ा हँस दो तो..मेरा शृंगार..!’
उसने इतनी मासूमियत से कहा कि..ना मेरी हँसी रुक रही थी.. और ना ही आँसू..!

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