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#लालमेवा

अनूप नारायण सिंह
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भोजपुरिया इलाके में पपीते को लाल मेवा यु ही नहीं कहा जाता। जो देसी प्रजाति का पपीता होता है उसके अंदर का फल लाल रंग का होता है यूं तो पपीता काफी गुणकारी है इसी कारण से इसे मेवा किस श्रेणी में रखा गया है।बिहार में पपीते की जो देसी नस्ल है वह धीरे-धीरे आप समाप्त होने के कगार पर है पहले हर घर के पिछवाड़े में पपीते का यह पेड़ होता था। फल भले कम लगते थे पर टेस्ट जबरदस्त होता था तोड़ना आसान नहीं होता था पेट की लंबाई बहुत ज्यादा होती थी जिस कारण से बांस के लगी से तोड़ा जाता था।धीरे-धीरे यह नस्ल समाप्त होने लगी और इसकी जगह ताईवानी पपीते में बिहार में अपनी एक मजबूत स्थिति कायम कर ली।

ताइवान वाले पपीते की खासियत या होती है कि इसका पौधा छोटा होता है फल खूब लगते हैं एक पेड़ पर औसतन दो से ढाई क्विंटल तक फल लग जाते हैं साथ ही साथ या 90 दिनों में फल देने लगता है जो अगले दो वर्षों तक कायम रहता है ग्रामीण इलाके में पपीता व्यावसायिक दृष्टिकोण से भी किसानों के लिए काफी फायदेमंद है कच्चे पपीते की बिक्री सब्जी के रूप में पपीते के दूध की बिक्री औषधि के लिए तथा पके हुए पपीते का व्यवसाय फल के रूप में होता है कई सारी कंपनियां

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अब बिहार के किसानों के खेतों को लीज पर लेकर पपीते की खेती को बढ़ावा दे रही है बिहार में पपीते की जितनी खपत है उसका 10 फ़ीसदी भी बिहार में नहीं उत्पादन हो पता है बिहार के असंचित इलाके में पपीते की खेती के लिए सबसे बेहतर आबोहवा है। पपीते की खेती के लिए जल जमा वाले इलाके ठीक नहीं होते पर खेत में नमी होनी चाहिए पपीते के फसल के साथ ही साथ आप हल्दी और अन्य सब्जियों की खेती भी कर सकते हैं पपीते के पत्ते जो जमीन पर गिरते हैं वह वर्मी कंपोस्ट के रूप में काम आ जाते हैं इसकी खेती में लागत नाम मात्र का है जितना खर्च है वह खेत तैयार करने तथा पाठशाला से पौधा लेकर खेतों तक में लगाने तक में है फिर उसकी सुरक्षा का प्रबंध करना है लेबोरेटरी में तैयार किए जाते हैं

वह इस रोग से दूर रहते हैं यानी जो पौधा होगा उसमें फल जरूर लगेगा जबकि देसी प्रजाति में यह समस्या है पपीते का कलर जो देसी प्रजाति है वह लाल होती थी इसलिए उसे लाल मवा का नाम दिया गया अब देसी प्रजाति के पपीते आपको देहाती इलाके में ही कहीं गाहे बगाहे देखने को मिल सकते हैं लोग अब नर्सरी से ताइबानी नस्ल के पपीते के पौधे को लगाते है।

बाजार में कच्चा पपीता 30 से ₹40 किलो की दर पर जबकि पका पपीता 50 से 75 रुपए की दर पर उपलब्ध है पपीते की खासियत होती है कि पकाने के बाद भी जल्दी खराब नहीं होता है अगर इसे आप पेपर में लपेट कर रख दें तो यह एक महीने तक खराब नहीं होता। स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से कच्चा पपीता और पका पपीता दोनों काफी फायदेमंद इसके लिए बाजार तलाशने की जरूरत नहीं है हर जगह इसकी डिमांड है।