साहित्य

बिना किसी से कोई अपेक्षा रखे अपना कर्तव्य पूर्ण करते चले जाइए

Madhu Singh
================
·
मैंने कुछ दिन पूर्व एक लेख पढ़ा। जिसका सार था कि जो मनुष्य परिवार को बिल्कुल भी समय नहीं देते, वे वृद्धावस्था में चाहते हैं कि परिवार उनको पूरा समय दे।

इस पोस्ट पर कई सारे मित्रों ने असहमति दर्ज करवाई। कुछ मित्रों का कहना था कि कोई गारंटी नहीं कि बुढ़ापे में बच्चे देखभाल करेंगे। इसलिए मस्त होकर जियो। यूं भी, बच्चों से अधिक उम्मीद रखनी ही क्यों।

मैं इस विचार से काफी हद तक सहमत हूं कि कल की कोई गारंटी नहीं। यह भी सच है कि बच्चों से फालतू उम्मीद रखनी ही क्यों। लेकिन, यहां यह कहना चाहूंगी कि बच्चे हमारा ध्यान रखेंगे या नहीं, ये तो भविष्य के गर्भ में छिपा है। परंतु, बच्चों का व माता-पिता का ध्यान रखना हमारा कर्तव्य है। यह कर्तव्य हमें बिना फल की इच्छा रखे अवश्य पूरा करना चाहिए।

उस लेख पर कुछ मित्रों ने यह भी टिप्पणी की कि आजकल अधिकतर माता-पिता अपनी पूरी सामर्थ्य अपने बच्चों पर झोंक देते हैं, लेकिन फिर भी बच्चे बुढ़ापे में उनका ध्यान नहीं रखते, उनके साथ नहीं रहना चाहते। जो बच्चे विदेश चले गए, वे तो माता-पिता से मिलने भी नहीं आते।

आज के लेख का मुख्य विमर्श इसी टिप्पणी पर रहेगा।

आज आप सब अपने आसपास देखिए। जो भी लोग अपना पूरा समय अपने बच्चों को दे रहे हैं, वे एक गलती कर रहे हैं। वे अपने माता-पिता को इग्नोर कर रहे हैं। जो लोग गांव से शहर आकर बस गए हैं, वे त्यौहारों पर भी वापस गांव बहुत कम जाते हैं। गांव कम जाने का कारण बताया जाता है- दफ्तर से छुट्टी नहीं मिली/बच्चे के पेपर चल रहे थे/गांव आने-जाने में खर्च बहुत हो जाता है। अब जब बच्चों पर अपनी पूरी सामर्थ्य झोंक देने के चक्कर में माता-पिता को अनदेखा किया गया, फिर कैसे उम्मीद करते हैं कि आपके बच्चे ने आपसे आपका यह व्यवहार नहीं सीखा। बड़ा होकर वो भी अपने बच्चों को समय देगा, माता-पिता को नहीं। उसको भी विदेश से यहां आने में बहुत खर्चा करना पड़ेगा। उसे भी अपने बच्चे के पेपर की तैयारी करवानी होगी। उसको भी वहां अपने काम से इतने दिन की छुट्टियां नहीं मिलती। फिर वो कैसे आए माता-पिता से मिलने।

सच बात यह है कि बच्चे अपने माता-पिता के व्यवहार से अधिक सीखते हैं। जोकुछ उन्होंने अपने बचपन में देखा, उसे ही वे बड़े होकर दोहरा देते हैं।
रही बात बहुओं की, के वे अपने सास-ससुर को फूटी आंख नहीं देखना चाहती। इस बात पर यह जान लीजिए कि अधिकतर मामलों में बहुओं की गलती नहीं होती है। वो आपके अपने बेटे, अपने खून की गलती होती है। ये कार्य केवल और केवल बेटे का होता है कि विवाह के पहले दिन से ही पत्नी व माता-पिता के बीच समन्वय स्थापित करके रखे। न तो माता-पिता को बहु को टॉर्चर करने दे, और न ही पहले ही दिन से उसे इतना सर चढ़ा कर रखे कि उसके समक्ष माता-पिता की बोलती बंद करके रखे। दोनों ही केस में अंत में परिवार बिखरेगा ही।

जिस बहु ने घर में कदम रखते ही केवल ससुराल वालों की तानाशाही झेली होगी, और पति को मूक दर्शक बने देखा होगा, अपना समय आने पर वो क्यों ऐसे ससुरालवालों से मिलना चाहेगी, या उनके साथ रहना चाहेगी।

दूसरी ओर, जिस बहु के अधिकार में ससुराल में प्रवेश करते ही पूरा कंट्रोल आ गया, क्योंकि उसका पति उसके आगे घर के किसी सदस्य को कुछ भी नहीं बोलने देता था, उसके लिए हर हाल में उसकी पत्नी ही सही होती थी, ऐसी बहु को क्यों न तानाशाही करने की आदत पड़ जाएगी। जब कुछ वर्षों पश्चात पति उससे चाहेगा कि वह अपना व्यवहार बदल ले, तब उस पत्नी को कैसे और क्यों समझ आएगा कि इतने वर्षों से चला आ रहा उसका यह व्यवहार अब गलत कैसे हो गया, जो उसको बदलने को कहा जा रहा है। वो किसी भी कीमत पर मिली-मिलाई गद्दी नहीं छोड़ना चाहेगी। उसके बदले भले ही उसे परिवार छोड़ना पड़े। वह लड़-झगड़कर अपने पति को अलग रहने को मना ही लेगी, और भविष्य में भी सास-ससुर के लिए कुछ भी नहीं करना चाहेगी, क्योंकि उसने तो पहले भी कभी उनके लिए कुछ नहीं किया था। उसके अनुसार तो यह परिवार की जिम्मेदारी है कि परिवार के सब सदस्य उसके लिए सबकुछ करें, लेकिन उसकी किसी के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं।

अंत में यही कहूंगी कि परिवार के हर सदस्य को उतना ही महत्व मिलना चाहिए, जितने का वो हकदार है। बच्चों को बच्चों की भांति रखिए, सारी सामर्थ्य उन पर झोंकने के स्थान पर कुछ सामर्थ्य माता-पिता के लिए भी प्रयोग कीजिए। यह पक्की बात है कि बच्चे वैसा ही व्यवहार आपसे करेंगे, जैसा आपने अपने माता-पिता के साथ किया होगा, नाकि वो व्यवहार जो आप उनके साथ करते थे। अतः, बिना किसी से कोई अपेक्षा रखे अपना कर्तव्य पूर्ण करते चले जाइए। बच्चों को समय अवश्य दीजिए, परंतु उस चक्कर में माता-पिता को पूरी तरह मत भूल जाइए। अपने घर की बगिया के हर छोटे-बड़े फूल का ध्यान रखिए🙏