विशेष

पहले सम्भल और अब अजमेर, कोर्ट का यह आदेश संविधान और पूजास्थल अधिनियम का खुला उल्लंघन है, इसके पीछे यह सख़्श ज़िम्मेदार है!

Awesh Tiwari
@awesh29
अजमेर शरीफ दरगाह को मंदिर बताने वाली याचिका को निचली अदालत ने स्वीकार कर लिया है। यह भाजपा शासित प्रदेशों में निचली अदालतें जो खेल कर रही हैं दरअसल इसके पीछे यह शख्स जिम्मेदार है।

पूर्व चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने 2022 में ज्ञानवापी मामले की सुनवाई के दौरान मौखिक टिप्पणी की थी कि पूजा स्थल अधिनियम 15 अगस्त 1947 के पहले बनी किसी संरचना के धार्मिक चरित्र का पता लगाने से नहीं रोकता है।

दरअसल जब चंद्रचूड़ यह देश की सबसे बड़ी न्यायिक कुर्सी पर बैठकर बोल रहे थे तो वो नहीं उनके भीतर बैठा छोटा मोदी बोल रहा था।

पहले सम्भल और अब अजमेर कोर्ट का यह आदेश संविधान और पूजास्थल अधिनियम का खुला उल्लंघन है जो 15 अगस्त 1947 से पहले बनी किसी संरचना की स्थिति को बदलने से रोकता है। अभी 5 जानें गई हैं, निचली अदालत द्वारा कानून के विरुद्ध ऐसा आदेश कैसे दिया जा सकता है?

RANJAN THAKUR
@ranjan9668
पूर्व चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ के ” मौखिक टिप्पणी ” के अनुसार अगर

पूजा स्थल अधिनियम 15 अगस्त 1947 के पहले बनी किसी संरचना के धार्मिक चरित्र का पता लगाने से नहीं रोकता है तो

इसका मतलब यह तो नही कि कोर्ट ,
किसी धार्मिक स्थल के इतिहास जाहिर करने के बहाने ,
हुड़दंग फसाद को जन्म दें ?

Awesh Tiwari
@awesh29
भाई मेरे कैसे पता नहीं रोकता है। जब वह प्रकृति बदलने से रोकता है तो जानकर क्या करोगे?

बाबरी का फैसला भी इस अधिनियम की बिनाह पर गलत है। हालांकि कोर्ट ने हमेशा की शांति के लिए वह फैसला दिया। पांच जजों की बेंच ने उस वक्त भी कहा कि पूजा स्थल अधिनियम संविधान का हिस्सा है। सबसे ऐसे विवाद नहीं होने चाहिए।

Shilpa Patil
@shilpatil07
इससे यही साबित होता है के भारत की सामाजिक और धार्मिक एकता पर निहितार्थ लगाने की पूरी कोशिश की जा रही है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस मामले में न्यायपालिका की भूमिका भी विवादास्पद रही है। निचली अदालत के आदेश को सुप्रीम कोर्ट द्वारा बरकरार रखा जाना एक गंभीर चिंता का विषय है। यह एक खतरनाक उदाहरण है कि कैसे न्यायपालिका की व्याख्या और आदेश समाज में विभाजन और तनाव को बढ़ा सकते हैं।

डिस्क्लेमर : पोस्ट सोशल मीडिया X से प्राप्त हैं, लेखक के निजी विचार हैं, तीसरी जंग का कोई सरोकार नहीं है