साहित्य

”लानत है मुझ जैसे पति पे”

Madhu Singh
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ये उन दिनों की बात है जब रूचि की नई नई शादी विनोद से हुई थी। रूचि और विनोद दोनों ही अपने अपने घरों में सबसे छोटे थे। रूचि के पिता थे नहीं और विनोद के माता पिता की चलती नहीं थी कुल मिला के बस सिंदूर डलवा दोनों परिवार ने अपने अपने फ़र्ज का निपटारा कर दिया था।

अपनी माँ की लाडली थी रूचि, पिता को तो देखा भी नहीं था। जब माँ के पेट में आयी तो पिता ईश्वर के पास चले गए थे। संघर्षो से जूझते और चालक रिश्तेदारों से खुद और अपने बच्चों को बचाते हुए रूचि की माँ ने पाला था अपने चारों बच्चों को।

रूचि छोटी थी सबसे तो लाडली थी माँ की उनके आँचल से बंधी रहती साथ सोना, साथ उठना, खाना पीना। जब रूचि बड़ी हुई तो बड़े भैया ने लड़का ढूंढ रूचि की शादी कर जिम्मेदारी निभा दी बहुत अरमान थे माँ के लेकिन भाभी के होते पूरे नहीं हो पाये थे।

विदा हो आ गई विनोद के साथ एक सुलझे और प्यार करने वाले इंसान थे विनोद छोटी सी नौकरी थी। जल्दी एक बिटिया भी खेलने लगी गोदी में।

विनोद के बड़े भैया अच्छी नौकरी में थे तो अपने घर पे रख लिया रूचि और विनोद को ये कह की फालतू के ख़र्चे में पड़ोगे । विनोद एक और अहसास तले दब गया अपने भाई के, “अब भैया को एक पर्सनल नौकर और भाभी को एक नौकरानी मिल गई थी”।

रूचि अब पूरा दिन रसोई के कामों में निकलता और विनोद का ऑफिस के अलावा बाजार और घर के ऊपरी कामों में। भैया भाभी को अब आराम था भाभी को रसोई में पसीना नहीं बहाना पड़ता और भैया को बाजार के झमेले से छुट्टी मिल गई थी इसके बदले दोनों पति पत्नी को दो टाइम भोजन मिलता था ।

“रूचि सीधी लड़की थी और विनोद अपने भाई के अहसानों से दबा था पढ़ाया लिखाया जो था उन्होंने विनोद को “।

जब भैया भाभी खाते तब ही इन दोनों को खाना मिलता ! ऐसा नियम था भैया का बनाया पहले बड़े फिर छोटे खायेंगे और विनोद एक आज्ञाकारी भाई की तरह चुप रह जाता। ” कितनी बार सब्ज़ी नहीं बचती तो कभी दाल कम पड़ जाती ” ।

“”सुनो, चलो यहाँ से मेरा मन नहीं लगता मैं कम में रह लूंगी””। रूचि जब कहती विनोद से कहती तो संकोची स्वभाव का विनोद सोच में पड़ जाता क्या कहूंगा भैया को और वो क्या सोचेंगे और ये सोच चुप रह जाता। इसी उधेड़बुन में जिंदगी कट रही थी।

रूचि को ऑपरेशन से पिंकी हुई थी और सेवा भी कुछ नहीं हुई थी तो शरीर से कमजोरी गई नहीं थी ऊपर से आधा पेट खाना।

एक रविवार दोनों पति पत्नी ने फल खा लिये और कमरे में बैठ बातें करने लगे कुछ उनके जान पहचान के लोग आये थे। रूचि ने चाय, नमकीन, बिस्किट सब अंदर ही भिजवा दिया था। दिन के ग्यारह बज गए थे, रूचि ने सारा खाना बना लिया था और जेठानी के बेटे बबलू से खाने को ख़बर भिजवाई।

“माँ ! चाची पूछ रही है खाना बन गया है कब खाना है?”

“अरे ! बोल तेरी चाची को सब साथ में खायेंगे रुके थोड़ी देर।” जेठानी ने डांट के बबलू को भागा दिया रूचि दरवाज़े के ओट से सब सुन रही थी ।जेठानी के बच्चों ने खाना पहले ही खा लिया था और जेठ जेठानी ने फलाहार कर लिया था तो रह गए थे सिर्फ रूचि और विनोद।

“भूख से अंतरिया कुलबुला रही थी और दो दिन से थोड़ी हरारत भी थी रूचि को..। जब भूख बर्दास्त नहीं हुई तो रूचि रसोई में गई चुपके से एक कटोरी में थोड़े दाल चावल लिये, चावल के भगोने मे हाथ गीले कर चावल को बराबर कर दिया और वही रसोई के कोने में खड़ी हो जल्दी जल्दी खाने लगी मन में डर भी था कहीं जेठानी आ ना जायेसम्मान पत्नी “।

आँखों से आँसू बहते जा रहे थे पहली बार भूख ने चोरी पे विवश कर दिया था। ” माँ की लाडली रूचि जो माँ कटोरी में दाल चावल ले दिन भर पीछे भागा करती,, तो रूचि एक कौर खाती थी आज वही रूचि चोरी कर दो कौर खाना खा रही थी “।आज माँ बहुत याद आ रही थी। भूख शांत तो नहीं हुई पर थोड़ी झुब्दा शांत हुई। रसोई की खिड़की से विनोद ने सब कुछ देखा। अपनी पत्नी को यू चोरी कर खाते देख शर्म से पानी पानी हो गया और चुपचाप वहाँ से बाहर चला गया।कटोरी जल्दी से धो कर वापस रख रूचि अपने कमरे में आ लेट गई। शाम को विनोद वापस आया देखा तो भैया भाभी ठाट से पलंग पे बैठे टीवी देख रहे थे। रसोई में झांका तो रूचि रोटियाँ बना रही थी।

“भैया, हम दोनों के कारण आपके खर्चे बढ़ गए है, मैं भी ठीक कमा ही ले रहा हूँ तो अब मैं रूचि और पिंकी के साथ ऑफिस के पास एक कमरे के मकान में शिफ्ट हो रहा हूँ।” एक सांस में विनोद ने भैया को कह दिया।

विनोद की बात सुन दोनों पति पत्नी दंग रह गए और अपने आराम में खलल देख भाभी तिलमिला गई। “ये क्या देवर जी, बताया तो होता हमें की अलग होना चाहते हो? इतना पराया कर दिया अरे कोई तकलीफ है तो बताओ “।

“नहीं ऐसी बात नहीं है, अभी मिला है कमरा तो अभी बता रहा हूँ भाभी।” दृढ़ स्वर में विनोद ने कहा तो बस नाराजगी से मुँह फेर लिया दोनों ने।

अगले दिन रूचि और विनोद अपने नये घर में चले गए। आज रूचि बहुत ख़ुश थी अपने छोटे से घर संसार में ।मुझे माफ़ कर दो रूचि, विनोद ने कहा ! आप माफ़ी क्यूँ मांग रहे है? और आपने बताया भी नहीं हम अचानक से कैसे यहाँ आ गए। जब पहले मैं कहती तो आप बात टाल जाते थे।

“कपड़े सहेजते हुई रूचि ने विनोद से पूछा तो धीरे से विनोद ने कहा, मैंने तुम्हे रसोई में चोरी से खाते देख लिया था रूचि “”।

हाथों के कपड़े छूट नीचे गिर पड़े और आँखों से आँसू गिरने लगे। नजरें झुका रूचि ने कहा, “माफ़ कर दो विनोद मैंने पहली बार चोरी की थी, भूख बहुत तेज़ लगी थी मैं बर्दास्त ही नहीं कर पायी “।
“नहीं रूचि ! माफ़ी तो मुझे मांगनी चाहिए तुमसे। तुम्हारी माँ से कितने प्यार से पाला था तुम्हे। कितनी आस से मुझे सौपा तुम्हे और मेरे कारण तुम्हे खाना चोरी करना पड़ा। लानत है मुझ जैसे पति पे।”

“भैया के अहसानों ने जुबान पे ताला लगा दिया था। अंधा हो गया था जो अपनी पत्नी के परेशानियों को देख के भी अनदेखा कर रहा था। बहुत ज्यादा नहीं तो कभी कम भी नहीं पड़ने दूंगा तुम दोनों को रूचि। इतना तो कमा ही लेता हूँ कि रानी बना के रखूँगा तुम्हे हमारे इस छोटे से घर की। अब मेरी रूचि कभी चोरी कर के नहीं खायेगी ये मेरा वादा है।”

“बस विनोद अब एक शब्द और नहीं” रूचि ने विनोद को चुप करते हुए कहा और दोनों पति पत्नी रोते हुए गले लग गए।