साहित्य

” वक़्त की गर्द में ये खुशियाँ ना जाने कहाँ छुप गई थी”

Madhu Singh
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मोहन गाँव से नौकरी के सिलसिले में मुंबई, अपने चाचा चाची के घर आया था। गाँव के माहौल में पला बढ़ा मोहन शहरी मिज़ाज से बिल्कुल अनभिज्ञ था। यहाँ का रहन-सहन, खानपान, चलना फिरना बोलना चालना कुछ भी उसे मालूम नहीं था।

मोहन के चाचा के चार बच्चे थे, दो बेटे और दो बेटियाँ। दोनों बेटों की शादी हो गई थी और बेटियांँ स्कूल, कॉलेज में पढ़ रही थीं। मोहन के चाचा के दो पोते और एक पोती भी थी। एक तरह से कहा जाए तो भरा पूरा परिवार था उनका।

किंतु ये क्या? मोहन जब अपने चाचा के घर पहुँचा तो उसके चाचा चाची के अतिरिक्त कोई भी वहाँ मौजूद नहीं था। मोहन को बड़ा आश्चर्य हुआ।

मोहन मन ही मन सोचने लगा………आज तो इतवार है, छुट्टी का दिन, फिर भी घर में कोई दिखाई नहीं दे रहा।

मोहन अभी सोच रहा था कि तभी मोहन के चाचा चाची वहांँ आए। मोहन ने पैर छूकर उनको प्रणाम किया।

मोहन के चाचा ने उसे बैठने का इशारा करते हुए कहा………. अरे ! बैठो मोहन बेटा क्या सोच रहे हो?

मोहन ने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा……..चाचा जी आपका तो भरा पूरा परिवार है, कहांँ है सब के सब? कोई आवाज़ भी नहीं आ रही, क्या कहीं बाहर घूमने गए हैं?

चाचा जी ने कहा………अरे! नहीं-नहीं घर पर ही हैं कहीं बाहर नहीं गए।

मोहन ने थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा…… अच्छा-अच्छा सभी अपना-अपना काम कर रहे हैं।

फिर चाचा जी ने कहा…….अरे! काम काहे का, सब सोशल मीडिया के दीवाने हैं, अपने-अपने कमरों में, मोबाइल, लैपटॉप के साथ अपनी ही दुनिया में व्यस्त हैं। बस हम दो बूढ़ी हड्डियाँ एक दूसरे से बात करके अपना मन खुद ही बहला लिया करते हैं।

संस्कार की जमीं और गाँव की मिट्टी से जुड़ा मोहन चाचा चाची को इस तरह अकेला देखकर मन ही मन उदास हो गया। उसके पिताजी ने जैसा उसे बताया था। वैसा तो यहाँ कुछ भी नहीं था। मोहन के पिताजी को लगता था कि उसके बड़े भाई का बहुत ही सुखी और संपन्न परिवार है। किंतु यहाँ संपन्नता तो है किन्तु सुख के नाम पर तो चाचा चाची का अकेलापन ही दिखाई दे रहा है।

इतने में चाची मोहन के लिए कुछ नाश्ता पानी लेकर आ गई और मुस्कुराते हुए बोली………मोहन बेटा लो कुछ नाश्ता पानी कर लो फिर थोड़ा विश्राम कर लेना। लंबे सफ़र से आए हो थकान भी बहुत हो गई होगी।

मोहन ने कहा…….. नहीं-नहीं चाची जी इतनी भी थकान नहीं है, हम गाँव के हट्टे कट्टे नौजवान हैं थकना तो हमारा स्वभाव ही नहीं है। आप बताइए अगर आपका कोई काम है तो हम अभी दौड़कर कर आते हैं।

मोहन की बातें सुनकर चाची जोर-जोर से हँसते हुए बोली अरे नहीं नहीं बेटा आराम करो मेरा कोई काम नहीं है। इतने सालों बाद तुम्हें देखा है, पिछली बार जब मैं गाँव गई थी तुम बहुत छोटे से थे। तोतली आवाज़ में बातें करने वाला मोहन आज कितनी बड़ी-बड़ी बातें कर रहा है।

चाची की बातें सुनकर मोहन मुस्कुराने लगा……उसने हाथ में पानी का गिलास उठाते हुए चाची से पूछा…….. चाची जी, आप और चाचा जी भरे पूरे परिवार के होते हुए भी ऐसे अकेले, मैंने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था।

चाची ने एक लम्बी साँस भरते हुए कहा……बेटा शुरु शुरु में हमें भी इन सब से बहुत परेशानी होती थी पर अब तो हमने भी अपने मन को समझा लिया है। अब उनकी भी अपनी अपनी ज़िंदगी है जैसे जीना चाहते हैं जीएँ।

चाचा जी भी कहने लगे अरे! मोहन बेटा…… हमारे दिन ही कितने बचे हैं। जाने कब ईश्वर का बुलावा आ जाए। अब तो इस अकेलेपन की हमें आदत सी हो गई है। कभी-कभी जब ये चारदीवारी काटने को दौड़ती है तो चले जाते हैं अनाथ आश्रम और समेट लाते हैं वहाँ से थोड़ी सी मुस्कुराहट, थोड़ी सी खुशियाँ। बस इन्हीं सबके सहारे कट रही है ज़िंदगी हमारी।

चाचा चाची की बातें सुनकर मोहन उदास होकर सोचने लगा हमारे गाँव में तो ऐसा नहीं होता सभी एक ही खटिया पर बैठ कर कितना हँसी मज़ाक करते हैं। एक साथ खाना खाते हैं। और कोई मेहमान अगर घर में आ जाए तो पूरा का पूरा परिवार एक ही जगह एकत्र हो जाता है। पर इस शहर की तो बात ही निराली है, मैं इतनी देर से आकर यहाँ पर बैठा हूँ, लेकिन किसी ने अब तक अपना चेहरा भी नहीं दिखाया जबकि सभी को ख़बर थी है मैं यहाँ आने वाला हूँ। इन शहरों से तो हमारे गाँव ही भले।

मोहन कमल अभी इन्हीं बातों के इर्द गिर्द खून ही रहा था कि इतने में कमरे से चाचा जी की पोती दौड़ती-दौड़ती आई और मोहन को देख कर मुस्कुराने लगी।

मोहन ने प्यार से उसे अपनी गोद में उठाते हुए कहाँ चाचा जी ये तो बड़े भैया की बिटिया है ना। कितनी बड़ी हो गई गुड़िया।

इतना कहकर मोहन बच्ची के साथ खेलने लगा। बच्ची भी मोहन के साथ खूब घुल मिल मिल गई और अपनी तोतली बोली ने ढेर सारी बातें करने लगी। मोहन की उस बच्चे के साथ बच्चा बनकर खूब मस्ती करने लगा।

तभी अचानक बच्ची के खिलखिलाने की आवाज़ सुनकर घर के बाकी लोग भी एक-एक कर बाहर आ गए। और मोहन को देखकर पूछने लगे अरे मोहन तुम कब आए हमें तो पता ही नहीं चला।
मोहन ने कहा…. बस, अभी अभी ही आया हूँ। थोड़ी देर पहले।

फिर चाचा जी की बेटे ने कहा…. हाँ, पिताजी ने बताया था तुम नौकरी के सिलसिले में यहाँ आ रहे हो। पर बात मेरे दिमाग से निकल गई मुझे याद ही नहीं रहा कि तुम आज ही आ रहे हो।

मोहन ने मुस्कुराते हुए कहा….. अरे !कोई बात नहीं भैया हो जाता है। हम भी कितनी बार कितनी बातें भूल जाते हैं। और बताइए आपका काम का सब कैसा चल रहा है।

बस सब कुछ ठीक चल रहा है…. और तुम बताओ गाँव में सब ठीक तो है।

हाँ, बड़े भैया गाँव में सब ठीक-ठाक है माँ बाबूजी आप लोगों को बहुत याद करते हैं। कितने बरस गुजर गए बहुत छोटे छोटे थे आप लोग जब गाँव आए थे उसके बाद कभी आप लोगों का आना ही नहीं हुआ।

मोहन के चाचा जी ने कहा….. ठीक कह रहे हो मोहन, हम तो शहरी उलझन में उलझ कर रह गए। पर गाँव की मिट्टी की खुशबू अभी तक भूले नहीं हैं। चाचा जी के बेटे ने भी सहमति जताते हुए सर हिलाया।

ऐसे ही बातें करते-करते सब के साथ गपशप का एक सिलसिला शुरू हो गया। और ऐसा शुरू हुआ कि थमने का नाम ही नहीं ले रहा था।

मोहन गाँव की खट्टी मीठी बातें सबको बताने लगा। और सभी बड़े चाव से सुन भी रहे थे। किसी को ना अपने मोबाइल की सुध थी, ना लैपटॉप की। सभी सोशल मीडिया से दूर एक वास्तविक ज़िंदगी का मज़ा ले रहे थे। मोहन के चाचा चाची आश्चर्य और प्रसन्नता भरी नज़रों से अपने भरे पूरे परिवार को निहार रहे थे।

इन खुशियों को देखकर चाचा चाची सोचने लगे,….. ” वक़्त की गर्द में ये खुशियाँ ना जाने कहाँ छुप गई थी।”…….. ऐसा लग रहा है मानो सारी खुशियों ने एक साथ हमारे घर दस्तक दे दी हो। मोहन तो मानो खुशियों की सौगात लेकर आया है।

इतने में चाचा जी के बड़े बेटे की नज़र अपने पिताजी पर पड़ी। उनकी आँखों में खुशी की एक अलग ही चमक थी। वो एक हल्की सी मुस्कान के साथ अपने पिता के पास गया और माफ़ी मांग कर कहने लगा। मुझे माफ कर दीजिए पिताजी, मैं अपनी दुनिया में ऐसे खो गया कि एहसास ही नहीं हुआ, कब आप लोगों को पीछे छोड़ दिया। आज मोहन के आने से इस बात का एहसास हुआ कि परिवार के साथ ही तो खुशियाँ हैं। और हम नादान अपनी खुशियों को सोशल मीडिया में ढूँढते फिरते हैं।

बेटे की बातें सुनकर चाचा जी की आंखों में भी आँसू आ गए………उन्होंने अपने बेटे के सर पर हाथ रखते हुए कहा…………बेटा तुम्हें ये बात समझ में आई यही बहुत बड़ी बात है। हमारे लिए तो तुम तब भी हमारी संतान थे और अब भी हो। तुम लोग भले ही हमसे दूर चले जाओ पर हम तुम लोगों से कभी मुंँह नहीं मोड़ सकते।

और इस प्रकार एक-एक कर सभी को अपनी गलती का एहसास हुआ……सभी ने एक दूसरे को गले लगाया। पूरा परिवार एक छत के नीचे मौजूद था। उपवन में खिले फूलों की तरह मुस्कुरा रहा था। मोहन को यह सब देख कर बहुत अच्छा लगा।

सब के सब इमोशनल हो गए थे। तभी मोहन ने कहा…… अरे! अभी तो गाँव की ढेर सारी बातें आप लोग को बतानी शेष है। चलिए-चलिए हम अपनी बातों की पोटली फिर से खोलते हैं।

किसी प्रकार हँसी मज़ाक और बातों में कब रात हो गई किसी को एहसास भी नहीं हुआ। इस बीच जाने कितनी मोबाइल की घंटियाँ बजी, पर मोहन की चुलबुली बातों को छोड़कर किसी का जाने का मन नहीं था। फिर सब ने साथ बैठकर खाना खाया। शायद बरसो बाद ऐसा हुआ कि सब एक साथ डाइनिंग टेबल पर थे। वरना तो सब अपने अपने रूम में ही खाना खाया करते थे।

मोहन के चाचा मन ही मन सोचने लगे काश! आज का यह दिन हमेशा के लिए ऐसा ही रह जाए। मेरा पूरा परिवार इसी प्रकार एक साथ मिलकर हँसे बोले। चाचा चाची के चेहरे पर एक संतोषजनक मुस्कान देखकर मोहन को बहुत प्रसन्नता हुई।

परिवार के बाकी सदस्यों ने भी दोनों के चेहरे पर इस प्रकार प्रसन्नता देख कर महसूस किया कि हम कितनी गलती कर रहे थे मोबाइल, सोशल मीडिया के चक्कर में अपनों से दूर हो रहे थे। जबकि सच्ची खुशी तो अपनों के साथ है। अपनों के साथ एक छत के नीचे समय बिताना जीवन का सबसे बड़ा सुख है। और हम खुद ही अपने इस सुख को खुद से अलग कर रहे हैं।

उस दिन के बाद से मोहन ने अपनी नौकरी ज्वाइन कर ली और कहीं एक कमरा किराए पर लेकर रहने लगा। और इधर चाचा जी का परिवार मोहन के आगमन से दोबारा एक खुशहाल और हरा भरा उपवन बन गया। सभी एक दूसरे को पूरा पूरा समय देने लगे। और सिर्फ काम के लिए ही सोशल मीडिया का प्रयोग करते थे।

वर्तमान समय में हम एक छत के नीचे रहकर भी एक दूसरे के साथ नहीं है। अपने रिश्तों को छोड़कर सोशल मीडिया में रिश्ते खंगालते फिरते हैं। मुस्कुराहट भूलकर, जीना भूल कर इमोजी की दुनिया बना रहे हैं।

बेवक्त़, बेवजह मोबाइल से चिपके रहने से हम अपनों से तो दूर होते ही हैं, खुद से भी दूर हो जाते हैं। माना आज के आधुनिक वक़्त में मोबाइल और बाकी गैजेट्स से दूर रहना संभव नहीं किंतु हम इनके इस्तेमाल की एक समय सीमा तो निश्चित कर ही सकते हैं। जिससे हम अपनों को पूरा वक्त दे सकें और खुद भी वास्तविक जिंदगी का आनंद उठा सकें। इसलिए मोबाइल का प्रयोग उतना ही करें जितनी ज़रूरत है।