साहित्य

मेरी ग़लती है, कि मैंने आज तक अपनी पत्नी की कद्र नहीं की!

Madhu Singh
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रजनी जब हड़बड़ाकर जागी, तो निग़ाहें सीधे घड़ी पर पड़ी. सात बज गए थे. दिव्या दरवाज़े के बाहर से ही रुआंसी होकर चिल्ला रही थी, “मम्मी, आप अभी तक सो रही हैं? मेरी स्कूल बस आने वाली है. अभी तक न तो मुझे नाश्ता मिला है और ना ही मेरे टिफिन का कुछ पता है.” बेटी की आवाज़ सुनकर रजनी की घबराहट और भी बढ़ गई, हमेशा तो छह बजे उठ जाती थी, पर रात को रमेश के दोस्तों के देर तक बैठे रहने के कारण सोने में देर हो गई थी. वह तत्काल बिस्तर छोड़कर किचन की तरफ भागी “गुडमॉर्निंग दिव्या, तुम नाराज़ क्यों हो रही हो? अभी तुम्हारा नाश्ता और टिफिन तैयार कर देती हूं. आज पता नहीं नींद कैसे नहीं खुली. पर रामू तो आ गया होगा, तुम उसको कहकर कम-से-कम अपना दूध-नाश्ता तो ले लेतीं.”

“रामू किचन में हो, तो उसको नाश्ते के लिए कहूं ना. वह तो कितनी देर से ताऊजी के कमरे में न मालूम क्या कर रहा है. मैंने उसको आवाज़ दी, तो बड़ी मां बोलीं कि अभी वह उनका काम कर रहा है, कुछ देर बाद आएगा.” बड़बड़ाते हुए दिव्या अपना स्कूल बैग तैयार करने लगी.

रजनी नीचे पहुंची, तो लगा सारे घर में अफ़रा-तफ़री मची हुई थी. अम्माजी का भी मूड ख़राब लग रहा था. उसको देखते ही पास में अख़बार पढ़ते हुए बाबूजी को सम्बोधित करके बोली, “आजकल क्या ज़माना आ गया है. पहले तो रात को बारह बजे तक टीवी देखने या दोस्तों

से फ़ुर्सत नहीं मिलती, फिर सुबह समय पर उठा नहीं जाता. क्या हाल कर रखा है घर का? व्यवस्था नाम की कोई चीज़ ही नहीं है. हमारे ज़माने में मजाल नहीं थी कि इतनी देर तक सोते रहे. सुबह चार बजे उठकर सात बजे तक चाय-नाश्ते का सारा काम निपटा देते थे. अब तो हालत यह है कि सुबह समय पर चाय भी नसीब नहीं होती. क्या करें, लाचारी है, पांव में इतना दर्द रहता है कि उठा नहीं जाता, वरना चाय के लिए इतनी देर तक इंतज़ार क्यों करना पड़ता?” अखबार पढ़ते-पढ़ते ही उसके ससुरजी बोले, “सुबह-सुबह भाषण देना बंद करो, आज रजनी को उठने में कुछ देर हो गई, तो इतना बवंडर खड़ा करने की क्या ज़रूरत है? तुम्हारी दूसरी दो बहुएं भी तो हैं, उनको कहकर चाय बनवा लेती या रामू को आवाज़ दे देती.”

रजनी बिना कुछ बोले चुपचाप रसोई में आकर दूध चाय की तैयारी करने लगी. दिव्या का दूध उसने ठंडा करके भगोने में डाला और अम्मा-बाबूजी की चाय तैयार कर उनको हॉल में दे आई. दिव्या के टिफिन के लिए दो आलू के परांठे बनाकर रख दिए. इस बीच बड़े भैया भी तैयार होकर नीचे आ गए. आते ही आवाज़ लगाई, “, मेरा नाश्ता दूध लेकर आओ. मुझे आज ऑफिस जल्दी जाना है.”

बड़े भैया को नाश्ता पकड़ा वह फिर से रसोई में आ गई. सोच रही थी कि इस घर में सबसे फ़ालतू तो वहीं है, बाकी तो सब कामकाजी हैं. घर में उसके अलावा दो बहुएं और भी हैं. पर चूंकि वे वर्किंग वुमन’ हैं, अतः उनसे किसी प्रकार की सहायता की अपेक्षा करना उचित नहीं समझा जाता. बड़ी भाभी लेक्चरार हैं. उनको तो अपने कॉलेज और ट्यूशन से ही फ़ुर्सत नहीं मिलती. सुबह साढ़े आठ बजे तक तैयार होकर आराम से नीचे उतरती हैं.

भाभी के बच्चों का नाश्ता-टिफिन हमेशा वही तैयार करती है.
इसी बीच विकास और रंजिता भी तैयार होकर नीचे आ जाते है. रंजिता विकास के साथ ही ऑफिस जाती है. रंजिता, एक तो घर की छोटी बहू, ऊपर से बड़े बाप की बेटी, उससे तो कोई उम्मीद करना भी हास्यास्पद है. वैसे भी मांजी का छोटे बेटे और बहू के प्रति बहुत ही सॉफ्ट कॉर्नर है.

घर के सदस्यों के चाय-नाश्ते और टिफिन पैक करते-करते दस बज जाते हैं. इस बीच रमेश की फ़रमाइशों को पूरा करने के लिए बार-बार ऊपर-नीचे के चक्कर लगते रहते हैं. कभी उनके कपड़े नहीं मिलते, तो कभी कोई ज़रूरी काग़ज़ या फाइल इधर-उधर हो जाती है, जिसको ढूंढ़ने में ही बहुत समय लग जाता है. रमेश भी पूरी तरह उस पर निर्भर है. अपने छोटे-छोटे काम भी स्वयं नहीं कर सकते. रमेश को खाना खिलाकर जब वह फ्री होती है, तब तक साढ़े दस-ग्यारह बज चुके होते हैं.

चूंकि घर की दोनों बहुएं घर से बाहर रहती हैं, अतः सारे घर की साफ़-सफ़ाई और देखरेख की ज़िम्मेदारी भी उसकी होती है. वह सारे घर के कपड़े एकत्रित करके वॉशिंग मशीन में डालती है. जब रामू बाबूजी के साथ बाज़ार के छोटे-मोटे काम करके और सब्ज़ी लेकर वापस आता है, तो उसके साथ मिलकर वहा कपड़े सूखाने के लिए डालती है. इसी बीच उसे स्वयं भी नहा-धोकर तैयार
होकर पुनः रसोई में आना होता है. बाबूजी-अम्माजी को ठीक बारह बजे तक खाना चाहिए. उनको खाना खिलाकर उठती है, तब तक बच्चे स्कूल से आ जाते हैं. सबको खाना खिलाते-खिलाते दोपहर के दो बज जाते हैं.

वह सारा समय घर-गृहस्थी में लगी रहती है. जी-जान एक कर देती है, फिर भी किसी को संतुष्ट नहीं कर पाती. कभी उसके काम का अंत नहीं होता. उल्टे मौक़े-बेमौक़े सबसे यही सुनने को मिलता है, “इतना क्या काम है? घर में फुलटाइम नौकर है, बाइयां आती हैं, कपड़े धोने के लिए वॉशिंग मशीन है. इस पर भी कोई सारे समय अपने को व्यस्त दिखाने का ढोंग करे, तो हम क्या कर सकते हैं? दूसरी दोनों बहुएं बाहर खटकर आती हैं, तो भी अपना काम तो वे ही करती हैं.” एक तरफ़ इस तरह की उपेक्षा, दूसरी तरफ़ दिव्या की शिकायत, “मम्मी आप सारे समय किचन और घर में दूसरे कामों में लगी रहती हैं, कभी मेरे ऊपर भी तो ध्यान दिया करें. बड़ी मां और चाची बाहर का काम करने के बावजूद अपने बच्चों के लिए शाम को समय निकालती हैं. वे अपने बच्चों के साथ घूमने के लिए भी जाते हैं और एक मैं हूं, मेरी मम्मी के पास मेरे लिए कभी समय नहीं रहता. राहुल भैया, पिंकी दीदी और अतुल सब अपने पैरेंट्स के साथ कभी पिक्चर, तो कभी रेस्तरां में जाकर मौज-मस्ती करते हैं. मैं जब भी आपको बाहर चलने को कहती हूं, तो आपको घर का कोई काम याद आ जाता है.”

इधर रमेश भी एक ओर उससे अपेक्षा रखते हैं कि घर की दोनों बहुएं जब घर से बाहर रहती हैं, तो कम से कम वह तो घर को संभाले. अब अम्माजी की उम्र थोड़े ही गृहस्थी संभालने की है. फिर रमेश उससे यह अपेक्षा भी रखते हैं कि वह रात को उनके साथ उनके मित्रों से मिलने-जुलने भी जाए. वह समझ नहीं पाती कि वह रमेश को कैसे समझाए कि वह भी इंसान है, कोई मशीन नहीं, जो लगातार चलती रहे. .
जब अपनी बेटी और अपने पति को ही वह संतुष्ट नहीं कर पाती, तो दूसरों से क्या अपेक्षा रखे. कभी-कभी मन में हीनभावना आने लगती है कि उसने अपनी हाउसवाइफ की कैसी इमेज बना ली है. उसे स्वयं विश्वास नहीं होता कि वह शादी से पहले वाली ही रजनी है, जो अपने कॉलेज में हमेशा टॉप करती थी और उसकी गणना बहुत बुद्धिमान और स्मार्ट लड़कियों में होती थी. वह स्वयं एक करियर माइंडेड लड़की थी, पर रमेश की ख़ुशियों के लिए ही उसने अपनी महत्वाकांक्षाओं को दबा दिया… तभी अचानक फोन की घंटी बजने से उसकी तंद्रा भंग हो गई. फोन उसकी बड़ी ननद वंदना जीजी का था. जीजी ने जब बताया कि जीजाजी अपने किसी काम से एक सप्ताह के लिए मुंबई जा रहे हैं, तब जीजी ने भी इस बीच राखी के अवसर पर पीहर आने का प्रोगाम बना लिया है. वे बहन-भाइयों में सबसे बड़ी और सबसे संपन्न होने के कारण घर में आज भी अपना विशेष स्थान है. सभी सदस्य उनको बहुत आदर-सम्मान देते हैं. उसे स्वयं भी लगता है कि इस घर में एक वंदना जीजी ही हैं, जो उसको भी बहन सा प्यार और स्नेह देती हैं. वह अम्मा-बाबूजी की जीजी के आने का समाचार सुनाने चल दी.

दूसरे दिन जीजी के आते ही घर में ख़ासी चहल-पहल हो गई थी. घर के सब सदस्य उनको घिर कर बैठ गए थे. उसने जीजी की पसंद का खाना बनाया था. गाजर का हलवा, समासे, मटर पनीर, भरवा बैंगन, दम आलू, दही बड़े, पुलाव आदि. जीजी अपनी पसंद की इतनी चीज़ें देखकर बहुत ख़ुश हो गईं. उसकी ओर स्नेह से देखते हुए बोली, “भाभी, कमाल है. तुमने तो मेरी पसंद की सारी चीज़ें एक साथ ही बना दी.”

फिर एक-एक व्यंजन खाते-खाते तारीफ़ों के पूल बांधने लगी. अम्माजी ने अपनी आदतानुसार उसके खाने में जैसे ही कोई मीनमेख निकालना शुरू किया कि दूसरे सदस्यों को भी जैसे मौक़ा मिल गया. किसी को सब्ज़ियों में नमक ज़्यादा लग रहा था, तो किसी को दही बड़े सख्त लग रहे थे.

सबकी आलोचना सुनते-सुनने उसकी आंखें भर आईं. दीदी ने उसके आंसुओं को देख लिया था. रमेश को संबोधित करते हुए और दूसरे सदस्यों को अप्रत्यक्ष सुनाते हुए बोल पड़ीं, “तुम लोग बेमतलब खाने में नुक्स निकाल रहे हो. एक तो इसने इतनी मेहनत से इतना कुछ बनाया है, उसकी प्रशंसा करने की बजाय उसमें खामियां निकालना बहुत ग़लत बात है.”
फिर अम्माजी से बोली, “मां आप इस उम्र में खाने-पीने का इतना विचार करती हैं? आप तो इतना पूजा-पाठ करती हैं, फिर अन्न का इतना अनादर करना क्या उचित है?” उनकी बात सुनकर सब एकदम चुप हो गए.

एक दिन बड़ी भाभी और रंजिता भी बहुत उत्साह और गर्व से क्रमशः‌ अपने कॉलेज और ऑफिस की बातें बता रही थीं. दोनों के पति भी अपनी पत्नियों की तारीफ़ में प्रशंसा के पुल बांध रहे थे. बड़े भैया कह रहे थे, “जीजी, शोभा सारे समय इतनी व्यस्त रहती है, इतनी मेहनत करती है कि इसने अपने कॉलेज का नाम रौशन कर दिया है. पूरे कॉलेज में इसकी सबसे ज़्यादा इज़्ज़त है. कॉलेज के साथ-साथ घर में भी बच्चों और सारे कामों को करती है. यह इसी के बूते की बात है.” बड़े भैया की बात सुनकर छोटा भाई विकास कैसे पीछे रहता. वह भी रंजिता की प्रशंसा करने लगा, “जीजी, जब से रंजिता ऑफिस में मेरा हाथ बंटाने लगी है, मैं फैक्ट्री में प्रोडक्शन का काम देखता हूं और यह ऑफिस में मार्केटिंग देखती है. सच जीजी, मुझे लगता है किसी प्रोफेशनल करियर माइंडेड लड़की को अपना जीवनसाथी बनाने का मेरा निर्णय बहुत सही रहा.”

फिर एक नज़र उसकी ओर देखकर, व्यंग्यात्मक स्वर में बोला, “रमेश भैया की बातों में आकर मैं भी रजनी भाभी जैसी सीधी-सादी लड़की ले आता, तो कभी इतनी प्रोग्रेस नहीं कर पाता.” विकास की बात पर जीजी को छोड़कर सभी ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगे. सबके सामने उसका इतना अपमान होने पर भी रमेश चुप थे. उनमें तो इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि वे सबके सामने यह स्वीकार कर पाते कि उनकी इच्छा के कारण ही उसने घर संभालने का दायित्व स्वीकार किया था. अम्माजी भी क्यों चुप रहतीं, वे भी बोल पड़ीं, “भई आज तो ज़माना ही ऐसा आ गया है कि पति-पत्नी दोनों काम करें, तभी गृहस्थी की गाड़ी सुचारू रूप से चलती है. फिर आजकल लड़कियां भी पढ़-लिखकर हर मामले में लड़कों के समान कंधे से कंधा मिलाकर घर और बाहर की ज़िम्मेदारियां निभाने में सक्षम हो गई हैं, वे घर में क्यों बैठें? मैंने तो इसीलिए शोभा और रंजिता को बाहर काम करने की छूट दे दी है. यदि रजनी भी चाहती, तो इन दोनों की तरह नौकरी या व्यवसाय कर सकती थी, पर इसकी स्वयं की ही बाहर निकलने की इच्छा नहीं है, तो मैं क्या कर सकती हूं. घर के कामों के लिए तो नौकर-चाकर हैं.”

उसका स्वाभिमानी मन आज उसे सबके सामने अपने मन की बात कहने को बार-बार झकझोर रहा था. वह कुछ कहती, उससे पूर्व ही जीजी का स्वर गूंज उठा, “अम्मा, आज सबने उपलब्धियां, अपने कामों के विषय में बताया, सुनकर मुझे बहुत ख़ुशी भी हुई. मुझे ख़ुशी है कि बड़ी भाभी तथा छोटी भाभी दोनों अपने क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं. हम सभी उनकी सफलताओं को सहर्ष स्वीकार कर रहे हैं. साथ ही उनकी उपलब्धियों पर हमें गर्व भी है. पर आप सबने कभी यह सोचने का भी कष्ट किया है कि आज यह घर सुचारु रूप से जिस तरह चल रहा है, उसके पीछे किसका सार्थक श्रम और निःस्वार्थ समर्पण लगा है. इस घर में एक इंसान ऐसा भी है, जो चुपचाप मौन भाव से सारा दिन सबकी ज़रूरतों को पूरा करने में ही लगा रहता है, क्या आपमें से एक व्यक्ति ने भी उसकी भूमिका को बराबर का सम्मान देने का प्रयास किया है?” “हां, मैं रजनी की ही बात कर रही हूं,

इतना बड़ा घर-परिवार केवल नौकरों-चाकरों के भरोसे नहीं चलता, किसी न-किसी सदस्य को अपने व्यक्तिगत हितों का बलिदान करना ही होता है.
मैं नहीं कहती कि शोभा या रंजिता भाभी घर से बाहर मौज-मस्ती करने जाती हैं, पर मेरे हिसाब से रजनी का जो स्थान इस घर में है, वह आपकी दोनों बहुओं का नहीं है और रजनी ने अगर किसी दिन अपने कार्य से मुंह मोड़ लिया ना तो आपका घर उसी दिन तीतर बितर हो जाएगा। इसलिए इस घर की सबसे मुख्य सदस्य रजनी है। जिसने अकेले के दम पर पूरे घर को संभाल रखा है, और सही मायने में वह एक वर्किंग वुमन है। जो बिना किसी सैलरी के 24/7 वर्क कर रही है। आपकी इन सैलरी लेने वाली बहू से कहीं ज्यादा बड़ा है उसका दिल जो अपने साथ-साथ उनके परिवार को भी संभाल रही है, वह भी बिना किसी बदजुबानी के , लेकिन फिर भी उसके पति और उसकी सास को उसकी कोई कदर नहीं। बल्कि वह दोनों खुद घर के बाकी लोगों के साथ मिलकर उसका अपमान करने में शामिल रहते हैं। रजनी मैं तुमसे कहती हूं तुम बस एक दिन दिन भर अपने बेडरूम में पड़ी रहो इन सबको इनकी औकात पता चल जाएगी और तुम्हारी कद्र करनी भी आ जाएगी। लेकिन इसमें इनकी नहीं, तुम्हारी खुद की भी गलती है। जब तुम खुद अपनी कद्र नहीं करोगे तो कोई और तुम्हारी कद्र क्यों करेगा?

जीजी की बात सुनकर सबकी नज़रें झुक गई थीं, पर किसी में इतना साहस भी नहीं था कि उनकी बात का प्रतिवाद करता. बड़ी भाभी और रंजिता का तो मूड ऑफ हो गया था. बड़े भैया और विकास के चेहरे पर भी रोष के मिलेजुले भाव थे. हां, अम्माजी, और रजनी के पति को अपनी भूल का पश्चाताप होने का एहसास ज़रूर था, और उसने आज घर में अपना एक फैसला सुनाया। मेरी पत्नी इस घर की नौकर नहीं है। वह सिर्फ अम्मा, बाबूजी मेरा और अपने बच्चों का काम करेगी। बाकी सब अपना अपना परिवार खुद देख ले। मेरी गलती है, कि मैंने आज तक अपनी पत्नी की कद्र नहीं की। जिसकी वजह से कोई भी उसकी बेइज्जती करके निकल जाता है। पर अब और नहीं। हर किसी की जिम्मेदारी होती है अपना परिवार संभालने की, मेरी पत्नी ने सबका परिवार संभालने का ठेका नहीं ले रखा। और उसके बाद उनकी बकवास सुनने का भी। इस घर में बस मां और बाबूजी के प्रति मेरी जिम्मेदारी है। वैसे तो हम सब की जिम्मेदारी हैं, लेकिन फिर भी मैं उन्हें अपने और अपनी पत्नी की जिम्मेदारी मानता हूं। बाकी सब आज से अपना-अपना देख लो। रजनी आज से मैंने जो कहा उसका ध्यान रखना, और अपने आत्मसम्मान से कभी समझौता मत करना। मैं अपनी गलती स्वीकार करता हूं, और वादा करता हूं आगे से हर कदम पर तुम्हें तुम्हारे साथ खड़ा मिलूंगा।