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अदाणी के प्रधानमंत्री मोदी से क़रीबी रिश्ते कहे जाते हैं, अगर अदाणी दोषी पाए गए तो उन्हें 20 साल तक की सज़ा हो सकती है : रिपोर्ट

अमेरिका में गौतम अदाणी और उनके छह सहयोगियों पर घूसखोरी और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं. हालांकि यह लंबी कानूनी कार्रवाई है. अदाणी के सामने कई रास्ते हैं.

एशिया के सबसे अमीर लोगों में से एक और भारतीय कारोबारी गौतम अदाणी एक बार फिर विवादों में घिर गए हैं. 21 नवंबर को उन पर अमेरिका में घूसखोरी और धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज होने के बाद उनकी कंपनियों के शेयर 20 फीसदी तक गिर गए. अमेरिकी अभियोजकों ने अदाणी पर भारत में एक बड़े सोलर एनर्जी प्रोजेक्ट के लिए निवेशकों को धोखा देने और रिश्वत के जरिए काम कराने के आरोप लगाए हैं.

न्यूयॉर्क में दाखिल आरोप पत्र में अदाणी पर सिक्योरिटीज फ्रॉड और वायर फ्रॉड की साजिश के आरोप लगाए गए हैं. उनके साथ उनकी कंपनी के सात अन्य अधिकारियों पर भी आरोप हैं. अभियोजकों का दावा है कि अदाणी ने भारत में लगभग 2,200 करोड़ रुपये की रिश्वत दी.

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व्यवसायों पर असर और बयान
इस खबर का असर अदाणी पर कई तरफ से हुआ है. एक तरफ तो उनकी कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट आई है, दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनका निवेश भी प्रभावित हुआ है. केन्या के राष्ट्रपति ने अदाणी के एयरपोर्ट और ऊर्जा प्रोजेक्ट्स के लिए हुए सौदे रद्द कर दिए. इस सौदे पर काफी समय से विवाद चल रहा था.

इस बीच, अदाणी ग्रुप ने अमेरिकी डॉलर में बॉन्ड जारी करने की योजना भी टाल दी. अदाणी रिन्यूएबल्स ने इस फैसले की जानकारी बंबई स्टॉक एक्सचेंज और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज को दी. कंपनी ने बयान में कहा, “अदाणी ग्रीन के निदेशकों पर लगाए गए आरोप बेबुनियाद हैं और इन्हें खारिज किया जाता है.”

मुकदमों के बारे में अमेरिकी डिप्टी असिस्टेंट अटॉर्नी जनरल लीसा मिलर ने कहा कि यह मामला निवेशकों को बचाने के लिए दर्ज किया गया है. उन्होंने कहा, “हम ऐसे भ्रष्ट और धोखाधड़ी करने वाले लोगों पर सख्त कार्रवाई जारी रखेंगे, चाहे वे दुनिया में कहीं भी हों.”

हिंडनबर्ग रिसर्च

आगे की कार्रवाई
अदाणी पर आगे की कार्रवाई काफी लंबी और जटिल हो सकती है. अदाणी और अन्य आरोपियों के खिलाफ गिरफ्तारी के वॉरंट जारी हुए हैं लेकिन अगर वह भारत में हैं, तो अमेरिकी अभियोजकों को भारत सरकार से उन्हें प्रत्यर्पित करने के लिए कहना होगा.

भारत और अमेरिका के बीच प्रत्यर्पण संधि के तहत यह प्रक्रिया भारत की अदालत के माध्यम से की जाएगी. अदालत को यह तय करना होगा कि अमेरिका में जो आरोप लगे हैं, वे भारत में भी अपराध माने जाते हैं या नहीं.

अदाणी इस प्रक्रिया का कानूनी विरोध कर सकते हैं. चूंकि मामला भारतीय सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देने से जुड़ा है, इसलिए यह राजनीतिक रूप से संवेदनशील हो सकता है.

21 नवंबर को अदाणी ग्रुप ने एक बयान में आरोपों को “बेबुनियाद” बताया और कहा कि कंपनी सभी कानूनों का पालन करने वाली संस्था है. अदाणी, वकीलों के जरिए अमेरिकी अदालत में आरोपों का विरोध कर सकते हैं लेकिन जब तक अदाणी खुद अमेरिकी अदालत में पेश नहीं होते, उनके वकील केवल प्रक्रिया से जुड़े तर्क दे सकते हैं, जैसे कि अभियोजकों को आरोप लगाने का अधिकार नहीं है.

एक बार अदालत में पेश होने के बाद, उनके वकील आरोपों की वैधता और साक्ष्यों को चुनौती दे सकते हैं. अभियोजन पक्ष ने आरोपों के समर्थन में सबूत पेश किए हैं, जिनमें भारतीय अधिकारियों के साथ बैठकों और फोन रिकॉर्ड्स का उल्लेख है.

देश के सबसे बड़े निजी बंदरगाह ऑपरेटर

क्या अदाणी समझौता कर सकते हैं?
अदाणी अभियोजकों के साथ समझौता कर सकते हैं. इसमें कुछ अपराधों को स्वीकार कर सजा कम कराने की कोशिश की जा सकती है. हालांकि समझौता करना अभियोजकों की मजबूरी नहीं है.

मुकदमा शुरू होने में अभी लंबा समय लग सकता है, भले ही अदाणी को प्रत्यर्पित किया जाए या वह आत्मसमर्पण करें. उनके वकील सबूतों और अन्य कानूनी मुद्दों पर बहस करने का अधिकार रखते हैं. उनके साथियों की मांग हो सकती है कि उनके मुकदमे अलग से चलाए जाएं.

अमेरिकी कानून के तहत, अदाणी को 70 दिनों के भीतर तेज सुनवाई का अधिकार है, लेकिन संभावना है कि उनके वकील उन्हें अधिक तैयारी के लिए इस अधिकार को त्यागने की सलाह देंगे.

अगर अदाणी दोषी पाए गए, तो उन्हें लंबी जेल हो सकती है. विदेशी रिश्वतखोरी के लिए अधिकतम पांच साल की सजा है, जबकि सिक्योरिटीज फ्रॉड, वायर फ्रॉड और साजिश जैसे आरोपों के लिए 20 साल तक की सजा हो सकती है.

क्यों विवादों में रहते हैं अदाणी
गौतम अदाणी गुजरात के अहमदाबाद में एक मध्यमवर्गीय परिवार से आते हैं. उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर मुंबई में हीरा व्यापारी के तौर पर काम शुरू किया. 1980 के दशक में उन्होंने प्लास्टिक का आयात शुरू किया और फिर अदाणी एंटरप्राइजेज की स्थापना की.

1990 के दशक में जब भारत की अर्थव्यवस्था खुली तो अदाणी ने इन्फ्रास्ट्रक्चर और कोयले के कारोबार पर दांव लगाया. 1998 में उन्होंने गुजरात के मुंद्रा में पहला बड़ा प्रोजेक्ट, एक बंदरगाह, खोला. आज यह भारत की सबसे बड़ी निजी बंदरगाह है. इसके बाद अदाणी भारत के सबसे बड़े कोयला खनन और बंदरगाह ऑपरेटर बन गए

पिछले कुछ सालों में उनकी संपत्ति 2000 प्रतिशत तक बढ़ी है. उनकी कंपनियों के शेयर तेजी से ऊपर गए है. अदाणी का सरकारों से नजदीकी संबंध रहा है. पहले वह कांग्रेस पार्टी के करीब माने जाते थे. अब उनके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से करीबी रिश्ते कहे जाते हैं.

उनके समर्थकों का कहना है कि उन्होंने सरकारी प्राथमिकताओं के मुताबिक निवेश किया. वहीं, आलोचक कहते हैं कि उनका काम सरकार की मदद से बढ़ा है. विपक्षी पार्टियां आरोप लगाती हैं कि मोदी सरकार ने नियमों में बदलाव कर अदाणी को फायदा पहुंचाया. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अदाणी की गिरफ्तारी की मांग की और प्रधानमंत्री पर उन्हें बचाने का आरोप लगाया.

पिछले साल अमेरिकी रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग ने अदाणी ग्रुप पर “कॉर्पोरेट इतिहास की सबसे बड़ी धोखाधड़ी” का आरोप लगाया था. इसके बाद उनकी कंपनियों के शेयरों का बाजार मूल्य 68 अरब डॉलर तक घट गया था. अदाणी ग्रुप ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि सभी नियामक खुलासे समय पर किए गए हैं.

वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)