साहित्य

दर-दर भटक रहा हूँ!

Sksaini
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दर-दर भटक रहा हूँ!

“रविन्द्र” एक युवा कवि था, जो अपने सपनों को साकार करने की कोशिश में जुटा था। उसका सपना था कि वह एक दिन बड़ा कवि बनेगा और उसकी कविताएँ लोगों के दिलों को छू लेंगी। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतने लगा, उसकी मेहनत का फल उसे नहीं मिल रहा था।

रविन्द्र ने अपने शहर के हर नुक्कड़ पर अपनी कविताएँ पढ़ी, लेकिन किसी ने उसे गंभीरता से नहीं लिया। वह बहुत निराश था। “क्या मैं सच में कभी सफल हो पाऊंगा?” उसने अपने आप से पूछा।

एक दिन, जब वह एक बगीचे में बैठा था, उसने सोचा, “मैं क्यों न अपनी कविताएँ शहर के अलग-अलग हिस्सों में ले जाऊँ? शायद कोई मेरी कला को पहचान ले।” उसने अपने नोटबुक में कुछ नई कविताएँ लिखी और अगले दिन शहर के हर कोने में जाने का फैसला किया।

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रविन्द्र ने पहले एक पार्क में अपनी कविताएँ पढ़ना शुरू किया। कुछ लोग रुके और सुनने लगे। लेकिन थोड़ी देर बाद, अधिकांश लोग अपने काम में व्यस्त हो गए। वह निराश होकर आगे बढ़ा। उसने एक क cafे में अपनी कविताएँ पढ़ी, लेकिन वहाँ भी उसे वही नतीजा मिला।

फिर उसने एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया। वह पूरे शहर में प्रचार करने लगा, लेकिन कार्यक्रम के दिन केवल कुछ ही लोग आए। उसके दिल में एक दर्द था, “मैं दर-दर भटक रहा हूँ, लेकिन किसी को मेरी कला का महत्व नहीं समझ आ रहा।”

लेकिन रविन्द्र ने हार नहीं मानी। उसने सोशल मीडिया का सहारा लिया और अपनी कविताएँ वहाँ साझा करने लगा। धीरे-धीरे, लोगों ने उसकी कविताओं को पढ़ना शुरू किया। उसे कुछ सकारात्मक प्रतिक्रियाएँ मिलीं। लोगों ने उसकी मेहनत की सराहना की और उससे जुड़े।

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एक दिन, उसकी एक कविता वायरल हो गई। उसे कई लोगों ने साझा किया और उसकी तारीफ की। रविन्द्र की मेहनत और संघर्ष ने उसे पहचान दिलाई। अब वह अपने शहर के एक प्रसिद्ध कवि बन चुका था।

जब उसने अपनी पहली पुस्तक प्रकाशित की, तो उसके मन में खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। उसने महसूस किया कि भले ही उसे दर-दर भटकना पड़ा, लेकिन उसकी मेहनत और आत्मविश्वास ने उसे सफल बना दिया।

कहानी का सार:
कभी-कभी सपनों को पाने के लिए हमें कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। लेकिन हमें अपनी मेहनत और विश्वास पर भरोसा रखना चाहिए। दर-दर भटकना हमारी यात्रा का हिस्सा है, और जब हम अपने लक्ष्यों के प्रति समर्पित रहते हैं, तो सफलता जरूर मिलती है।

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कहानी: अनोखी जोड़ी
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छोटे से गाँव के कोने में एक साधारण सा घर था, जहाँ राधा अपने माता-पिता के साथ रहती थी। राधा सुंदर, होशियार, और बेहद सरल स्वभाव की लड़की थी। उसका जीवन गाँव की सीमाओं के भीतर ही बीत रहा था, लेकिन वह हमेशा कुछ अनोखा करने की चाह रखती थी। एक दिन, गाँव में एक नया परिवार आया, जिसमें उनके बेटे मोहन की चर्चा पूरे गाँव में थी। मोहन शहर में पढ़ा-लिखा, स्मार्ट और खुले विचारों वाला नौजवान था। गाँव के लोग मोहन को बड़े अद्भुत नज़र से देखते थे।

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राधा और मोहन की मुलाकात गाँव के एक मेले में हुई। राधा को उसकी सहजता और बातों में अपनापन महसूस हुआ। मोहन ने भी राधा की सरलता और मासूमियत में एक खास बात देखी। कुछ दिनों में दोनों के बीच दोस्ती हो गई, और यह दोस्ती धीरे-धीरे गहरे रिश्ते में बदल गई। लेकिन उनका रिश्ता साधारण नहीं था—राधा गाँव की सीधी-सादी लड़की थी, जबकि मोहन शहर के माहौल में पला-बढ़ा था। उनके विचार, रहन-सहन और सोचने के तरीके एक-दूसरे से बहुत अलग थे, फिर भी दोनों एक-दूसरे के प्रति गहरा आकर्षण महसूस करते थे।

समाज की नज़रों में यह जोड़ी “अनोखी” थी। गाँव के लोग अक्सर राधा को ताने मारते थे कि वह मोहन के साथ कैसे मेल खा पाएगी, क्योंकि उनके बीच कई असमानताएँ थीं। मोहन के परिवार ने भी इसे गंभीरता से नहीं लिया, उन्हें लगा कि यह रिश्ता चल नहीं पाएगा। लेकिन राधा और मोहन ने कभी इन बातों को अपने बीच आने नहीं दिया। उन्होंने अपने रिश्ते को समझदारी और विश्वास के साथ आगे बढ़ाया।

एक दिन, जब राधा के घरवालों को उनके रिश्ते के बारे में पता चला, तो उन्हें भी चिंता हुई कि ये दोनों इतने अलग कैसे एक-दूसरे के साथ रह पाएंगे। राधा के पिता ने मोहन से सीधा सवाल किया, “तुम दोनों की दुनिया अलग है, फिर भी तुम राधा से शादी करना चाहते हो?”

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मोहन ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “दुनिया चाहे अलग हो, लेकिन दिल की दुनिया तो एक ही है। हम एक-दूसरे को समझते हैं और सम्मान करते हैं। यह सबसे महत्वपूर्ण है।”

राधा के माता-पिता मोहन की बातों से प्रभावित हुए और उनकी सादगी और सच्चाई को समझने लगे। दोनों परिवारों की सहमति से शादी तय हो गई। शादी का दिन आया और पूरे गाँव में यह अनोखी जोड़ी चर्चा का विषय बन गई। शादी के बाद भी, राधा और मोहन ने अपने रिश्ते को न केवल निभाया, बल्कि एक मिसाल कायम की कि असमानताएँ किसी रिश्ते की मजबूती को नहीं तोड़ सकतीं, जब तक उसमें प्यार, समझ और सहयोग हो।

वर्षों बाद, राधा और मोहन की जोड़ी गाँव में “अनोखी जोड़ी” के नाम से जानी जाती थी, क्योंकि उन्होंने समाज की धारणाओं को तोड़ते हुए एक मजबूत और प्यार भरा रिश्ता कायम किया। उनकी कहानी यह सिखाती है कि सच्चे रिश्ते बाहरी परिस्थितियों या असमानताओं से परे होते हैं; वे दिल से जुड़ते हैं, जहाँ विश्वास और समझ की नींव होती है।

सार: प्यार और विश्वास की ताकत समाज की धारणाओं से कहीं अधिक होती है। असमानताएँ सिर्फ बाहर दिखने वाली चीजें हैं, असल में रिश्तों की मजबूती दिलों के मेल पर निर्भर करती है।