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आज के बाद क्रेशर, कोल्हू भी गांव में गड़ जायेगे, पूरी सर्दियाँ आलू मटर का छौका और ताज़ा ताज़ा गन्ने के रस का नाश्ता हुआ करेगा

अरूणिमा सिंह
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आप सबको देवउठनी एकादशी की ढेर सारी शुभकामनायें।
इस दिन को ढीठवन भी कहते है।
अब तक हमारे देव सोये हुए थे इसलिए विवाह जैसा शुभकार्य नहीं किया जाता है आज से लगन यानि सहालग शुरू हो गया है अब वैवाहिक कार्यक्रम संपन्न हो सकेंगे।
आज हमारी जीवनदायिनी माँ तुलसी का विवाह भी होता है इसलिए आज लोग विधिवत् तुलसी जी का शृंगार करते हैं और कहीं कही पर तो उनका विवाह भी सम्पन्न करवाया जाता है।
हमारी तरफ देवउठनी एकादशी से पहले गन्ने की नई फ़सल से गन्ना तोड़ा या चूसा नहीं जाता है।
आज मां लोटे में गुड़, पानी इत्यादि लेकर जाएगी और गन्ने पर हल्दी, कुमकुम लगाकर, फूल, अक्षत चढ़ा कर, जल अर्पित करके, घी, गुड़ का हवन/अगियार करके विधिवत गन्ने का पूजन करेंगी और फिर ग्यारह गन्ने की पत्तियों को आपस में बांध कर फिर उन्हें काटा जाएगा और फिर ये ग्यारह गन्ने हमारे देव यानि कुलदेवता को समर्पित किए जाएंगे।

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गन्ने को अर्पित करने के बाद आज से गन्ना चुह यानि चूस सकते है।
गन्ने के नए रस का प्रयोग कर सकते है आज के दिन हर किसी को गन्ना चूसना अनिवार्य भी होता है।
आज के बाद से शुगर मिल चालू हो जाएगी,ग्रामीण क्षेत्र में नजदीक में लगा कांटा चालू हो जायेगा जहाँ किसान अपना गन्ना ले जाकर तौलवा कर बेचते हैं जो शुगर मिल में चीनी बनने के लिए जाता है। बाद में वहाँ से सभी किसानों के एकाउन्ट में उनके गन्ने का मूल्य भेज दिया जाता है।
हमारी तरफ वर्ष भर खाने हेतु ही धान गेहूं दलहन तिलहन व सब्जी की खेती होती बाकी के सारे खेतों में गन्ना बोया जाता है। गन्ना ही हमारे यहां की नगदी फसल है जिससे हमारी आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।
गन्ने का ऊपर वाला भाग कम मीठा होता है इसलिए लगभग एक हाथ गन्ना नहीं चूसते हैं इसे अघोड़ी कहते हैं। इसी फीके टुकड़े से सुबह सुबह मां पुराना सूप पीट पीट कर बजाती है दलिददर खेदती हैं।
दलिद्दर खदेड़ते समय कहती जाती हैं कि _
ईश्वर आवै दलिद्दर जाय, कोने अंतरे रह न जाएं।
घर के हर कोने में सूप बजा कर दलिद्दर यानि दरिद्रता को भगाकर घर से बाहर निकलती हैं जहां गांव की बाकी महिलाएं भी अपने घर के दलिद्दर खेदती हुई आकर मिलती हैं और फिर सभी लोग सूप बजाते हुए दलिद्दर को गांव के बाहर ताल या परती तक भगा आती हैं और वहीं पर सूप और गन्ने का टुकड़ा फेंक कर घर आ जाती हैं।
आज के बाद क्रेशर, कोल्हू भी गांव में गड़ जायेगे। पूरी सर्दियाँ आलू मटर का छौका और ताज़ा ताज़ा गन्ने के रस का नाश्ता हुआ करेगा। बाकी ताज़ा गुड की बात फिर कभी करेगे
जिन घरों में किसी कारण बस आंवला नवमी के दिन आंवले के पेड़ के नीचे भोजन नहीं बन पाता वो आज के दिन भोजन बनाते हैं और फिर आज से ही आंवला खाना भी शुरू किया जाता है।
आपकी तरफ देवउठनी एकादशी किस तरह मनाते है अवश्य बताये।
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अरूणिमा सिंह