विशेष

“अरे कहाँ गये सब लोग, यहाँ आओ तुम सबको एक खुशखबरी देनी है”

हम राही//फेसबुक पेज
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सच्ची बातें— बहू सब कुछ मायके से सीख कर नही आती…

“अरे कहाँ गये सब लोग.यहाँ आओ तुम सबको एक खुशखबरी देनी है.”

“क्या हुआ.घर सिर पर क्यों उठा रखा है ?”

“लड़के वालों की तरफ से हाँ है.अब बस तुम शादी की तैयारियां करो.”

“हमारी बेटी के भाग खुल गये जो इतने अमीर और अच्छे परिवार में बहू बन कर जायेगी.देखना मैं रजनी की शादी में कोई कसर नही छोडूंगी.”

रजनी, राकेश और मीना जी की इकलौती बेटी है.वो सबकी लाडली है इसलिए उसका रिश्ता उन्होंने अपनी हैसियत से बड़े घर में किया.रजनी से बड़ा भाई (रमन) है जिसकी शादी एक साल पहले ही रेणु से हुई थी. ससुराल में रमन और राकेश जी ही उसके शुभचिंतक थे.मीना जी और रजनी की नजरों में वो कभी न अच्छी बहू बन पाई न अच्छी भाभी…

मीना जी शादी की तैयारियों में जुट गई. जैसे जैसे शादी नजदीक आती जा रही थी वैसे ही मीना जी का व्यवहार रेणु के लिए शहद सा मीठा होने लगा था.रेणु समझ चुकी थी कुछ ऐसा है जो उसके हित में नही है तभी सासूमाँ की आवाज में इतनी मिठास है पर क्या,ये वो समझ नही पाई.

रजनी की शादी की तैयारियों की भागदौड़ सास ससुर को करते देख उसे अपनी मम्मी की याद आने लगी थी वो भी तो इसी तरह भाग भाग कर काम करती रहती.अपनी बीमारी तो जैसे वो भूल ही चुकी थी.माँ को याद करते हुए रेणु की आंखे भर आई. क्योंकि शादी को एक साल भी नही हुआ था और उसके हाथों से उसकी माँ की ममता की डोर छूट गई थी.उसे लगा उसका मायका माँ के साथ ही खत्म हो गया.सच में मायका का अर्थ ही है जहाँ हर समय ममता रूपी अमृत बरसता हो.

“बहू मेरे कमरे में आना.” एक दिन मीना जी बड़े प्यार से रेणु से बोली.

“जी मम्मी जी”

“बहू तुम जानती हो हमारे हालात इतने अच्छे नही है कि रजनी की शादी का सारा भार उठा सके इसलिए मैं चाहती हूँ तुम अपने जेवर रजनी को दे दो.इससे रमन का बोझ थोड़ा हल्का हो जायेगा.”

रेणु बुत सी बन गई.उसे लगा जैसे उससे किसी ने उसकी माँ को ही मांग लिया हो. क्योंकि वो गहने बचपन से ही उसकी माँ ने उसके लिए संजो कर रखे थे…

“मीना तुम बहू से उसके जेवर नही मांग सकती.हमसे जितना हो सकेगा करेगें लेकिन एक बेटी के गहने दूसरी बेटी को नही देगे.उन पर सिर्फ़ बहू का हक है.” राकेश जी रेणु की मनोदशा देखते हुए बोले.

“मैंने आप की राय नही मांगी…ये औरतों के बीच की बात है….आप न ही बोले तो अच्छा है….बहू तुम अपने सारे गहने मुझे दे दो.” बेरूखी और कड़क आवाज में मीना जी बोली…

हमेशा खामोश रहने वाली रेणु ने आज अपनी जबान खोल ही दी…

“मम्मी जी आप चाहे रजनी को मेरा कोई भी सामान दे दीजिए पर वो गहने मैं नही दे सकती.वो गहने मेरी माँ की निशानी है.मुझे जब भी उनकी याद आती है तो मैं इन्हें छू कर या पहन कर उन्हें महसूस कर लेती हूँ.”

“बहू तुम बहुत ज्यादा बोल रही हो.तुम इस घर की बहू हो इसलिए तुम्हारा फर्ज इस घर के लिए होना चाहिए.तुम्हारे मम्मी पापा ने नही बताया कि शादी के बाद ससुराल ही तुम्हारा घर है.क्या मायके से यही सब सीख कर आई हो कि अपनी सास से जबान लड़ाओ.तुम से जरा सा कुछ मांग लिया तो हमें ही सुनाने लगी.”

“मम्मी जी आपको जो जरा सा लग रहा है वो मेरे लिए सब कुछ है और जो बोलना है मुझे बोलिए मेरे मम्मी पापा को नही. मम्मी जी मेरी जबान खोलने पर आपने ही मजबूर किया .यदि आप ऐसी बातें न करती तो मैं कभी आपको जवाब नही देती और मम्मी जी बहू सब कुछ मायके से सीख कर नही आती,कुछ बातें ससुराल वालों का व्यवहार सिखा देता है और उन्हें मजबूर हो कर बोलना पड़ता है.”

रेणु को पहली बार अपनी विरोध करते देख मीना जी सकपका गई.

“देख ले बेटा अपनी बीबी को.अब तू ही इससे बात कर.” रमन को आता देख मीना जी बोली.

“मम्मी रेणु सही बोल रही है.वो अपनी मम्मी के गहने नही देगी.रजनी की जिम्मेदारी मेरी है मैं जितना हो सकेगा अपनी बहन की शादी में कोई कमी नही होने दूंगा.लेकिन एक बेटी से उसके माँ की निशानी लेकर पाप का भागी नही बनना चाहता.”

मीना जी अकेली पड़ गई थी.इसलिए चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी और रेणु की आंखों में खुशी के आंसू थे.क्योंकि आज रमन ने खुल कर उसका सहयोग और समर्थन किया था…❣️
Suhana Safar

हम राही
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व्याकुल होकर जब-जब तुमने
प्रीति-पद्य दोहराया होगा
प्रियतम पीड़ा के हर क्षण में
नाम हमारा आया होगा।

विकट वेदना देकर तुमको
अपनी राह चले आये हम
मन के शापित आभासों का
कर निर्वाह चले आये हम
धुर आहों के दावानल ने
प्रतिपल तुम्हें जलाया होगा
प्रियतम पीड़ा के हर क्षण में
नाम हमारा आया होगा।

ऐसे तुमको खोकर आए
ज्यूँ सर्वस्व लुटे निर्धन का
कैसे तुमको बतलाते हम
द्वन्द्व हमारे अंतर्मन का
भीगी-भीगी उन पलकों ने
कैसे सब बिसराया होगा
प्रियतम पीड़ा के हर क्षण में
नाम हमारा आया होगा।

प्रेम तुम्हारा लेकर मन में
तन के वन में भटक रहे हैं
अब श्वाँसों के व्यर्थ स्पंदन
कालरात्रि को खटक रहे हैं
बंद हो चली बोझिल आँखें
तुमने दीप बुझाया होगा
प्रियतम पीड़ा के हर क्षण में
नाम हमारा आया होगा।
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Suhana Safar

हम राही
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प्रेम और सेक्स
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जब तक पुरुष के लिंग में तनाव है ,तब तक वो प्रेम नही दे सकता ।
अगर किसी स्त्री के पास पुरुष जाता भी है और ये कहता है कि मैं तेरे करीब इस कारण हु की मैं प्यार करता हूँ ,तो ये धोखा है ।गलत है ।

सेक्स शरीर की जरूरत है ,तो ये गलत नही है ।पर सेक्स को प्यार कहने की भूल से बचें।
ईमानदार होकर रहे ।अगर सेक्स करना है तो सामने वाले को साफ शब्दों में कहे ।और साथी से पहले, खुद को स्पष्ठ कर ले कि मैं प्यार में हु या वासना में !

ओरत फूल की तरह कोमल होती है ।और फूल को रगड़कर, नोचकर ,उसके शरीर पर निशान बनाकर या बाहर भीतर घिसकर, प्यार नही किया जाता । स्त्री का शरीर और उसकी योनि की नसें ,बेहद संवेदनशील होती है ।बहुत ज्यादा बारीक होती है ।


आज जो महिलाए, अपनी डॉक्टर के पास जा रही है, उसका एक कारण ये भी है कि उनके शारीरिक सम्बन्धो में हिंसा है ।वासना के वेग के चलते, न तो पुरुष को होश रहता और न स्त्री इतनी हिम्मत कर पाती की पुरुष को( न) कह सके ।
और फिर बच्चादानी में हजारो बीमारी लग जाती है ।महावारी में भयानक दर्द , ocd , pocd और पता नही क्या क्या ,सहन करना पड़ता है ।
पुरुष एक्टिव है स्वभाव से और स्त्री पैसिव !
इसलिए यहां पुरुष को समझना चाहिए कि पल भर की वासना के लिए किसी स्त्री का शरीर खराब न करें ।वैसे भी अगर सेक्स को भी धर्य और तरीके से किया जाए ,और एक ठहराव हो भीतर तो उसके परिणाम दोनों व्यक्तियों के लिए सुखद होते है ।और सन्तुष्टि भी मिलती है ।
लेकिन जोश में आकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने वाले पुरुष, कभी भी सन्तुष्टि को उपलब्ध नही होते ।
जो व्यक्ति विवाहित है, उन्होंने अनुभव किया होगा कि सालो तक सेक्स करने पर भी उनके भीतर सेव इच्छा ज्यों की तँयो है ।
इसका कारण यही है कि उन्हें गहराई ही नही जानी कभी इस चीज की ।


45 मिनेट से पहले तो स्त्री का शरीर खुलता ही नही की वो तुम्हे अपनी बाहों में भरे, या तुम्हे अनुमति दे कि तुम उसके भीतर प्रवेश करो ।
इसलिए फोरप्ले का इतना महत्व है ।और ठीक उसी तरह आफ्टरप्ले भी अर्थ रखता है कि तुम्हारी वजह से मैं जीवन ऊर्जा का आनंद ले पाया।
केवल पेनिट्रेशन को सेक्स समझने वाले, बलात्कारी है ।अपने ही साथी का बल पूर्वक हरण करना, बलात्कार ही होता है ।

आज जो 70 फीसदी महिला ऑर्गेज़्म से अनजान है, उसका कारण सेक्स की अज्ञानता है ।इस बात को अहंकार पर चोट न समझे, ब्लिक अपने आपको बेहतर बनाने का प्रयास करें ।अपनी महिला मित्र के पैर छुए, उससे अनुमति ले, उसके प्रति श्रद्धा भाव रखे ,और इस बात का ध्यान रखे कि उसे दर्द न दे ।आनंद दे ।

भले तुम दस मिनट ,आधे घण्टे का सेक्स कर लो, पर ओरत अछूती ही रह जाती है तुम्हारे स्पर्श से, और तुम भी अधूरे ही लौटकर आते है । बहुत धीरे धीरे शरीर तैयार होता है ,बहुत धीरे धीरे वो द्वार खुलते है, जब तुम्हे अनुमति मिले।
और ये सब समझने के लिए भीतर स्थिरता चाहिए ।और बिना मैडिटेशन के ये सम्भव नही ।
बिना मैडिटेशन जीवन उथला ही रहता है ।अगर गहराई चाहिए जीवन मे ,तो ध्यान बहुत जरूरी है ।
होश, ठहराव, स्थिरता, धीरज, प्रेम, श्रद्धा
ये सारे शब्द केवल ध्यान करने से ही जीवन मे उतरेंगे ।
किताबे पढ़ने या ज्ञान सुनने से कुछ नही होगा ।
बाकी फिर कभी ।

हम राही
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औरत की योनि और स्तन उनके शरीर का ऐसा भाग है जिसके लिए मर्द कुछ भी करने को तैयार होते हैं यहां तक कि जो काम उन्होंने जिंदगी में कभी नहीं किया वो काम इसकी चाहत में कर गुजरते हैं

समझ में नहीं आता की ये प्रेम अपनी पत्नी के लिए है या उनके शरीर के लिए, ये लगाव उनसे है या उनके निजी अंगो से

यदि कोई स्त्री किसी पुरुष को अपने निजी अंगो तक पहुंचने दे रही है तो बेशक वो पुरुष उसके जीवन में कुछ खास जगह रखता है

घर में विवाह की बात होती तो मेरे मन में भी ख्याल आता की अब तो वो सब मिलेगा जो हर लड़के को चाहिए होता है,

खैर घर वालो ने शादी के लिए लड़की ढूंढना शुरू कर दिया, और कुछ ही महीने में प्रीति से शादी फिक्स हो गई,

शुरुवाती आकर्षण जिस्मानी होता है, दिखने ने सुंदर सुडौल शरीर, हो सकता हो आप को ये लग रहा हो कैसा लड़का है, लेकिन यकीन मानिए 90% लड़के शादी से पहले ये सब देखते हैं

मन में कई सवाल थे, लेकिन उन सब पर एक सवाल भारी था ये योनि और स्तन दिखने में चुने में कैसे होते होंगे

शादी हो गई, सब अच्छा चल रहा था, प्रीति से प्रेम हो गया था, लेकिन ये समझ नही आता की ये प्रेम प्रीति से है या उसके शरीर से

क्यों की किसी रात यदि प्रीति कुछ करने से मना करती तो मेरा मन खिन्न हो जाता और कई दिन हमारी बात ही नही होती

पर जब हमारे बीच समागम होता तो ना जाने कैसी पल भर में सब ठीक हो जाता,

कुछ समय बाद मेरी पत्नी पेट से होती है, डॉक्टर का इलाज शुरू करवाया, अब मन में एक बेचैनी भी थी की कैसे नए मेहमान की जिमेदारी ली जाए

अभी दिमाग में ये सब चल रहा था, तभी डॉक्टर ने बताया की प्रीति की नॉर्मल डिलीवरी नही हो सकती है ऑपरेशन करना होगा

ऑपरेशन को लेके दिमाग में अलग डर था, तभी कुछ लोगो ने सलाह दी की किसी और डॉक्टर को दिखाओ

2 3 डॉक्टर को दिखाने के बाद ये बात सामने आई की थोड़ी दिक्कत होगी, लेकिन नॉर्मल डिलेवरी करना ज्यादा अच्छा है,

9 मार्च को मैने प्रीति को भर्ती किया, कुछ ही समय बाकी था, बच्चे की डिलीवरी में, लेकिन तभी दर्द की वजह से प्रीति की पल्स गिरने लगी, और वो होश खोने लगी

डॉक्टर जानते थे की अगर ऐसी स्थिति में कुछ गडबड हुआ था तो बच्चा बाहर नही आपाएगा,

तुरंत डॉक्टर अपनी अटेंडेंट को बाहर भेजती हैं

और मुझे अंदर बुलाती हैं

मुझे पूरी बात समझाई गई और बोला गया की अपनी पत्नी को बुलाओ और उसे मोटिवेट करूं

मैने ऐसे ही किया, मेरे सामने मेरी पत्नी नग्न अवस्था में पड़ी हुई थी, उसकी योनि खुली हुई थी जिसे मैं देख सता था l,

मुझे दिखाई दे रहा था की बच्चे का सिर बाहर दिख रहा है

ये वही जगह थी जहां जिसकी चाहत मुझे हर रात होती थी

बच्चा बाहर आया तुरंत उसके सीने के कपड़े को हटाया गया और उसके स्तन दिख रहे थे और उसी स्तन पर बच्चे को लेता कर साफ कपड़े से ढक दिया गया

ये दोनो शरीर का वही अंग था जिसके लिए पुरुष सब कुछ करने को तैयार होता है उसे पाने की चाहत रखता है

जन्म भी उसी स्थान से होता है और जन्म के तुरंत बाद उसी छाती से गर्मी दी जाती है

लेकिन उस रात के बाद मेरी सोच मेरी पत्नी को लेके बदल गई, एक औरत इतने कष्ट और दर्द सिर्फ इस लिए सहती है की मेरा वंश आगे बढ़ सके

उस दिन मुझे ये समझ आया की मुझे उसके शरीर से नहीं बल्कि उससे प्रेम है

और उससे ज्यादा मेरी आंखों में मेरी मां की इज्जत बढ़ गई, और मुझे ये एहसास हुआ की इस दुनिया में मुझे लाने के लिए मेरी मां ने कितने कष्ट सहे हैं

मेरा मानना है जो लोग अपनी पत्नी को सिर्फ संभोग करने की चीज समझते हैं उन्हें एक बार प्रसव के दौरान अपनी पत्नी को जरूर देखना चाहिए

सोर्स : मेटा/फेसबुक