Awesh Tiwari
@awesh29
अडानी डिफेंस सिस्टम एंड टेक्नोलॉजी लिमिटेड 2017 ने अस्तित्व में आई और गजब यह कि महज पांच साल में अडानी मिसाइल से लेकर अत्याधुनिक ड्रोन और ऑटोमैटिक हथियार बनाने लगा! इस बात पर भला कौन भरोसा करेगा?
कल्पना करके देखिए जो कंपनी केवल टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करेगी वह इजरायल में 1.2 बिलियन डॉलर खर्च कर पोर्ट क्यों हासिल करेगी? अडानी ने समूचा हाइफा पोर्ट हासिल कर लिया। निस्संदेह ऐसा घातक हथियारों के आयात के लिया किया गया। चावल चीनी तो अडानी इजरायल से मंगा नहीं रहा
यह एक कड़वा सच है कि अडानी इजरायल से हथियार आयातित करके उन्हें रिबॉन्डिंग करके भारतीय सेना को सप्लाई कर रहा है। इसका नतीजा यह है कि जहां सेना को हथियार महंगे दामों में उपलब्ध हो रहे वहीं इजरायल के बीच में होने की वजह से जासूसी का खतरा बना रहता है।
कुछ साथियों का कहना है कि अडानी हथियार खुद उत्पादित कर रहा है अरे यार जो सरसों का तेल, आटा बेच रहा हो, किसानों के द्वारा उत्पादित सेब, आलू, टमाटर बेच रहा हो जो कोल्ड स्टोरेज खोल रहा हो, वह हथियार बनाएगा तो भला कैसे बनाएगा?
Organised Crime and Corruption Reporting Project का कहना है कि अडानी को पैसा विदेशी रूट से आ रहा है। जो सबसे ज्यादा शक किया जा रहा है चीन पर किया जा रहा है। अगर चीन के माध्यम से अडानी को विदेशी हथियार खरीदने और उस पर अपनी चिप्पी लगाने का पैसा मिल रहा तो यह बेहद खतरनाक है। भले वह रिवाल्वर हो या पिस्टल।
Shilpa Patil
@shilpatil07
अडानी डिफेंस की वृद्धि भारत के लिए संभवतः हानिकारक हो सकती है।
राष्ट्रीय सुरक्षा
चीन और अन्य देशों में अडानी का निवेश भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है। रक्षा आवश्यकताओं के लिए किसी एक निजी इकाई पर अत्यधिक निर्भरता राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता कर सकती है।
विदेशी हथियारों की रीब्रांडिंग
राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि अडानी डिफेंस विदेशी निर्मित हथियारों की रीब्रांडिंग कर मुनाफा कमाती है।
धन का विचलन
राहुल गांधी ने यह भी आरोप लगाया है कि अग्निवीर जैसी योजनाओं के माध्यम से सैनिकों और उनके परिवारों के लिए आवंटित धन का दुरुपयोग किया जाता है।
शक्ति का संकेन्द्रण
रक्षा क्षेत्र में अडानी का बढ़ता प्रभुत्व शक्ति के संकेन्द्रण और संभावित कमजोरियों के बारे में चिंता पैदा करता है।
भ्रष्टाचार के आरोप
कुछ लोगों का आरोप है कि अडानी, प्रमुख नियामक संस्थाओं और भाजपा के बीच “सांठगांठ” है। उदाहरण के लिए, राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि सेबी प्रमुख मधुबी बुच ने अडानी के बढ़े हुए मूल्यांकन को बचाने के लिए सिस्टम में हेरफेर किया।
साठगांठ वाला पूंजीवाद
अडानी समूह को फायदा पहुंचाने से अनुचित लाभ को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं।
निजी संस्थाओं पर अत्यधिक निर्भरता
यह एक और चिंता का विषय है, क्योंकि रक्षा क्षेत्र में अडानी के बढ़ते प्रभुत्व से महत्वपूर्ण रक्षा जरूरतों में कमजोरियाँ पैदा हो सकती हैं। यह अति-निर्भरता प्रतिस्पर्धा और नवाचार को भी दबा सकती है, अन्य रक्षा निर्माताओं के विकास में बाधा बन सकती है और संभावित रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता कर सकती है।
भारत सरकार को चाहिए:
1. मजबूत नियामक ढांचे को लागू करें।
2. प्रतिस्पर्धा और सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करें।
3. निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित करें
4. सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानूनों को मजबूत लागू करें।
5. व्यावसायिक समझौतों और शर्तों का नियमित रूप से खुलासा करें।
6. स्वतंत्र निरीक्षण तंत्र स्थापित करें।
7. मुखबिर सुरक्षा को प्रोत्साहित करें।
8. भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों और प्रवर्तन को मजबूत करें।
रक्षा विनिर्माण में पारदर्शिता, जवाबदेही और प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करते हुए *मजबूत नियामक ढांचे* के माध्यम से इन चिंताओं को दूर करना आवश्यक है। इससे संभावित जोखिमों को कम करने में मदद मिलेगी और यह सुनिश्चित होगा कि अदाणी की रक्षा वृद्धि राष्ट्रीय सुरक्षा को कमजोर करने के बजाय उसमें योगदान दे रही है।