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शिमला के संजौली एरिया में मस्जिद के “अवैध हिस्से” को गिराने पर बनी सहमत : रिपोर्ट

शिमला के संजौली एरिया में एक मस्जिद के “अवैध हिस्से” को लेकर तनाव बना हुआ है.

इस बीच हिमाचल प्रदेश के पंचायती राज मंत्री अनिरूद्ध सिंह और लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने गुरुवार को बताया कि मस्जिद समिति के प्रतिनिधि उस पूरे हिस्से को सील और यहां तक कि गिराने पर भी सहमत हैं.

दोनों मंत्रियों ने गुरुवार को संयुक्त प्रेस वार्ता में बताया कि मस्जिद प्रबंधन समिति के अध्यक्ष मोहम्मद लतीफ़ और वक्फ़ बोर्ड के सदस्य मौलवी शेज़ाद ने मस्जिद समिति के बाक़ी प्रतिनिधियों के साथ शिमला नगर निगम के कमिशनर को पत्र सौंपा है. पत्र में उन्होंने बताया है कि वो मस्जिद के अतिरिक्त हिस्से को गिराने पर तैयार हैं.

अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू के मुताबिक़ वेलफेयर समिति के सदस्य मुफ़्ती मोहम्मद शाफ़ी ने बताया, “हमने नगर निगम से मस्जिद के अवैध हिस्से को ध्वस्त करने की मंज़ूरी मांगी है.” समिति में मस्जिद के इमाम, वक्फ़ बोर्ड के सदस्य और मस्जिद प्रबंधन समिति शामिल हैं.

मंत्रियों ने आरोप लगाया कि कुछ लोग इस पूरे घटनाक्रम को अपने निजी स्वार्थ के लिए सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ”वे भूल रहे हैं कि इस विवादित ढांचे का निर्माण कोविड काल के दौरान हुआ था, जब राज्य में बीजेपी सरकार थी.”

अब इस मामले में गुरुवार को शिमला पुलिस ने शहर की पूर्व मेयर और भाजपा की महिला नेता सत्या कौंडल सहित 50 से अधिक लोगों पर मामला दर्ज़ किया है.

वहीं शिमला के पुलिस अधीक्षक संजीव गांधी ने बताया, “शहर में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 163 लागू थी और किसी भी प्रकार के प्रदर्शन कि भी अनुमति नहीं थी. ऐसे में इस धारा के उल्लंघन का मामला बनता है.”

उन्होंने यह भी कहा, “शहर में शांति व्यवस्था बनी रहे इसके लिए हरसंभव प्रयास किये गए हैं. शिमला पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता कि धारा 196 (समुदायों के बीच नफ़रत फैलाना), 189 (बिना अनुमति के इकठ्ठा हुई भीड़ में ख़तरनाक हथियार लेकर जाना) , 126 (2) (अनुचित अवरोध करना) और 61 (2) (अपराध की साजिश रचना) के तहत मामले दर्ज़ किए गए हैं.”

जबकि बीजेपी की महिला नेता सत्या कौंडल ने बीबीसी से बात करते हुए कहा, “यह एक शांतिपूर्वक जनांदोलन था लेकिन सरकार ग़लत करने वालों के साथ खड़ी है. जिसने ग़लत किया उसे सजा मिले और ग़.लती का सुधार हो, सभी यह चाहते हैं, यह कोई धर्म का मुद्दा नहीं है लेकिन कांग्रेस सरकार इसे एक धार्मिक मुद्दे के रूप में प्रचारित करने में लगी है.”

ताज़े विवाद की शुरुआत कैसे हुई

30 अगस्त की रात को मल्याणा क्षेत्र में रहने वाले यशपाल का सैलून चलाने वाले कुछ मुस्लिम युवकों से विवाद हुआ था.

पुलिस के मामला दर्ज करने पर पता चला कि जिन युवकों पर मारपीट का आरोप है, वे संजौली की मस्जिद में रहते हैं.

ये लोग मूल रूप से यूपी के मुरादाबाद के थे. पुलिस ने अभियुक्तों के आधार कार्ड की जांच की तो उनमें से अधिकांश की जन्मतिथि एक जनवरी थी. इस पहलू को लेकर शक होने पर मल्याणा, चम्याणा के स्थानीय लोगों ने इनके दस्तावेज़ों की जांच की मांग की.

इसके बाद गांव के लोगों ने दो सितंबर को मस्जिद के पास धरना दिया. इस दौरान मस्जिद के अवैध निर्माण का मुद्दा भी उठा. स्थानीय लोगों का मस्जिद को गिराने को लेकर प्रदर्शन इतना तीव्र हुआ कि 11 सितंबर को इस प्रदर्शन पर क़ाबू पाने के लिए पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा.

हिन्दू संगठन से जुड़े एक पदाधिकारी कमल गौतम ने बीबीसी से बात करते हुए बताया कि यह मामला सही और ग़लत के बीच का मामला है. सरकार से उम्मीद थी कि निष्पक्ष सुनवाई होगी और जल्द फ़ैसला आएगा लेकिन उल्टा सरकार मामले को और खींचना चाह रही है.

एक और प्रदर्शनकारी बॉबी राणा ने कहा कि यह आम लोगों का आंदोलन था और इसमें सब लोग शिमला के नागरिक होने के नाते शामिल हुए. राणा ने बताया कि इस आंदोलन में कुछ कांग्रेस के लोग भी शामिल हुए. कुछ विशलेषकों का दावा है कि विरोध प्रदर्शन को राज्य की विपक्षी भारतीय जनता पार्टी का समर्थन हासिल है, हालांक भाजपा इस मामले में चुप्पी साधे बैठी है.

हालाँकि प्रदर्शन खत्म होने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इंदिरा गाँधी मेडिकल कॉलेज पहुँच कर प्रदर्शन में चोटिल हुए लोगों का कुशल क्षेम पुछा और सरकार की निंदा की.

वैसे इस मस्जिद की ज़मीन को लेकर भी विवाद है. नगर निगम के एक अधिकारी ने बीबीसी से नाम न छापने की शर्त पर ये बताया कि प्रशासन की जांच में पता चला है कि मस्जिद का मालिकाना हक़ प्रदेश सरकार का है लेकिन कब्ज़ा वक़्फ़ बोर्ड का है.

इस मामले में शिमला नगर निगम का साल 2010 से मस्जिद चलाने वाली समिति से विवाद चल रहा है, साल 2022 में इसमें वक्फ़ बोर्ड का नाम जोड़ा गया.

शिमला नगर निगम के आयुक्त की अदालत में इस मामले की अगली सुनवाई पांच अक्तूबर को होनी है.

विधानसभा में उठा मुद्दा

वैसे यह मामला तब राष्ट्रीय स्तर पर सुर्ख़ियों में आया जब कांग्रेस की राज्य सरकार के ग्रामीण विकास मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने इस मामले को विधानसभा में उठाया.

अनिरुद्ध सिंह ने कहा, ”बिना अनुमति के 2010 में काम शुरू किया गया और अब तक लगभग 2500 वर्ग फुट का अवैध निर्माण किया गया. साल 2019 तक चार अतिरिक्त मंज़िल का अवैध निर्माण हो चुका था. जब 2010 से केस चल रहा था, तब 2019 तक चार मंजिल कैसे बनी? प्रशासन कहां सो रहा था?”

एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इस वीडियो को शेयर कर लिखा, “क्या हिमाचल की सरकार बीजेपी की है या कांग्रेस की? हिमाचल की “मोहब्बत की दुकान” में नफ़रत ही नफ़रत! इस वीडियो में हिमाचल का मंत्री बीजेपी की ज़ुबान में बोल रहा है.”

ओवैसी ने कहा, “हिमाचल के संजौली में मस्जिद निर्माण को लेकर कोर्ट में केस चल रहा है. संघियों के एक झुंड ने मस्जिद को तोड़ने की मांग की है. संघियों के सम्मान में, कांग्रेसी मैदान में. भारत के नागरिक मुल्क के किसी भी हिस्से में रह सकते हैं, उन्हें “रोहिंग्या” और “बाहरी” बुलाना देश विरोधी है.”

अनिरुद्ध सिंह ने ओवैसी को बीजेपी की बी टीम क़रार दिया. वो बोले, ”बात क़ानून के पालन की है और कांग्रेस एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी है.”

वहीं लोकनिर्माण और शहरी विकास मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने कहा, “क़ानून के हिसाब से कार्रवाई होगी. सभी को शांतिपूर्वक प्रदर्शन करने का अधिकार है. अगर ये भवन अवैध पाया गया तो निश्चित रूप से गिराया जाएगा.”

पूरे मामले में ज़िम्मेदारी किसकी?

सामाजिक कार्यकर्ता सुशील कुमार गौतम ने कहा, ”जब से यह मामला शुरू हुआ, तब से शिमला नगर निगम सत्ता में बीजेपी, कांग्रेस और वामपंथी रहे. राज्य में बीजेपी और कांग्रेस की सरकार रही, कई अधिकारी बदले गए लेकिन इस ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया. किसे दोष दिया जाए? इस मामले में वर्तमान सरकार त्वरित कार्रवाई करके एक उदाहरण पेश कर सकती है.”

गौतम ने बताया, ”बीते सालों में शिमला नगर निगम में पांच मेयर, आठ आयुक्त और 10 आर्किटेक्ट रहे जिन पर अवैध निर्माण को रोकने का ज़िम्मा था.”

शिमला नगर निगम की परिधि में निर्माण के लिए अनुमति लेना और भवन का नक्शा तय नियमों से पास करवाना अनिवार्य है. शिमला में साढ़े तीन मंज़िल तक के भवन बनाए जा सकते हैं लेकिन उसके लिए पहले नक्शा पास करना ज़रूरी है. इस मामले में ऐसा नहीं हुआ.

शिमला नगर निगम के एक अधिकारी ने बताया कि यह साफ़ नहीं है कि निर्माण किसने करवाया? वक़्फ़ बोर्ड के अधिकारी कुतुबुद्दीन ने कहा, ”मस्जिद का प्रबंधन देखने वाले लोगों ने निर्माण करवाया था, अब उन लोगों को हटा दिया गया है. मस्जिद का काम नई संचालन समिति देख रही है.”

हिमाचल प्रदेश के पुलिस महानिदेशक अतुल वर्मा ने बीबीसी से कहा, “प्रदेश में कानून व्यवस्था बनाए रखना प्राथमिकता है और उसके लिए हर संभव प्रयास किया है. पुलिस हर पहलू की जांच कर रही है और अभी तक कोई भी चिंताजनक बात सामने नहीं आई है. भवन मामले के बारे में नगर निगम को फ़ैसला देना है.”

इस बीच अवैध निर्माण को सील करने और उसे गिराने के लिए मस्जिद की प्रबंधन कमिटी, मुस्लिम वेलफेयर कमेटी के सदस्यों ने गुरुवार को नगर निगम कमिश्नर से मुलाकात की और मस्जिद का अवैध निर्माण खुद गिराने की अनुमति मांगी है.

संजौली मस्जिद के इमाम शहजाद ने कहा कि नगर निगम शिमला कमिश्नर कोर्ट से अपील की गई है कि संजौली मस्जिद को सील किया जाए और अगर कोर्ट इजाजत देती है तो कमेटी खुद ही इस अवैध निर्माण को गिराने के लिए तैयार है.

हिमाचल में हिंदू मुस्लिम की आबादी

राजनीतिक विश्लेषक डॉ. रमेश सिंह कहते हैं, “शिमला में जनता का आंदोलन कभी-कभी होता है. 2016 में शिमला ज़िले के कोटखाई में एक स्कूली बच्ची से दुष्कर्म हुआ था, तब भी ऐसा आंदोलन दिखा था. मौजूदा सरकार को जल्द फ़ैसला लेना होगा.”

मस्जिद के पास रहने वाले निर्मल सिंह बताते हैं, “यहाँ मस्जिद बहुत पहले से है और नमाज़ भी पढ़ी जाती है लेकिन पिछले पांच सालों में धड़ाधड़ पांच मंज़िल का भवन तैयार हो गया. बाहर से आने वाले मुस्लिम युवकों की संख्या भी बढ़ गई. दिक़्क़त तो है लेकिन विरोध करें तो किसका करें? अवैध तो कई लोगों के घर भी हैं, केस उनके भी चल रहे हैं. हम लोग इसमें इसलिए जुड़े कि अवैध निर्माण ध्वस्त हो और जो भी यहाँ रहे क़ानून के हिसाब से रहे. अब किसके पास मालिकाना हक़ है, यह सरकार तय करे.”

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू ने हाल ही में कहा था, ”लोग अवैध भवन इसलिए बना देते हैं क्योंकि सरकारें उनको नियमित कर देती हैं. लेकिन अब अधिकारियों की ज़िम्मेदारी तय करने की ज़रूरत है. सरकार इसके लिए नियम बनाएगी.”

2011 की जनगणना के मुताबिक़- शिमला में मुस्लिम आबादी लगभग 2.40 फ़ीसदी और हिंदू आबादी लगभग 94 फ़ीसदी है.

शिमला के एक मुस्लिम कारोबारी मोहम्मद इमरान कहते हैं, “यह मामला मस्जिद के निर्माण नियमों के अनुसार वैध और अवैध होने का है. अगर कोई व्यक्ति ग़लत या झूठे कागज़ात के साथ पकड़ा जाता है तो उस पर नियमानुसार कार्रवाई हो लेकिन सारे समुदाय को निशाना बनाना और सबको एक नज़र से देखना भी ठीक नहीं है.”

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सौरभ चौहान
पदनाम,शिमला से बीबीसी हिंदी के लिए